प्रदूषण और अवर्षण से दम तोड़ रहा रिहंद

Submitted by admin on Mon, 11/30/2009 - 21:01

उत्तर भारत में उर्जा संकट बेकाबू होने का खतरा


अगली बरसात तक निर्बाध उत्पादन के लिए न्यूनतम जलस्तर को बनाये रखने के लिए जरुरी है कि बाँध के जल को संरक्षित रखा जाए। गौरतलब है कि न्यूनतम जलस्तर के नीचे जाने पर बिजलीघरों की कूलिंग प्रणाली हांफने लगती है, अवर्षण की निरंतर मार झेल रहे रिहंद की वजह से पिछले पांच वर्षों से ग्रीष्मकाल में ताप विद्युत् इकाइयों को चलाने में दिक्कतें आ रही थी, लेकिन इस वर्ष का खतरा ज्यादा बड़ा है।
प्रदूषण के अथाह ढेर पर बैठा रिहंद समूचे उत्तर भारत में अभूतपूर्व उर्जा संकट की वजह बन सकता है। लगभग 15,000 मेगावाट के बिजलीघरों के लिए प्राणवायु कहे जाने वाले रिहंद बाँध की स्थिति इतनी खराब हो चुकी है कि आने वाले दिनों में रिहंद के पानी पर निर्भर बिजलीघरों से उत्पादन ठप्प हो सकता है। आज रिहंद बाँध यानि कि पंडित गोविन्दवल्लभपंत सागर जलाशय का स्तर 848.7 फिट रिकॉर्ड किया गया जो पिछले वर्ष की तुलना में 6.7 फिट कम और वास्तविक न्यूनतम जलस्तर से मात्र 18.7 फिट अधिक है। अगली बरसात तक निर्बाध उत्पादन के लिए न्यूनतम जलस्तर को बनाये रखने के लिए जरुरी है कि बाँध के जल को संरक्षित रखा जाए ताकि अनपरा, शक्तिनगर, ओबरा, विन्ध्यनगर, बीजपुर और रेनुसागर समेत एन.टी.पी,सी और राज्य विद्युत् गृहों को पानी मिल सके, लेकिन उत्तर प्रदेश में जारी गंभीर बिजली संकट और उससे जुडी जल विद्युत् इकाइयों को चलने की मज़बूरी, रिहंद के जल को कितने दिनों तक सुरक्षित रख पायेगी कहना कठिन है। गौरतलब है कि न्यूनतम जलस्तर के नीचे जाने पर बिजलीघरों की कूलिंग प्रणाली हांफने लगती है, अवर्षण की निरंतर मार झेल रहे रिहंद की वजह से पिछले पांच वर्षों से ग्रीष्मकाल में ताप विद्युत् इकाइयों को चलाने में दिक्कतें आ रही थी, लेकिन इस वर्ष का खतरा ज्यादा बड़ा है।

हैरानी ये होती है कि केंद्र और प्रदेश की हुकूमतें उर्जा समस्या और ख़ास तौर से रिहंद के के प्रति संवेदनशील नहीं हैं, जबकि संकट की गंभीरता बढती जा रही है। आज रिहंद की मौजूदा स्थिति प्रदूषण की वजह से है रिहंद बाँध अपना 120 साल की उम्र 60 साल में ही पूरा कर चुका है, बाँध की तली में जमे कचड़े के अपार ढेर की वजह से ही उसके न्यूनतम जलस्तर को 820 से घटाकर 830 फिर करना पड़ा वहीँ उसकी जलग्रहण के अधिकतम स्तर को 882 से घटाकर 870 फिट कर दिया गया।

रिहंद बाँध की निगरानी में लगी स्ट्रक्चर बीहैवियर मोनिटरिंग कमेटी समेत तमाम एजेंसियां मौजूदा स्थिति के लिए बाँध के मौजूदा प्रदूषण को ही जिम्मेदार मानती है। अभी कुछ दिनों पूर्व जब रिहंद के जल को पीने से लगभग दो दर्जन लोगों की मौत हुई तो स्वास्थ्य विभाग ने जलाशय के जल को विषाक्त घोषित कर दिया जांच में पाया गया कि 1080 वर्गमील में फैला अमृतमय जल अब मानव और मवेशियों, जलचर नभचर के लिए उपयोगी नहीं रह गया, रिहंद बाँध के विषाक्त जल का भयंकर प्रभाव इस इलाके की पारिस्थितकी पर भी पड़ रहा है विषैले जल से पूरे इलाके का भूगर्भ जल भी विषाक्त होने का खतरा है।

दम तोड़ता रिहंददम तोड़ता रिहंदरिहंद सागर का पानी ओबरा बाँध की विशाल झील में जाता है, यहाँ से यह पानी ओबरा बिजलीघर की राख, जले हुए तेल, खदानों और क्रेशरों का उत्सर्जन लेकर रेणुका और सोन नदी दोनों को विषैला बनाता है, इस प्रदूषित पानी ने रिहंद ओबरा की सुनहरी नीली काया को स्याह कर डाला है, जमीन का पानी तो विषैला था ही पिछले कुछ वर्षों से तेज़ाब की वर्षा भी हो रही है। इलेक्ट्रो-दी-फ्रांस के अन्वेषी दल, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, वनवासी सेवा आश्रम, विचार मंच तथा अन्य संस्थाओं द्वारा किये गए अध्ययन की रिपोर्ट कहती है कि उर्जा की कामधेनु रिहंद बाँध का पानी विषाक्त हो चुका है, बिजलीघरों की शुद्धिकरण प्रणाली अविश्वश्नीय है, राख बाँध विफल है। जिन बिजलीघरों ने इस बाँध को दूषित किया वही अब इसके कोप का शिकार हो रहे हैं।

रिहंद बाँध के सम्बंध में एक तथ्य ये है कि इसका आकार कटोरे कि तरह है ऐसे में इसके जलस्तर में बढ़ोत्तरी की अपेक्षा, जलस्तर के घटने कीदर ज्यादा तेज होती है, मौजूदा समय में बाँध से जल के वाष्पीकरण की दर लगभग .05 फीट प्रतिदिन है जबकि अप्रैल मई तक यह दर .1 फीट प्रतिदिन तक हो जाती है, विशेषज्ञों का मानना है कि अगर तात्कालिक तौर पर बाँध के जलस्तर को विशेष निगरानी में नहीं रखा गया, और ओबरा एवं रिहंद जल विद्युत् गृहों से उत्पादन को सीमित नहीं किया गया, तो आने वाले दिन समूचे उत्तर भारत के साथ-साथ नेशनल ग्रिड के लिए अभूतपूर्व संकट की वजह बन सकते हैं। स्थिति की गंभीरता को स्वीकार करते हुए सिंचाई विभाग के अभियंता कहते हैं 'हम विवश हैं बाँध में जमे कचड़े की वजह से एक निश्चित लेवल तक ही ताप विद्युत् संयंत्रों को कुलिंग वाटर की सप्लाई दी जा सकती है, ऊँचाई में स्थित विद्युतगृहों में तो अब चेतावनी बिंदु से पूर्व ही कचड़ा जाने लगता है, हम प्रकृति और प्रदूषण के सामने कुछ नहीं कर सकते'।

रिहंद में पानी का अर्थ है देश की बिजली, भारत की सबसे सस्ती बिजली लेकिन ये भरता नहीं। जब राजीव गाँधी प्रधानमंत्री थे तब शक्तिनगर में केंद्रीय उर्जा मंत्री बसंत साठे ने इस इलाके को 'नेहरु उर्जा मंडल 'के अंतर्गत संरक्षित करने का सुझाव दिया था। लेकिन वक़्त बीता बात बीती, अब केंद्र और राज्य सरकारें यहाँ सिर्फ बिजलीघरों का जमघट लगाने में जुटी हुई हैं, इस पूरी अफरातफरी में रिहंद को अनदेखा किया जा रहा है जिसका नतीजा सामने हैं। खतरा सिर्फ बिजलीघरों को ही नहीं है, रिहंद के 400 किमी लम्बे जलागम क्षेत्र को भी है, उत्तर भारत में अगर उर्जा समस्या को काबू में रखना है तो रिहंद को प्रदूषण मुक्त करने के साथ-साथ केंद्र सरकार को तात्कालिक तौर पर 'हस्तक्षेप कर विशेष उर्जा प्राधिकरण’ का गठन करना चाहिए। बांधों के विशेषज्ञ अनिल सिंह कहते हैं शासन ने यदि रिहंद को प्राथमिकता नहीं दी तो आने वाले दिनों में न सिर्फ हमें ब्लैक आउट से जूझना होगा, बल्कि मौजूदा संकट लगभग 20 हजार मेगावाट के उन बिजलीघरों के लिए भी तमाम चुनौतियाँ पैदा कर देगा जिनका निर्माण अभी रिहंद के तट पर प्रस्तावित है।