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जनसत्ता, 9 मई, 2016
सरकारी और गैर सरकारी भवनों की छतों पर पानी स्टोरेज का प्रबन्धन होने की योजना है। लेकिन अफसरों की लापरवाही से योजना फेल है। अमेठी में भ्रष्टाचार और कमीशन का खेल कैंसर से बड़ा रोग बन चुका है जिससे सरकारी योजना कागज की नाव बन गई है। इण्डिया मार्का टू हैण्डपम्पों की स्थापना का काम राजनीति से जुड़े लोग करते हैं। वे इसे लगवाने में खुलेआम सामग्री चोरी करते हैं। अमेठी का सामान्य जलस्तर 15 से 20 मीटर है। लेकिन ठेकेदार नलों की स्थापना 10 से 15 मीटर पर करते हैं। राहुल की अमेठी सूखे की चपेट में है। यहाँ के दो हजार तालाबों में धूल उड़ रही है। तालाबों और पोखरों के सूख जाने से पशु-पक्षी पानी के अभाव में मर रहे हैं। इसके बाद जलस्तर 30 मीटर नीचे हो जाने से करीब 40 फीसद हैण्डपम्प और 80 फीसद कुएँ सूख गए हैं। इसलिये अमेठी में पेयजल को लेकर बड़ा संकट खड़ा हो गया है। इससे निपटने के लिये अब तक कोई योजना नहीं बनी है। इसके बावजूद एसीसी फैक्टरी के भूजल दोहन पर रोक नहीं है। इसके अलावा रेल नीर प्लांट और सैकड़ों निजी आरो प्लांट दिन-रात पानी का दोहन कर रहे हैं।
एसीसी फैक्टरी के आसपास वाले गाँव पूरी तरीके से सूखे की चपेट में हैं। एसीसी फैक्टरी के भूजल दोहन से दर्जनों गाँव में पीने के लिये पानी नहीं है। इसमें टिकरिया, असैदापुर, गुडरु, बाबूपुर, बेलखौर, अन्नी बैजल आदि की निवासी कई किलोमीटर दूर से पेयजल लेकर आते हैं।
एसीसी फैक्टरी के जल दोहन के खिलाफ पिछले 10 सालों से किसान आन्दोलन कर रहे हैं। लेकिन फैक्टरी के जल दोहन पर अब तक रोक नहीं लग पाई है। क्योंकि फैक्टरी के पक्ष में जिले के अफसर और नेता दोनों खड़े रहते हैं। फैक्टरी सूत्रों के मुताबिक जिले के अफसर और नेता दोनों यहाँ से जेब गरम करते हैं।
अमेठी की आबादी 24 लाख के करीब है। मानक के मुताबिक यहाँ पर 24 हजार इण्डिया मार्का टू हैण्डपम्पों की स्थापना होना था। जल निगम के अधिशासी अभियन्ता एमएम झा के आँकड़े बताते हैं कि अमेठी के 13 ब्लाकों में 44512 इण्डिया मार्का टू हैण्डपम्प लग चुके हैं। इसमें से करीब पाँच हजार नल खराब पड़े रहे हैं। लेकिन जमीनी पड़ताल में चालीस फीसद नल शोपीस बने हुए हैं। जिले में पेयजल की आपूर्ति के लिये 53 पानी की टंकियाँ बनाई गई हैं। इसमें चार हजार से ज्यादा उपभोक्ता जुड़े हैं।
करीब दो हजार तालाब बने हैं। लेकिन इसमें पानी नहीं है। तालाबों की फर्जी खुदाई का गोरखधंधा पुराना है। अमेठी के हजारों तालाब ऐसे हैं जो कागज पर बने हैं। मनरेगा के धन से तालाबों की खुदाई कराई जाती है। मनरेगा के धन में हेराफेरी का मामला किसी से छिपा नहीं है। ग्राम प्रधान, सेक्रेटरी और ग्राम रोजगार सेवक आपस में मिलकर फर्जी तालाबों की खुदाई कराते हैं और बैंक से मजदूरी के नाम पर फर्जी भुगतान कर लेते हैं।
मनरेगा के हजारों जॉब कार्ड धारक दिल्ली, मुम्बई, चण्डीगढ़ में पड़े हैं। लेकिन वे ड्यूटी यहाँ पर बजाते हैं। इसका खुलासा आये दिन होता रहता है। लेकिन भ्रष्टाचार पर अंकुश नहीं है। मनरेगा से तालाबों की खुदाई का सबसे बड़ा गोरखधंधा अमेठी, जामो, शाहगढ़ ब्लाक में किया गया है। यहाँ पर क्षेत्र पंचायत और ग्राम पंचायत की निधि से तालाबों की खुदाई के नाम पर फर्जी तरीके से धनराशि हड़पी गई है।
गिरते जलस्तर को रोकने के लिये मुख्यमंत्री जल बचाओ योजना लागू है। परन्तु योजना जमीन पर लागू नहीं है। शहरों और कस्बों में प्राकृतिक जल संचयन के लिये रूफटाप रेन वाटर हार्वेस्टिंग योजना लागू है। इस योजना में हर घर के ऊपर जल संचयन की व्यवस्था होनी थी। वर्ष 2015 में भूजल, प्रबन्धन, वर्षाजल संचयन, भूजल रीचार्ज की सामग्री निधि लागू की गई है।
इस योजना में सरकारी और गैर सरकारी भवनों की छतों पर पानी स्टोरेज का प्रबन्धन होने की योजना है। लेकिन अफसरों की लापरवाही से योजना फेल है। अमेठी में भ्रष्टाचार और कमीशन का खेल कैंसर से बड़ा रोग बन चुका है जिससे सरकारी योजना कागज की नाव बन गई है। इण्डिया मार्का टू हैण्डपम्पों की स्थापना का काम राजनीति से जुड़े लोग करते हैं। वे इसे लगवाने में खुलेआम सामग्री चोरी करते हैं।
अमेठी का सामान्य जलस्तर 15 से 20 मीटर है। लेकिन ठेकेदार नलों की स्थापना 10 से 15 मीटर पर करते हैं। लिहाजा नल पानी देने के बजाय शोपीस बन जाते हैं लेकिन ठेकेदारों को इससे लेना देना नहीं है। इस पर अमेठी के जिलाधिकारी चन्द्रकान्त पांडेय ने कहा कि सूखे से निपटने के लिये सूखे पड़े तालाबों को भरने के आदेश जारी किये गए हैं।
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