ये नदियां

Submitted by admin on Fri, 01/03/2014 - 15:12
ये नदियां
बहती जाती हैं
दिन रात अनवरत
अनहद राग गूंजता
रहता है फिर भी
दिखती हैं शांत ...
चलती रहती हैं
अबला नारी सी
लाज समेटे
अपने ही में मग्न
निर्द्वन्द्व निर्विकार
कोई रोके तो
लजाती सी
चुपचाप मार्ग बदल
निकल जाती हैं
या फिर शांत हो
रुक जाती हैं
प्रतीक्षा करती हैं
और गहन हो
अबला से सबला
बनने तक
जीवन ऊर्जा अमृत
फिर भी देती हैं
ये नदियां
निर्लिप्त हो कर
जन गण को !!