पेयजल निगम ने एनआरडीडब्ल्यूपी व वर्ल्ड बैंक की सहायता से ग्रामीण क्षेत्रों में कुल 5613 पेयजल योजनाओं का निर्माण किया था, जिनका रख-रखाव ग्राम पंचायतों के पास है। अब स्थिति ये है कि आपदा के दौरान इनमें चार हजार से ज्यादा योजनाएँ क्षतिग्रस्त हालत में पड़ी हैं। चूँकि, ग्राम पंचायतों के पास योजनाओं का पुनर्निर्माण व नई योजनाएँ बनाने के लिये बजट की व्यवस्था नहीं है तो इन योजनाओं का पुनर्निर्माण करने की जिम्मेदारी भी पेयजल निगम की है।
इस बात में कोई संकोच नहीं कि राज्य गठन के 17 साल बाद भी उत्तराखण्ड के शहरी, ग्रामीण व शहरों के लगे इलाकों में लोग पानी के संकट से परेशान हैं। कई जगहों पर पानी मानकों से ज्यादा उपलब्ध है, लेकिन बूढ़ी हो चुकी वितरण प्रणाली के कारण पानी घरों तक पहुँचने से पहले ही नाली व सड़कों पर बर्बाद हो जाता है तो कहीं अब तक लोग जलस्रोत गाद-गधेरों के भरोसे पानी पीने को मजबूर हैं।
आँकड़ों की बात करें तो उत्तराखण्ड के 92 नगरीय क्षेत्रों में मात्र 23 नगर ही ऐसे हैं जहाँ लोगों को मानक के अनुरूप 135 लीटर प्रतिदिन पानी उपलब्ध हो पाता है। जबकि, 39 हजार 360 ग्रामीण बस्तियों में से 17 हजार बस्तियाँ ऐसी है जहाँ लोग आज भी पानी को तरसते हैं। यही नहीं, शहरों से लगे 35 ग्रामीण इलाके ऐसे हैं जहाँ अब तक न शहरी तर्ज पर पानी उपलब्ध हो पाता था और न ग्रामीण मानकों के अनुरूप। इन इलाकों में पेयजल निगम व जल संस्थान की मदद करने के लिये अब वर्ल्ड बैंक आगे आया है। कुल 150 मिलियन डॉलर (975 करोड़ रुपए) से इन इलाकों में प्रति-व्यक्ति शहरी तर्ज पर 135 लीटर प्रतिदिन पानी उपलब्ध कराने की योजना तैयार की जाएगी। इसमें 120 मिलियिन डॉलर जहाँ वर्ल्ड बैंक देगा, जबकि बाकी के 30 मिलियन डॉलर राज्य सरकार को खर्च करने होंगे। उम्मीद जताई जा रही है कि नए साल के जनवरी तक पैसा रिलीज कर दिया जाएगा, जिससे इन योजनाओं को परवान चढ़ाया जा सके।
आपदा से क्षति ग्रस्त चार हजार से अधिक योजनाएँ
पेयजल निगम ने एनआरडीडब्ल्यूपी व वर्ल्ड बैंक की सहायता से ग्रामीण क्षेत्रों में कुल 5613 पेयजल योजनाओं का निर्माण किया था, जिनका रख-रखाव ग्राम पंचायतों के पास है। अब स्थिति ये है कि आपदा के दौरान इनमें चार हजार से ज्यादा योजनाएँ क्षतिग्रस्त हालत में पड़ी हैं। चूँकि, ग्राम पंचायतों के पास योजनाओं का पुनर्निर्माण व नई योजनाएँ बनाने के लिये बजट की व्यवस्था नहीं है तो इन योजनाओं का पुनर्निर्माण करने की जिम्मेदारी भी पेयजल निगम की है। निगम ने सर्वे कर बजट का आकलन किया तो वर्तमान में स्थिति में इन योजनाओं को दोबारा सुचारु रूप से संचालित करने के लिये दो हजार करोड़ रुपए की जरूरत है। पेयजल निगम अब बाह्य स्रोत से इनके लिये बजट की व्यवस्था करने की तैयारी में जुटा है
17 हजार ग्रामीण क्षेत्रों के लिये चाहिए 3402 करोड़ रुपए
वर्तमान में 39 हजार 360 ग्रामीण बस्तियों में से 21 हजार 938 बस्तियों में तो लोगों को मानक के अनुरूप 40 लीटर प्रतिदिन पानी उपलब्ध हो रहा है, लेकिन अभी 17 हजार 115 बस्तियाँ ऐसी है जहाँ लोग पानी के लिये परेशान हैं। इन इलाकों में पेयजल की पर्याप्त व्यवस्था के लिये पेयजल निगम को 3402 करोड़ रुपए चाहिए। इन योजनाओं का निर्माण एनआरडीडब्ल्यूपी (राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम) के तहत होना है। लेकिन, इस साल केन्द्र सरकार ने बजट की मात्रा को घटाकर मात्र 68.42 करोड़ कर दिया है। इससे अगले 30 साल भी सभी गाँवों में पानी पहुँचने की उम्मीद नहीं है। अब पेयजल निगम ने अगले वित्तीय वर्ष से प्रत्येक साल केन्द्र सरकार से 300 करोड़ रुपए देने की माँग की है। साथ ही कहा है कि यदि केन्द्र इतना बजट देने में असमर्थ हो तो बाह्य स्रोत से बजट उपलब्ध कराने में मदद करें।
अमृत के आगे रोड़ा बन रहा बजट
राज्य के सात शहरों में केन्द्र सरकार के महत्त्वाकांक्षी अमृत प्रोजेक्ट के तहत पेयजल योजनाओं का निर्माण किया जाना है। अगले साल प्रोजेक्ट का समय पूरा हो जाएगा, लेकिन अब तक पेयजल निगम को प्रोजेक्ट पूरा करने के लिये 567 करोड़ रुपए में से मात्र 62 करोड़ रुपए मिले हैं। हालांकि, पेयजल निगम अब तक अपने स्तर से 317 करोड़ रुपए खर्च कर चुका है। निगम का दावा है कि अगले साल तक पूरा बजट मिल जाएगा, जिससे कि पूरा प्रोजेक्ट तैयार होगा और लोगों को पेयजल किल्लत नहीं झेलनी पड़ेगी।
योजनाओं पर उठते सवाल
भले ही पेयजल निगम तमाम योजनाओं से राज्य के किल्लत दूर करने के दावे करता रहा हो, लेकिन आज भी निगम की कई योजनाओं की गुणवत्ता पर सवाल बरकरार है। तीन महीने पहले पेयजल मंत्री ने पिथौरागढ़ की आँवलाघाट पेयजल योजना पर गुणवत्ता की शिकायत पर जाँच के आदेश दिये थे, हाल ही में पौड़ी की सबसे बड़ी पेयजल योजना पर भी प्रबन्धन जाँच बैठा दी है। यही नहीं, पौड़ी की ही नानाघाट पेयजल योजना पर भी पिछले दो साल से जाँच चल रही है। इसके अलावा भी कई योजनाएँ ऐसी हैं, जो गुणवत्ता के नाम पर सवालों के घेरे में हैं।
250 करोड़ में पुनर्जीवित होंगे 5000 प्राकृतिक जलस्रोत
रख-रखाव के अभाव में शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों के प्राकृतिक जलस्रोत लगातार सूखते जा रहे हैं, स्थिति ये है कि एक समय इन स्रोतों से प्रतिदिन मिलने वाला 300 एमएलडी पानी मात्र 100 एमएलडी पर पहुँच चुका है। दैनिक जागरण ने जलस्रोतों को पुनर्जीवित करने के लिये मुहिम छेड़ी थी। जिसके बाद सरकार ने इस ओर कदम उठाया और जलस्रोतों का सर्वे किया। अब पेयजल निगम ने राज्य के पाँच हजार प्राकृतिक जलस्रोतों को पुनर्जीवित करने के लिये 250 करोड़ रुपए का प्रस्ताव तैयार किया है। शीघ्र ही बजट के लिये यह प्रस्ताव केन्द्र सरकार को भेजा जाएगा।
शहरों से लगे इन इलाकों में बनेंगी योजनाएँ 1 - देहरादून-ऋषिकेश: ढालवाला. जीवनगढ़, सेंट्रल होपटाउन, लायपुर, नत्थनपुर, मेहुंवाला मफी, नथुवावाला, ऋषिकेश देहात, गुमानीवाला, प्रतीतनगर व खड़कमाफी। 2 - हल्द्वानी-काठगोाम : फतेहपुर रेंज, मुखानी, हल्द्वानी तल्ली और बिथोरिया नम्बर एक, कुसुमखेड़ा, बामोरी तल्ली बंदोबस्ती और गोज्जाली उत्तर रेंज 3 - हरिद्वार-रुड़की : हरिपुर कलां, सैदपुर, बंगेरी महाबतपुर, नगला इमरती, ढंडेरा, मोहनपुर मोहम्मदपुर, रवाली महदूद, बहादराबाद, जगजीतपुर 4 - अतिरिक्त क्षेत्र : खटियारी, कंचल गुसाईं, नगला, पदमपुर, काशीरामपुर। 5. खटीमा उमरुखुर्द, महोलिया, बन्दिया टॉयलेट में डाली 2.73 लाख पानी की बोतलें पेयजल निगम ने इस साल टॉयलेट में इस्तेमाल होने वाली बजट के लिये भी अभियान चलाया। निगम व जल संस्थान का दावा है कि इस वित्तीय वर्ष में दो लाख 73 हजार 222 टॉयलेट के फ्लश में पानी की बोतलें डाली गई, इससे प्रतिवर्ष 14748 लाख लीटर पानी की बचत होगी। 34 हजार लीटर पानी बचाने का दावा दैनिक जागरण ने राज्य में रेन वाटर हार्वेस्टिंग पर भी अभियान चलाया था। इसके बाद पेयजल निगम ने भी अभियान चलाया। अब निगम का दावा है कि उन्होंने विभिन्न स्थानों पर 381 रेन वाटर हार्वेस्टिंग स्ट्रक्चर का निर्माण करके 34 हाजर 631 लीटर जल संचय क्षमता में वृद्धि की है। अन्य भी चलाए अभियान पेयजल निगम ने 25 मई से 30 जून तक अभियान चलाकर उत्तराखण्ड में जल संरक्षण व जल संवर्धन के लिये प्रत्येक जनपद में 3837 चाल-खाल, जलकुंड, फार्म पौंड, 84 हजार कंटूर ट्रेंच, 2186 चेकडैम का निर्माण कराया है। ऑनलाइन सुविधा सरकार ने इस साल पेयजल कनेक्शन लेने के लिये ऑनलाइन सुविधा भी मुहैया कराई है। उपभोक्ता डेबिट, क्रेडिट, कैश कार्ड, नेट बैंकिंग एवं आई एमपीएस के माध्यम से कनेक्शन के लिये ऑनलाइन भुगतान कर सकते हैं। सभी शहरों के लिये चाहिए 3393.87 करोड़ पेयजल निगम के आँकड़ों पर ध्यान दें तो वर्तमान में कुल 92 नगरीय क्षेत्रों में मात्र 23 ही नगर ऐसे हैं जहाँ प्रति उपभोक्ता प्रतिदिन 135 लीटर पानी उपलब्ध हो पा रहा है। जबकि 37 नगरों में 70 लीटर, 20 नगरों में 40 लीटर व 12 नगर तो ऐसे हैं जहाँ 40 लीटर पानी प्रतिदिन भी मुश्किल से मिल पा रहा है। इन शहरों में पर्याप्त पानी देने के लिये निगम को अमृत प्रोजेक्ट के अलावा भी 3393.87 करोड़ रुपए चाहिए। इनमें से निगम 532.87 करोड़ रुपए की व्यवस्था कर चुका है, लेकिन अभी भी निगम को 2861 करोड़ रुपए चाहिए। इसके लिये पेयजल निगम ने केन्द्र सरकार को पत्र भेजते हुए बजट की व्यवस्था कराने की माँग है। |
इन जिलों में ये बस्तियाँ झेल रही किल्लत |
|
48 |
ऊधमसिंह नगर |
302 |
हरिद्वार |
375 |
नैनीताल |
479 |
बागेश्वर |
611 |
चम्पावत |
711 |
उत्तरकाशी |
795 |
रुद्रप्रयाग |
1120 |
पिथौरागढ़ |
1568 |
चमोली |
1643 |
देहरादून |
1814 |
अल्मोड़ा |
3180 |
पौड़ी |
17115 |
कुल गाँव |