खेती की लागत कम करने के उपाय

Submitted by admin on Thu, 10/09/2008 - 10:54

मणिशंकर उपाध्याय / वेबदुनिया

खेती को लाभदायक बनाने के लिए दो ही उपाय हैं- उत्पादन को बढ़ाएँ व लागत खर्च को कम करें। कृषि में लगने वाले मुख्य आदान हैं बीज, पौध पोषण के लिए उर्वरक व पौध संरक्षण, रसायन और सिंचाई। खेत की तैयारी, फसल काल में निंदाई-गुड़ाई, सिंचाई व फसल की कटाई-गहाई-उड़ावनी आदि कृषि कार्यों में लगने वाली ऊर्जा की इकाइयों का भी कृषि उत्पादन में महत्वपूर्ण स्थान है।

इनका उपयोग किया जाना आवश्यक है, परंतु सही समय पर सही तरीके से किए जाने पर इन पर लगने वाली प्रति इकाई ऊर्जा की क्षमता को बढ़ाया जा सकता है। इनका अपव्यय रोककर व पूर्ण या आंशिक रूप से इनके विकल्प ढूँढकर भी लागत को कम करना संभव है।

इस दिशा में किए गए कार्यों व प्रयासों के उत्साहजनक परिणाम प्राप्त हुए हैं। इनसे कृषकों को अधिक लाभ मिलने के साथ ही पर्यावरण को प्रदूषित होने से भी बचाया जा सकता है।

पौध पोषण : पौध पोषण के लिए बाजार से खरीदे गए नत्रजन, स्फुर और पोटाशयुक्त उर्वरक उपयोग में लाए जाते हैं। प्रयोगों में पाया गया है कि रासायनिक उर्वरक के रूप में दी गई नत्रजन (जो यूरिया, अमोनियम सल्फेट आदि के द्वारा दी जाती है) का सिर्फ 33-38 प्रतिशत भाग ही उस फसल को प्राप्त हो पाता है।

शेष सिंचाई जल के साथ नाइट्रेट्स के रूप में रिसकर या कम नमी की अवस्था में गैसीय रूप में वातावरण में चला जाता है। इसी तरह स्फुर यानी फास्फोरस का 20 अंश एवं पोटाश का 40 से 50 प्रतिशत अंश ही उस फसल को मिल पाता है। स्फुर का 80 प्रतिशत अंश तक काली चिकनी मिट्टी के कणों के साथ बँधकर पौधों को उपलब्ध नहीं हो पाता है।

इन उर्वरकों की मात्रा को कम करने एवं उपयोग क्षमता को बढ़ाने में जीवांश खाद जैसे गोबर की खाद या कम्पोस्ट या केंचुआ खाद आदि का प्रयोग लाभदायक पाया गया है। ये जैविक खाद किसान अपने स्तर पर भी तैयार कर सकते हैं। इनके अलावा अखाद्य तेलों जैसे नीम, करंज आदि की खली का उपयोग किया जा सकता है। इन खलियों के चूरे की परत यूरिया के दाने पर चढ़ाकर यूरिया के नत्रजन को व्यर्थ नष्ट होने से बचाया जा सकता है।

नत्रजन वाले उर्वरकों की निर्भरता को कम करने के लिए जीवाणु कल्चर राइजोबियम या एजेक्टोबेक्टर का उपयोग, गेहूँ, जुवार, मक्का, कपास आदि फसलों के साथ अंतरवर्तीय फसल के रूप में चना, गेहूँ, उड़द, अरहर, चौला आदि का उपयोग लाभदायक पाया गया है। ये दलहनवर्गीय फसलें वातावरण की नत्रजन को लेकर न सिर्फ अपने उपयोग में लाती है, बल्कि अपनी जड़ों में स्थिर नत्रजन का लाभ साथ लगाई गई अंतरवर्ती को भी पहुँचाती हैं। स्फुर (फास्फोरस) की उपयोग क्षमता को बढ़ाने के लिए स्फुर घोलक बैक्टीरिया का उपयोग किया जाना चाहिए।

अपने यहाँ अभी भी गोबर का उपयोग उपले या कंडे बनाकर ईंधन के रूप में किया जाता है। यदि इसे गोबर गैस में परिवर्तित कर सकें तो ईंधन की समस्या हल होने के साथ ही बेहतर गुणवत्ता का खाद भी प्राप्त हो जाता है। गाँव में पशुओं की संख्या के आधार पर गोबर गैसों के निर्माण, रखरखाव की जिम्मेदारी ग्राम पंचायतों को सौंपी जा सकती है।

गेहूँ की फसल की कटाई के बाद खेतों को आग लगाकर साफ किया जाता है। इससे भारी मात्रा में जीवांश जलकर नष्ट हो जाता है। इसे जलाने के बाद फसल की कटाई के तत्काल बाद मिट्टी पलटने के हल से खेत को जोतकर ढेलेदार अवस्था में छोड़ दिया जाना चाहिए, जिससे कटे हुए पौधों के डंठल, ठूँठ आदि निचली सतह में जाकर मिट्टी से दब जाएँ और वर्षा आने पर स्वतः ही विघटित होकर जीवांश खाद बन जाते हैं।

फसलों में सिंचाई जल की उपयोग क्षमता बढ़ाने के लिए एक नाली छोड़कर एकांतर (अल्टरनेट) सिंचाई करना, स्प्रिंकलर (फुहार) सिंचाई, टपक सिंचाई आदि विधियों व साधनों का प्रयोग फसल की कतारों के बीच अवरोध परत (मलच) का उपयोग आदि तरीके काम में लाए जाने चाहिए।

पौध संरक्षण : रोगों और कीड़ों की बहुतायत आधुनिक और लगातार कृषि की देन है। हमारा लक्ष्य फसलों को इनके द्वारा की जाने वाली हानि से बचाना है न कि नष्ट करना। कीट व रोगनाशक रसायनों का असर सिर्फ नुकसान करने वाले कीड़ों व रोगों पर न होकर लाभ पहुँचाने वाले कीड़ों व रोगों पर भी होता है।

इनके नियंत्रण के लिए स्वच्छ कृषि, परजीवी व शिकारी कीड़ों व कीड़ों को हानि पहुँचाने वाले कवकों (फफूँदों) व वायरस का प्रयोग असरकारक पाया गया है। इनके अलावा नीम, करंज, हींग, लहसुन, अल्कोहल आदि के उपयोग, अंतरवर्ती फसल, प्रपंची फसल फेरोमेन, ट्रेप, प्रकाश प्रपंच आदि साधनों के उपयोग से रसायनों के उपयोग पर खर्च होने वाली राशि में कमी की जा सकती है। कीटनाशी रसायन अंतिम विकल्प के रूप में काम में लाएँ।