आग्नेय शैल (igneous rock)

Submitted by Hindi on Mon, 01/11/2010 - 17:13
शैलों के तीन वृहत् समूहों में से एक जिसकी रचना तप्त तरल मैग्मा के शीतल तथा ठोस होने से होती है। आग्नेय शैल कठोर और सामान्यतः अप्रवेश्य होती है तथा इसमें जल केवल जोड़ों या संधियों के सहारे कठिनाई से प्रविष्ट हो पाता है। यह रवेदार होती है और इसमें परतें नहीं पायी जाती हैं। इसमें जीवावशेष (fossils) भी नहीं मिलते हैं। स्थिति के अनुसार आग्नेय शैलें मुख्यतः दो प्रकार की होती हैं- बाह्य आग्नेय शैल और आंतरिक आग्नेय शैल। जब भूगर्भ से निकला हुआ तप्त तरल मैग्मा धरातल पर पहुँच कर शीतल होता है, बाह्य (extrusive) आग्नेय शैल का निर्माण होता है किन्तु जब वह भूपृष्ठ तक नहीं पहुँच पाता है और उसके नीचे ही ठंडा होकर ठोस हो जाता है, तब आंतरिक (intrusive) आग्नेय शैल का निर्माण होता है। भूपृष्ठ के नीचे निर्मित आग्नेय शैल अधिवितलीय शैल (hypabyssal rock) कहलाती है जिसके विभिन्न रूप हैं- बैकोलिथ, फैकोलिथ, लोपोलिथ, डाइक, सिल आदि। अधिक गहराई में निर्मित आग्नेय शैल को पातालीय शैल (plutonic rock) अथवा वितलीय शैल (abyssal rock) कहा जाता है।

अन्य स्रोतों से

Igneous rock in Hindi (आग्नेय शैल, मैग्मज शैल)


भूपर्पटी में पाए जाने वाले तीन प्रमुख शैलों में से वह शैल जो गलित (molten) मैग्मा के जम जाने के परिणामस्वरूप बनता है।

ग्रेनाइट , बेसाल्ट , गैब्रो , ऑब्सीडियन , डायोराईट , डोलोराईट , एन्डेसाईट , पेरिड़ोटाईट, फेलसाईट, पिचस्टोन ,प्युमिस व परलाईट इत्यादि आग्नेय चट्टानों के प्रमुख उदाहरण है |

भूवैज्ञानिक महत्व


पृथ्वी की पपड़ी के ऊपरी 16 किलोमीटर (10 मील) मे लगभग 95% आग्नेय चट्टानों है|

वर्गीकरण

आग्नेय चट्टानों घटना, बनावट, खनिज, रासायनिक संरचना, और आग्नेय शरीर की ज्यामिति की विधा के अनुसार वर्गीकृत की जाती है|

आग्नेय शैल के रुप

बैथोलिथ
लैकोलिथ
फैकोलिथ
लोपोलिथ
सिल
डाइक


आग्नेय शैल के प्रकार

१। आन्तरिक आग्नेय शैल:- ग्रेनाइत। दुनाइत
२।वाह्य आग्नेय शैल :- बैसाल्त

विकिपीडिया से (Meaning from Wikipedia)
आग्नेय शब्द लैटिन शाषा के शब्द 'इग्नीस' से बना हैं, जिसका अर्थ आग होता हैं । आग्नेय शैल की रचना धरातल के नीचे स्थित तप्त एवं तरल मैग्मा के शीतलन के परिणामस्वरुप उनके ठोस हो जाने पर होती हैं । पृथ्वी की उत्पत्ति के पश्चात सर्वप्रथम इनका निर्माण होने के कारण इन्हें ' प्राथमिक शैल ' भी कहा जाता है | रूपांतरित तथा अवसादी चट्टानें प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इनसे ही सम्बंधित होती है |ज्वालामुखी उदगार के समय भूगर्भ से निकालने वाला लावा भी धरातल पर जमकर ठंडा हो जाने के पश्चात आग्नेय शैलो में परिवर्तित हो जाता है | ये कठोर चट्टाने है जो रवेदार तथा दानेदार भी होती है | इन चट्टानों में परतो का पूर्णत: अभाव पाया जाता है | अप्रवेश्यता अधिक होने के कारण इन पर रासायनिक अपक्षय का बहुत कम प्रभाव पड़ता है , लेकिन यांत्रिक एवं भौतिक अपक्षय के कारण इनका विघटन व वियोजन प्रारम्भ हो जाता है| इन चट्टानों में जीवाश्म नहीं पाए जाते| इनका अधिक विस्तार ज्वालामुखी क्षेत्रो में ही होता है|