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विज्ञान प्रगति, जून 2017
अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर परिशुद्धता खेती पिछले दो दशकों में कृषि के क्षेत्र में सबसे महत्त्वपूर्ण घटनाओं में से एक है। आज के कृषि सम्बन्धित मुद्दों जैसे उत्पादकता एवं पर्यावरणीय चिन्ताओं का सन्तुलन बनाए रखने के लिये प्रणालीगत दृष्टिकोण का उपयोग करके परिशुद्धता कृषि इस दिशा में एक नया समाधान उपलब्ध कराती है। मिट्टी की उर्वरता और फसल की स्थिति पूरे खेत में एक समान नहीं होती है इसलिये कृषि निविष्टियों का पूरे खेत में एक समान दर पर प्रयोग करने से फसल उपज के मामले में वांछित परिणाम प्राप्त नहीं होते हैं। फसल उत्पादन में सुधार लाने और पर्यावरणीय दुष्प्रभाव को कम करने के लिये मिट्टी की उर्वरता और फसल की स्थिति में विविधता को संचालित करना परिशुद्धता खेती का मुख्य ध्येय है।
वैश्विक स्थिति निर्धारण तंत्र सहित अन्तरिक्ष प्रौद्योगिकी, भौगोलिक सूचना प्रणाली एवं सुदूर मिट्टी की विशेषताओं और फसल की उपज के बारे में जानकारी पाने में सहायता करते हैं और मौसम परिवर्तनशील मिट्टी और फसल विशेषताओं जैसे मिट्टी की नमी, फसल फीनोलॉजी, पोषक तत्वों की कमी, फसल रोग, घास और कीट प्रकोप आदि की निगरानी रखने में भी सहायक हैं। इससे फसल की उपज और आय अधिकतम मात्रा में हो सकती है। यद्यपि परिशुद्धता खेती को विकसित देशों में व्यापक रूप से अपनाया जा चुका है किन्तु भारत में यह प्रारम्भिक दौर में ही है जिसके मुख्य कारण हैं - छोटे भूमि जोत, कमजोर अवसंरचना, किसानों में जोखिम लेने की क्षमता की कमी, सामाजिक-आर्थिक और जनसांख्यिकीय परिस्थितियाँ।
परिशुद्धता खेती : नई कृषि क्रान्ति
परिशुद्धता खेती का अर्थ है सूचना और प्रौद्योगिकी आधारित प्रणाली का फसल प्रबंधन में उपयोग। इसका मूल रूप से मतलब है सही समय और सही स्थान पर खेत में सही मात्रा में कृषि निविष्टियों का इस्तेमाल। परिशुद्धता खेती तकनीक फसल उत्पादन की आर्थिक और पर्यावरणीय स्थिरता में सुधार कर सकती है।
पर्यावरण के सभी पहलू - मिट्टी, मौसम, वनस्पति, पानी हर जगह भिन्न हैं। यह सब कारक फसल विकास और खेती की सफलता को निर्धारित करते हैं। किसान हमेशा से इससे परिचित थे, किन्तु उनके पास ऐसे उपकरणों का अभाव था जिनसे वह इन विविधताओं को ठीक रूप से माप और प्रबंधित कर पायें इसलिये वह एक खेत को एक यूनिट मानते थे। इस कारणवश किसान अपने प्रबंधन के निर्णय औसत परिस्थितियों पर आधारित करते थे एवं उम्मीद करते थे कि फसल के लिये निविष्टियाँ अधिकांश क्षेत्र के लिये पर्याप्त हों। परिशुद्धता खेती इस विचार के आस-पास घूमती है कि एक बड़े क्षेत्र को एकरूप अथवा एक समान इलाके की तरह मानना अनावश्यक है क्योंकि यह अधिकतम मात्रा में मूल्यवान संसाधनों, जैसे उर्वरकों, कीटनाशकों का प्रयोग करता है।
परिशुद्धता खेती के लिये उपकरण और तकनीक
सुदूर संवेदन, भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस), वैश्विक स्थिति निर्धारण तंत्र अथवा भूमंडलीय स्थानन तंत्र (जीपीएस), उपज निरीक्षक और परिवर्तनीय दर प्रौद्योगिकी, परिशुद्धता खेती के लिये इस्तेमाल किये जाते हैं।
वैश्विक स्थिति निर्धारण तंत्र : यह परिशुद्धता कृषि का मुख्य भाग है। जीपीएस अभिग्राही एक उपकरण है जो पृथ्वी की परिक्रमा कर रहे उपग्रहों द्वारा प्रसारित रेडियो संकेतों से पृथ्वी पर अपनी भौगोलिक स्थिति की गणना करता है। जीपीएस लगातार (रियल टाइम में) अभिग्राही की स्थिति की जानकारी प्रदान करता रहता है। जीपीएस से लैस उपकरण किसानों की कृषि गतिविधियों को अधिक उत्पादक और कुशल बनाने में सहायता करते हैं।
जीपीएस अभिग्राही क्षेत्र की सीमाओं, सड़क, सिंचाई प्रणाली और फसल की समस्याओं जैसे घास और कीट प्रकोप का मानचित्र बनाने के लिये इस स्थान की जानकारी का प्रयोग करता है। जीपीएस की सहायता से किसान खेत में विशिष्ट स्थानों का चुनाव कर वहाँ पर जाकर मिट्टी के नमूने एकत्र कर सकता है और फसल की स्थिति की निगरानी कर सकता है।
भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस) : भौगोलिक सूचना प्रणाली के पास अत्यधिक मात्रा में आँकड़ों को संसाधित करने की क्षमता है। यह नक्शे को बनाने के लिये स्थानीय आँकड़ों एवं उस स्थान की भौगोलिक विशेषताओं का प्रयोग करता है। कृषि जीआईएस जानकारी की परतों को (जैसे पैदावार, उपज नक्शे, मृदा सर्वेक्षण नक्शे, सुदूर संवेदित आँकड़े और मिट्टी के पोषक तत्व का स्तर आदि) संचित करता है।
एक क्षेत्र की विशेषताओं का वर्णन कई प्रकार के आँकड़े कर सकते हैं, जैसे उपज, मिट्टी की बनावट और पोषक तत्वों की स्थिति। इनमें से प्रत्येक आँकड़े को जीआईएस परत के रूप में संचित किया जाता है। एक क्षेत्र के आँकड़ों को परतों के एक समूह (स्टैक) से वर्णित किया जा सकता है। कुछ परतों में वास्तविक आँकड़े जैसे मिट्टी में मापक एसिड या घास घनत्व संचित किये जा सकते हैं, जबकि कुछ परतें एक या अधिक परतों को गणित द्वारा संसाधन करके बनाई जा सकती हैं। भौगोलिक सूचना प्रणाली नक्शे बनाने के लिये एक क्षेत्र की विशेषताओं का वर्णन करने वाले आँकड़ों (मिट्टी के प्रकार, पोषक तत्वों के स्तर) को परतों में संचित करता है और इस जानकारी को एक विशेष स्थान के लिये निर्दिष्ट कर देता है।
परिवर्तनीय दर प्रौद्योगिकी : यह प्रौद्योगिकी उन मशीनों का वर्णन करती है जो स्वचालित रूप से अपनी स्थान स्थिति के अनुसार अपने प्रयोग दरों में परिवर्तन कर सकती हैं। इस तकनीक में पौधों की वृद्धि या मिट्टी के पोषक तत्वों और प्रकार में विविधताओं के अनुसार मशीन पर प्राचल (पैरामीटर जैसे बीज, उर्वरक, कीटनाशक, सिंचाई का पानी) को अनुकूलित करके उपयोग किया जाता है।
परिवर्ती दर साधित्र में तीन घटक होते हैं - नियंत्रण कम्प्यूटर, स्थिति निर्धारण तंत्र और प्रवर्तक। नियंत्रण कम्प्यूटर में भौगोलिक स्थिति के अनुसार खेत के लिये वांछित प्रयोग दरों का नक्शा होता है। इससे उपकरण के वर्तमान स्थान की जानकारी स्थिति निर्धारण तंत्र से प्राप्त होती है। नियंत्रण कम्प्यूटर वांछित प्रयोग दरों के इस नक्शे और उपकरण की वर्तमान स्थिति के आधार पर निर्णय लेता है और प्रवर्तक को सामग्री के प्रवाह दर को समायोजित करने का आदेश जारी करता है।
उपज प्रतिचित्रण : यह परिशुद्धता खेती में एक मुख्य तकनीक है। उपज नक्शा एक क्षेत्र के भीतर उपज में परिवर्तनशीलता दिखाता है। कटाई प्रक्रिया के बाद उपज मानचित्रण तंत्र खेत में विभिन्न जगहों पर अनाज की मात्रा को मापता है और कटाई मशीन की स्थिति को रिकॉर्ड करता है। उपज मानचित्र के उत्पादन के लिये कटाई मशीन में एक जीपीएस अभिग्राही और एक उपज निरीक्षक होना अनिवार्य है।
सुदूर संवेदन : सुदूर संवेदन में उपग्रह और विमान आधारित सुदूर संवेदक के प्रयोग से मिट्टी और फसल स्वास्थ्य (नमी, पोषक तत्वों, फसल रोगों आदि) के मूल्यांकन के लिये आँकड़े एकत्रित किये जाते हैं। फसल के प्रबंधन के लिये यह महत्त्वपूर्ण है कि फसल की अवस्था में किसी भी परिवर्तन का जल्दी पता चल जाये। छोटे खेत में किसान स्वयं फसल का प्रेक्षण कर सकता है किन्तु बड़े पैमाने पर उत्पादकों के लिये हर सप्ताह अपने खेत का सर्वेक्षण करना सम्भव नहीं है। किसानों को कीट और कीड़ों को नियंत्रित करने के अलावा मिट्टी की नमी और फसल रोग के प्रकोप को भी नियंत्रण में रखना पड़ता है।
उपग्रह और विमान आधारित सुदूर संवेदक के प्रयोग से वैज्ञानिक भूमि की सतह से परिलक्षित या अवशोषित दीप्तिमान ऊर्जा की तरंगदैर्ध्य को माप सकते हैं। इससे वह फसल की अवस्था में किसी भी परिवर्तन का पता लगा सकते हैं। उदाहरण के लिये, इन आँकड़ों की सहायता से किसान यह पता लगा सकते हैं कि उनकी फसल कहाँ फल-फूल रही है और पौधे कितनी कुशलता से प्रकाश संश्लेषण कर रहे हैं। वैकल्पिक रूप से, सुदूर संवेदक आँकड़े न केवल यह बता सकते हैं कि फसल तनाव में है, बल्कि तनाव का कारण भी बता सकते हैं और किसानों को उसका स्रोत पता लगाने में भी मदद कर सकते हैं।
परिशुद्धता खेती और फसल विकास चक्र
परिशुद्धता खेती के नवप्रवर्तन फसल विकास चक्र के 4 चरणों में उपयोग में लाए जाते हैं -
1. मिट्टी की तैयारी : आज ऐसे परिशुद्धता खेती के उपकरण उपलब्ध हैं जो किसानों को काफी कम ईंधन और समय का उपयोग करके मिट्टी तैयार करने में सहायता करते हैं जिससे इस प्रक्रिया की सटीकता, दक्षता और स्थिरता में सुधार आता है।
मिट्टी तैयार करने के लिये जुताई की जाती है। जुताई में परिशुद्धता खेती तकनीकों का प्रयोग करके किसान पारम्परिक जुताई का फायदा भी उठा सकते हैं। पारम्परिक बुआई एक बहुत श्रमसाध्य काम था। आधुनिक परिशुद्धता बुआई उपकरण बीज को उचित दूरी और गहराई में समान रूप से बो देती है जिससे पौधों को अनुकूलतम नमी और धूप प्राप्त होती है।
2. फसल प्रबंधन : परिशुद्धता खेती में फसल संवेदक (क्रॉप सेंसर) का प्रयोग करके फसल को उपजाऊ बनाया जाता है। ‘नाइट्रोजन संवेदक’ (नाइट्रोजन सेंसर) खेत में पोषक तत्वों की प्राकृतिक विभिन्नता के अनुसार विभिन्न क्षेत्रों में पर्याप्त दरों पर उर्वरक का प्रयोग करता है।
परिशुद्धता खेती में छिड़काव के लिये जीपीएस का इस्तेमाल किया जाता है। छिड़काव मशीन पर जीपीएस और संवेदक की सहायता से यह पता लगाया जाता है कि घास-पात और फसल रोग कहाँ मौजूद हैं और छिड़काव विभिन्न क्षेत्रों में घास-पात और फसल रोग कहाँ मौजूद हैं और छिड़काव विभिन्न क्षेत्रों में पर्याप्त अनुपात में किया जाता है।
परिशुद्धता खेती में ड्रिप या स्थानीय सिंचाई (सबसरफेस ड्रिप इरीगेशन) का उपयोग किया जाता है। ड्रिप सिंचाई ठीक समय और सही मात्रा में पानी और पोषक तत्व को सीधा पौधे की जड़ों तक पहुँचाता है। पारम्परिक सिंचाई में पानी, जो कि एक बहुमूल्य संसाधन है, उसकी बहुत बर्बादी होती थी। परिशुद्धता खेती प्रौद्योगिकियाँ सिंचाई प्रणाली का प्रयोग पौधों की जरूरतों के हिसाब से करती हैं जिससे बहुमूल्य पानी और ऊर्जा की बचत होती है।
1. कटाई प्रक्रिया : किसान के लिये फसल कटाई एक महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है। कटाई की गति, यथार्थता और सही समय निर्धारित करते हैं कि फसल कितनी अच्छी होगी। परिशुद्धता खेती प्रौद्योगिकियाँ किसानों का फसल कटाई की प्रक्रिया में लगने वाले समय, यथार्थता और गति में सुधार लाती हैं और बहुमूल्य समय और ऊर्जा संसाधनों की बचत करते हुए बेहतर परिणाम प्राप्त करने में मदद करती हैं।
भारत में परिशुद्धता कृषि की वर्तमान स्थिति
परिशुद्धता कृषि प्रौद्योगिकियाँ भारत में प्रारम्भिक अवस्था में है। इसके कुछ उदाहरण हैं :
1. तमिलनाडु राज्य सरकार ने धर्मपुरी और कृष्णागिरि जिलों में इसे लागू करने के लिये ‘तमिलनाडु परिशुद्धता कृषि परियोजना’ नामक एक योजना मंजूर की थी। इस योजना के तहत उच्च मूल्य वाली फसलें जैसे शिमला मिर्च, सफेद प्याज, गोभी, फूलगोभी उगाई गई थी।
2. अन्तरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र, अहमदाबाद ने स्थान और समय में परिवर्तनशीलता के मानचित्रण का अध्ययन करने के लिये सुदूर संवेदन की भूमिका का पता लगाने के लिये जालंधर में केंद्रीय आलू अनुसंधान स्टेशन खेत में इसका परीक्षण किया था।
3. परिशुद्धता कृषि प्रौद्योगिकी का विकास भारत के विभिन्न भागों में स्थित 17 परिशुद्धता कृषि विकास केंद्रों (पीएफडीसी) के माध्यम से शुरू हो चुका है। पीएफडीसी किसानों को प्रशिक्षण प्रदान करने के अलावा उच्च तकनीक अनुप्रयोगों और परिशुद्धता कृषि को लोकप्रिय बनाने के लिये काम कर रहा है।
4. कृषि क्षेत्र में सूचना प्रौद्योगिकी की सम्भावनाओं का पता लगाने के लिये टाटा केमिकल्स लिमिटेड शुरू किया गया था। यह किसानों को सामरिक समर्थन और खेती की गतिविधियों का समन्वय करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था। टाटा किसान केन्द्र उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब के राज्यों में सफलतापूर्वक स्थापित किया गया है।
5. भारत के कुछ राज्यों में ‘ई-चौपाल’ की स्थापना की गई है। ‘ई-चौपाल’ इंटरनेट कियोस्क है जो मौसम, बाजार की कीमतों, वैज्ञानिकक खेती प्रथाओं, फसल रोग पूर्वानुमान प्रणाली और विशेषज्ञ फसल सलाह प्रणाली के बारे में सूचना उपलब्ध कराता है। देश के सारे दूर-दराज के क्षेत्रों के गरीब किसानों को क्षेत्र विशिष्ट और फसल विशिष्ट (जैसे सोयाबीन, कॉफी, गेहूँ, दाल, चावल) जानकारी प्रदान करने के लिये ‘ई-चौपाल’ का विकास चल रहा है।
6. सुदूर संवेदन और भौगोलिक सूचना प्रणाली के क्षेत्र में काफी काम हो चुका है - भौगोलिक सूचना प्रणाली का मिट्टी के आँकड़ों के विश्लेषण के लिये उपयोग होता है, IRS-IA उपग्रह का LISS II संवेदक और IRS - 1C/1D का LISS III संवेदक का प्रयोग सिंचाई प्रणाली के मूल्यांकन के लिये हुआ है।
7. ‘नरम’ परिशुद्धता खेती तकनीक सदियों से भारतीय किसानों द्वारा इस्तेमाल की गई है।
8. भारतीय कृषि में सूचना प्रौद्योगिकी का उपयोग कुछ स्थानों में शुरू किया गया है।
निष्कर्ष
परिशुद्धता कृषि किसानों को उर्वरक, कीटनाशक, जुताई और सिंचाई का पानी कार्यसाधक रूप में उपयोग करने की क्षमता प्रदान करती है। इससे फसल की उपज अधिकतम मात्रा में हो सकती है और किसानों की आय में वृद्धि हो सकती है। परिशुद्धता कृषि आर्थिक और पर्यावरण सम्बन्धी मुद्दे, जो कि उत्पादन केंद्रित कृषि को घेरे हुए हैं, उसका समाधान प्रदान कर सकती है। परिशुद्धता कृषि में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी की बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका है। वैश्विक स्थिति निर्धारण तंत्र सहित अन्तरिक्ष प्रौद्योगिकी, भौगोलिक सूचना प्रणाली एवं सुदूर संवेदन मिट्टी की विशेषताओं और फसल की उपज के बारे में जानकारी पाने में सहायता करते हैं।
भारत सहित कई विकासशील देशों में परिशुद्धता कृषि अपनी प्रारम्भिक अवस्था में है, लेकिन इसे अपनाने के लिये कई अवसर हैं। हालांकि यह सर्वविदित है कि कृषि पर्यावरण का एक प्रमुख प्रदूषक है, किसान परिशुद्धता कृषि को तब तक नहीं अपनाएँगे जब तक पारम्परिक कृषि कार्य की तुलना में यह ज्यादा या समान लाभ नहीं देगी। इसलिये प्रारम्भिक चरणों के दौरान सरकार और निजी क्षेत्र का समर्थन महत्त्वपूर्ण है। परिशुद्धता कृषि के सभी तत्व प्रत्येक खेत के लिये प्रासंगिक नहीं हैं। उदाहरण के लिये परिवर्तनीय दर प्रौद्योगिकी हमेशा अनिवार्य नहीं है। इसी तरह, सभी खेत परिशुद्धता कृषि को अपनाने के लिये उपयुक्त नहीं हैं। यह सम्भावना है कि कुछ उत्पादक इस तकनीक के कुछ ही तत्व अपनाएँ।
नई योजनाओं की सफलता के लिये सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों तथा उत्पादकों के बीच समन्वय होना आवश्यक है। सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के मार्गदर्शन से प्रगितशील भारतीय किसान परिशुद्धता कृषि को एक सीमित पैमाने पर अपनाएँगे क्योंकि यह प्रौद्योगिकी खेतों पर पैदावार बढ़ाने और पर्यावरण के क्षरण को कम करने में सक्षम है।
सुश्री दीपिका जिंदल एवं श्री राजीव रतन चेतावनी
सॉफ्टवेयर गुणता आश्वासन प्रभाग, तंत्र व विश्वसनीयता समूह विश्वसनीयता व घतक क्षेत्र, इसरो उपग्रह केंद्र (आईज़ेक) भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो), बंगलुरु-560 094 (कर्नाटक)