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१२ वर्ष का शम्भू कैमरे को देखकर पत्थर उठा लेता है, क्यूँ न उठाये वो पत्थर? सत्ता की शर्मनाक चुप्पी, प्रशासन की बदनीयती और जनप्रतिनिधियों की कफ़न खसोटी का असर कुछ तो होना था| गनीमत है कि अति नक्सल प्रभावित इस जनपद का रहने वाला अपाहिज शम्भू बन्दूक नहीं उठा रहा| सिर्फ शम्भू ही नहीं जिंदगी को घिसट-घिसट कर चलना सोनभद्र के उन हजारों, स्त्री, पुरुषों की नियति है जिन्हें फ्लोरोसिस का कहर तिल-तिल कर मार रहा है।
- सोनभद्र में फ्लोरोसिस से भारी तबाही
- कई गावों में बरसों से नहीं गूंजी शहनाई
- नपुंसक बना रहा फ्लोराइड
विकलांगता का हाल ये है कि जलनिधि समेत तमाम योजनाओं मे करोड़ों रुपए खर्च किए जाने के बावजूद यहाँ के आदिवासी गिरिजनों के हिस्से में एक बूँद भी स्वच्छ पानी नहीं| फ्लोराइड रूपी जहर न सिर्फ़ इनकी नसों मे घूल रहा है, बल्कि निर्बल व निरीह आदिवासियों के सामाजिक-आर्थिक ढाँचे को भी छिन्न-भिन्न कर रहा है,आज भी यहाँ के आदिवासी गिरिजन जहर मिश्रित जल पीने को मजबूर हैं| फ्लोरोसिस से हो रही इस भारी तबाही के लिए आदित्य बिरला ग्रुप की हिंडाल्को इंडस्ट्रीज लिमिटेड और कनोरिया केमिकल सीधे तौर पर जिम्मेदार हैं, लेकिन लखनऊ से दिल्ली तक सभी शर्मनाक चुप्पी साधे बैठे हैं|
स्थिति की गंभीरता का अंदाजा आप इस तथ्य से लगा सकते हैं कि हाल ही में देहरादून स्थित पीपुल साइंस इंस्टिट्यूट ने जब लगभग १४७ गांवों के ३५८८ बच्चों में फ्लोराइड के असर का परीक्षण किया तो २२१९ बच्चों में इसका असर पाया गया|
अगर आपको बेचारगी का चेहरा देखना है तो सोनभद्र आइये! कुसुम्हा गांव से गुजरते वक़्त हमें अपाहिज बच्चों का एक झुंड हैंडपंप से लड़ते दिखता है, जल निगम द्वारा लगाये गए इस हैंडपंप में फ्लोराइड प्रदूषित जल को साफ़ करने के लिए फिल्टर लगा है, गांव के लोग बताते हैं पिछले २ वर्षों फिल्टर में केमिकल नहीं डाला गया, सो ये बेकार हो गया है| पास ही की एक झोपडी में जब हम घुसते हैं तो देखते हैं दो छोटे बच्चे जमीन पर नंगे खेल रहे हैं। चलने से लाचार माँ सुखदेवी बिस्तर पर लेटी हुई है, बच्चों के दाँतों पर भी फ्लोराइड का असर साफ़ नजर आता है, सुखदेवी कहती हैं 'हमने बच्चों को जन्म देकर बहुत बड़ा पाप किया सरकार', हमारे माँ बाप गरीब थे तो ऐसे गांव में शादी कर दी, अब तो कोई अपनी बेटी इस गांव को नहीं देना चाहता| वहीँ कुछ दूर पडवा कोद्वारी गांव में बिस्तर पर लेटा गुलाब हमारे सवालों को सून सुनकर फूट -फूट कर रो पड़ता है| फ्लोराइड ने उसके साथ-साथ तीन जवान बेटों और पत्नी को भी पंगु बना दिया, वो बताता है अब हम दाने-दाने को मोहताज हैं, नरेगा में भी हमें काम नहीं मिलता, न तो हम मजदूरों को पानी पिला सकते हैं और न कोई और काम कर सकते हैं|
फ्लोरोसिस प्रभावित जिन भी गांवों का हमने दौरा किया वहां पाया की जबरदस्त जल संकट से जूझ रहे इलाकों में लोग मजबूरन लाल निशान लगे फ्लोराइड प्रदूषित चापाकलों का पानी पी रहे हैं| पडवा कोद्वारी में जल निगम द्वारा स्वच्छ पेयजल की आपूर्ति हेतु मोटर तो लगा दी गयी, लेकिन जनरेटर में तेल न होने की वजह से पिछले ३ वर्षों से पानी की आपूर्ति ठप्प है|
कोद्वारी के रामप्रताप का शरीर इस कदर अंकडा कि वो चारपाई से कभी उठ नहीं पाते उनकी पत्नी व लड़का भी इस भयावह रोग की चपेट मे हैं। कमोबेश यही हाल रामवृक्ष,चन्द्रभान,हरिकृष्ण समेत अन्य परिवारों का है। बच्चों में जहाँ फ्लोराइड की वजह से विषम अपंगता व आंशिक रुग्नता देखने को मिल रही है, वहीं गांव के विवाहितों ने अपनी प्रजनन व कामशक्ति खो दी है गांव के रामनरेश,कैलाश आदि बताते हैं 'अब कोई भी अपने लड़के-लड़कियों की शादी हमारे गांव में नहीं करना चाहता, देखियेगा एक दिन हमरे गांव टोलों का नामो-निशाँ मिट जाएगा|' महिलाओं में फ्लोराइड का विष कहर बरपा रहा है।
इलाके में गर्भस्थ शिशुओं के मौत के मामले सामने आ रहे हैं, स्त्रियाँ मातृत्व सुख से वंचित हैं, वहीं घेंघा, गर्भाशय के कैंसर समेत अन्य रोगों का भी शिकार हो रहे हैं, लगभग ८० फीसदी औरतों ने शरीर के सुन्न हो जाने की शिकायत की है| नई बस्ती की लीलावती, शांति, संतरा इत्यादी महिलाएं कहती हैं कि 'हम बच्चे पैदा करने से डरते हैं, वो भी कहीं इस रोग का शिकार न हो जाएं।'
फ्लोराइड प्रभावित इन गावों को लेकर स्वास्थ्य विभाग का रवैया बेहद शर्मनाक है, कस्बाई इलाकों में नियुक्ति को लेकर कसरतें कर रहे चिकित्सक इन गांवों में नहीं जाते, रोहनिया डामर के बालकिशुन बताते हैं 'अब तो कोई दवाएं देने भी नहीं आता, सब जानते हैं हमारी किस्मत में सिर्फ मौत लिखी है|'
आदिवासी बहुल इस जनपद में फ्लोरोसिस ने आम आदिवासियों पर चौतरफा आक्रमण किया है शारीरिक अक्षमता ने उन्हें सामाजिक और आर्थिक रूप से भी पंगु बना दिया है, जमीन होने के बावजूद खेत में बीज नहीं डाले जाते, स्कूल तो हैं पर बच्चे नदारद| चिकित्सक डॉ प्रियाल इस पूरी स्थिति को बेहद भयावह बताते हुए कहती हैं' फिलहाल तो यहाँ के आदिवासियों के पुनर्वास के अलावा इस आपदा से छुटकारा पाने का कोई विकल्प शेष नहीं है'|
फ्लोरोसिस का संक्रमण पोषण के स्तर से सीधे तौर पर जुड़ा होता है, जिन इलाकों में भी फ्लोरोसिस का कहर बरप रहा है वहां उसके समानांतर कुपोषण भी मौजूद है और ये एक तथ्य सरकार के हवाई स्वास्थ्य महकमे के चेहरे से नकाब उतार फेंकने के लिए काफी है| लेकिन सोनभद्र को चारागाह समझने वाली सरकार इनके दर्द को देखेगी, कहना मुश्किल है, जब तक हमारी आँखें खुलें संभव है कि एक समूची पीढ़ी नपुंसक और विकलांग हो जाए|
नोट -ये रिपोर्ट सोनभद्र के फ्लोरोसिस प्रभावित गांवों में वृहद् सर्वेक्षण के बाद लिखी गयी है, इस रिपोर्ट के सम्बंध में कोई भी जानकारी लेखक के सेलफोन 09838346828 पर ली जा सकती है|