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कुरुक्षेत्र, दिसंबर 2016
कहते हैं कि उम्मीद पर दुनिया कायम है। सूखे और अकाल जैसी स्थिति से निपटने के लिये भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान आई.ए.आर.आई ने ऐसे हाइड्रोजैल का विकास किया है जो पानी की कमी वाले इलाकों में खेती के लिये फायदेमंद साबित हो सकता है। पूसा हाइड्रोजैल के बारे में नेशनल रिसर्च डवलपमेंट कॉर्प के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक केवीएसपी राव कहते हैं कि इस टेक्नोलॉजी का विकास खासकर उन इलाकों को ध्यान में रखकर किया गया है जहाँ पानी की कमी होती है। देश के कई इलाकों में ट्रायल से यह साबित हुआ है कि हाइड्रोजैल कम वर्षा और सिंचाई के बिना भी फसल उत्पादन में बढ़ोत्तरी कर सकता है। इसे अनाज से लेकर दलहन, सब्जी और यहाँ तक कि नर्सरी पर भी परखा जा चुका है।
आईएआरआई के वैज्ञानिक अब पूसा हाइड्रोजैल की उत्पादकता बढ़ाने पर काम कर रहे हैं और इसके लिये इस जैल में सूक्ष्म पोषक तत्वों को मिलाया जा रहा है जो बारिश की कमी वाले इलाकों की मृदाओं में नहीं पाए जाते हैं। इस तरह किसानों के लिये इस जेल की उपयोगिता और बढ़ जाएगी। आई.ए.आर.आई के निदेशक एच एस गुप्ता ने कहा कि पूसा हाइड्रोजैल का विकास भारत के विश्वस्तरीय कृषि शोध और आमतौर पर आने वाली समस्याओं का समाधान ढूंढ़ने की क्षमता का एक और प्रमाण है। दूसरे देश भी अब इस तरह का उत्पाद बनाने की कोशिश में लग गए हैं। हालाँकि आई.ए.आर.आई ने पूसा हाइड्रोजैल का भारत में पेटेंट करा लिया है और अन्तरराष्ट्रीय पेटेंट हासिल करने के लिये भी प्रक्रिया की शुरुआत की जा चुकी है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार सिर्फ एक लाख हेक्टेयर भूमि पर यहाँ खेती हो रही है। इसमें 3826 हेक्टेयर में गेहूँ, 7000 हेक्टेयर में मक्का, 9775 हेक्टेयर में दलहन, 830 हेक्टेयर में तिलहन तथा 2804 हेक्टेयर में आलू की खेती हो रही है। किसान विकास केंद्र का दावा है कि यदि इस विधि का प्रयोग किया जाए तो कृषि योग्य भूमि का दायरा बढ़ेगा।
कैसे काम करता है पूसा हाइड्रोजैल
पूसा हाइड्रोजैल बारीक कंकड़ों जैसा है। इसे फसल की बोवनी की समय ही बीज के साथ खेतों में डाला जाता है। जब फसल में पहली बार पानी दिया जाता है तो पूसा हाइड्रोजैल पानी को सोखकर 10 मिनट में ही फूल जाता है और जेल में बदल जाता है। जैल में बदला यह पदार्थ गर्मी या उमस से सूखता नहीं है। चूँकि यह जड़ों से चिपका रहता है, इसलिये पौधा अपनी जरूरत के हिसाब से जड़ों के माध्यम से इस जैल का पानी सोखता रहता है। यह जैल ढाई से तीन महीने तक एक-सा रह सकता है।
खेत पर बुरा असर नहीं, अनाज का दाना भी बड़ा
बड़ौदा कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिक चंद्रभान सिंह के अनुसार जिस खेत में चने व गेहूँ के साथ यह पदार्थ डाला गया, वहाँ सिर्फ एक पानी में ही फसल तैयार हो गईं। इतना ही नहीं पूसा हाइड्रोजैल के सहारे हुए चने का आकार भी दो बार की सिंचाई से हुए चने से बड़ा है। खास बात यह है कि इस पदार्थ से खेत में कोई बुरा असर नहीं हुआ।
पूसा हाइड्रोजैल के क्या है लाभ
1. जल संकट से मिलेगी निजात व खर्च में भी आएगी कमी।
2. जमीन तैयार करते समय ही होगा खेतों में छिड़काव।
3. 55 डिग्री सेल्सियस तापमान पर भी नहीं कम होगी खेतों की नमी।
4. फर्टिलाइजर व कीटाणु की दवा के साथ उपयोग से भी नहीं होगा कोई असर।
5. फूल व सब्जी की खेती में भी होगा प्रयोग।
6. यह मिट्टी की गुणवत्ता को भी बेहतर करता है।
7. इस पर वातावरण के लवणों का भी असर कम होता है और इस तरह बीजों का अंकुरण सुधरता है, जड़ों की बढ़वार बेहतर होती है और उर्वरकों की जरूरत घटती है।
8. यह पर्यावरण के लिये सुरक्षित है।
9. तरल सोखने की क्षमता के कारण इसका इस्तेमाल डायपर और नैपकिन बनाने के लिये भी किया जा सकता है।
यह ना केवल पानी सोखने की क्षमता को बेहतर करता है बल्कि हाइड्रोजैल से फसलों की पोषक तत्वों को सोखने की क्षमता भी बेहतर हो जाती है। 50 डिग्री तापमान में भी यह अपने वजन का 350 गुना पानी सोख सकता है। इसके अलावा यह मौजूदा स्वरूप में पाउडर है जिसे मिट्टी में बीज और खाद के साथ मिलाया जा सकता है।
एक एकड़ में 12 सौ का खर्च
अभी पूसा हाइड्रोजैल के दाम 1200 रुपये/किलो हैं। एक एकड़ में बीज के साथ एक किलो पूसा हाइड्रोजैल बोया जाता है जबकि बोरों से एक बार की सिंचाई में किसान को एक एकड़ के लिये 500 से 700 रुपये चुकाने पड़ते हैं। कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि जहाँ पानी ही नहीं वहाँ के लिये यह चीज वरदान है। पूसा हाइड्रोजैल ऐसी जगहों के लिये है जहाँ फसलों के लिये पानी पर्याप्त नहीं है। इससे हर वह फसल ली जा सकती है जिसमें दो या तीन बार पानी देना पड़ता है। वैज्ञानिकों को पूरा भरोसा है कि थोक उत्पादन और तकनीकी विकास से आने वाले समय में इसकी लागत घट जाएगी। इसके साथ ही आई.ए.आर.आई ने इस जैल को सब्सिडी मुहैया कराने के लिये सरकार से संपर्क साधा है जैसा कि कुछ खाद और जल-संरक्षण वाले उपकरणों के मामले में होता है। इस तरह इस जैल को गरीब किसानों के लिये भी सुलभ बनाने की कोशिश की गई है। अगर इस आवेदन को मंजूर कर लिया जाता है तो पूसा हाइड्रोजैल की खपत बड़े पैमाने पर नजर आने लगेगी।
वैज्ञानिकों की इस अनोखी खोज से किसानों को पानी की किल्लत से छुटकारा मिल पाएगा और सूखे की चपेट में आने वाले किसानों के चेहरे हमेशा मुस्कुराते रहेंगे। किसान भाई पूसा हाइड्रोजैल अपनाकर पानी की कमी वाले इलाकों से भी अच्छी पैदावार ले सकेंगे।
(इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़), ई-मेलः kiran.nagraj.90@gmail.com