हिमालयी वन्य सम्पदा प्रदेशर को हरित आवरण से ओतप्रोत तो करती ही है, साथ में वन्यजीवों को आश्रय प्रदान करने के अलावा उनके भरण-पोषण का मुख्य स्रोत भी है। हिमाचल का कुल क्षेत्रफल 55673 वर्ग किलोमीटर है, जिसमें कुल भू-भाग का 37033 वर्ग किलोमीटर वन्य क्षेत्र है, निर्धारित वन क्षेत्र में लगभग 23 प्रतिशत भाग ही पेड़ों से आच्छादित हैं। ग्रीष्म ऋतु का आगमन वनों पर श्राप की तरह टूट पड़ता है। हर जिले के सघन वनों में चीड़, देवदार के पेड़ों का विस्तृत वितान-सा है, जिसमें हर तरह के पेड़ यहाँ की सुन्दरता को बढ़ाते हैं। पतझड़ का आगमन पेड़ों के सूखे पत्तों का वनों में बिछौना-सा बिछा देते हैं और विशेषकर चीड़ के पेड़ों के पत्ते निरन्तर गिरते रहने से भूमि की हरित घास को ढक देते हैं। वैसे तो प्रकृति अपनी उपजाऊ परत को निर्मित करने का यह प्राकृतिक क्रम दोहराती रहती है। ऐसे में पत्तों के भीतर घास का लुप्त हो जाना पशुपालकों के लिए परेशानी का कारण बन जाता है। बरसात के आगमन का इंतजार करता मानव व प्रकृति पौधों की हरियाली में वृद्धि का कारण बनती है, परन्तु इससे पूर्व ही बिछौनों के रूप में बिछी घास आग की भेंट चढ़ जाती है।
एक पेड़ को लगाकर पालना वैसा ही है, जैसे कोई अपनी संतान को पालता है। क्या हम अपनी संतान को ऐसे ही बर्बाद होते देख सकते हैं ? नहीं न, तो फिर इन पेड़ों के प्रति भी हमारी यही जिम्मेदारी बनती है कि हम जंगलों में इन्हें आग के हवाले न होने दें। ये वनस्पति हमें क्या-क्या देती है, कोई हिसाब नहीं है। सच कहें तो हमारे जीवन का आधार ही वनस्पति है। जाहिर है कि वनस्पति बचेगी, तो हम बचेंगे।
इससे जगह-जगह वनों में सूखे पत्तों संग पेड़ वन सम्पत्तियाँ धू-धू कर जलने लगती हैं। यह बेशक एक विचारणीय विषय है। सड़कों व गाँवों को घेरते वन आग की चपेट में अधिकतर क्यों आ जाते हैं। हर व्यक्ति अपने-अपने ढंग से आग के कारणों का विश्लेषण करता हुआ अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करता है। कोई प्रकृति को ही प्रकृति के विनाश का कारण बताता है तो कोई मानवीय चूक को इसका बड़ा कारण समझता है। निसंदेह पेड़ों का हवा के झोंको संग टकराने से उत्पन्न ताप व घर्षण, पहाड़ियों के गिरते-लुढ़कते पत्थर भी आग प्रज्वलन का कारण बनते हैं। इसके साथ-साथ जंगलों के किनारे जलते चूल्हे व सूखे नालों की सफाई में लगाई गई आग भी वनों में अग्नि फैलाव का कारण बन जाते हैं। खेत खलिहानों में सूखी फसलें भी ग्रीष्म ऋतु में अग्नि के प्रकोप का कारण बन जाती है, तो कभी-कभी बिजली की तारों का फैलाव, शार्ट सर्किट आदि भी आग को न्योता दे जाता है। वर्तमान में असंख्य कारणों का समावेश तरह-तरह की आग व नुकसान का कारण बन रहा है।
आज व्यक्ति अपने परिवेश में तरक्की की तरफ अग्रसर नित नए अन्वेषम करने में सक्रिय है। कभी-कभी उसके शौक भी तरह-तरह के नुकसान का कारण बन जाते हैं। शिकारियों के आखेट करने में बंदूक से चली गोलियाँ, बीड़ी-सिगरेट का शौक व घरों के आस-पास बिखरे कूड़े को जलाने के उपक्रम आगजनी व आग के फैलाव का कारण बन जाते हैं, जिसका व्यक्ति को भान तक नहीं होता। हमारा सम्पूर्ण प्रदेश प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से वनों के ऊपर ही निर्भर है, जहाँ वनस्पतियों, पेड़ों के संग वन्य प्राणी भी हमारी समृद्धि व सुन्दरता के प्रतीक हैं। आग की लपटें वनों का तो विनाश करती ही हैं इसके साथ-साथ वन्य जीवों को भी लील जाती हैं। वर्षों की मेहनत से पले पेड़ व जीवों की वृद्धि पर इसका भयावह प्रभाव पड़ता है, जिसकी भरपाई मानव आसानी से तो कदापि नहीं कर सकता। वनों की आग का कारण चाहे कोई भी हो, परन्तु इससे निपटने व आग के प्रसार को रोकने हेतु हर जन की सक्रिय भागीदारी, समझदारी व सतर्कता इस त्रासदी को कम अवश्य कर सकती है। धू-धू कर जलते पेड़ों को देखकर हर जन आक्रोश जाहिर करता है, परन्तु आग के फैलाव को कम करने हेतु अपनी भागीदारी के निर्वाहन से चूक जाता है। ऐसे में जहाँ फायर ब्रिगेड की यूनिट्स हैं, वहाँ उनको सूचित करना व ग्रामीणों की भागीदारी स्वरूप पानी व जलते पेड़ों को अलग करने से आग बुझाने के प्रयत्न फलदाई अवश्य हो सकते हैं।
जन-जन की भागीदारी हिमाचल के प्राकृतिक पर्यावरण व वन्य जीवों के हर वर्ष हो रहे बेशकीमती नुकसान से उन्हें बचाया जा सकता है। वनों को समृद्ध करने हेतु हमारे प्रयास निरन्तर क्रियाशील रहने चाहिए। एक पेड़ को लगाकर पालना वैसा ही है, जैसे कोई अपनी संतान को पालता है। क्या हम अपनी संतान को ऐसे ही बर्बाद होते देख सकते हैं ? नहीं न, तो फिर इन पेड़ों के प्रति भी हमारी यही जिम्मेदारी बनती है कि हम जंगलों में इन्हें आग के हवाले न होने दें। ये वनस्पति हमें क्या-क्या देती है, कोई हिसाब नहीं है। सच कहें तो हमारे जीवन का आधार ही वनस्पति है। जाहिर है कि वनस्पति बचेगी, तो हम बचेंगे। प्रदेश के हरित आचरण को बढ़ाने के लिए सरकार के प्रयास भी क्रियाशील हैं। इस हेतु समृद्धि, प्रोजेक्ट के जरिए हिमाचल प्रदेश में विश्व बैंक परियोजना का शीघ्र सूत्रपात होने वाला है, जिसमें 80.20 के अनुपात में विश्व बैंक व प्रदेश सरकार इस परियोजना को कार्यान्वित करेंगे। परियोजना के इस क्रम का आधार वनों को हरित परिधि को बढ़ाने का प्रयास करेगा। सरकार के निर्धारित टारगेट को फलीभूत करने के लिए प्रत्येक व्यक्ति की भागीदारी व वनों को बचाने का दृढ़ संकल्प प्रदेश की सुन्दरता बढ़ाने का अतिरिक्त कदकम है। इसके लिए हम सभी के साझे प्रयासों संग समृद्धि सूचक तीव्रगति देने की आवश्यकता है। वनों की आग पर काबू से ही इनका संरक्षण होगा।
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