दावा है कि कभी आपने ऐसा पुलिस अफसर नहीं देखा होगा, आज तक आपने जितने भी पुलिस अफसर देखे होंगे, अपराधों पर सख्ती से अंकुश लगाने या नरम-गरम छवि की वजह से पहचाने जाते रहे हैं। आमतौर पर खाकी वर्दी और रौब झाड़ना ही पुलिस की पहचान होती है लेकिन एक आईपीएस अफसर ने इस धारणा को पूरी तरह से बदल दिया।
मध्य प्रदेश में झाबुआ के पुलिस कप्तान इन दिनों पर्यावरण के सिपाही बन गए हैं। सच कहें तो पर्यावरण के असली पहरेदार...अपराधों पर नियंत्रण के साथ ही इस डायनामिक पुलिस कप्तान ने अपनी इच्छाशक्ति से पूरी ताकत झोंक एक ऐसे स्थान को हरा-भरा बनाया है, जो कभी उजाड़ में अपनी वीरानियों के लिये पहचाना जाता रहा है।
सिर्फ हरा-भरा ही नहीं बल्कि इतना मनोहारी कर दिया है कि अब वह आसपास से लेकर दूर-दराज तक के लोगों को लुभाने लगा है। उनका काम सिर्फ एक पहाड़ी पर हजारों पौधे लगाकर जंगल खड़ा कर देने तक ही सीमित नहीं है, झाबुआ जिले के कई कस्बों और गाँवों में भी उन्होंने सैकड़ों फलदार पौधे लगाए हैं। तालाबों की गन्दगी हटाने में श्रमदान किया है।
पर्यावरण के सरोकारों से गहरे तक जुड़े पुलिस पदक से सम्मानित इस आईपीएस अफसर ने करीब डेढ़ साल के छोटे से वक्फे (समय) में ही आदिवासी बाहुल्य झाबुआ अंचल की पूरे प्रदेश में एक अलग ही छवि बना दी है।
झाबुआ कस्बे से सटी हाथीपावा की पहाड़ी पर दो साल पहले तक झाबुआ के 99 फीसदी लोग भी कभी नहीं गए थे लेकिन आज झाबुआ ही नहीं दूर-दराज के लोग भी यहाँ आने लगे हैं। इस वीरान और उजाड़ रहने वाली बंजर पहाड़ी पर पंछी भी अपना रुख नहीं करते थे लेकिन अब यह जगह प्रवासी पक्षियों के लिये भी शेल्टर बन गई है।
दूर-दूर तक हरियाली का नजारा दिखता है। हरे पौधे बड़े होकर पेड़ बनने को आतुर हैं। आदिवासियों ने बीते सालों में यहाँ हलमा कर हजारों खन्तियाँ बनाई हैं, अब इनमें बारिश का पानी ठहरने से पहाड़ी घास से ढँकी-ढँकी नजर आती है। बारिश के दिनों में तो यह जगह किसी रमणीक पिकनिक स्पॉट की तरह लगती है। सुबह के सूर्योदय का मनोरम दृश्य देखने के लिये कई लोग यहाँ पहुँचते हैं। वे स्वीकारते हैं कि यह काम लोगों की कल्पना से भी परे था और मैंने खुद भी इतनी जल्दी इतने बड़े बदलाव की उम्मीद नहीं की थी।
आज से दो सालों पहले दिसम्बर 2016 में झाबुआ में पुलिस अधीक्षक के रूप में महेशचंद जैन ने पदभार ग्रहण किया तो उन्हें झाबुआ देखकर हैरानी हुई। यहाँ आने से पहले झाबुआ को लेकर उनके मन में कुछ अलग ही कल्पना थी।
उन्हें लगा था कि आदिवासी बाहुल्य और प्राकृतिक रूप से इलाका समृद्ध होगा। इसमें घना जंगल होगा, जंगली जानवर और पंछी होंगे मनोरम दृश्य होंगे। बारिश के दिनों में इसका अपना देखने लायक प्राकृतिक सौन्दर्य होगा। लेकिन जब यहाँ पहुँचे तो देखा कि झाबुआ के आसपास तो कई बंजर पहाड़ियाँ थीं। यह इलाका किसी लैंडस्केप की तरह खूबसूरत तो था लेकिन जंगल का कई मीलों तक अता-पता नहीं था। पुलिस कप्तान जैन ने उसी दिन ठान लिया कि वह अपनी कल्पना को साकार करेंगे।
पुलिसिंग के साथ उन्होंने कम्यूनिटी पुलिसिंग भी शुरू कर दी और बतौर पर्यावरण के असली पहरेदार के रूप में शुरू कर दिया काम। यह काम आसान नहीं था और पुलिस अफसर के रूप में यह काम करना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं था लेकिन जिद और जुनून के आगे कोई काम असम्भव नहीं रह जाता। इसी बात को आखिरकार उन्होंने महज डेढ़ साल में ही चरितार्थ कर दिखाया।
हर दिन कप्तान साहब यहाँ सुबह-शाम एक घंटा बीताते हैं और खुद पेड़-पौधों के लिये नवजात बच्चों की तरह देखभाल भी करते हैं।
हाथीपावा की पहाड़ी पर आज 12 हजार पौधे हैं, पंछियों का बड़ा बसेरा है, प्रवासी पक्षियों का कलरव है, किसी नामी हिल स्टेशन की तरह का अहसास है, सूर्यास्त और सूर्योदय का खूबसूरत नजारा है, योग और ध्यान का बेहतरीन स्थान है, फलदार वृक्षों की सरसराहट है, बच्चों के लिये झूले और फिसलपट्टियाँ है, वाकिंग ट्रेक है, हिल टॉप से समंदर की तरह दूर तक दिखने वाला दृश्य है, किसी लैंडस्केप की तरह आदिवासियों के खेत और झोपड़ों का दिलकश नजारा है, सच कहें तो ये दिलखुश करने वाली संजीवनी बूटी का खजाना है अब हाथीपावा की पहाड़ियों में।
बहुत ही कम वक्त में हुए इस बदलाव के पीछे कड़ी मेहनत, दूर दृष्टि और पक्के इरादों की एक बड़ी कहानी है जो अपनी सफलता खुद तय करती है। पुलिस अधीक्षक जैन ने देखा कि हर साल हजारों आदिवासी अपने गाँवों से एक दिन के लिये यहाँ आते हैं और पहाड़ी का शृंगार (श्रमदान) कर लौट जाते हैं।
हर साल यहाँ एक नियत दिन आदिवासी अपने फावड़े-कुदाली लेकर आते हैं तथा हलमा करते हुए पहाड़ी पर खंतियाँ बनाते हैं ताकि बारिश का पानी इनमें रुक सके। बीते पाँच सालों में उन्होंने पचास हजार से ज्यादा ऐसी जल संरचनाएँ बना दी हैं। दूर गाँवों में रहने वाले आदिवासी तो अपना काम बड़ी मेहनत और जज्बे से पूरा करते हैं लेकिन झाबुआ शहर में रहने वाले अधिकांश लोग इसमें कोई मदद नहीं करते हैं।
इसी एक विचार से उनके सपने को पूरा करने का सूत्र उन्हें पकड़ में आ गया। उन्होंने तय किया कि आने वाले बारिश के मौसम में हाथीपावा की पहाड़ी पर क्यों न पौधरोपण का बड़ा आयोजन किया जाये और शहर के लोगों को भी इससे जोड़ा जाये। पौधरोपण करना तो आसान था लेकिन उनकी जिद यह भी थी कि जब तक लगाए गए पौधों में से 80 से 90 फीसदी बड़े पेड़ नहीं बन जाते तो इसका कोई अर्थ नहीं है।
उन्होंने आसपास के पर्यावरणविदों से भी बात की और जुट गए इस असम्भव से दिखते काम को पूरा करने में। उन्होंने जिला प्रशासन, वन विभाग और शहर के लोगों को जोड़कर इसे मूर्त रूप देने के लिये कमर कस ली। अपराधों पर नियंत्रण के साथ अब हर दिन वे दो से तीन घंटे का वक्त इसके लिये भी निकालने लगे। कई बार उन्होंने पहाड़ी के अलग-अलग हिस्सों पर जाकर देखा। लोगों से बात की। पौधों को गर्मियों में जिन्दा रख पाने के लिये पानी की उपलब्धता पर गौर किया।
एक संकल्प और सैकड़ों लोगों का मिला साथ
अन्ततः 26 मार्च 2017 को उन्होंने पहली बार श्रमदान के लिये लोगों को इकट्ठा किया। लोग तो कम ही पहुँचे लेकिन इससे एसपी जैन का हौसला नहीं डिगा। उन्होंने चिलचिलाती धूप और भीषण गर्मी में भी पसीना बहाते हुए पौधरोपण के लिये जमीन में गड्ढे बनाने और पानी रोकने की तकनीकों पर काम करना जारी रखा। धीरे-धीरे कई लोग उनके काम में जुटते चले गए।
तीन महीनों तक गड्ढे बनाने तथा बारिश के पानी को पौधों के आसपास रोकने का जतन होता रहा। उन्होंने अपने स्टाफ के करीब डेढ़ सौ पुलिसकर्मियों को भी इसके लिये प्रेरित किया। वन विभाग का भी उन्हें सहयोग मिला और कई बड़े फलदार पौधे तैयार किये गए। पौधों का चयन करते समय जिन बातों पर विशेष गौर किया, उनमें खासतौर पर छाया, हवा, फल, पक्षियों के लिये बसेरा आदि का विशेष ध्यान रखा गया।
बारिश से पहले ही पाँच हजार पौधे लगाने के लिये सारी तैयारियाँ चाक-चौबन्द कर ली गई थी। बारिश की मनुहार की गई और बारिश शुरू होते ही 8-9 जुलाई को कई चरणों में यहाँ पौधे रोपने का काम शुरू हो गया। तब तक उनके साथ कई लोग जुड़ चुके थे और एक व्यक्ति का विचार कारवाँ में बदल चुका था। प्रशासन के साथ शहर की संस्थाएँ भी आगे आईं। इसी साल यहाँ साढ़े आठ हजार पौधे लगाए गए।
हर रविवार की सुबह दो घंटे तक करीब दो से तीन सौ लोगों ने श्रमदान किया। झाबुआ के बुजुर्ग बताते हैं कि यहाँ इससे पहले कभी इस तरह का कोई श्रमदान नहीं हुआ। कई सालों से ये पहाड़ियाँ वीरान पड़ी थीं लेकिन किसी का ध्यान कभी इन्हें हरा-भरा बनाने की ओर नहीं गया। इतने अफसर आये और चले गए लेकिन उनमें से कभी किसी ने इस पर गौर नहीं किया। इस काम का शहर के पर्यावरण पर भी बड़ा असर पड़ेगा।
पहली बारिश में लगाए गए पौधों की लगातार निगरानी और श्रमदान करने के साथ ही एसपी जैन ने पर्यावरण के लिये जिले के अन्य स्थानों पर भी पौधे लगाने और इन्हें पेड़ के रूप में बदलने के लिये स्थानीय लोगों को जागरूक करने का काम भी शुरू कर दिया।
जोबट के पास बरखेड़ा में करीब एक हजार, होमगार्ड लाइन झाबुआ में आम, अमरुद, चीकू, सुरजना, नीबू, तथा कटहल के 40 पौधे, खवासा में स्थानीय लोगों के साथ मिलकर 100 से ज्यादा पौधे, राणापुर में विद्यार्थियों के साथ बड़, पीपल, आम, नीम, खिरनी, अमरुद तथा जामुन के सवा सौ पौधे लगाए गए। पुलिस अधीक्षक कार्यालय, रक्षित केन्द्र और विभिन्न थाना परिसरों में भी मोरसली, आम, बड़, पीपल जामुन और अमरुद के पाँच से सात फीट कद की ऊँचाई वाले एक हजार से ज्यादा पौधे लगाए गए।
नवम्बर-दिसम्बर तक तो पौधे जीवित रहे लेकिन उसके बाद धूप और गर्मी से वे मुरझाने लगे। महेशचन्द जैन के मन में यह बात पहले से थी और वे इसके लिये पूर्व तैयारी भी कर चुके थे। उन्होंने पहाड़ी पर इसके लिये सीमेंट की कुछ टंकियाँ बनवा ली थीं और टैंकरों के जरिए इन्हें भरा जाता था। कहीं आसपास के ट्यूबवेल से भी पानी आ जाता था।
इस तरह फिर लोगों को जोड़ा गया तथा हर हफ्ते कुछ घंटों के श्रमदान में सैकड़ों लोग बाल्टियों में पानी लेकर पौधों को पानी देते रहे। इससे गर्मियों के दिनों में भी पौधे जीवित रहे और इस बार बारिश आने के बाद तो यहाँ की तस्वीर ही बदल गई है।
ऐसा लगता है मानों पहाड़ी पर हरियाली का चुनर ओढ़े कोई नया जंगल खड़ा हो गया है। पहाड़ी पर पौधरोपण से आगे उन्हें बड़ा करने के लिये लगातार पानी देने और उनकी देखभाल करने के लिये श्रमदान किया जाता है। खुद एसपी जैन सुबह पौधों को पानी देते हैं। दो चौकीदार भी रखे हैं, जिनका वेतन खुद एसपी अपने जेब से करते हैं।
केवल हाथीपावा पहाड़ी ही नहीं, जहाँ-जहाँ बीते साल पौधरोपण हुआ है, वहाँ की तस्वीर बदल गई है। पुलिस विभाग के भवनों के परिसर में पेड़ लहलहा रहे हैं। फूलों से डालियाँ झुकी जा रही हैं तो कहीं घास के मैदान नजर आते हैं। पुलिस लाइन के बगीचे में सुबह शाम चहल-पहल बढ़ गई है।
बाल आश्रम का परिसर भी हरा-भरा हो गया है। उन्होंने पुलिस लाइन में रहने वाले परिवारों के लिये आरओ के शुद्ध पानी तथा विभिन्न थानों और पुलिस भवनों में आने वाले शिकायतकर्ताओं तथा अन्य लोगों के लिये गर्मी में ठंडे पानी की व्यवस्था भी करवाई है। वे गाँव-गाँव में खाटला (खटिया) चौपाल लगाकर बेटियों को पढ़ाने तथा पेड़ों को सहेजने के साथ पानी और पर्यावरण की बात भी करते हैं।
छोटे तालाब को सँवारा
झाबुआ शहर के बीचोंबीच छोटे तालाब के आसपास बीते कुछ सालों से गन्दगी का ढेर लगने लगा था। किनारों की बस्तियों में रहने वाले लोग अपने घरों का कचरा तथा अन्य गन्दगी तालाब के किनारे डाल दिया करते थे। इससे तालाब का पानी भी गन्दला जाता और आसपास बदबू उठती रहती लेकिन कभी किसी ने इसकी सफाई पर गौर नहीं किया। तालाब में काफी गाद भी जम चुकी थी और कुछ वक्त ध्यान नहीं दिया जाता तो तालाब ही खत्म हो जाता।
पुलिस अधीक्षक महेशचन्द जैन की नजर एक दिन इस पर पड़ी तो उन्होंने शहर के कुछ लोगों को इकट्ठा किया और शनिवार की सुबह दो घंटे के श्रमदान का आह्वान किया। कई लोग जुटे और दो घंटे में ही तालाब के आसपास का काफी हिस्सा सँवर गया। करीब सौ लोगों के साथ उन्होंने भी तालाब की गीली मिट्टी और कीचड़ से भरी तगारियाँ बिना किसी हिचक के उठाकर बाहर की।
इस दौरान उनके कपड़ों पर कीचड़ भी लग गया लेकिन उन्होंने इसकी परवाह नहीं की। तालाब की सफाई के बाद वे लोगों के साथ ही तालाब के आसपास रहने वाले लोगों के घरों पर पहुँचे और उन्हें हाथ जोड़कर समझाया कि तालाब में गन्दगी न करें। उन्होंने कहा कि तालाब में साफ पानी रहेगा तो सभी के उपयोग में आ सकेगा। गन्दगी करोगे तो बदबू आएगी और बीमारियाँ होंगी। लोगों पर उनकी बात का बड़ा असर हुआ और फिलहाल तो उन्होंने गन्दगी न करने की शपथ ली है।
स्मृतियों के पौधे भी बनेंगे घने पेड़
कुछ महीनों पहले इस अभियान को लोगों से जोड़ने के लिये जन्मदिन, पुण्यतिथि तथा शादी की मैरिज एनिवर्सरी पर भी यहाँ पौधे लगाने की मुहिम शुरू की गई है। खुद एसपी जैन ने पाँच मई को अपने 52वें जन्मदिन पर दस फीट ऊँचे 52 पौधों को रोपित किया। उनकी शादी की 23वीं एनिवर्सरी पर भी 23 पौधे पीपल, नीम और मोलसरी के पौधे रोपे गए।
उनके पुत्र निहित जैन के 21वें जन्मदिन पर छह जनवरी को 7 नीम, 7 पीपल तथा 7 मोलसरी के पौधे लगाए गए। इसके अलावा कई लोगों ने यहाँ आपने पूर्वजों की स्मृति में भी पौधरोपण किया है तथा खुद उसकी देखभाल करते हैं।
जैन बताते हैं कि 1999 में जब उनका बेटा निहित पाँच साल का था और उसे स्कूल में भर्ती किया गया तो नीमच के कार्मल कान्वेंट स्कूल के सामने दोपहर के वक्त उसे लाने के लिये खड़ा होना पड़ता था। उन दिनों वहाँ कोई पेड़ नहीं थे और बच्चों को लेने आने वाले पालकों को कड़ी धूप में खड़ा रहना पड़ता था। उन्होंने अपने बेटे के पाँचवे जन्मदिन पर स्कूल के बाहर नीम के पाँच पौधे लगवाए। कुछ ही दिनों में ये पौधे पेड़ बन गए और अब लोगों को घनी छाया देते हैं।
इस बार मकर संक्रान्ति पर हाथीपावा की पहाड़ी पर बड़ी संख्या में शहर के लोगों को बुलाकर पतंग उत्सव मनाया गया। परिवार सहित पहुँचे लोगों ने पतंगबाजी के साथ गिटार और अन्य वाद्ययंत्रों को बजाकर या गीत गाते हुए त्योहार मनाया। पहली बार हुए इस आयोजन को लोगों ने खूब सराहा। विश्व पर्यावरण दिवस 5 जून को भी यहाँ श्रमदान कर पौधों को पानी दिया गया।
झाबुआ जिले के ही अमर शहीद स्वतंत्रता सेनानी चन्द्रशेखर आजाद की 112वीं जयन्ती पर हाथीपावा पहाड़ी पर 112 पौधे बड़, पीपल और नीम रोपित किये गए। इसकी तारीफ प्रदेश के मुख्यमंत्री ने भी की। उन्होंने अपने सन्देश में कहा कि पौधरोपण से ही सृष्टि की रक्षा की जा सकती है, झाबुआ पुलिस ने यह बेहतरीन मिसाल पेश की है। इसी तरह पुलिस शहीद दिवस पर शहीद जवानों की स्मृति में एक हजार नीम, सौ जामुन, सौ चेरी, सौ बादाम, सौ अमरुद तथा सौ मोलसरी कुल डेढ़ हजार पौधे लगाए गए हैं।
उन्होंने देश-विदेश के लोगों को भी इस अभियान में शामिल करते हुए आग्रह किया है कि कोई भी अपने परिजनों के जन्मदिन या पुण्यतिथि को यादगार रूप देने हाथीपावा पहाड़ी पर पौधरोपण हेतु झाबुआ पुलिस के मोबाइल 70491 40506 पर सम्पर्क कर सकता है। विभाग उन्हें निशुल्क पौधे उपलब्ध कराएगा।
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