वर्षाजल संचयन का अनूठा उदाहरण

Submitted by admin on Sun, 04/19/2009 - 18:36

रेनवाटर हारवेस्टिंग तकनीक सप्लाई वाटर की कमी से निपटने का तरीका भर नहीं है, कई बार इसकी मदद से इतना पानी जमा हो जाता है कि दूसरे स्रोत की जरूरत नहीं पडती और कुछ नियमित रेनवाटर स्रोत तो दूसरों को उधार तक देने की स्थिति में भी आ जाते हैं. केरल के एक जिला पंचायत कार्यालय की यात्रा कर श्री पद्रे ने ऐसा ही एक उदाहरण खोज निकाला है.

09 अगस्त 2005 - केरल के कासरागोड का यह तीन मंजिला सरकारी भवन न तो बोरवेल पर निर्भर है, न तो जलापूर्ति या भूजल पर. पानी की जरूरतों के लिए इसका भरोसा सिर्फ बारिश से मिले पानी पर है और इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि अपनी जरूरत का सारा पानी यह छत से गिरने वाले जल से हासिल कर लेता है. यह कासरगोड राज्य का इकलौता डीपीओ है जो इतनी बडी मात्रा में रेनवाटर का इस्तेमाल करता है और बताया जाता है कि इसके रेनवाटर हारवेस्टिंग का सिस्टम सरकारी विभागों में सबसे बडा है. कासरागोड समाहरणालय के समीप स्थित इस कार्यालय परिसर में लगभग 100 कर्मचारी काम करते है और रोजना 100 से अधिक आगंतुक इसके शौचालय का इस्तेमाल करते हैं. पहले यह कार्यालय कुंए और बोरवेल पर निर्भर था, इसका कुंआ गर्मियों की शुरुआत में ही सूख जाता था और बोरवेल से काफी कम पानी निकलता था. स्वजलधारा 2 परियोजना का आफिस भी इसी भवन में था. दो साल पहले तक इस जिले में रेनवाटर हारवेस्टिंग को लेकर कोई भी उत्सुक नहीं था. उन्हें भी लोगों को आश्वस्त करने के लिए एक जीता-जागता माडल तैयार करना था. ऐसे में अधिकारियों ने सोचा क्यों न अपने डीपीओ में ही इसे आजमाया जाय.

जिला पंचायत अध्यक्ष श्रीमती ई़ पद्मावती बताती हैं कि इसे लागू करने से पहले वे लोग रेनवाटर हारवेस्टिंग तकनीक के बारे में ज्यादा नहीं जानते थे, मगर अब यहां के कर्मचारियों का इस पर इतना भरोसा कायम हो गया है कि वे अक्सर पूछते हैं कि इसे उनके घर पर लगवाने के लिए कोई स्कीम है क्या! इसे लागू करने से पहले उन्हें पानी की काफी समस्या थी, उनके शौचालय से हमेशा दुर्गंध आती थी.

इसके भंडारण टैंक की क्षमता 4.25 लाख लीटर है.
कार्यालय भवन के छत का क्षेत्रफल 560 वर्ग मीटर है. सालाना 35 सौ मिमी औसतन बारिश से इस छत से आसानी से 19.5 लाख लीटर पानी गिरता है. अब अगर वाष्पीकरण और दूसरे नुकसान को घटा दिया जाय तो भी 15 लाख लीटर पानी बच जाता है. स्वजलधारा का आंकलन था कि इस कार्यालय के लिए सालाना 6 लाख लीटर पानी पर्याप्त होगा. अब चूंकि बारिश पूरे साल होती है लिहाजा 4.25 लाख लीटर क्षमता वाला टैंक बनवाया गया. इसके बाद छत से नीचे आने वाली पाइपों को आपस में जोड दिया गया और इससे आने वाले पानी को अच्छी तरह से शुद्ध करके भूमिगत टैंक में जमा कर लिया जाता और 0.5 एचपी के मोटर से इसे ऊपर टैंक में जमा कर लिया जाता है. अगर टैंक ओवरफ्लो होने लगता है तो अतिरिक्त पानी से कुआं और ट्यूबवेल को रिचार्ज कर लिया जाता है. इस परियोजना के लिए कुल 4.25 लाख रुपये आवंटित थे मगर काम पूरा हो जाने के बाद भी 35 हजार रुपये बच ही गए.

आज यहां का कोई कर्मचारी घर से पीने का पानी नहीं लाता है. एहतियातन वे पीने से पहले इसे उबाल लेते हैं. यह पूछने पर कि क्या इस पानी को पीने में किसी को संकोच भी होता है

स्वजलधारा के टीम लीडर के टी बालाभास्करण बताते हैं - कतई नहीं ! आप जो यह काफी पी रहे हैं वह भी इसी पानी से बना है, मैं खुद हर रोज अपने पांच लोगों वाले परिवार के लिए यहां से 10 से 15 लीटर पानी ले जाता हूं. यह खाना पकाने और पीने के काम आता है.

इस बात से आश्वस्त होने की वजह से कि उनका रेनवाटर स्टोर गर्मी के अंत तक चलेगा डीपीओ ने पिछले साल अपना बोरवेल कैंटीन को उधार दे दिया. एक साल के अंदर ही उनका डग-वेल भी रिचार्ज हो गया. मार्च से मई तक हर दूसरे डग-वेल से पानी ओवरहेड टैंक में डाला जाता है इसके बावजूद यह नहीं सूखता, मानसून के पहले तक इसमें दो मीटर पानी बचा रहता है.

वेल के चारो ओर पचासेक इफिंल्ट्रेशन पिट बने हैं, इसके अलावा भूमिगत टैंक के ओवरफ्लो का कुछ हिस्सा भी इधर ही आता है. बालाभाष्करण बताते हैं कि इस परियोजना की सफलता से हमारी टीम में काफी आत्मविश्वास आया है. मैनें इससे पहले कभी बारिश का पानी नहीं पिया था और न ही रेनवाटर हारवेस्टिंग का कोई अनुभव था. मैं केरल राज्य पिछडी जाति विकास आयोग का एक अधिकारी हुआ करता था, वहां मेरा काम वित्तीय मामलों को संभालना था.

सफलता की इस कहानी ने पास और दूर के कई अध्ययण दलों को आकषित किया है. प्लानिंग बोर्ड के सदस्य श्री सी.पी. जॉन और कोल्लम कालेज के छात्रों के अलावा यहां महाराष्ट्र और उत्तरांचल का दल भी आ चुका है. रोजाना कलेक्टर के कार्यालय और डीपीओ आने वाले सैकडों लोग रेनवाटर टैंक देखने की इच्छा जाहिर करते हैं. इस सफल परियोजना को स्थानीय प्रेस ने काफी प्रसिदि्ध दी है. हालांकि हर कोई पूरी कहानी नहीं जानता. अधिकांश लोग जो इस प्रयास को पसंद करते हैं यह नहीं जानते कि डीपीओ पूरी तरह इसी स्रोत पर निर्भर है. यह सिर्फ देखने की नहीं बल्कि सबक लेने की चीज है. अगर स्वजलधारा कार्यालय या कोई दूसरी संस्था इस संदेश का ठीक से प्रचार-प्रसार करे तो रेनवाटर हारवेस्टिंग के बारे में जागरुकता फैलाने में काफी मदद मिलेगी.

पडोसी राज्य कर्नाटक में राज्य सरकार नगर निगम और जिला पंचायतों के जरिये रेनवाटर हारवेस्टिंग को लागू कराने की कोशिश कर रही है. मगर वहां बडी संख्या में लोग यह मानने को तैयार नहीं हैं कि सिर्फ छत से गिरने वाले बरसाती जल से इतना पानी जमा हो सकता है और इसका प्रयोग पीने के लिए भी किया जा सकता है. ऐसे शंकालु लोगों कासरागोड जाकर देखना चाहिए ताकि उनकी शंका दूर हो और दूसरों को भी इसके बारे में भरोसा दिला सकें.

संपर्क
केटी बालाभाष्करण
टीम लीडर, स्वजलधारा 2, सेक्टर रिफॉर्म प्रोजेक्ट
फोन 04998-256985
balabhaskarankt@rediffmail.com

श्री पद्रे
श्री पद्रे पेशे से पत्रकार हैं और कृषि पत्रकारिता में उनका कई सालों का अनुभव है. उन्होंने कई किताबें लिखी हैं, जिनमें से एक रेनवाटर हारवेस्टिंग पर है जिसका प्रकाशन अल्टरमीडिया ने किया है.

Tags- Rainwater Harvesting, Swajaldhara, Sri Padre, Safe Water