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समुद्रों के खारेपन की चर्चा के बगैर समुद्र का महत्व अधूरा रहेगा। यह सच है कि यदि समुद्र में पानी कम हो जाए, तो यही खारापन बढ़कर आसपास की इलाकों की ज़मीन बंजर बना दे; ऐसे इलाकों का भूजल पीने-पकाने लायक न बचे; लेकिन सच भी है कि समुद्री खारेपन का महत्व, इस नुकसान तुलना में कहीं ज्यादा फायदे की बात है। गर्म हवाएं हल्की होती हैं और ठंडी हवाएं भारी; कारण कि गर्म हवा का घनत्व कम होता है और ठंडी हवा का ज्यादा। यह बात हम सब जानते हैं। यही बात पानी के साथ है। जब समुद्र का पानी गर्म होकर ऊपर उठता है, तो उस स्थान विशेष के समुद्री जल की लवणता और आसपास के इलाके की लवणता में फर्क हो जाता है। इस अंतर के कारण ही समुद्र से उठे जल को गति मिलती है। नदियां न होती, तो सभ्यताएं न होती। बारिश न होती, तो मीठा पानी न होता। पोखर-झीलें न होती, तो भूजल के भंडार न होते। भूजल के भंडार न होते, तो हम बेपानी मरते। पानी के इन तमाम स्रोतों से हमारी जिंदगी का सरोकार बहुत गहरा है। यह हम सब जानते हैं; लेकिन यदि समुद्र न होते, तो क्या होता? इस प्रश्न का उत्तर तलाशें, तो हमें सहज ही पता चल जायेगा कि धरती के 70 प्रतिशत भूभाग पर फैली 97 प्रतिशत विशाल समुद्री जलराशि का हमारे लिए क्या मायने है? समुद्र के खारेपन का धरती पर फैले अनगिनत रंगों से क्या रिश्ता है? समुद्री पानी के ठंडा या गर्म होने हमें क्या फर्क पड़ता है? महासागरों में मौजूद 10 लाख से अधिक विविध जैव प्रजातियों का हमारी जिंदगी में क्या महत्व है? दरअसल,किसी न किसी बहाने इन प्रश्नों के जवाब महासागर खुद बताते हैं हर बरस। आइये, जानें !
सच यह है कि यदि समुद्र में इतनी विशाल जलराशि न होती, तो वैश्विक तापमान में वृद्धि की वर्तमान चुनौती अब तक हमारा गला सुखा चुकी होती। यदि महासागरों में जैव विविधता का विशाल भंडार न होता, तो पृथ्वी पर जीवन ही न होता। यदि समुद्र का पानी खारा न होता, तो गर्म प्रदेश और गर्म हो जाते और ठंडे प्रदेश और ज्यादा ठंडे। यदि समुद्र का पानी मीठा होता, तो मानसून बंगाल की खाड़ी से उठकर उत्तर भारत का रास्ता न पकड़ता। आइये! समझते हैं कि कैसे? दरअसल, यह महासागर की विशाल जलराशि ही है, जो सूर्य से आने वाली ऊष्मा का एक बड़ा हिस्सा अपने भीतर जज्ब कर लेती है।यह ऊष्मा समुद्र के पानी में तुलनात्मक अधिक गर्मी के रूप में मौजूद रहती है। इसका दूसरा भंडारण समुद्र के भीतर मौजूद द्वीपों के नीचे छिपे ज्वालामुखियों के रूप में होता है। ये ज्वालामुखी स्वच्छ भू-तापीय ऊर्जा के बड़े भंडार माने जाते हैं। जापान जैसे देश ऐसे भू-तापीय भंडारों का उपयोग बिजली बनाने में कर रहे हैं। भारत भी कर सकता है। ईधन तेलों के भंडार इन समुद्रों में होने की बात तो आप जानते ही हैं।
समुद्रों द्वारा ऊष्मा को जज्ब करने का तीसरा महत्वपूर्ण लाभ यह है कि यह प्रक्रिया ही मौसम में तापमान को संतुलित बनाकर रखती हैं; वरना, सूर्य से आने वाली ऊष्मा के कारण पृथ्वी का वायुमंडल न मालूम कितना और गर्म होता! उसका कितना ख़ामियाज़ा पूरी प्रकृति को भुगतना पड़ता; इसका अंदाजा आप जेठ की इस गर्मी में उठती गर्म थपेड़ों से लगा सकते हैं। यह अंदाज़ भी हमें लगाना ही चाहिए कि यदि समुद्रों में पानी की इतनी विशाल जलराशि न होती तो जो जल उठकर आसमान में बादल बनता है, उसकी इतनी बड़ी मात्रा हम कहां से लाते? तब बारिश की कमी हो जाती। हम मीठे जल से महरूम हो जाते। ये साधारण सी बातें हैं। क्या ये यह समझने के लिए काफी नहीं है कि नदियों के पानी का समुद्र में बहकर जाना व्यर्थ नहीं, बल्कि जरूरी है। ‘नदी जोड़ परियोजना’ की वकालत करने वालों को कोई समझाये यह बात।
खैर! हमारी जिंदगी में महासागरों की दूसरी बड़ी भूमिका क्या है? इसकी बात करें। हरे पत्तों द्वारा सूर्य की गर्मी को सोखकर अपना भोजन बनाने की ‘प्रकाश संश्लेषण’ की प्रक्रिया को हमने मिडिल कक्षाओं में पढ़ा ही है। लकड़ी क्या है? लकड़ी अवशोषित कार्बन ही तो होती है, जिसे पत्ते अवशोषित करते हैं। महासागर में मौजूद विविध जैविकी में कार्बन को अवशोषित करने की यह क्षमता ग़जब की होती है। इस क्षमता के कारण ही इन्हें पर्यावरण को संतुलित रखने की सबसे सक्षम प्राकृतिक प्रणाली माना जाता है। कार्बन को सोखकर यह हवा में कार्बन मोनो और डाइऑक्साइड जैसी गैसों का प्रतिशत को नियंत्रित करके रखते हैं। तमाम तरह के ईंधन जलाकर हम जीवन के लिए घातक ऐसी गैसों का प्रतिशत वायुमंडल में बढ़ाते हैं; समुद्र घटाते हैं। इतना बड़ा और महत्वपूर्ण प्रदूषण नियंत्रक इस दुनिया में कोई दूसरा नहीं है। यदि आज पृथ्वी पर जीवन है, तो इसमें समुद्र का बहुत बड़ी भूमिका है; इस बात को नकाराना असंभव है।
समुद्रों के खारेपन की चर्चा के बगैर समुद्र का महत्व अधूरा रहेगा। यह सच है कि यदि समुद्र में पानी कम हो जाए, तो यही खारापन बढ़कर आसपास की इलाकों की ज़मीन बंजर बना दे; ऐसे इलाकों का भूजल पीने-पकाने लायक न बचे; लेकिन सच भी है कि समुद्री खारेपन का महत्व, इस नुकसान तुलना में कहीं ज्यादा फायदे की बात है। गर्म हवाएं हल्की होती हैं और ठंडी हवाएं भारी; कारण कि गर्म हवा का घनत्व कम होता है और ठंडी हवा का ज्यादा। यह बात हम सब जानते हैं। यही बात पानी के साथ है। जब समुद्र का पानी गर्म होकर ऊपर उठता है, तो उस स्थान विशेष के समुद्री जल की लवणता और आसपास के इलाके की लवणता में फर्क हो जाता है। इस अंतर के कारण ही समुद्र से उठे जल को गति मिलती है। फिर वह उस दिशा में बढ़ता है, जहां जल ठंडा होता है। जल उन इलाकों में ज्यादा ठंडा होता है, जो अधिक गर्म होते हैं; जैसे भारत में गुजरात का कच्छ और राजस्थान के चुरु.. जैसलमेर जैसे इलाके। ये गर्म स्थान समुद्र से उठे जल को उत्तर भारत की तरफ खींच लाते हैं। इसे ही ‘मानसून का आना’ कहते हैं। इसी समुद्री जल का संघनित रूप बादल कहलाता है। आसमान में एक खास स्पार्क एच2ओ को जोड़कर पानी की बूंदों में बदल देता है। कहना न होगा कि समुद्री पानी के खारेपन के कारण ही बारिश है; मौसम में रंगों की विविधता है; जीवन है।
समुद्र मंथन के दौरान विष को अपने गले में रोककर रखने के कारण महादेव नीलकंठ कहलाये; मनुष्य तो मनुष्य.. देवताओं के लिए भी पूज्य हुए। कार्बन और नमक के जहर को अपने भीतर रखकर हमें जीवन और मीठा जल लुटाने वाले समुद्र को आप क्या कहेंगे? यूं मकर सक्रान्ति समेत कई पर्व भारत में समुद्र की पूजा-अर्चना का मौका लाते हैं; लेकिन क्या यह सच नहीं, समुद्र सदैव पूज्यनीय है? हम इन्हें स्वच्छ व समृद्ध बनाकर रखें, ये धरती की आबोहवा को गुलजार बनाकर रखेंगे। हम अपनी जीवनशैली में ऐसे साधनों का उपयोग कम करें, जिनके कारण समुद्री जल के ज्यादा गर्म होने की संभावना हो; जैवविविधता के नष्ट हो सकती हो अथवा प्रदूषण बढ़ता हो। हमने समुद्रों के अमेरिका के भूगोल जितने बराबर हिस्से को कचरे से पाट दिया है। समुद्र ने पलटवार कर चेतावनी देनी शुरु कर दी है। समुद्र फैल रहा है। समुद्री चक्रवातों की आवृति बढ़ रही है। यह खतरनाक संकेत है। एक झटके में कई जीवन और कई इलाकों को लील लेने वाले सुनामी को याद रखें। डूबते द्वीपों की संख्या में इज़ाफा भूलने लायक बात नहीं। हजारों एकड़ मूंगा भित्तियों के नष्ट होना एक अंत का आरंभ होना है। क्या यह कोई भूलने की बात है? हमें समुद्र के भीतर की प्रवाल भित्तियों और मछलियों से लेकर छोटे से छोटे जीव की चिंता करनी होगी; तभी समुद्र हमारी चिंता कर सकेगा। समुद्र और हमारे सरोकार साझे हैं। संरक्षण भी साझा ही होगा।याद रहे कि हमारी भोगवादी जीवन शैली समुद्र की तो सिर्फ जैविकी या रासायनिक ही बिगाड़ेगी, लेकिन यदि समुद्र बिगड़ गया, तो पृथ्वी पर हम बचेंगे भी या नहीं ; इसकी गारंटी देना मुश्किल है।
सच यह है कि यदि समुद्र में इतनी विशाल जलराशि न होती, तो वैश्विक तापमान में वृद्धि की वर्तमान चुनौती अब तक हमारा गला सुखा चुकी होती। यदि महासागरों में जैव विविधता का विशाल भंडार न होता, तो पृथ्वी पर जीवन ही न होता। यदि समुद्र का पानी खारा न होता, तो गर्म प्रदेश और गर्म हो जाते और ठंडे प्रदेश और ज्यादा ठंडे। यदि समुद्र का पानी मीठा होता, तो मानसून बंगाल की खाड़ी से उठकर उत्तर भारत का रास्ता न पकड़ता। आइये! समझते हैं कि कैसे? दरअसल, यह महासागर की विशाल जलराशि ही है, जो सूर्य से आने वाली ऊष्मा का एक बड़ा हिस्सा अपने भीतर जज्ब कर लेती है।यह ऊष्मा समुद्र के पानी में तुलनात्मक अधिक गर्मी के रूप में मौजूद रहती है। इसका दूसरा भंडारण समुद्र के भीतर मौजूद द्वीपों के नीचे छिपे ज्वालामुखियों के रूप में होता है। ये ज्वालामुखी स्वच्छ भू-तापीय ऊर्जा के बड़े भंडार माने जाते हैं। जापान जैसे देश ऐसे भू-तापीय भंडारों का उपयोग बिजली बनाने में कर रहे हैं। भारत भी कर सकता है। ईधन तेलों के भंडार इन समुद्रों में होने की बात तो आप जानते ही हैं।
समुद्रों द्वारा ऊष्मा को जज्ब करने का तीसरा महत्वपूर्ण लाभ यह है कि यह प्रक्रिया ही मौसम में तापमान को संतुलित बनाकर रखती हैं; वरना, सूर्य से आने वाली ऊष्मा के कारण पृथ्वी का वायुमंडल न मालूम कितना और गर्म होता! उसका कितना ख़ामियाज़ा पूरी प्रकृति को भुगतना पड़ता; इसका अंदाजा आप जेठ की इस गर्मी में उठती गर्म थपेड़ों से लगा सकते हैं। यह अंदाज़ भी हमें लगाना ही चाहिए कि यदि समुद्रों में पानी की इतनी विशाल जलराशि न होती तो जो जल उठकर आसमान में बादल बनता है, उसकी इतनी बड़ी मात्रा हम कहां से लाते? तब बारिश की कमी हो जाती। हम मीठे जल से महरूम हो जाते। ये साधारण सी बातें हैं। क्या ये यह समझने के लिए काफी नहीं है कि नदियों के पानी का समुद्र में बहकर जाना व्यर्थ नहीं, बल्कि जरूरी है। ‘नदी जोड़ परियोजना’ की वकालत करने वालों को कोई समझाये यह बात।
खैर! हमारी जिंदगी में महासागरों की दूसरी बड़ी भूमिका क्या है? इसकी बात करें। हरे पत्तों द्वारा सूर्य की गर्मी को सोखकर अपना भोजन बनाने की ‘प्रकाश संश्लेषण’ की प्रक्रिया को हमने मिडिल कक्षाओं में पढ़ा ही है। लकड़ी क्या है? लकड़ी अवशोषित कार्बन ही तो होती है, जिसे पत्ते अवशोषित करते हैं। महासागर में मौजूद विविध जैविकी में कार्बन को अवशोषित करने की यह क्षमता ग़जब की होती है। इस क्षमता के कारण ही इन्हें पर्यावरण को संतुलित रखने की सबसे सक्षम प्राकृतिक प्रणाली माना जाता है। कार्बन को सोखकर यह हवा में कार्बन मोनो और डाइऑक्साइड जैसी गैसों का प्रतिशत को नियंत्रित करके रखते हैं। तमाम तरह के ईंधन जलाकर हम जीवन के लिए घातक ऐसी गैसों का प्रतिशत वायुमंडल में बढ़ाते हैं; समुद्र घटाते हैं। इतना बड़ा और महत्वपूर्ण प्रदूषण नियंत्रक इस दुनिया में कोई दूसरा नहीं है। यदि आज पृथ्वी पर जीवन है, तो इसमें समुद्र का बहुत बड़ी भूमिका है; इस बात को नकाराना असंभव है।
समुद्रों के खारेपन की चर्चा के बगैर समुद्र का महत्व अधूरा रहेगा। यह सच है कि यदि समुद्र में पानी कम हो जाए, तो यही खारापन बढ़कर आसपास की इलाकों की ज़मीन बंजर बना दे; ऐसे इलाकों का भूजल पीने-पकाने लायक न बचे; लेकिन सच भी है कि समुद्री खारेपन का महत्व, इस नुकसान तुलना में कहीं ज्यादा फायदे की बात है। गर्म हवाएं हल्की होती हैं और ठंडी हवाएं भारी; कारण कि गर्म हवा का घनत्व कम होता है और ठंडी हवा का ज्यादा। यह बात हम सब जानते हैं। यही बात पानी के साथ है। जब समुद्र का पानी गर्म होकर ऊपर उठता है, तो उस स्थान विशेष के समुद्री जल की लवणता और आसपास के इलाके की लवणता में फर्क हो जाता है। इस अंतर के कारण ही समुद्र से उठे जल को गति मिलती है। फिर वह उस दिशा में बढ़ता है, जहां जल ठंडा होता है। जल उन इलाकों में ज्यादा ठंडा होता है, जो अधिक गर्म होते हैं; जैसे भारत में गुजरात का कच्छ और राजस्थान के चुरु.. जैसलमेर जैसे इलाके। ये गर्म स्थान समुद्र से उठे जल को उत्तर भारत की तरफ खींच लाते हैं। इसे ही ‘मानसून का आना’ कहते हैं। इसी समुद्री जल का संघनित रूप बादल कहलाता है। आसमान में एक खास स्पार्क एच2ओ को जोड़कर पानी की बूंदों में बदल देता है। कहना न होगा कि समुद्री पानी के खारेपन के कारण ही बारिश है; मौसम में रंगों की विविधता है; जीवन है।
समुद्र मंथन के दौरान विष को अपने गले में रोककर रखने के कारण महादेव नीलकंठ कहलाये; मनुष्य तो मनुष्य.. देवताओं के लिए भी पूज्य हुए। कार्बन और नमक के जहर को अपने भीतर रखकर हमें जीवन और मीठा जल लुटाने वाले समुद्र को आप क्या कहेंगे? यूं मकर सक्रान्ति समेत कई पर्व भारत में समुद्र की पूजा-अर्चना का मौका लाते हैं; लेकिन क्या यह सच नहीं, समुद्र सदैव पूज्यनीय है? हम इन्हें स्वच्छ व समृद्ध बनाकर रखें, ये धरती की आबोहवा को गुलजार बनाकर रखेंगे। हम अपनी जीवनशैली में ऐसे साधनों का उपयोग कम करें, जिनके कारण समुद्री जल के ज्यादा गर्म होने की संभावना हो; जैवविविधता के नष्ट हो सकती हो अथवा प्रदूषण बढ़ता हो। हमने समुद्रों के अमेरिका के भूगोल जितने बराबर हिस्से को कचरे से पाट दिया है। समुद्र ने पलटवार कर चेतावनी देनी शुरु कर दी है। समुद्र फैल रहा है। समुद्री चक्रवातों की आवृति बढ़ रही है। यह खतरनाक संकेत है। एक झटके में कई जीवन और कई इलाकों को लील लेने वाले सुनामी को याद रखें। डूबते द्वीपों की संख्या में इज़ाफा भूलने लायक बात नहीं। हजारों एकड़ मूंगा भित्तियों के नष्ट होना एक अंत का आरंभ होना है। क्या यह कोई भूलने की बात है? हमें समुद्र के भीतर की प्रवाल भित्तियों और मछलियों से लेकर छोटे से छोटे जीव की चिंता करनी होगी; तभी समुद्र हमारी चिंता कर सकेगा। समुद्र और हमारे सरोकार साझे हैं। संरक्षण भी साझा ही होगा।याद रहे कि हमारी भोगवादी जीवन शैली समुद्र की तो सिर्फ जैविकी या रासायनिक ही बिगाड़ेगी, लेकिन यदि समुद्र बिगड़ गया, तो पृथ्वी पर हम बचेंगे भी या नहीं ; इसकी गारंटी देना मुश्किल है।