अदृश्य नदी

Submitted by Hindi on Mon, 08/26/2013 - 11:32
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काव्य संचय- (कविता नदी)
तुम्हारी आंखों में उमड़ आई
इन दो नदियों ने
मुझे ऐसे डुबो लिया है
जैसे गर्मियों की तपती दोपहरी में
मेरे नगर की नदियां
अपने संगम में मुझे डुबो लेती हैं।

गंगा-जमुना ही नहीं, मेरे नगर में-
लोग कहते हैं-तीसरी नदी भी है-सरस्वती
जो कभी दिखाई नहीं देती

जो कभी दिखाई नहीं देती, वह व्यथा है-
जो दिल-ब-दिल बहती है,
और चेहरों पर जिसका कोई आभास नहीं मिलता।

तुम्हारी इन डबडबाई आंखों की
उसी तीसरी नदी ने
मुझे डुबो लिया है

क्या कहा!
तुम्हारी वह अदृश्य नदी मैं हूं!

तो फिर इन आंखों को चुपचाप पोंछ डालो
और मुझे पहले की तरह अदृश्य बहने दो!

(14.8.74)