‘अमेठी’ में पानी पर ‘रेल नीर’ का राज है

Submitted by Shivendra on Sun, 09/21/2014 - 11:00
मालती नदी का तल खोदकर इतना ढालू बना दिया गया है कि अब इसमें पानी रुकता ही नहीं। इस खुदाई के कारण नदियों के भीतर केे गहरे कुण्ड भी नहीं बचे, जिनमें पशु-पक्षियों के पीने लायक हमेशा पानी बना रहता था। राहुल गांधी ने समदा ताल के पुर्नउद्धार की परियोजना का बड़े उत्साह से श्रीगणेश तो किया था लेकिन अभी तक इस दिशा में एक कदम भी नहीं उठाया जा सका है। किसी ने इस बाबत अपने सांसद राहुल गांधी से कभी कोई सवाल पूछने की जहमत नहीं उठाई? अमेठी को लेकर एक कहावत है - ‘जौ न होत अमेठी मा ऊसर, तौ अमेठी कय दइव हौते दूसर।’ यदि अमेठी में ऊसर न होता, तो अमेठी का देवता कोई और होता। आजकल अमेठी के तथाकथित देवताओं में ही जंग छिड़ गई है। दुआ कीजिए कि अमेठी का वैचारिक और जमीनी ऊसरपन खत्म हो और जनता खुद, अमेठी की देवता हो जाए। लेकिन यह हो कैसे? जनता तो खुद इस जंग में कूदी हुई है।

रियासत और रजवाड़ों को गए जमाना बीत गया, बावजूद इसके अमेठी की जनता रामनगर महल को कोर्ट और उसके न्यायाधीशों को आज भी राजा-रानी ही कहती हैं। इस बात से आप समझ सकते हैं कि जमीन के ऊसर-बंजर होने का गवर्नेंस से क्या रिश्ता है? यह संकेत है कि जमीन ऊसर हो, तो परावलंबन की मजबूरी खुद-ब-खुद हाथ बांधे रखती है। इसी मजबूरी ने आजादी के बाद भी अमेठी के रजवाड़े को लोगों के मानस में राजा-रानी बनाए रखा।

अमेठी लोकसभा सीट पर ‘वीवीआईपी’ तमगा चस्पा हुए तीन दशक से अधिक समय हो गया है। अमेठी के लोगों को अपने सांसद, विधायक, प्रधानों व जिलाधीश पूछना चाहिए कि तीन दशक बाद भी उसकी जमीन का बड़ा हिस्सा बंजर क्यों है? अमेठी के ज्यादातर हिस्सों का पानी उतर रहा है; साथ-साथ रियासत और सियासत का भी। उतरते पानी वाले गौरीगंज क्षेत्र में पहले ही पानी कम है। क्या अमेठी की जनता ने कभी पूछा कि ऐसे संकटग्रस्त इलाके में प्रतिदिन लाखों लीटर पानी खींचने वाली बोतलबंद पानी के बोतल की कंपनी ‘रेल नीर’ की फैक्टरी क्यों लगाई गई?

जिनका पानी लेते हो, उन्हें मुनाफा क्यों नहीं देते हो?


फैक्टरी जनता के हिस्सा का जितना पानी, हर रोज खींचती है, उतने भूजल पुनर्भरण के लिए उसने क्या किया? ‘रेलनीर’ बेचकर रेलवे पांच गुना मुनाफा कमाता है। क्या वह उसमें से उन्हें भी कुछ देता है, जिनके इलाके का पानी इस फैक्टरी के कारण उतरना शुरू हो गया है? आज अमेठी की उज्जयिनी नदी प्रदूषण से बीमार हो चुकी है।

मालती नदी का तल खोदकर इतना ढालू बना दिया गया है कि अब इसमें पानी रुकता ही नहीं। इस खुदाई के कारण नदियों के भीतर केे गहरे कुण्ड भी नहीं बचे, जिनमें पशु-पक्षियों के पीने लायक हमेशा पानी बना रहता था। राहुल गांधी ने समदा ताल के पुर्नउद्धार की परियोजना का बड़े उत्साह से श्रीगणेश तो किया था लेकिन अभी तक इस दिशा में एक कदम भी नहीं उठाया जा सका है। किसी ने इस बाबत अपने सांसद राहुल गांधी से कभी कोई सवाल पूछने की जहमत नहीं उठाई?

सड़कें तल से उठती गईं और पानी पहुंची पाताल


निःस्संदेह, बीते 50 वर्षों में यहां खूब ऊंची और लंबी सड़कें बनी हैं। किंतु अमेठी का छोटा-सा कस्बा आज भी हर रोज जाम से जूझता है। इन सड़कों में से जलनिकासी की कोई व्यवस्था न होने की बेसमझी ने एक ओर जलभराव तो दूसरी और जलाभाव को बढ़ाया है।

बिजली के खंभे भी यहां के गांवों में बहुतायत में पहुंचे हैं लेकिन ये कभी पूरी रात बिजली की गारंटी नहीं दे पाएं हैं। ट्रांसफार्मर खराब होने पर एक सप्ताह के भीतर ठीक हो जाएगा; ये सपना भी अमेठी से दूर ही है।

पानी में घुल रहा है एचएएल फैक्टरी का जहर


स्वास्थ्य के नाम पर जिला और तहसीलों के अस्पताल बदहाल हैं। न दवाइयां हैं, न साफ-सफाई और न डॉक्टरों के पास ‘प्राइवेट’ मरीजों के अलावा किसी और को देखने की फुरसत। संजय गांधी के नाम से गांधी परिवार द्वारा खोला गया मुंशीगंज स्थित अस्पताल किसी निजी अस्पताल की तरह ही है।

कहते हैं कि राहुल जी को दलितों से बहुत स्नेह है। क्या उन्होंने कभी जानने या अमेठी की जनता ने उन्हें कभी बताने की कोशिश की कि संजय गांधी अस्पताल व गेस्ट हाउस के अलावा एच ए एल फैक्टरी का कचरा, किस जल स्रोत में मिलकर किस दलित की जिंदगी में कितना जहर घोल रहा है? गांधी-नहेरु परिवार के सदस्य यहां से हर बार जीतते हैं और जनता हर बार जीवन-मरण के मसले पर लुटी हुई महसूस करती है। यहां की जनता आज भी जीवन के बुनियादी सवालों को लेकर जूझ रही है और यहां से जीते ‘युवराज’ दिल्ली की गद्दी को लेकर।