हमारी राष्ट्रीय नदी गंगा के प्रदूषण का मुद्दा पिछले कई दशकों से भारत सरकार के लिए चिंता का विषय बना हुआ है। इसकी मूल वजह है गंगा के प्रति हम देशवासियों की अटूट आस्था। गंगा हमारे लिए महज एक नदी नहीं अपितु माँ है। भारतीय सभ्यता-संस्कृति, दर्शन-धर्म और अध्यात्म का पवित्र प्रवाह है। वैदिक काल से मध्ययुग तक हमारे गौरवशाली अतीत की साक्षी रही राष्ट्र की इस जीवनधारा के तटों पर ऐसी उन्नत सभ्यता विकसित हुई जिसने भारत को विश्व गुरु का दर्जा दिलाया। दुख का विषय है कि जिस गंगा की सौगंध ली जाती हो, जिसके जल की कुछ बूंदें मोक्षदायिनी मानी जाती हों, जिसकी असीमित शुद्धिकरण क्षमता वैज्ञानिक प्रयोगों से साबित हो चुकी हो, वह आज अपनी जीवनी शक्ति खोती जा रही है।
आजादी के बाद हुए अनियोजित व अनियंत्रित औद्योगिक विकास के कारण 11 राज्यों की 50 करोड़ से ज्यादा की आबादी को पानी देने वाली गंगा अपने तटों पर स्थापित उद्योगों से निकलने वले गंदे जहरीले अपशिष्ट तथा इंसानी कचरे से आज इस कदर प्रदूषित हो गई है कि इसकी गिनती दुनिया की सर्वाधिक प्रदूषित नदियों में होने लगी है। उल्लेखनीय है कि देश के मशहूर गीतकार साहिर लुधियानवी ने कई साल पहले गंगा की प्रशस्ति एक गीत लिखा था - ‘‘गंगा तेरा पानी अमृत, झर-झर बहता जाए, युग-युग से इस देश धरती तुझसे जीवन पाए...।’’ वाकई एक दौर में गंगा वैसी ही थी। लेकिन बीते पाँच दशकों में गंगा के अस्तित्व पर घोर संकट आन पड़ा है।
गंगा में प्रदूषण की भयावहता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सीवेज से उगली गई 12 अरब लीटर गंदगी गंगा और उसकी सहायक नदियों में प्रतिदिन बहाई जा रही है। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार देशभर के 900 से अधिक शहरों और कस्बों में 70 फीसदी गंदा पानी बिना शोधन के ही नदियों में छोड़ दिया जाता है। लगभग पाँच टन रासायनिक उर्वरक तथा 1500 टन कीटनाशक प्रतिवर्ष बहकर गंगा में मिल जाते हैं।
हिमालय में गंगात्री से निकलकर बंगाल की खाड़ी तक 2,525 किलोमीटर लम्बी यात्रा करने वाली गंगा उत्तराखण्ड, उत्तरप्रदेश, बिहार, झारखण्ड और पश्चिम बंगाल से गुजरते हुए देश की लगभग 40 प्रतिशत आबादी को आजीविका प्रदान करती है। लगभग 10 लाख वर्ग किलोमीटर तक फैले गंगा के कछारी क्षेत्र को विश्व का सर्वाधिक आबादी वाला उपजाऊ क्षेत्र माना जाता है। दर्जनभर सहायक और सैकड़ों छोटी-बड़ी मौसमी पठारी और मैदानी नदियों के साथ मिलकर इस समूचे क्षेत्र को सींचने वाली गंगा न सिर्फ कृषि आधारित अर्थतंत्र में भारी सहयोग करती है अपितु मत्स्य पालन, पर्यटन, साहसिक खेलों तथा उद्योगों के विकास में भी महत्त्वपूर्ण योगदान देती है। यह अपने तट पर बसे शहरों को जलापूर्ति करती है और देश के बड़े भूभाग को आवागमन के साधनों की भी सुविधा प्रदान करती है। गंगा नदी प्रणाली भारत की सबसे बड़ी नदी प्रणाली है। इस नदी में मछलियों तथा सर्पों की अनेक प्रजातियाँ तो पाई ही जाती हैं, मीठे पानी वाली दुर्लभ डाल्फिन भी सिर्फ गंगा में ही पाई जाती हैं।
गंगा का तटवर्ती क्षेत्र अपने शान्त व अनुकूल पर्यावरण के कारण अनेक प्रजातियों के रंग-बिरंगे पक्षियों का संसार अपने आंचल में संजोए हुए है। इसमें मछलियों की 140 प्रजातियाँ, 35 तरह के सरीसृप तथा 42 तरह के स्तनधारी हैं। उत्कृष्ट पारिस्थितिकी संरचना के चलते गंगा की घाटी नीलगाय, सांभर, खरगोश, नेवला, चिंकारा लंगूर, लाल बन्दर, भूरे भालू, लोमड़ी, चीते, बर्फीले चीते, हिरण, सांभर, कस्तूरी मृग, सेरो, बरड़ मृग, साही आदि अनेक दुर्लभ प्रजाति के वन्यजीवों की आश्रयस्थली बनी हुई है। यही नहीं, इसके तट पर विकसित तीर्थ जहाँ भारत का धार्मिक व सांस्कृतिक विरासत के महत्त्वपूर्ण केन्द्र हैं वहीं इसके ऊपर बने बांध, नदी परियोजनाएँ व पुल देशवासियों की बिजली, पानी और यातायात की जरूरतों को पूरा करते हैं। इतनी बहुआयामी उपयोगिता के बावजूद आज गंगा में प्रदूषण की भयावहता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सीवेज से उगली गई 12 अरब लीटर गंदगी गंगा और उसकी सहायक नदियों में प्रतिदिन बहाई जा रही है। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार देशभर के 900 से अधिक शहरों और कस्बों में 70 फीसदी गंदा पानी बिना शोधन के ही नदियों में छोड़ दिया जाता है। लगभग पाँच टन रासायनिक उर्वरक तथा 1500 टन कीटनाशक प्रतिवर्ष बहकर गंगा में मिल जाते हैं।
नेशनल कैंसर रजिस्ट्री प्रोग्राम के विगत दिनों हुए एक अध्ययन में पाया गया है कि अन्य लोगों की तुलना में गंगा किनारे रहने वाले उत्तर प्रदेश, बिहार व बंगाल के लोगों में कैंसर होने का खतरा ज्यादा होता है। आजादी के बाद गंगा की बिगड़ती स्थिति को देखते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने 1985 में गंगा एक्शन प्लान की नींव रखी थी। विभिन्न चरणों में 15 साल चली इस परियोजना पर लगभग 1000 करोड़ रुपए खर्च हुए मगर कोई कारगर नतीजा न निकल पाने के कारण अंततः 2011 में यह परियोजना बंद कर दी गई।
नमामि गंगे कार्यक्रम की उपलब्धियाँ
गंगा संरक्षण की दिशा में ठोस कार्रवाई 2014 में तब शुरू हुई जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने संसदीय क्षेत्र बनारस से नमामि गंगे अभियान की शुरुआत की। अपने इस ड्रीम प्रोजेक्ट को अमलीजामा पहनाने के क्रम में प्रधानमंत्री ने सबसे पहले जल संसाधन नदी विकास और गंगा संरक्षण के नाम से एक अलग मंत्रालय बनाया। पहले गंगा सफाई अभियान की जिम्मेदारी वन तथा पर्यावरण मंत्रालय की थी। इस नए मंत्रालय के तहत भारत सरकार ने जून 2014 में नमामि गंगे कार्यक्रम के लिए 20,000 करोड़ रुपए का बजटीय प्रावधान भी किया ताकि इस कार्य में वित्तीय अभाव बाधा न बने। एकीकृत राष्ट्रीय गंगा संरक्षण मिशन के तहत आठ योजनाएँ बनीं-सीवेज परिशोधन के लिए जरूरी ढांचे का विकास, नदी की सतह की सफाई, वृहद वृक्षारोपण, नदी में गिरने वाले औद्योगिक कचरे की रोकथाम और निगरानी, नदी तटों का विकास, जैविक धरोहर का संरक्षण, जन जागरण और गंगा ग्राम विकसित करना। मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार इन योजनाओं के क्रियान्वयन के क्रम में वर्तमान समय में पाँच राज्यो- उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड और पश्चिम बंगाल में सीवेज प्रबन्धन की 13 परियोजनाएँ चल रही हैं। 1187.33 एमएलडी क्षमता की सीवर परिशोधन परियोजना का काम भी इन पाँच राज्यों में चल रहा है। तत्कालीन जल संसाधन और गंगा पुनर्जीवन मंत्री नितिन गड़करी का कहना था कि बीते पाँच सालों में गंगा संरक्षण की दिशा में सरकार ने काफी काम किए हैं। हमें उम्मीद है कि गंगा स्वच्छता की दिशा में किए जा रहे हमारे प्रयासों के नतीजे जल्द ही देश की जनता के सामने होंगे। गंगा किनारे स्थित 760 ऐसी औद्योगिक इकाइयों की पहचान की गई है जिनसे निकलने वाले कचरे से नदी सर्वाधिक प्रदूषित होती है। ऐसी 562 इकाइयों में कचरा निगरानी यंत्र लगाए गए हैं। प्रदूषण फैलाने वाली 135 औद्योगिक इकाइयों को बंद करने के नोटिस जारी कर दिए गए हैं। शेष इकाईयों को अपने यहाँ कचरा निगरानी व्यवस्था निर्धारित समय में लगाने के निर्देश जारी किए गए हैं। प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के स्नान घाटों पर स्वच्छता स्पष्ट तौर पर देखी जा सकती है। शहर से निकलने वाले करोड़ों लीटर गंदे पानी को गंगा में गिराने वाले 30 नालों का मुँह कहीं और खोलने के लिए कदम उठाए गए हैं। आने वाले दिनों में अस्सी नाले को भी बन्द कर दिया जाएगा। राजघाट के स्थित शाही नाले को बन्द कर दिया गया है। गंगा की सतह से गंदगी साफ करने के लिए स्कीमर्स लगाए गए हैं। ऐसे ही प्रयागराज में बीते अर्द्धकुंभ के सफल आयोजन के लिए गंगा को साफ करने का काम युद्धस्तर पर हुआ। प्रयागराज शहर में ऐसे 64 नाले थे जिनका गंदा पानी गंगा में गिरता था। यहाँ सात सिवरेज ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित कर गंगा में गिरने वाली गदंगी को कम किया गया। शहर के 32 नालों को अब तक बंद किया जा चुका है। कानपुर में एशिया के सबसे बड़े सीसामऊ नाले को बंद कर दिया गया है। इस नाले से 14 करोड़ लीटर गंदा पानी प्रतिदिन गंगा में गिरता था।
इसी तरह गंगा तटों को विकसित करने के लिए 28 परियोजनाओं, 182 घाटों और 118 श्मशान स्थलों की मरम्मत व आधुनिकीकरण तथा निर्माण की 33 परियोजनाओं पर वर्तमान समय में काम चल रहा है। जैविक धरोहरों के संरक्षण के तहत गंगा नदी में मत्स्य पालन और डाल्फिन संरक्षण जैसे कई कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। देहरादून, नरोरा, इलाहाबाद, वाराणसी और बैरकपुर में जैव-विविधता धरोहर संरक्षण के पाँच केन्द्र विकसित किए जा रहे हैं। गंगा नदी के दोनों किनारों के प्राकृतिक संरक्षण और वृक्षारोपण के लिए वन अनुसंधान संस्थान, देहरादून द्वारा तैयार की गई परियोजना रिपोर्ट पर भी कार्य शुरू हो गया है। पाँच साल की इस कार्ययोजना पर 2016-2021 तक 2300 करोड़ रुपए का खर्च अनुमानित है। इसी तरह उत्तराखण्ड के सात जिलों में जन भागीदारी से औषधीय पौधों के विकास की परियोजना भी चल रही है।
गंगा ग्राम विकसित करने की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं। गंगा किनारे बसी 1674 ग्राम पंचायतों में 578 करोड़ रुपए की धनराशि से 15 लाख 27 हजार 105 शौचालय बनाने की योजना कार्यान्वित की जा रही है। इसके तहत अब तक 8 लाख 53 हजार 397 शौचालय तैयार हो चुके हैं। यही नहीं, इन ग्राम पंचायतों में से 65 गाँवों को पूर्ण विकसित कर आदर्श गाँव बनाने के लिए देश के 13 आईआईटी संस्थानों ने इन्हें गोद लिया है। साथ ही झारखण्ड को आदर्श राज्य के रूप में विकसित करने के लिए यूएनडीपी के साथ अनुबंध किया गया है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर भारत सरकार के गंगा संरक्षण की दिशा में उपरोक्त ठोस और गम्भीर प्रयास ईमानदारी से जारी रहे तो वह दिन दूर नहीं जब मैली गंगा निर्मल होकर झर-झर बहने लगेगी।
गायत्री परिवार का निर्मल गंगा जन अभियान
अखिल विश्व गायत्री परिवार ने गंगोत्री से लेकर गंगासागर तक माँ गंगा को स्वच्छ करने के लिए निर्मल गंगा जन अभियान चलाया हुआ है। संगठन के प्रमुख डॉ. प्रणव पंड्या कहते हैं कि जन-जन में देवत्व तथा घर-घर में संस्कृति व श्री-समृद्धि बिखरेती गंगा माँ को हमने अपने क्षुद्र स्वार्थों और अंधे विकास की खातिर मरणासन्न स्थिति में ला दिया है। माता आज भी अपना कर्तव्य निभा रही हैं, किन्तु हम उसकी संतान के रूप में उसे क्या दे रहे हैं ? जिस नदी को हमें आदर और सम्मान देना चाहिए था, उसमें हम अपने नगर का मैला, उद्योगों का कचरा, नालों का पानी, शव इत्यादि बहा रहे हैं, मानो वह एक कूड़ेदान हो। डॉ. पड्या के अनुसार औपचारिक रूप से निर्मल गंगा जन अभियान जून, 2013 में शुरू हुआ था। अभियान को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए सम्पूर्ण गंगा के 2,525 किलोमीटर लम्बे प्रवाह पथ को पाँच अंचलों में विभक्त किया गया है - 1. भागीरथी अंचल गोमुख से हरिद्वार तक 2. विश्वामित्र अंचल-हरिद्वार से कानपुर तक 3. भारद्वाज अंचल-कानपुर से बनारस तक 4. गौतम अंचल-बनारस से सुल्तानगंज तक और 5. रामकृष्ण अंचल-सुल्तानगंज से गंगासागर तक। इस अभियान के तहत गोमुख से गंगासागर तक विस्तृत सर्वेक्षण करने के उपरांत हम गंगा निर्मलीकरण के लिए विभिन्न कार्यक्रमों का संचालन कर रहे हैं। मिशन के कार्यकर्ता व गायत्री परिजनों के द्वारा गंगा संवाद के नाम से नदी के तटवर्ती नगरों व ग्रामों में गंगा की व्यथा-कथा का आयोजन किया जा रहा है। गंगा अमृत कुंभ के अंतर्गत पद यात्राओं/साइकिल यात्राओं के द्वारा जन सहयोग से गंगा की सफाई तथा गंगा के दोनों तटों को हरी चूनर पहनाने के लिए वृहद पैमाने पर पौधारोपण किया जा रहा है।