देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरु ने भाखड़ा-नांगल
बांध और भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर जैसी जगहों को आधुनिक तीर्थ कहा था। इक्कीसवीं सदी में वैज्ञानिक डॉ. कलाम की इन यात्रा का संदेश भी साफ है- यहाँ मिसाइलमैन का वास्ता मिसाइल की सी गति से नहीं पड़ने वाला, जिनके वे धुरंधर खिलाड़ी रहे हैं। यहाँ उनका रास्ता छोटी-छोटी जल संरचनाएँ रोकेंगी और उनसे कहेंगी, यह वक्त थोड़ा थमने
का भी है....!
खंडवा जिले के लोगों ने ‘गति के गुरूर’ को तोड़ा है! उन्होंने पानी के वेग को वश में कर लिया है। बादलों से बरसा पानी अब इस जिले की जमीन पर इठलाता, बलखाता और सरपट दौड़ता नजर नहीं आता। अब पानी की लगाम यहाँ के उन लोगों के हाथों में हैं, जो गाँवों में रहते हैं और उनमें से भी अधिकतर पढ़ना-लिखना भी नहीं जानते। ये लोग कभी सरपट भागते पानी के कान उमेठकर उसे कुंडी या कुएँ की दिशा दिखा देते हैं तो कभी उसे पुचकारकर पोखर में उतार देते हैं। सौ बात की एक बात तो यह है कि इन लोगों ने पानी के बहाव को वश में कर लिया है यहाँ। वरना पानी अब नदी-नालों के जरिए समुद्र का रास्ता नहीं नापता। यह इन लोगों के इशारों पर नाचता है। फिर थककर, थमकर, चुपचाप कुंडियों, पोखरों, कुओं में उतरकर बैठ जाता है, किसी आज्ञाकारी बच्चे की तरह! समा जाता है पाताल में इन लोगों की चुनौती है-पानी रे पानी, तुम भागकर तो बताओ!
और यह बात तो यहाँ का बच्चा भी जानता है कि एक बार पानी रुका तो वह रिसेगा भी। रिसकर वह भू-जल भंडार बढ़ाएगा तो उनके कुएँ, हैंडपम्प, ट्यूबवेल कभी दम नहीं तोड़ेंगे। अब पानी धरती माँ के आंचल में नहीं, इन लोगों के चेहरों पर भी साफ देखा जा सकता है। पानी की कीमत समझने और उसको अवेरने में अक्ल दिखाने के कारण ही तोरणी और उसके जैसे करीब दो सौ गाँव तीर्थ करने के नए ठिकाने बन गए हैं। अब सूखा पड़े, तो अच्छी वर्षा की प्रार्थना के लिए परंपरागत तीर्थों पर जाने के बजाए इन नए जल तीर्थों पर जाइए और कुछ सीखकर, कुछ समझकर अपने गाँव, अपने शहर को तीर्थ बनाइए। मिसाइलमैन राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का इस तीर्थ के दर्शन के लिए आने के पीछे और क्या मतलब छिपा है? राष्ट्रपति भवन के सूत्रों के अनुसार डॉ. कलाम ने म.प्र. के मुख्यमंत्री श्री दिग्विजय सिंह द्वारा तोरणी जाने के अनुरोध का मंजूरी इसीलिए दी, क्योंकि वे इस मामले में पैदा हुई ‘अभूतपूर्व जनजागरुकता’ को मान्यता देना चाहते हैं।
राष्ट्रपति की इस यात्रा का मतलब यह भी है कि अब नए तीर्थों का स्वरुप ऐसा ही कुछ होगा। देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरु ने भाखड़ा-नांगल बांध और भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर जैसी जगहों को आधुनिक तीर्थ कहा था। इक्कीसवीं सदी में वैज्ञानिक डॉ. कलाम की इन यात्रा का संदेश भी साफ है- ‘नहीं, तीर्थ और भी हैं!’ यहाँ मिसाइलमैन का वास्ता मिसाइल की सी गति से नहीं पड़ने वाला, जिनके वे धुरंधर खिलाड़ी रहे हैं। यहाँ उनका रास्ता छोटी-छोटी जल संरचनाएँ रोकेंगी और उनसे कहेंगी, यह वक्त थोड़ा थमने का भी है....!
और यह बात तो यहाँ का बच्चा भी जानता है कि एक बार पानी रुका तो वह रिसेगा भी। रिसकर वह भू-जल भंडार बढ़ाएगा तो उनके कुएँ, हैंडपम्प, ट्यूबवेल कभी दम नहीं तोड़ेंगे। अब पानी धरती माँ के आंचल में नहीं, इन लोगों के चेहरों पर भी साफ देखा जा सकता है। पानी की कीमत समझने और उसको अवेरने में अक्ल दिखाने के कारण ही तोरणी और उसके जैसे करीब दो सौ गाँव तीर्थ करने के नए ठिकाने बन गए हैं। अब सूखा पड़े, तो अच्छी वर्षा की प्रार्थना के लिए परंपरागत तीर्थों पर जाने के बजाए इन नए जल तीर्थों पर जाइए और कुछ सीखकर, कुछ समझकर अपने गाँव, अपने शहर को तीर्थ बनाइए। मिसाइलमैन राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का इस तीर्थ के दर्शन के लिए आने के पीछे और क्या मतलब छिपा है? राष्ट्रपति भवन के सूत्रों के अनुसार डॉ. कलाम ने म.प्र. के मुख्यमंत्री श्री दिग्विजय सिंह द्वारा तोरणी जाने के अनुरोध का मंजूरी इसीलिए दी, क्योंकि वे इस मामले में पैदा हुई ‘अभूतपूर्व जनजागरुकता’ को मान्यता देना चाहते हैं।
राष्ट्रपति की इस यात्रा का मतलब यह भी है कि अब नए तीर्थों का स्वरुप ऐसा ही कुछ होगा। देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरु ने भाखड़ा-नांगल बांध और भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर जैसी जगहों को आधुनिक तीर्थ कहा था। इक्कीसवीं सदी में वैज्ञानिक डॉ. कलाम की इन यात्रा का संदेश भी साफ है- ‘नहीं, तीर्थ और भी हैं!’ यहाँ मिसाइलमैन का वास्ता मिसाइल की सी गति से नहीं पड़ने वाला, जिनके वे धुरंधर खिलाड़ी रहे हैं। यहाँ उनका रास्ता छोटी-छोटी जल संरचनाएँ रोकेंगी और उनसे कहेंगी, यह वक्त थोड़ा थमने का भी है....!