अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस :क्यों नहीं रूक रही बाघों की मौतें

Submitted by Shivendra on Fri, 07/29/2022 - 12:46

क्यों नहीं रूक रही बाघों की मौतें,फोटो-Indiatv

अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस हर साल 29 जुलाई को विश्व स्तर पर मनाया जाता है। बाघों के संरक्षण के लिए सभी सरकारी-गैरसरकारी संगठनों के द्वारा जागरूकता बढ़ाने के लिए यह दिन मनाया जाता है। इस दिन का उद्देश्य  बाघों  को बचाने के लिए उचित कार्रवाई करने के लिए प्रोत्साहित करना है। विश्व वन्यजीव कोष के अनुसार, पिछले 150 वर्षों में बाघों की लगभग 95 प्रतिशत आबादी में गिरावट आई है।

 वही भारत में भी  बाघों  की संख्या में भी गिरावट आई है  जिसका  सबूत  सरकारी आकड़ो से पता लगता  है - भारत ने 2012 से अब तक 1,059 बाघों को खो दिया है। मध्य प्रदेश, जिसे देश के 'बाघ राज्य' के रूप में जाना जाता है वहां सबसे ज़्यादा बाघों की मौत दर्ज की गई है। जबकि 2018 में राज्य को देश के 'टाइगर स्टेट' होने का गौरव प्राप्त हुआ था।   

राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) के अनुसार  इस  वर्ष  अब तक 75 बाघों की मौत हो चुकी है, जबकि पिछले वर्ष 127 बाघों की मौत हुई थी, जो 2012-2022 के दौरान सबसे अधिक है। वही  2020 में 106 बाघों की मौत हुई थी जबकि 2019 में 96, 2018 में 101, 2017 में 117, 2016 में 121, 2015 में 82, 2014 में 78, 2013 में 68 और 2012 में 88.

वही महाराष्ट्र में 2017 से अब तक सबसे ज़्यादा बाघों की मौत हुई है  राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) द्वारा साझा किए गए आंकड़ों के अनुसार, 2017 से अब तक महाराष्ट्र में 134  बाघों की मौत हो चुकी है। एनटीसीए के अनुसार, 2017 के बाद से 134 बाघों की मौत में से 17 अकेले 2022 में हुई हैं, जबकि 40 2021 में हुई हैं, जो पिछले एक दशक में सबसे अधिक है। महाराष्ट्र - जिसमें छह बाघ अभयारण्य आते है वहाँ 2017 में 21 बाघों की मौत, 2018 में 22 मौतें, 2019 में 18 मौतें, 2020 में 16 मौतें, 2021 में 40 मौतें और इस साल जुलाई तक 17 मौतें दर्ज की गई है  तो वही  जनवरी 2022 से 15 जुलाई 2022 तक मध्यप्रदेश में 27 बाघों की मौत दर्ज की गई है। 

राज्यवार आंकड़े:

मध्य प्रदेश, जिसमें छह बाघ अभयारण्य हैं, ने 10 साल की अवधि के दौरान सबसे अधिक 270 मौतें दर्ज की हैं। एमपी के बाद महाराष्ट्र 183 , कर्नाटक 150, उत्तराखंड 96, असम 72,  तमिलनाडु 66, उत्तर प्रदेश 56 केरल 55 हैं। राजस्थान 25, बिहार 17 , पश्चिम बंगाल 13, छत्तीसगढ़  और आंध्र प्रदेश में क्रमश 11-11  बाघों की मौत हुई।

मध्य प्रदेश ने पिछले डेढ़ साल में 68 बाघों को खोया है, जबकि महाराष्ट्र में इस अवधि में 40 बाघों की मौत हुई है।2018 टाइगर जनगणना में, मध्य प्रदेश 526 बाघों के साथ भारत के 'बाघ राज्य' के रूप में उभरा था, इसके बाद कर्नाटक में 524 बाघ थे।


बाघों की मौत के पीछे सबसे बड़ा कारण अवैध शिकार बना हुआ है

  • आंकड़ों के मुताबिक 2012-2020 की अवधि में 193 बाघों की शिकार के कारण मौत हुई। जनवरी 2021 से अवैध शिकार के कारण हुई मौतों के आंकड़े अभी उपलब्ध नहीं हैं।
  • अधिकारियों ने  बाघों को पकड़ने के दौरान 108 बाघों की मौत के कारण के रूप में पहचाना, जबकि 44   बाघों  की इस अवधि में "अप्राकृतिक" कारणों से मृत्यु हुई।
  • एनटीसीए के अनुसार, शुरुआत में सभी बाघों की मौत का कारण अवैध शिकार को माना जाता है।
  • किसी विशेष मामले को "प्राकृतिक", "अवैध शिकार" या "अप्राकृतिक लेकिन अवैध शिकार नहीं" के रूप में बंद करने के लिए पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट, फोरेंसिक और लैब रिपोर्ट और परिस्थितिजन्य साक्ष्य जैसे पूरक विवरण एकत्र किए जाते हैं।
  • किसी मामले को प्राकृतिक या अवैध शिकार साबित करने की जिम्मेदारी राज्य की होती है। किसी भी संदेह की स्थिति में सबूतों के बावजूद अवैध शिकार को मौत का कारण बताया जा रहा है।

बाघों संरक्षण क्यों जरुरी है 

अपनी, जंगल और अपने भविष्य की रक्षा के लिए बाघों को  बचाना आवश्यक है  बाघ सबसे बड़ी बिल्लियाँ ही नहीं बल्कि हमारा राष्ट्रीय पशु और पारिस्थितिकी तंत्र का प्रतीक हैं। बाघों के संरक्षण में हम न केवल एक विशेष प्रजाति को बचा रहे हैं, बल्कि हमारे लुप्तप्राय पारिस्थितिकी तंत्र को भी बचा रहे हैं।भारत दुनिया में 80 प्रतिशत बाघों का घर है। इसलिए, पिछले आकलन के अनुसार, भारत में बाघों की आबादी 2967 है। इनमें से 526 मध्य प्रदेश में हैं