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विस्फोट डॉट कॉम, 25 जनवरी 2011
कहते हैं हर शाम के बाद सुबह होती है हर दुःख के बाद सुख आता है, विदर्भ के भी कुछ इलाकों में ऐसा ही हुआ, बेहाल और बदहाल विदर्भ को जिस व्यक्ति से रोशनी मिली उसके पास भी एक सपना था वो सपना था विदर्भ को देश में उन्नत कृषि की सबसे बड़ी प्रयोगशाला बनाने का ,स्वामी विवेकानंद के आदर्शों पर चलते हुए आदिवासी –किसानों की सेवा को ही धर्म मानने वाले शुकदास जी महाराज विदर्भ के कवि घाघ हैं, आप यकीन न करें मगर आज सच है कि विदर्भ के कुछ गाँवों में आज बासमती गेंहू की फसल उपजाई जा रही है। रासायनिक कीटनाशकों के प्रयोग के बिना, लगभग सभी फसलों में ज्यादा से ज्यादा उत्पादन, परम्परागत कृषि को त्यागकर नयी तकनीक अपनाई जा रही है किसान कृषि और मौसम के अंतर्संबंधों को फिर से जानने और उस ओर लौटने की कोशिश भी कर रहे हैं। परिवर्तन की यह शुरूआत करनेवाले शुकदास जी महाराज से बात की विदर्भ के दौरे पर गये आवेश तिवारी ने।
आवेश तिवारी- आपको क्या लगता है ,पिछले एक दशक के दौरान विदर्भ कितना बदला है और यहाँ कि खेती कितनी बदली है?
शुकदास जी महाराज –सच कहूँ तो विदर्भ में कुछ भी नहीं बदला। यहाँ सिर्फ सोयाबीन की उपज बढ़ी है और बारिश के पानी पर निर्भर उपजों की पैदावार बढ़ी है ये बात सच है कि आज भी यहाँ पर पानी के वहीँ परम्परागत साधन मौजूद है जो एक दशक पूर्व थे, चूँकि सिंचाई के संसाधनों को विकसित नहीं किया गया सो खेती किसानी में भी कोई आमूल –चूल परिवर्तन नहीं हुआ।
आवेश तिवारी –विदर्भ के किसान लगातार आत्महत्या कर रहे थे ,क्या आपको लगता है इस स्थिति में परिवर्तन आया है ?
शुकदास जी महाराज –निश्चित तौर पर स्थिति में परिवर्तन आया है ?लेकिन जिन किसानों के पास कृषि के अलावा रोजगार साधन मौजूद हैं वहीँ खुशाल हुए हैं बाकी कृषि पर निर्भर किसानों के हालात में कोई खास परिवर्तन नहीं आया आपको पता है कि महाराष्ट्र में सीलिंग एक्ट लागू है जिसमे हर एक परिवार को ५४ एकड़ दिए जाने का प्रावधान है अफ़सोस ये है कि किसानों के पास मौजूद भूमि पीढ़ी दर पीढ़ी कम होती चली जाती है ,आज महाराष्ट्र में सीमान्त कृषकों की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है ऐसे किसान हैं जिनके एक से ढाई एकड़ ही जमें मौजूद है इन परिस्थितियों में वो कर्ज लेता है नशे का आदि हो जाता है, कम आया, अधिक खर्च,ये स्थिति किसान अधिक देर तक झेल नहीं पाता, परिणाम उसकी अकाल मौत के रूप में सामने आता है। अब तक जिन किसानों ने भी आत्महत्या कि वो सभी नशे के आदी हो गए थे।
आवेश तिवारी –महाराज ,अभी मध्य प्रदेश में पिछले सप्ताह तीन आदिवासियों ने आत्महत्या की है।
शुकदेव जी महाराज –(बीच में टोकते हुए )-शराब न पीने वाला किसान आत्महत्या करता ही नहीं। हमारे यहाँ डेढ़ लाख आदिवासी-किसान और उनके प्रतिनिधि हर साल विवेकानंद जन्मोत्सव पर आते हैं। ये सब जबर्दस्त गरीबी से जूझ रहे हैं अगर वो खेती के अलावा और कुछ न करें तो भूखे मर जाएँ। आदिवासी किसान परिवारों में परिवार नियंत्रण की असफलता भी इस स्थिति की एक वजह है ,आत्महत्या सिर्फ किसान करता है जिनके पास रोजगार के अन्य साधन उपलब्ध हैं वो आत्महत्या नहीं करते।
आवेश तिवारी –महाराज आपके पास यहाँ के दूर दराज के इलाकों से लाखों किसान आते हैं क्या आदिवासी – किसान अपनी मौजूदा स्थिति से संतुष्ट है ?
शुकदास जी महाराज –हाँ ,विदर्भ के किसानों का एक चरित्र है वो कम में भी खुश रहते हैं, बशर्ते कि कम ही सही मिल जाये खुश वो नहीं हैं जिनके पास जेमीन या तो बिलकुल नहीं है या नहीं के बराबर है, विदर्भ का ये दुर्भाग्य है कि यहाँ के किसान मजदूर और मजदूर किसान बन गए हैं।
आवेश तिवारी –महाराज ,इधर बीच देश में कृषि उपजों के दाम तेजी से बढे हैं, आटा दाल चावल प्याज के दामों में अप्रत्याशित वृद्धि से आम आदमी हिला हुआ है, आपको क्या लगता है महंगाई की इस स्थिति के कारण क्या है और इसका क्या समाधान हो सकता है ?
शुकदास जी महाराज –मैं सिर्फ इतना कहूँगा देश का किसान अब दिनों दिन आलसी होता जा रहा है. बात कड़वी जरुर मगर सच है. न जो किसान पश्चिम महाराष्ट्र का या अन्य राज्यों को हैं वो पूरे परिवार के साथ काम करता है. हमारे यहाँ विदर्भ में या फिर देश के उन इलाकों में जहाँ पैदावार का होती है वाहन सिर्फ एक काम करता है और बाकी सब घर में बैठे रहते हैं. अन्त्योदय जैसी योजनाओं ने किसान का बहुत नुक्सान किया है उसकी वजह से लोग दिन में ९० रूपए कमाते हैं और एक महीने का अनाज भी लेते हैं फिर खेती किसानी भला कोई क्यूँ करेगा? जब किसान दिन में मजदूरी करेगा और रात को शराब पिएगा तो खेती किसानी चौपट होगी ही। ऐसी योजनाओं को बंद कर देना चाहिए।
आवेश तिवारी-आप लोगों को बता दूँ कि शुकदेव जी महाराज “विवेकानद आश्रम “के संचालक भी हैं या आश्रम किसानों को बुनियादी सुविधाएँ उपलब्ध करने के लिए सरकार के समानांतर निजी स्तर पर तो काम कर ही रहा है और उन्हें खेती –किसानी की नयी तकनीक से भी परिचित करा रहा है। महाराज आप विवेकानद आश्रम को यहाँ के लोगों के बीच कहाँ देखते हैं ?
शुकदेव जी महाराज –हम अपने आश्रम की और से विदर्भ के 'कृषि सेवा केंद्र' स्थापित करने जा रहे हैं। हमारी कोशिश होगी की किसान को बीज न खरीदना पड़े वो घर में ही बीज तैयार करके रखे ,पुराने समय में लोग यही करते थे। हमने सोच रखा है विदर्भ में “बीजदान “ का महाभियान चलाया जाए, अब किसानों को आत्मनिर्भर किए जाने की जरुरत है और आश्रम ये करने के लिए कृतसंकल्पित है।
आवेश तिवारी- आपको क्या लगता है ,पिछले एक दशक के दौरान विदर्भ कितना बदला है और यहाँ कि खेती कितनी बदली है?
शुकदास जी महाराज –सच कहूँ तो विदर्भ में कुछ भी नहीं बदला। यहाँ सिर्फ सोयाबीन की उपज बढ़ी है और बारिश के पानी पर निर्भर उपजों की पैदावार बढ़ी है ये बात सच है कि आज भी यहाँ पर पानी के वहीँ परम्परागत साधन मौजूद है जो एक दशक पूर्व थे, चूँकि सिंचाई के संसाधनों को विकसित नहीं किया गया सो खेती किसानी में भी कोई आमूल –चूल परिवर्तन नहीं हुआ।
आवेश तिवारी –विदर्भ के किसान लगातार आत्महत्या कर रहे थे ,क्या आपको लगता है इस स्थिति में परिवर्तन आया है ?
शुकदास जी महाराज –निश्चित तौर पर स्थिति में परिवर्तन आया है ?लेकिन जिन किसानों के पास कृषि के अलावा रोजगार साधन मौजूद हैं वहीँ खुशाल हुए हैं बाकी कृषि पर निर्भर किसानों के हालात में कोई खास परिवर्तन नहीं आया आपको पता है कि महाराष्ट्र में सीलिंग एक्ट लागू है जिसमे हर एक परिवार को ५४ एकड़ दिए जाने का प्रावधान है अफ़सोस ये है कि किसानों के पास मौजूद भूमि पीढ़ी दर पीढ़ी कम होती चली जाती है ,आज महाराष्ट्र में सीमान्त कृषकों की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है ऐसे किसान हैं जिनके एक से ढाई एकड़ ही जमें मौजूद है इन परिस्थितियों में वो कर्ज लेता है नशे का आदि हो जाता है, कम आया, अधिक खर्च,ये स्थिति किसान अधिक देर तक झेल नहीं पाता, परिणाम उसकी अकाल मौत के रूप में सामने आता है। अब तक जिन किसानों ने भी आत्महत्या कि वो सभी नशे के आदी हो गए थे।
आवेश तिवारी –महाराज ,अभी मध्य प्रदेश में पिछले सप्ताह तीन आदिवासियों ने आत्महत्या की है।
शुकदेव जी महाराज –(बीच में टोकते हुए )-शराब न पीने वाला किसान आत्महत्या करता ही नहीं। हमारे यहाँ डेढ़ लाख आदिवासी-किसान और उनके प्रतिनिधि हर साल विवेकानंद जन्मोत्सव पर आते हैं। ये सब जबर्दस्त गरीबी से जूझ रहे हैं अगर वो खेती के अलावा और कुछ न करें तो भूखे मर जाएँ। आदिवासी किसान परिवारों में परिवार नियंत्रण की असफलता भी इस स्थिति की एक वजह है ,आत्महत्या सिर्फ किसान करता है जिनके पास रोजगार के अन्य साधन उपलब्ध हैं वो आत्महत्या नहीं करते।
आवेश तिवारी –महाराज आपके पास यहाँ के दूर दराज के इलाकों से लाखों किसान आते हैं क्या आदिवासी – किसान अपनी मौजूदा स्थिति से संतुष्ट है ?
शुकदास जी महाराज –हाँ ,विदर्भ के किसानों का एक चरित्र है वो कम में भी खुश रहते हैं, बशर्ते कि कम ही सही मिल जाये खुश वो नहीं हैं जिनके पास जेमीन या तो बिलकुल नहीं है या नहीं के बराबर है, विदर्भ का ये दुर्भाग्य है कि यहाँ के किसान मजदूर और मजदूर किसान बन गए हैं।
आवेश तिवारी –महाराज ,इधर बीच देश में कृषि उपजों के दाम तेजी से बढे हैं, आटा दाल चावल प्याज के दामों में अप्रत्याशित वृद्धि से आम आदमी हिला हुआ है, आपको क्या लगता है महंगाई की इस स्थिति के कारण क्या है और इसका क्या समाधान हो सकता है ?
शुकदास जी महाराज –मैं सिर्फ इतना कहूँगा देश का किसान अब दिनों दिन आलसी होता जा रहा है. बात कड़वी जरुर मगर सच है. न जो किसान पश्चिम महाराष्ट्र का या अन्य राज्यों को हैं वो पूरे परिवार के साथ काम करता है. हमारे यहाँ विदर्भ में या फिर देश के उन इलाकों में जहाँ पैदावार का होती है वाहन सिर्फ एक काम करता है और बाकी सब घर में बैठे रहते हैं. अन्त्योदय जैसी योजनाओं ने किसान का बहुत नुक्सान किया है उसकी वजह से लोग दिन में ९० रूपए कमाते हैं और एक महीने का अनाज भी लेते हैं फिर खेती किसानी भला कोई क्यूँ करेगा? जब किसान दिन में मजदूरी करेगा और रात को शराब पिएगा तो खेती किसानी चौपट होगी ही। ऐसी योजनाओं को बंद कर देना चाहिए।
आवेश तिवारी-आप लोगों को बता दूँ कि शुकदेव जी महाराज “विवेकानद आश्रम “के संचालक भी हैं या आश्रम किसानों को बुनियादी सुविधाएँ उपलब्ध करने के लिए सरकार के समानांतर निजी स्तर पर तो काम कर ही रहा है और उन्हें खेती –किसानी की नयी तकनीक से भी परिचित करा रहा है। महाराज आप विवेकानद आश्रम को यहाँ के लोगों के बीच कहाँ देखते हैं ?
शुकदेव जी महाराज –हम अपने आश्रम की और से विदर्भ के 'कृषि सेवा केंद्र' स्थापित करने जा रहे हैं। हमारी कोशिश होगी की किसान को बीज न खरीदना पड़े वो घर में ही बीज तैयार करके रखे ,पुराने समय में लोग यही करते थे। हमने सोच रखा है विदर्भ में “बीजदान “ का महाभियान चलाया जाए, अब किसानों को आत्मनिर्भर किए जाने की जरुरत है और आश्रम ये करने के लिए कृतसंकल्पित है।