राजस्थान के रेगिस्तान में बादल बहुत कम आते हैं। पर यहाँ के लोग बादलों से बहुत प्यार करते हैं। दरअसल वे पानी की हर बूँद की कीमत समझते हैं। इसलिये वे बारिश के पानी को बहुत करीने से बचाकर पूरे साल काम चलाते हैं।
पानी का व्यापार
आप सभी उद्यमी हैं। आप व्यापार की बारीकियों को अच्छी तरह समझते हैं। अच्छा उद्यमी वही है, जो छोटी पूँजी से बड़ा व्यापार करे। आज मैं आपसे राजस्थान के रेगिस्तान में होने वाले एक व्यापार के बारे में बात करुँगा। यह पानी का व्यापार है। उद्योग में दो चीजें अहम हैं- उत्पादक और उपभोक्ता। लेकिन, यहाँ तस्वीर अलग है। यहाँ उपभोक्ता और उत्पादक एक ही हैं।
जमीन के अन्दर का पानी खारा है और बारिश बहुत कम होती है। मतलब यह कि यहाँ कच्चा माल नहीं है। पानी में निवेश के लिये आपको लोन भी नहीं मिलने वाला। लेकिन रेगिस्तान के लोग बड़ी शिद्दत से सैकड़ों साल से पानी का व्यापार करते आये हैं। ये रेनवाटर हार्वेस्टिंग के जरिए पूरे साल के लिये पानी का प्रबन्ध करते हैं। आप यह व्यवस्था देखेंगे तो आपको आश्चर्य होगा कि वे इतने बड़े पैमाने पर कैसे करते हैं पानी का संचय? इनका सीईओ कौन है, उनके वालंटियर कौन हैं।
कम बारिश
इस इलाके में विकास के नाम पर बनाई जाने वाली सड़कें, पुल, बिजली, अस्पताल कुछ भी नहीं हैं। यहाँ सबसे कम बारिश होती है। साल में सिर्फ 16 सेंटीमीटर बारिश होती है। यहाँ भूजल 300 फीट की गहराई में है। ज्यादातर जगहों पर इस पानी में सेलाइन मिला है, इसलिये यह पीने योग्य नहीं है। लिहाजा यहाँ न तो आप हैण्डपम्प लगवा सकते हैं और न ही कुआँ खुदवा सकते हैं।
इन इलाकों में बादल बहुत कम आते हैं। लेकिन यहाँ के लोगों ने बादलों को बड़े प्यार से ढेर सारे नाम दिये हैं। स्थानीय भाषा में यहाँ बादलों के कम-से-कम चालीस नाम हैं। आखिर क्यों बादलों से इतना प्यार करते हैं यहाँ के लोग। दरअसल वे पानी की कीमत समझते हैं। वे जानते हैं कि जीवन चलाने के लिये पानी सबसे बड़ी जरूरत है, शायद इसीलिये वे बादलों से इतना प्यार करते हैं।
रेनवाटर हार्वेस्टिंग
इन इलाकों में बारिश के पानी के संचय (रेनवाटर हार्वेस्टिंग) की तकनीक हैं। हम सबके लिये रेनवाटर हार्वेस्टिंग एक नया कार्यक्रम है लेकिन रेगिस्तान में रहने वाले समाज के लिये यह कोई कार्यक्रम नहीं है, यह तो उनका जीवन है। वे सालों से इसे करते आये हैं। वे बारिश के पानी को संचय करने के लिये कई तरीके अपनाते हैं। वे जमीन पर कुण्ड बनाकर पानी संचय करते हैं। कई बार पढ़े-लिखे इंजीनियर भी बाथरूम में स्लोप बनाने में लापरवाही कर जाते हैं पर गाँवों के ये लोग रेनवाटर हार्वेस्टिंग कुण्ड बनाते समय बेहद सतर्क रहते हैं ताकि पानी की एक बूँद भी बर्बाद न जाये।
इनका नियम
जब आप कहीं उद्योग लगाते हैं तो आपको रेनवाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाना पड़ता है। यह नया नियम है। ज्यादातर लोग इसे नजरअन्दाज करते हैं। कई लोग तो झूठ बोल देते हैं कि उन्होंने यह सिस्टम लगा लिया है, जबकि असल में वे इसका कोई प्रबन्ध नहीं करते हैं। लेकिन रेगिस्तान के गाँव वालों के लिये किसी ने कानून नहीं बनाया। इन्होंने अपने लिये खुद नियम बनाया है।
यहाँ हर घर में एक रेनवाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम मिलेगा। परम्परागत ढंग से बने इस सिस्टम को टांका या कुण्ड कहते हैं। वे छत और आँगन के जरिए बारिश का पानी संचय करते हैं। वे जल संचय प्रक्रिया में सफाई का पूरा ध्यान रखते हैं। यह पानी पूरी तरह से मीठा, साफ और पीने योग्य है। आप में से ज्यादातर लोग घरों में वाटर फिल्टर लगवाते हैं लेकिन इनके पानी को फिल्टर की जरूरत नहीं होती।
जयगढ़ किला
जयपुर के पास जयगढ़ किले में रेनवाटर हार्वेस्टिंग का विशाल प्लांट है। यहाँ हर मौसम में करीब 60 लाख गैलन पानी के संचय की व्यवस्था है। यह प्लांट चार सौ साल पुराना है। आजकल नई सड़कें कुछ साल में ही टूट जाती हैं, लेकिन यह प्लांट सही सलामत है। गाँव वालों की कई पीढ़ियाँ इस प्लांट की रखवाली करती आई हैं। इसका पानी पूरी तरह से शुद्ध है।
योजना फेल
सरकार ने बीकानेर में करीब 25-30 साल पहले कई सौ किलोमीटर दूर से नहर के जरिए लोगों को पानी उपलब्ध कराने का फैसला किया। हालांकि लोगों को सरकार की योजना पर ज्यादा भरोसा नहीं था, इसलिये उन्होंने अपनी परम्परागत जल संचयन व्यवस्था जारी रखी। सरकार ने योजना पर करोड़ों खर्च किये, पर योजना फेल हो गई। दूसरी तरफ हजार साल पहले से चली आ रही रेनवाटर हार्वेस्टिंग की सुविधा अब भी कारगर है। इस इलाके में पानी की जरूरत बारिश के पानी से ही पूरी होती है।
टाउन प्लानिंग
अब मैं आपको जैसलमेर की तस्वीर दिखाता हूँ। ये शहर टाउन प्लानिंग, सिविल इंजीनियरिंग और आर्किटेक्ट का बेहतरीन नमूना है। 800 साल पहले बसाए गए इस शहर के हर घर की छत के ऊपर रेनवाटर हार्वेस्टिंग की व्यवस्था है। दिल्ली और मुम्बई में लोग टाउन प्लानिंग में खामियों की वजह से बहुत सारी दिक्कतों से जूझते हैं। लेकिन, सालों पहले बसाए गए जैसलमेर में लोगों की जरूरतों का ख्याल रखा गया है। यहाँ 52 तालाब हैं। पानी का स्तर कम हो या ज्यादा, हर मौसम में इन तालाबों की खूबसूरती बरकरार रहती है। ये तालाब पूरे साल लोगों को मीठा पानी उपलब्ध कराते हैं। बस इतना सा था रेगिस्तान का सन्देश।
पर्यावरणविद अनुपम मिश्र ने नवम्बर 2009 में टेड के मंच पर यह भाषण दिया था।
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