ओम प्रकाश भट्ट
देश भर के गांधीवादी व पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने नदियों के प्रवाह को उनके प्राकृतिक परिवेश में बनाये रखने का संकल्प लिया। नदियों की पवित्रता तथा पावनता को बनाये रखने व नदियों से पलने वाले लोगों के जीवन को बचाने के लिए पूरे देष में संघर्ष की रणनीति बनायी। यह तय किया गया कि वर्ष 2010 को ‘नदियों को मुक्त करो वर्ष’ के रूप में मनाया जायेगा।
उत्तराखण्ड के सीमान्त जिला चमोली के अलकनन्दा के तट पर स्थित बिरही में देश के तेरह राज्यों के अस्सी से अधिक कार्यकताओं ने 5 से 7 नवम्बर तक अपने-अपने राज्य में बहने वाली नदियों और जलस्रोतों के ऊपर मँडरा रहे खतरे को दूर करने के लिए अगले दस साल के लिए कार्यक्रम बनाये।
राष्ट्रीय नदी नैटवर्क तथा गोवा के शान्तिमय समाज की ओर से आयोजित तीन दिवसीय नदी संरक्षण सम्मेलन में देश की नदियों व जलस्रोतों के सतत् संरक्षण की आवश्यकता महसूस करते हुए सर्वसम्मति से तय किया गया हिमालय व अन्य पर्वतीय भूभाग तथा देश से निकलने वाली तमाम नदियों तथा जलस्रोतों का चिरन्तन तथा स्थायी संरक्षण होना चहिए, जिससे प्रत्येक जीवजगत स्वावलम्बी, सहअस्तित्व, परम्परागत जीवन जीने की कला एवं पद्धति अपने स्थानीय परिवेश के अनुसार विकसित कर सके। इसके लिए अगले दस सालों के कार्यक्रम तय किए गए। इसके लिए संसाधनों पर लोक अधिकार दिलाने, नदियों के संरक्षण के कार्यक्रम में लोक-भागीदारी बढ़ाने और नदियों को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए वैकल्पिक ऊर्जा के साधनों का प्रयोग बढ़ाने के लिए अभियान चलाने की बात कही गई।
सम्मेलन के पहले दिन गांधी शान्ति प्रतिष्ठान के रमेश चन्द्र शर्मा की जमुना नदी पर लिखी पुस्तक तथा अंतिम दिन बिहार की नदियों की दशा और दिशा पर लिखी गई पुस्तक का विमोचन प्रख्यात पर्यावरण कार्यकर्ता श्री चण्डीप्रसाद भट्ट के हाथों किया गया।
सम्मेलन के समापन पर देश के विभिन्न हिस्सों से संग्रहीत किए गए जल को समारोह के साथ अलकनन्दा में समाहित किया गया। जल समाहित करने से पूर्व कलष यात्रा निकाली गई। नदियों के प्रवाह को सतत् बनाये रखने की मुहिम को तेज करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक 22 सदस्यीय कार्य समिति का गठन किया गया।
सम्मेलन का उद्घाटन प्रसिद्ध प्रर्यावरण कार्यकर्ता श्री चण्डी प्रसाद ने किया। उन्होंने कहा कि हिमालय की नदियों के स्रोत सूख रहे हैं, लेकिन वहीं उन पर बिना सोचे-समझे और दीर्घकालीन नफे-नुकसान को देखे नई-नई परियोजनायें बनायी जा रही हैं। उन्होंने कहा कि नदियों के जलागमों के संरक्षण की बात परियोजना के निर्माण से कम से कम बीस साल पहले से शुरू होनी चाहिए।
देश भर के गांधीवादी व पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने नदियों के प्रवाह को उनके प्राकृतिक परिवेश में बनाये रखने का संकल्प लिया। नदियों की पवित्रता तथा पावनता को बनाये रखने व नदियों से पलने वाले लोगों के जीवन को बचाने के लिए पूरे देष में संघर्ष की रणनीति बनायी। यह तय किया गया कि वर्ष 2010 को ‘नदियों को मुक्त करो वर्ष’ के रूप में मनाया जायेगा।
उत्तराखण्ड के सीमान्त जिला चमोली के अलकनन्दा के तट पर स्थित बिरही में देश के तेरह राज्यों के अस्सी से अधिक कार्यकताओं ने 5 से 7 नवम्बर तक अपने-अपने राज्य में बहने वाली नदियों और जलस्रोतों के ऊपर मँडरा रहे खतरे को दूर करने के लिए अगले दस साल के लिए कार्यक्रम बनाये।
राष्ट्रीय नदी नैटवर्क तथा गोवा के शान्तिमय समाज की ओर से आयोजित तीन दिवसीय नदी संरक्षण सम्मेलन में देश की नदियों व जलस्रोतों के सतत् संरक्षण की आवश्यकता महसूस करते हुए सर्वसम्मति से तय किया गया हिमालय व अन्य पर्वतीय भूभाग तथा देश से निकलने वाली तमाम नदियों तथा जलस्रोतों का चिरन्तन तथा स्थायी संरक्षण होना चहिए, जिससे प्रत्येक जीवजगत स्वावलम्बी, सहअस्तित्व, परम्परागत जीवन जीने की कला एवं पद्धति अपने स्थानीय परिवेश के अनुसार विकसित कर सके। इसके लिए अगले दस सालों के कार्यक्रम तय किए गए। इसके लिए संसाधनों पर लोक अधिकार दिलाने, नदियों के संरक्षण के कार्यक्रम में लोक-भागीदारी बढ़ाने और नदियों को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए वैकल्पिक ऊर्जा के साधनों का प्रयोग बढ़ाने के लिए अभियान चलाने की बात कही गई।
सम्मेलन के पहले दिन गांधी शान्ति प्रतिष्ठान के रमेश चन्द्र शर्मा की जमुना नदी पर लिखी पुस्तक तथा अंतिम दिन बिहार की नदियों की दशा और दिशा पर लिखी गई पुस्तक का विमोचन प्रख्यात पर्यावरण कार्यकर्ता श्री चण्डीप्रसाद भट्ट के हाथों किया गया।
सम्मेलन के समापन पर देश के विभिन्न हिस्सों से संग्रहीत किए गए जल को समारोह के साथ अलकनन्दा में समाहित किया गया। जल समाहित करने से पूर्व कलष यात्रा निकाली गई। नदियों के प्रवाह को सतत् बनाये रखने की मुहिम को तेज करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक 22 सदस्यीय कार्य समिति का गठन किया गया।
सम्मेलन का उद्घाटन प्रसिद्ध प्रर्यावरण कार्यकर्ता श्री चण्डी प्रसाद ने किया। उन्होंने कहा कि हिमालय की नदियों के स्रोत सूख रहे हैं, लेकिन वहीं उन पर बिना सोचे-समझे और दीर्घकालीन नफे-नुकसान को देखे नई-नई परियोजनायें बनायी जा रही हैं। उन्होंने कहा कि नदियों के जलागमों के संरक्षण की बात परियोजना के निर्माण से कम से कम बीस साल पहले से शुरू होनी चाहिए।