अकाल - सुकाल के बीच हलकान

Submitted by admin on Sun, 08/30/2009 - 09:23
वेब/संगठन

4 फरवरी को जब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बाड़मेर आए तो उन्होंने अफसरों को सीधे शब्दों में कह दिया कि संवेदनशील, पारदर्शी और स्वच्छ प्रशासन सरकार की पहली मंशा है। इसके बाद अनियमितता में डूबे विभागों ने मुख्यमंत्री जी के कथन को जिस ढ़ंग से उड़ाया उसका एक रंग है यह।

एक तरफ से राजस्व विभाग की गिरदावरी रिर्पोट ने बायतु ब्लाक के 47 गांवों को अकालग्रस्त दिखाया। उसने दावा किया कि राज्य सरकार ने अकालराहत के काम खोले, लोगों को रोजगार बांटा और कुल मिलाकर बड़ी राहत पहुंचाई। दूसरी तरफ कृषि विभाग ने अकाल मानने से मना कर दिया। याने एक ही सरकार के दो विभागों की अलग-अलग रिपोर्ट एक-दूसरे से ऐसी उलझी कि किसान बीच में ही फंसा रह गया। इस तरह से फसल बीमा योजना की क्लेम राशि ने अकाल पर ऐसा सवाल (बवाल) खड़ा कर दिया कि सवालिया निशान पर किसान ही झूलता नजर आया।

असलियत से मीलों दूर खड़ी यह योजना यहां के अकालग्रस्त गांवों को सुकाल में दर्शाने के लिए बदनाम हो गई। इसमें अकाल का आंकलन करने के लिए क्राप कटिंग को आधार बनाया जाता है। याने एक तहसील की 50 से ज्यादा पंचायतों के हजारों खेतों में से सिर्फ 16 खेतों को चुना जाता है। इन खेतों के एक छोटे से हिस्से की फसल को काटकर राजस्व बोर्ड के दफ्तर भेजा जाता है, इसके बाद राजस्व बोर्ड कृषि प्रयोगशाला में इसकी पैदावार का जोड़-घटाना लगाकर तय करता है कि इस बार अकाल आया भी है या नहीं। तब इसकी रिपोर्ट से निकलने वाले पैदावार के आकड़े पटवारियों की रिपोर्ट के आकड़ों से भिड़ जाते हैं। और सोचने के लिए रह जाता है किसान कि आखिर तहसील के हजारों खेतों की पैदावार की बुनियाद केवल 16 खेत कैसे हो सकते हैं ? वह भी थार में जहां बरसात का यह हाल है कि एक गांव में अकाल रहता है और दूसरे में सुकाल।

लेकिन 28 मार्च को एक बड़े अखबार के स्थानीय संवाददाता ने बाड़मेर-बालोतरा संस्करण में जो रिपोर्ट भेजी उसका र्शीषक था- ‘किसानों की उम्मीदों को पंख’। इंटरो था- ‘‘राष्ट्रीय कृषि बीमा कंपनी ने खरीफ फसल बीमा क्लेम राशि जारी कर किसानों को नए साल में नई सौगात दी है।’’ खबर का शरीर बनाते हुए उसने लिखा- ‘‘..... इससे आठों तहसील क्षेत्र के अकालग्रस्त गांवों के किसानों को प्रीमियम के आधार पर क्लेम मिलेगा। अकेले दी बाड़मेर सेंट्रल को-आपरेटिव बैंक को 24 करोड़ रूपए खरीफ बीमा क्लेम राशि मिली है। प्रबंध कार्यालय ने सभी ग्राम सेवा सहकारी समितियों को यह राशि जारी करने की कवायद शुरू कर दी है जो किसानों के खातों में जमा होगी।’’ जबकि उसी तारीख में बीमा कंपनी ने सभी तहसीलों में खरीफ फसल की ग्वार का क्लेम अटकाकर रखा था। मानो फसल के नुकसान का गलत आंकलन और भुगतान की अनियमितताएं कोई मामला ही न हो। मानो कुछेक गाँवों में ही अकाल की छाया हो, और उसे हटाने के लिए भी राहत का इंतजाम हो गया हो।

अप्रैल की 3 तारीख को बायतु इलाके के किसानों ने राजस्व मंत्री हेमारामजी चौधरी को ज्ञापन दिया और बताया कि कृषि विभाग ने क्राप कटिंग पैटर्न के तरीके से बाजरा और ग्वार में पूर्ण पैदावार दर्शायी है, इस तरह बाजरा और ग्वार में औसत 7.6 प्रतिशत और मोठ में 19 प्रतिशत की दर से भुगतान किया जा रहा है। किसानों ने कहा कि जितना उत्पादन लिखा है उतना तो बीज ही लग जाता हैं। योजना का यह हाल है कि जिसने लोन लिया उसे फायदा मिलता है, जिसने लोन नहीं लिया वह छूट जाता है। यह भी कहा कि बायतु अक्सर अकाल की मार झेलता रहा है इसलिए किसानों की आर्थिक स्थितियां बहुत खराब हैं। सरकार को तो अतिरिक्त सहायता पैकेज देना चाहिए था ऐसे में उल्टा किसानों को मिलने वाली राशि भी काटी जा रही है। इससे साफ समझ में आता है कि बीमा कंपनियों को फायदा पहुंचाया जा रहा है। यहां के किसानों ने मंत्री महोदय से मांग की : पूरा बीमा क्लेम दिया जाए और बीमा आंकलन का तरीका बदलते हुए गिरदावरी रिपोर्ट को आधार बनाया जाए। इन्होंने बताया कि फसल खराब होती है सितम्बर में और राहत पैसा मिलता है अप्रेल में। इससे 6 महीने का ब्याज ही करोड़ों रूपए हो जाता है, अकेले बायतु में 47 करोड़ रूपए बकाया हैं। इसलिए बीमा क्लेम का भुगतान फसल खराब होने के तुरंत बाद दिया जाए।

राजस्व मंत्री हेमारामजी चौधरी ने संशोधन की जरूरत पर जोर की बात को माना- ‘‘फसल बीमा में तहसील को आधार रखा गया है, जबकि गांव को इकाई बनाया जाए तो सही होगा।’’ इस बात को अगर एक उदाहरण से जोड़कर देखेंगे तो तस्वीर और साफ होगी- इस बार बाड़मेर तहसील में बाजरे का बीमा 14.67 प्रतिशत आया है। अब जिनका बाजरा पूरा खराब हुआ है उन्हें भी इतनी राशि मिलेगी और जिनका कुछ भी खराब नहीं हुआ उन्हें भी इतनी ही राशि।आश्वासन की आश में जब हफ्ताभर से ज्यादा गुजर गया तो हजारों किसानों ने तहसील मुख्यालय के सामने धरना-प्रदर्शन शुरू कर दिया। मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपते हुए किसान संघ जनमोर्चा के पूर्व प्रदेश संयोजक भंवरलाल चौधरी ने सरकार से आर-पार की लड़ाई लड़ने का ऐलान किया और अखिल भारतीय किसान सभा, एसएफआई के साथ-साथ बाल पैरवी नेटवर्क की तरफ से भी समर्थन मिला। अनिश्चितकालीन धरने के 5 दिन बीत जाने पर भी प्रशासन हरकत में नहीं आया तो किसानों ने आमरण अनशन की धमकी देते हुए नेशनल हाइवे रोकने की चेतावनी दी। नेशनल हाइवे रोकने की खबर मिलने ही अधिकारी चेते। चर्चा में उपखण्ड अधिकारी और तहसीलदार ने 2 महीने की मोहलत मांगी। उन्होंने कहा कि ग्वार में बीमा कंपनी ने 61 प्रतिशत मंजूरी दी है, 2 दिनों में मुआवजे के लिए नुकसान की रिपोर्ट ऊपर भेज देंगे। किसानों ने प्रशासन की ओर से सही कार्यवाही और आचार सहिंता का पालन करने की बातें सुनकर अपना आंदोलन रोक दिया।

अनिश्चितकालीन धरने के उन 5 दिनों को याद करते हुए बाल पैरवी नेटवर्क के मोटाराम गौड़ बताते हैं- ‘‘यह किसानों का मामला था, किसानों ने ही उठाया और आगे बढ़ाया। वही तय करते कि आज कौन सा गांव रोटी लेकर आएगा। इसमें छोटे-छोटे जनप्रतिनिधियों की भागीदारिता रही। बड़ा प्रतिनिधि (जैसे सांसद) वगैरह आते तो 20-25 सरपंचों को देखकर दबाव में आ जाते।’’ बुजुर्ग किसान उदाराम कहते हैं- ‘‘14 अप्रेल याने अंबेडकर जंयती पर बड़े नेता के हाथों आमरण अनशन तोड़ने की बजाय नन्हीं बच्ची के हाथों जूस लिया। बीमा क्लेम यहां इतने बड़े मामले की तरह छाया कि हर पार्टी के बड़े नेता की गले में हड्डी बन गया। सांसद पद के कई उम्मीदवार हमारा समर्थन करते घूमते। हरीशचंदजी ने इसे 200 से ज्यादा बैठकों में उठाया और उनकी जीत में यहां के मतों ने अहम भूमिका निभाई।‘‘ अब नई सरकार के पुराने वायदे पूरा करने का समय है। अब देखना यह है कि जनता ने नई सरकार में जिस प्रतिनिधि (सांसद) को चुना है उसके कथन का रंग भी जमेगा या उड़ेगा।