एक आत्मनिर्भर गांव

Submitted by admin on Sun, 03/06/2011 - 09:40
Source
अमर उजाला, 11 फरवरी 2011

सूखे से निपटने की तैयारियां शुरू हुईं, तो ग्रामीणों को समझ में आया कि खेत में और मिट्टी के कणों के आसपास जल संग्रह के लिए जीवांश-कंपोस्ट के ह्यूमस की विशेष भूमिका होती है।मध्य प्रदेश के खंडवा जिला मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर की दूरी पर छैगांवमाखन विकासखंड में जैविक ग्राम मलगांव स्थित है। करीब 10 साल पहले के सूखे ने यहां के ग्रामीणों की कमर तोड़कर रख दी थी। इस गांव में करीब 505 हेक्टेयर रकबा है और परती भूमि बिलकुल नहीं है। क्षेत्र में सिंचाई योग्य कुओं की संख्या तब 275 थी, लेकिन उनमें पर्याप्त जल न होने से मात्र 20 कुओं से सिंचाई होती थी। उत्पादन में 40 से 50 फीसदी गिरावट होने के कारण किसानों की आर्थिक स्थिति कमजोर होने लगी थी।

सूखे से निपटने की तैयारियां शुरू हुईं, तो ग्रामीणों को समझ में आया कि खेत में और मिट्टी के कणों के आसपास जल संग्रह के लिए जीवांश-कंपोस्ट के ह्यूमस की विशेष भूमिका होती है। जैविक खेती अपनाने के बाद ही यह संभव हो सकता था। किसानों ने गांव में बिखरे कचरे इकट्ठा कर उससे कंपोस्ट बनाने का संकल्प लिया। इस तरह ईंधन के रूप में उसका इस्तेमाल बंद हुआ। और गोबर के साथ मानव मल-मूत्र का भी बायोगैस निर्माण में उपयोग होने लगा। केंचुआ खाद एवं बायो गैस स्लरी से बनने वाली जैविक खाद से भूमि में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश की उपलब्धता सुनिश्चित होने लगी। पॉलीथीन की थैलियां इकट्ठा करने हेतु 25 संग्रह केंद्र बनाए गए हैं। कभी कीचड़ से लथपथ रहने वाली गांव की गलियां आज साफ-सुथरी दिखती है। इस गांव को निर्मल ग्राम पुरस्कार भी मिला है।

गांव के बुजुर्गों ने एकता कायम करने और जैविक खेती अपनाने को प्रेरित करने के लिए नाटक मंडली बनाई है। तभी से गांव के देवस्थान पर बने चबूतरे पर हर शनिवार को कृषक पाठशाला का आयोजन किया जाने लगा, जिससे किसानों को अपनी समस्याओं को साझा करने का मंच मिल गया। इसकी बैठकों में विभिन्न फसलों में लगने वाली व्याधियों और उनके उपचार समेत जैविक खेती की तकनीकों के बारे में नियमित चर्चा होती है। दीर्घकालीन खेती के गुर अन्य गांवों तक पहुंचे, इसके लिए मलगांव से इंदौर तक चेतना रैली भी निकाली गई।

गांव के किसान प्याज की खेती से बेहतर मूल्य हासिल करने के लिए दिसंबर में प्याज की बिजाई कर देते हैं। इसकी कली को खोदकर कोल्ड स्टोर में रख लिया जाता है और फिर अगस्त में बिजाई कर दी जाती है। इससे प्याज अक्तूबर तक तैयार हो जाता है। चूंकि उस समय प्याज की कमी होती है, ऐसे में किसान दूसरे शहरों में प्याज भेजकर भारी मुनाफा कमा लेते हैं। यहां के जैविक कपास की कभी विदेशों में खूब मांग थी। इस परिवर्तन में सरकारी प्रयासों को अनदेखा नहीं किया जा सकता।
 

इस खबर के स्रोत का लिंक: