अंग्रेजी शासन के दौरान सिंचाई विकास की शुरूआत मौजूदा कार्यों जिनका उल्लेख ऊपर किया गया है के नवीकरण, सुधार और विस्तार के साथ हुई। पर्याप्त अनुभव और विश्र्वास अर्जित कर लेने के बाद सरकार ने नए वृहद कार्य हाथ में लिए जैसे कि ऊपरी गंगा नहर, ऊपरी बड़ी दोआब नहर तथा कृष्णा और गोदावरी डेल्टा प्रणालियां जो सभी काफी बड़े आकार के नदी-अपवर्तन कार्य थे। 1836 से 1866 तक की अवधि इन चार वृहद कार्यों की जांच, विकास और पूर्ति के प्रति समर्पित थी। 1867 में सरकार ने ऐसे कार्य हाथ में लेने की परिपाटी अपनाई जो कि न्यूनतम शुद्ध लाभ का आश्र्वासन देते थे।
इसके बाद अनेक परियोजनाएं हाथ में ली गईं जिनमें सिरहिन्द, निम्न गंगा, आगरा और मुथा नहरों तथा पेरियार बांध और नहरों जैसे वृहद नहर कार्य शामिल थे। इस अवधि के दौरान सिंधु प्रणाली पर कुछ अन्य वृहद नहर परियोजनाएं भी पूरी की गईं। इनमें निम्न स्वात, निम्न सोहाग और पारा, निम्न चिनाब और सिघनई नहर शामिल थी जिनमें से सभी1947 में पाकिस्तान में चली गई।
19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में सूखे और अकाल की पुनरावृत्ति के कारण फसलों के असफल हो जाने की स्थिति में सुरक्षा प्रदान करने और बाढ़ राहत पर बड़े पैमाने पर होने वाले खर्च को कम करने के लिए सिंचाई का विकास जरूरी हो गया। क्योंकि न्यून वर्षा भू-भाग में सिंचाई कार्यों के सम्बन्ध में ऐसा सोचा गया था कि उनके लिए उत्पादकता परीक्षण की पूर्ति करना संभव नहीं होगा, इसलिए उनका वित्तपोषण चालू राजस्व से करना पड़ा। इस अवधि के दौरान निर्मित महत्वपूर्ण संरक्षणात्मक कार्य थेः बेतवा नहर, नीरा बायां तट नहर, गोकक नहर, खसवाड़ तालाब तथा ऋषिकुल्य नहर।
दो प्रकार के कार्यों अर्थात उत्पादक और सुरक्षात्मक कार्यों के बीच सरकार की तरफ से उत्पादक कार्यों की ओर अधिक ध्यान दिया गया। अंग्रेजों के शासनाधीन भारत में उन्नीसवीं शताब्दी के अन्त में सिंचित सकल क्षेत्रफल लगभग 7.5 मिलियन हैक्टेयर था। इसमें से 4.5 मिलियन हैक्टेयर लघु कार्यों जैसे कि तालाबों, आप्लावन आदि से प्राप्त हुआ था जिनके सम्बन्ध में कोई स्वतंत्र पूंजी लेखे नहीं रखे गए थे। सुरक्षा कार्यों से सिंचित क्षेत्र 0.12 मिलियन हैक्टेयर से थोड़ा-सा अधिक था।
इसके बाद अनेक परियोजनाएं हाथ में ली गईं जिनमें सिरहिन्द, निम्न गंगा, आगरा और मुथा नहरों तथा पेरियार बांध और नहरों जैसे वृहद नहर कार्य शामिल थे। इस अवधि के दौरान सिंधु प्रणाली पर कुछ अन्य वृहद नहर परियोजनाएं भी पूरी की गईं। इनमें निम्न स्वात, निम्न सोहाग और पारा, निम्न चिनाब और सिघनई नहर शामिल थी जिनमें से सभी1947 में पाकिस्तान में चली गई।
19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में सूखे और अकाल की पुनरावृत्ति के कारण फसलों के असफल हो जाने की स्थिति में सुरक्षा प्रदान करने और बाढ़ राहत पर बड़े पैमाने पर होने वाले खर्च को कम करने के लिए सिंचाई का विकास जरूरी हो गया। क्योंकि न्यून वर्षा भू-भाग में सिंचाई कार्यों के सम्बन्ध में ऐसा सोचा गया था कि उनके लिए उत्पादकता परीक्षण की पूर्ति करना संभव नहीं होगा, इसलिए उनका वित्तपोषण चालू राजस्व से करना पड़ा। इस अवधि के दौरान निर्मित महत्वपूर्ण संरक्षणात्मक कार्य थेः बेतवा नहर, नीरा बायां तट नहर, गोकक नहर, खसवाड़ तालाब तथा ऋषिकुल्य नहर।
दो प्रकार के कार्यों अर्थात उत्पादक और सुरक्षात्मक कार्यों के बीच सरकार की तरफ से उत्पादक कार्यों की ओर अधिक ध्यान दिया गया। अंग्रेजों के शासनाधीन भारत में उन्नीसवीं शताब्दी के अन्त में सिंचित सकल क्षेत्रफल लगभग 7.5 मिलियन हैक्टेयर था। इसमें से 4.5 मिलियन हैक्टेयर लघु कार्यों जैसे कि तालाबों, आप्लावन आदि से प्राप्त हुआ था जिनके सम्बन्ध में कोई स्वतंत्र पूंजी लेखे नहीं रखे गए थे। सुरक्षा कार्यों से सिंचित क्षेत्र 0.12 मिलियन हैक्टेयर से थोड़ा-सा अधिक था।