भूमिका
राइन (यूरोप), सिने (फ्रांस), मिनेसोता (अमेरिका), स्कैंडेनिवेयन देशों की नदियां, इत्यादि दुनिया की सबसे प्रदूषित नदियों में शामिल हैं (गुर्जर एवं जाट, 2008)। गंगा और ब्रह्मपुत्र इत्यादि के प्रदूषण के रूप में नदियों के प्रदूषण ने भारत पर भी अपना प्रभाव छोड़ा है (सीपीसीबी 2006-07)। नदी प्रदूषण मुख्यतः मौजूद अवसंरचना एवं नीतिगत उपकरणों की विफलता से पैदा होता है। संयुक्त राष्ट्र विश्व जल मूल्यांकन कार्यक्रम (यूएनडब्ल्यूडब्ल्यूएपी, 2003) के अनुसार बांधों और अन्य समरूप अवसंरचनाओं ने दुनिया भर की 227 सबसे बड़ी नदियों के जलप्रवाह को 60 प्रतिशत तक बाधित किया है। नीचे की ओर जाती नदियों का प्रवाह इससे कम होने लगता है, इससे गाद और पोषक तत्वों का परिवहन प्रभावित होता है, परिणामतः जल की गुणवत्ता कम होती है तथा पारिस्थितिकी तंत्र प्रतिकूलतः प्रभावित होता है। इसी तरह, भारत की राजधानी दिल्ली में प्रतिदिन तीन अरब लीटर दूषित जल पैदा होता है जिसमें से आधे का तो उपचार किया जाता है लेकिन आधा ऐसे ही यमुना नदी में प्रवाहित कर दिया जाता है जो गंगा नदी की सहायक है।
भारत में नदियों की सफाई 1985 में गंगा एक्शन प्लान के साथ शुरू हुई जिसका लक्ष्य गंगा के जल की गुणवत्ता को पुनर्स्थापित करना था। सीपीसीबी का निष्कर्षों के आधार पर भारत सरकार के यमुना एक्शन प्लान चरण एक आरंभ हुआ (सीपीसीबी, 2007)। यह कार्यक्रम अंतरराष्ट्रीय सहयोग के लिए जापान बैंक के (जेबीआईसी) के सहयोग से शुरू किया गया। सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के अधीन राष्ट्रीय नदी संरक्षण महानिदेशालय यमुना एक्शन प्लान के लिए निष्पादन एजेंसी है। उत्तर प्रदेश जल निगम, हरियाणा लोकस्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग (पीएचईडी), दिल्ली जल बोर्ड और दिल्ली नगर निगम इसकी परियोजना कार्यान्वयन एजेंसियां हैं। यमुना एक्शन प्लान में तीन राज्य नामतः उत्तर प्रदेश, दिल्ली और हरियाणा आते हैं। (योजना आयोग, 2007)
यमुना एक्शन प्लान चरण-एक को अप्रैल 2002 में पूरा होना था, लेकिन निर्धारित परियोजना 2003 तक चलती रही। शुरुआत में 15 शहरों (जिनमें से छः हरियाणा, आठ उत्तर प्रदेश और एक दिल्ली में हैं) में प्रदूषण घटाने का फार्मूला तैयार किया गया था जिसके लिए जेबीआईसी ने 17.77 करोड़ येन का आसान कर्ज प्रदान किया था। हरियाणा (6 अरब येन), उत्तर प्रदेश (8 अरब येन) और दिल्ली (3.7 अरब येन) पाकर लाभार्थी प्रदेश बने। हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने अप्रैल 1996 में हरियाणा के 6 और शहरों को यमुना एक्शन प्लान के चरण एक में शामिल करने का आदेश दिया जिनके लिए वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की योजना निधि से धन उपलब्ध कराया गया। कुल मिलाकर 21 शहर यमुना एक्शन प्लान के दायरे में आए (योजना आयोग, 2007)। कुल 7530 लाख लीटर जल प्रतिदिन की प्रस्तावित उपचार क्षमता इस योजना के तहत विकसित की गई और 2003 में इसे संपन्न घोषित किया गया। (http://envfor.nic.in/nrcd/NRCD/YAP.htm)
यमुना एक्शन प्लान चरण एक की स्वीकृत लागत 5.09 अरब येन थी। रुपए के मुकाबले येन की मजबूती के कारण जेबीआईसी सहायता पैकेज में 8 अरब येन उपलब्ध हो गया था। यह धन जेबीआईसी ने इन्हीं 15 शहरों के लिए जारी किया और बाद में यमुना एक्शन प्लान को फरवरी 2003 तक बढ़ा दिया गया। मई, 2001 में इस प्रस्ताव के विस्तारित चरण के लिए 2.22 अरब रुपए और स्वीकृत किए गए। इस राशि में से 228 लाख रुपए हरियणा को, 1.22 अरब रुपए दिल्ली को और 2965 लाख रुपए उत्तर प्रदेश को जारी किए गए। इसके अतिरिक्त 405 लाख रुपए भारतीय-जापानी परामर्शदात्री कंसोर्टियम को देय शुल्क के रूप में उपलब्ध कराए गए अतिरिक्त पैकेज को समाहित करते हुए यमुना एक्शन प्लान चरण एक की कुल लागत 7.32 अरब रुपए आई। इसका खर्च केंद्र और राज्य सरकार के बराबर वहन किया। हालांकि 2001 में केंद्र की ओर से उसका खर्च दोगुना कर दिया गया जबकि राज्यों ने भी अपने खर्च में 30 प्रतिशत बढ़ोतरी की। (योजना आयोग, 2007)
यमुना एक्शन प्लान के चरण एक में विविध गतिविधियों के बावजूद नदी की गुणवत्ता वांछित मानकों तक नहीं लाई जा सकी (सीपीसीबी, 2007)। ऐसा पाया गया कि दिल्ली के मलवहन घटक को कम करके आंका गया और महानगर की सरकार द्वारा यमुना एक्शन प्लान के समानांतर तैयार किए गए मल उपचार संयंत्रों की क्षमता का अब भी पूरा उपयोग नहीं किया गया है। (सीपीसीबी, 2006-07) इसलिए, वांछित नदी मानकों को हासिल करने के लिए भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने दिसंबर 2004 में यमुना एक्शन प्लान का चरण दो शुरू किया। इसे सितंबर 2008 में पूरा किया जाना था। यमुना एक्शन प्लान का चरण एक में पूरा किए गए कार्यों के आधार पर जेबीआईसी ने 31 मार्च 2003 को वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के साथ नए ऋण करार पर हस्ताक्षर किए और 13.33 अरब येन की राशि स्वीकृत की जो चरण दो के कुल खर्च का 85 प्रतिशत है। चरण दो के लिए स्वीकृत कुल बजट 6.24 अरब रुपए था जिसे दिल्ली (3.87 अरब), उत्तर प्रदेश (1.24 अरब), हरियाणा (63 करोड़), क्षमता निर्माण अभ्यास (50 करोड़) तथा पीएमसी-टीईसी कंसोर्टियम (आंकड़े अनुपलब्ध) के बीच बांटा गया। काम पूरा नहीं हो पाने के कारण इस चरण को मार्च 2011 तक बढ़ाया गया। मल उपचार संयंत्रों की कुल स्वीकृत 1890 लाख लीटर प्रतिदिन थी। http://envfor.nic.in/nrcd/NRCD/table.htm. प्रस्तुत तालिका-1 में देखा जा सकता है कि यमुना एक्शन प्लान चरण दो के कार्य तीनों में से किसी राज्य में पूरे नहीं किए गए हैं जिसके कारण चरण दो को विस्तार देना पड़ा है।
देखा गया है कि काफी समय और धन खर्च किए जाने के बावजूद नदी पर प्रदूषण का दबाव बढ़ता ही गया है। यमुना में जैव रासायनिक ऑक्सीजन की मांग (बीओडी) 1980 में जहां 117 टन प्रतिदिन थी वहीं यह 2008 में बढ़कर 270 टन प्रतिदिन हो गई है। (सीएसई, 2008)
हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश के विभिन्न स्थानों पर 1996 और 2009 में जल की गुणवत्ता को तालिका-2 में बताया गया है।
यमुना एक्शन प्लान चरण दो के प्रभावों को ध्यान में रखकर भारत सरकार ने दिसंबर 2011 में यमुना एक्शन प्लान चरण तीन को स्वीकृति दी है जिसका अनुमानित बजट 16.56 अरब रुपए रखा गया है और इसके केंद्र में दिल्ली को रखा गया है। इसलिए, यमुना नदी के दिल्ली खंड में विविध प्रदूषण नियंत्रण हस्तक्षेपों का मूल्यांकन आवश्यक हो गया है।
दिल्ली में यमुना नदी
यमुना नदी का दिल्ली खंड इसके सर्वाधिक प्रदूषित खंडों में से एक है। (देखें तालिका 3)
जैसा कि तालिका 3 में बताया गया है, यमुना एक्शन प्लान के चरण एक और चरण दो के पूर्ण होने के बावजूद नदी की जल गुणवत्ता वांछित मानकों तक नहीं पहुंची है। इसलिए जल गुणवत्ता में सुधार और समय तथा धन दोनों के तौर पर निवेश आदि को ध्यान में रखकर विभिन्न हस्तक्षेपों के तहत प्रभाव पुर्वानुमान के आधार पर नदी कार्य योजनाओं को नए सिरे से तैयार करने की जरूरत है।
लगभग 224 किमी. की दूरी स्वछंद रूप से तय करने के बाद नदी पल्ला गांव के निकट दिल्ली में प्रवेश करती है और वजीराबाद में एक बार फिर से बैराज के माध्यम से घेर ली जाती है। यह बैराज दिल्ली के लिए पेयजल आपूर्ति करता है और यहां से आगे प्रवाह एक बार फिर से शून्य या बेहद कम हो जाता है। इसके बाद नदी में अनुपचारित या अंशतः उपचारित घरेलू तथा औद्योगिक अपशिष्ट जल नदी में मिलता है। एक बार फिर लगभग 25 किमी. बहने के बाद ओखला बैराज के आगे इसके पानी को आगरा नहर में सिंचाई के लिए डाल दिया जाता है और नदी एक बार फिर से ओखला बैराज में बंध कर रह जाती है। इसके कारण गर्मियों में बैराज से लगभग शून्य या बेहद नगण्य पानी निकलने दिया जाता है। ओखला बैराज के बाद नदी में पूर्वी दिल्ली, नोएडा और साहिबाबाद इलाकों से निकला घरेलू व औद्योगिक अपशिष्ट जल शाहदरा नाले के जरिए नदी में गिरता है। आखिर में यमुना में अन्य महत्वपूर्ण सहायक नदियों का पानी मिलता है और लगभग 1370 किमी. चलने के बाद यह इलाहाबाद में गंगा और भूमिगत सरस्वती से मिलती है।
दिल्ली यमुना नदी के तट पर बसा सबसे बड़ा शहर है और दिल्ली खंड इस नदी का सबसे प्रदूषित खंड। यमुना की सफाई के लिए एक नहीं, दो नहीं, तीन-तीन चरण में यमुना एक्शन प्लान बना लेकिन न तो प्रदूषण स्तर घटा और न ही नदी पर बढ़ता दबाव। शहर से नदी में गिरते अपशिष्ट जल के उपचार के लिए दिल्ली में स्थापित संयंत्रों की क्षमता का भी पूरा-पूरा उपयोग नहीं किया जा सका। ऐसे में साफ-सुथरी यमुना का प्रवाह देखना अब भी एक स्वप्न भर है।यह बेसिन देश के बहुत बड़े भूभाग में फैला हुआ है। नदी पर पांच बैराजों की मौजूदगी के कारण पूरे वर्ष नदी की बहाव स्थितियों में काफी बदलाव देखा जाता है। अक्टूबर से जून तक नदी लगभग सूखी रहती है या कुछ खंडों में बहुत थोड़ा प्रवाह होता है जबकि मानसून अवधि (जुलाई-सितंबर) के दौरान इसमें बाढ़ आई रहती है। इस क्षेत्र की लगभग 60 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई नदी के जल से होती है। नदी के जल का उपयोग प्रवाह में और प्रवाहेतर दोनों ही रूपों में होता है जिसमें सिंचाई, घरेलू और औद्योगिक उपयोग शामिल है। (सीपीसीबी 2001-02 ए)
देखा गया है कि बिंदु और गैर बिंदु दोनों ही स्रोत नदी के प्रदूषण में अपनी भूमिका निभाते हैं, जिसमें दिल्ली सबसे बड़ा प्रदूषक है और इसके बाद आगरा तथा मथुरा का नंबर आता है।
दिल्ली में जल एवं अपशिष्ट जल अवसंरचना
राजधानी तीन मुख्य स्रोतों, नामतः भूतल जल, भूगर्भ जल और वर्षाजल से जल प्राप्त करती है। यहां पैदा घरेलू और औद्योगिक क्षेत्रों से उत्पन्न अपशिष्ट जल नालों के रास्ते मल उपचार संयंत्रों और सीटीईपी तक पहुंचता है। हालांकि, कृषि क्षेत्र का जल भूमि के रास्ते घुसपैठ कर भूगर्भ जल में जा मिलता है। इसके बाद, संपूर्ण अपशिष्ट जल मल उपचार संयंत्रों से खुले नाले के रास्ते नदी में जा मिलता है जिससे नदी में बिंदुस्रोत प्रदूषण पैदा होता है। साथ ही मानसून के दौरान, शहर का अतिरिक्त पानी जो गैरबिंदु प्रदूषण को जन्म देता है, वह भी विशाल नालों में मिल जाता है, वह भी विशाल नालों में मिल जाता है और फिर से यमुना में ही शामिल हो जाता है। इस तरह, देखा जा सकता है कि बिंदु और गैर बिंदु दोनों ही स्रोत मिलकर नदी का प्रदूषण स्तर बढ़ाते हैं। शहर में उत्पन्न अपशिष्ट जल आपूर्ति किए जाने वाले जल का 80 प्रतिशत माना जाता है और इसका उपचार 17 मल उपचार संयंत्रों तथा 13 सीटीईपी के जरिए होता है जिसके बाद यह यमुना में मिल जाता है। (सीडीपी, दिल्ली, 2006)
नदी की गुणवत्ता वजीराबाद बैराज के बाद तो बुरी तरह बिगड़ जाती है और मानकों के अनुरूप बिल्कुल नहीं रह पाती है। ऐसा उन 13 नालों के नदी में मिलने के कारण होता है जिनमें घरेलू तथा औद्योगिक उपयोग से उत्पन्न अपशिष्ट जल पूर्णतः अनुपचारित या अंशतः उपचारित रूप में आता है और स्वच्छ जल प्रवाह के अभाव में नदी में वैसा ही गंदा पानी जाता है। शहर में 6555 लाख गैलन अपशिष्ट जल प्रतिदिन पैदा होता है और इसमें से केवल 3167 लाख गैलन प्रतिदिन मल उपचार संयंत्रों के द्वारा शोधित हो पाता है। (जमवाल एवं मित्तल, 2010) दिल्ली में मौजूदा मल उपचार संयंत्रों का ऐसा विवरण तालिका 4 में उपलब्ध है। देखा जा सकता है कि दिल्ली में अधिकांश मल उपचार संयंत्र और सीटीईपी का उपयोग उनकी क्षमता से कम ही हो रहा है। नालों को उपचार संयंत्रों के हिसाब से बताया गया है और उनके संबंधित क्षेत्रों का भी उल्लेख किया गया है।
इस खंड में विभिन्न स्थानों पर उपचार संयंत्रों के रास्ते नदी में मिलने वाली अपशिष्ट जलधाराओं का विवरण तालिका 4 में दिया गया है। नदी में एक अन्य रास्ते जिसे हिंडन कट के नाम से जाना जाता है, के माध्यम से एक प्रत्यक्ष दबाव बनता है। दिल्ली में शुरू होने वाले और ओखला बैराज में गिरने वाले नाले जिनमें कालकाजी, सरिता विहार, तुगलकाबाद, शाहदरा, सरिता विहार पुल के पास, एलपीजी वॉटलिंग प्लांट के पास और तेहखंड आदि शामिल है, ये अध्ययन के दायरे से बाहर हैं। नजफगढ़ नाले की दिल्ली के कुल अपशिष्ट जल प्रवाह में 72.7 प्रतिशत और दिल्ली में नदी की कुल जैवरासायनिक ऑक्सीजन मांग (बीओडी) के दबाव में 61 प्रतिशत की हिस्सेदारी है। (सीपीसीबी, 2006-07) अपशिष्ट जल के मौजूदा पुनर्चक्रण की स्थिति इस प्रकार है; राज्याभिषेक स्तंभ संयंत्र-377 लाख गैलन प्रतिदिन, केशोपुर संयंत्र-199.1 लाख गैलन प्रतिदिन, रिठाला संयंत्र-50 गैलन प्रतिदिन और सेन नर्सिंग होम संयंत्र-22 लाख गैलन प्रतिदिन।
दिल्ली के मास्टर प्लान 2021 के अनुसार दिल्ली जल बोर्ड शहर की मल उपचार संयंत्र क्षमता, सीटीईपी क्षमता और पुनर्चक्रण तथा पुनरुपयोग क्षमता बढ़ाने की योजना बना रहा है जिससे यमुना नदी में उत्पन्न अपशिष्ट जल की मात्रा कम होगी। प्रत्येक क्षेत्र में प्रस्तावित ‘हरित पट्टी’ की भी व्यवस्था मास्टर प्लान 2021 में की गई है (दिल्ली मास्टर प्लान 2021, 2007) ऐसे क्षेत्रों का सड़क के किनारे कृषि प्रयोजनों, फार्म हाउसों या वृक्षारोपण के लिए उपयोग किया जाता है। दिल्ली जल बोर्ड ने भी नदी में प्रदूषण कम करने के लिए एक इंटरसेप्टर सीवर योजना का प्रस्ताव किया है।
दिल्ली में यमुना सफाई के प्रयास
1. एसटीपी. सीटीईपी में वृद्धि
2. इंटरसेप्टर सीवेज सिस्टम
3. तृतीयक उपचार की स्थापना
4. पुनर्चक्रण और पुनः उपयोग के विकल्प
5. प्रवाह वृद्धि
हालांकि, पुनर्चक्रण और पुनः उपयोग के हस्तक्षेप के साथ-साथ तृतीयक उपचार के विकल्प के परिदृश्य में नदी के पानी की गुणवत्ता पर पड़ने वाले प्रभाव के संदर्भ में, यह देखा जाता है कि नदी अपने वांछित स्तर को प्राप्त नहीं कर पाई है (शर्मा, डी. 2013)। इसलिए, स्तर ‘सी’ को प्राप्त करने के लिए नदी में स्वच्छ जल मिलाना महत्वपूर्ण है। नदियों के जल के बंटवारे के लिए अंतर-राज्यीय विवादों के लिए सफल समाधान और जल के मांग पर जल-दबाव के मद्देनजर दिल्ली के लिए नदी में इतनी बड़ी मात्रा में स्वच्छ जल उपलब्ध कराना मुश्किल है।
इसीलिए पुनर्चक्रण और पुनः उपयोग विकल्पों के साथ मल उपचार संयंत्रों की स्थापना के द्वारा नदियों के प्रवाह में प्रदूषित जल का मिश्रण तथा सीवेज उत्पादन को कमतर करना बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे शहर में बेहतर सीवेज अवसंरचना तैयार होगी और नदी पर प्रदूषण का दबाव भी न्यूनतम हो जाएगा। हालांकि, अत्यधिक मात्रा में प्रदूषित जल छोड़े जाने के कारण यह अब भी अपने वांछित स्तर यानी सी वर्ग की नदी का दर्जा हासिल नहीं कर पाएगा। इसलिए, यमुना एक्शन प्लान के तहत धन प्रवाह को देखते हुए, यह महत्वपूर्ण है कि नदी के दिल्ली खंड को सी स्तर प्राप्त करने की जरूरत पर ध्यान दिया जाए।
अनुशंसाएं
यमुना एक्शन प्लान के तहत चल रही गतिविधियों को सही दिशा में माना जा रहा है, लेकिन प्रभावी कार्यान्वयन की अवधारणा नदी प्रणाली में स्वच्छ जल के प्रवाह को बढ़ाने के उपाय सहित अन्य इंजीनियरिंग प्रयोगों की आवश्यकता होगी। नदी की जल गुणवत्ता को पुनः बहाल करने के लिए कुछ उपायों का विवरण नीचे के खंड में दिया गया है।
मल उपचार प्रणाली में सुधार
पूरी राजधानी में सीवर व्यवस्था की जानी चाहिए और संपूर्ण अपशिष्ट जल को (यदि आवश्यक हो तो पंपों के माध्यम से) उपचार और निपटान के लिए भेजा जाना चाहिए ताकि नदी में ‘जीरो’ डिस्चार्ज सुनिश्चित किया जा सके। मौजूदा जल उपचार संयंत्रों, जो वांछित निष्पादन मानकों के अनुरूप नहीं है, को समुन्नत करके ऐसा किया जा सकता है। नदियों के किसी एक किनारे या दोनों किनारों पर नहर या बांध जैसे वैकल्पिक ड्रेनेज सिस्टम की स्थापना से भी यह प्राप्त किया जा सकता है। सबसे महत्वपूर्ण बात, सीवेज पंपिंग स्टेशनों के लिए 24 घंटे बिजली उपलब्धता की जरूरत है।
‘हरित शहर’ की अवधारणा को प्रोत्साहित करने के लिए नदियों के मोर्चे पर विकास को, आर्थिक रूप से व्यवहारिक और पर्यावरण के अनुकूल समाधान इन दोनों ही पैमानों पर देखा जाना चाहिए। फव्वारे, कृत्रिम झरने, खेल का मैदान, घसियाली भूमि, जल क्रीड़ा, प्रवाहमान नहर, तालाबों और वृक्षारोपण आदि के साथ नदी तटों को पार्क के रूप में अवश्य विकसित किया जाना चाहिए जिसका इस्तेमाल कृत्रिम सुविधाओं के रूप में किया जा सके।
जलग्रहण क्षमता का विस्तार और प्रदूषक स्रोतों पर लगाम
मानसून के दौरान नदी में संग्रहण कर संग्रहित जल और शुष्क अवधि के दौरान छोड़े गए पानी का उपयोग करके इसके माध्यम से प्रवाह में बढ़ोतरी कर यह हासिल किया जा सकता है। मुख्य धारा के लिए इसकी सहायक धाराओं, अपशिष्ट जल लाने वाले नालों आदि में धारा के नीचे विसरित वातकों व यांत्रिक तलीय वातकों का प्रयोग करके कृत्रिम रूप से उनमें हवा का प्रबंध किया जाना चाहिए। इसलिए, यमुना एक्शन प्लान के तहत किसी भी प्रदूषण नियंत्रण उपाय को डिजाइन करने के लिए जल गुणवत्ता मॉडल का प्रदर्शन देखना महत्वपूर्ण है। मॉडलिंग प्रस्तावित उपायों के कार्यान्वयन से पहले उनका मूल्यांकन करने में योजनाकारों को मदद देगी। अपशिष्ट जल का पुनर्चक्रण एवं पुनरुपयोग मुख्य अवसरों में से एक है जिसके द्वारा पानी का उपयोग सिंचाई, बागवानी और औद्योगिक उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है। विद्युत स्टेशन में टावरों को ठंडा करने के लिए भी आपूर्ति की जा सकती है। भूजल पुनर्भरण और गंदा पानी का उपचार और पुनः उपयोग भी अन्य लाभप्रद विकल्प हो सकते हैं। इतना ही नहीं, गैर बिंदु स्रोतों जैसे खेत खलिहान, नदियों में मनुष्यों और जंतुओं के स्नान, मूर्ति विसर्जन आदि से उत्पन्न हो रहे प्रदूषण पर नियंत्रण भी महत्वपूर्ण है।
शहरी और कृषिगत अप्रयुक्त जल से होते प्रदूषण को वर्षाजल संचय इकाइयां बनाकर तथा टिकाऊ शहरी नाला प्रणाली बनाकर विसरित प्रदूषण कम किया जा सकता है। कृषि अपशिष्ट जो सीधे नदी में पहुंच जाता है उसे नदी के तटवर्ती खेतों में फिल्टर तथा बफर स्ट्रिप बना करकम किया जा सकता है।
तालिका-1 : यमुना एक्शन प्लान चरण 1 और चरण दो के राज्यवार निवेश और योजनाओं का ब्यौरा
चरण 1 | चरण 2 | |||||
दिल्ली | हरियाणा | उ.प्र. | दिल्ली | हरियाणा | उ.प्र. | |
स्वीकृत राशि (अरब रुपए) | 1.81 | 2.42 | 2.82 | 4.69 | 6.34 | 1.15 |
केंद्र से जारी राशि (अरब रुपए) | 1.77 | 1.78 | 2.40 | 1.21 | 0.48 | 0.58 |
स्वीकृत योजनाओं की संख्या | 12 | 111 | 146 | 11 | 16 | 5 |
पूर्ण योजनाओं की संख्या | 12 | 111 | 146 | 0 | 6 | 1 |
तालिका -2 : यमुना नदी में जल गुणवत्ता के आंकड़े ग्रीष्मकालीन औसत (मार्च-जून)
बिंदु/स्थान | 1996 | 2009 | ||
डीओ (एमजी/1) | बीओडी (एमजी/1) | डीओ (एमजी/1) | बीओडी (एमजी/ | |
हरियाणा ताजेवाला | 11.70 | 1.20 | 9.22 | 1.25 |
कालानौर सोनीपत | 10.40 | 1.05 | 9.10 | 2.33 |
दिल्ली निजामुद्दीन | 0.30 | 25.00 | 0.0 | 23.0 |
उत्तर प्रदेश आगरा नहर | 0.35 | 26.50 | 0.00 | 14.75 |
मझवाली | 0.50 | 22.0 | 2.75 | 16.75 |
मथुरा | 8.10 | 4.00 | 5.28 | 8.50 |
मथुरा डी/एस | 8.50 | 2.50 | 6.30 | 8.75 |
आगरा डी/एस | 1.65 | 9.00 | 4.67 | 16.5 |
उड़ी | 9.71 | 2.00 | 9.00 | 1.00 |
औरया जुहिका | 8.14 | 5.0 | 11.05 | 7.75 |
स्रोत : सीपीसीबी
तालिका : दिल्ली के निजामुद्दीन में यमुना नदी की औसत वार्षिक जल गुणवत्ता
वर्ष | डीओ (मिग्रा प्रति ली) | बीओडीओ (मिग्रा प्रति ली) | टीसी (एमपीएन प्रति 100 मिली) |
1995 | 3.4 | 9.6 | 386091 |
2005 | 1.6 | 10.00 | 12200000 |
2009 | 0.0 | 23.00 | 22516660 |
मानक* | >4 | <3 | >5000 |
आंकड़े सीपीसीबी और सीडब्ल्यूसी से लिए गए हैं। स्रोत: सीपीसीबी 2000, 2006-07 टीसी=टोटल कॉलीफार्म्स, बीओडी=जैव रासायनिक ऑक्सीजन मांग, *सी वर्ग के लिए सीपीसीबी मानक
सीवर क्षेत्र | संबंधित नाले | मल उपचार संयंत्र | मौजूदा स्थिति |
शाहदरा | शाहदरा | यमुना विहार कोंडली | क्षमता से कम उपयोग वही |
रिठाला-रोहिणी | नजफगढ़ व सहायक | नरेला रिठाला रोहिणी | वही, वही, वही |
ओखला | मैगजीन रोड, स्वीपर कॉलोनी, खैबर दर्रा, मेटकॉफ हाउस आईएसबीटी, मोरी गेट, तांगा स्टैंड, सिविल मिल, नंबर 14, पावर हाउस, दिल्ली गेट, सेन नर्सिंग होम, बारापुला, महारानी बाग, कालकाजी, सरिता विहार, तुगलकाबाद, एलपीजी बॉटलिंग प्लांट के नजदीक, सरिता विहार पुल के नजदीक, तेहखंड | वसंत कुंज 1 और 2 महरौली ओखला सेन नर्सिंग होग दिल्ली गेट घिटोरनी | वही, वहीं, वहीं, पूर्ण उपयोग में, पूर्ण उपयोग में शुरू नहीं |
केशोपुर | नजफगढ़ व सहायक | पप्पनकलां नजफगढ़ केशोपुर निलोठी | वही, वही, वही, वही, |
राज्याभिषेक स्तंभ | नजफगढ़ व सहायक | राज्याभिषेक स्तंभ I, II और III | वही |
ऑक्सीकरण तालाब, तिमारपुर | पूर्ण उपयोग में |
संदर्भ
1. गुर्जर आरके एवं जाट बीसी, 2008, रावत प्रकाशन सीपीसीबी, 2006-07, यमुना नदी के जल की गुणवत्ता स्थिति (1999-2005)
2. जल आपूर्ति और स्वच्छता के लिए यूनिसेफ और विश्व स्वास्थ्य संगठन का संयुक्त निगरानी कार्यक्रम, 2008
3. योजना आयोग, 2007 : http://planningcommission.nic.in/reports/sereport/ser/wjc/wjc_ch1pdf
4. नदी कार्य योजना, राष्ट्रीय नदी संरक्षण, स्वच्छ नदियों के लिए कार्यकारी निदेशालय।
5. परियोजना प्रबंधन सलाहकार (पीएमसी(. एनए, यमुना कार्य योजना:
6. सीएसई-2009 यमुना में प्रदूषण की स्थिति, पर्यावरण एवं विज्ञान के लिए केंद्र, दिल्ली, भारत
7. सीपीसीबी 2012-02ए जलगुणवत्ता स्थिति व सांख्यिकी
8. नगरीय विकास योजना, 2006. शहरी विकास विभाग, दिल्ली सरकार
9. दिल्ली नगर में अनुपचारित सीवेज का पुनः उपयोग एसटीपी और पुनः उपयोग के विकल्प के सूक्ष्म मूल्यांकन
10. दिल्ली मास्टर प्लान (एमपीडी)-2021-2007 शहरी विकास मंत्रालय
11. शर्मा, डी, 2013. डॉक्टरल शोध, टेरी विश्वविद्यालय