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जनसत्ता (रविवारी), 20 सितंबर 2013
भारतीय मौसम विभाग के अनुमान अकसर सही साबित नहीं होते, इसलिए उसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठते रहते हैं। लेकिन इस बार वह न केवल संदेह की परिधि से बाहर आया, बल्कि अमेरिका और ब्रिटेन के मौसम विज्ञानियों से कहीं ज्यादा सटीक भविष्यवाणी करने में सक्षम रहा। अमेरिका के संयुक्त टाइफून चेतावनी केंद्र और ब्रिटेन के मौसम कार्यालय ने फेलिन को महाचक्रवात बताते हुए चेतावनी दी थी कि यह भारत के लिए प्रचंड विनाशकारी होगा। सटीक भविष्यवाणी के बावजूद फेलिन चक्रवात में सत्रह लोगों की मौत दुखदायी है। बारह जिलों के करीब नब्बे लाख लोग प्रभावित हुए और 2.34 लाख घर क्षतिग्रस्त हो गए। 2400 करोड़ रुपए की धान की फसल बर्बाद हो गई। इस लिहाज से फेलिन पिछले चौदह साल में आया सबसे भीषण तूफान माना जा रहा है। साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि कुदरत के कोप के मुकाबले इस बार क्षति कम हुई है।
भारतीय मौसम विभाग के अनुमान अकसर सही साबित नहीं होते, इसलिए उसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठते रहते हैं। लेकिन इस बार वह न केवल संदेह की परिधि से बाहर आया, बल्कि अमेरिका और ब्रिटेन के मौसम विज्ञानियों से कहीं ज्यादा सटीक भविष्यवाणी करने में सक्षम रहा। अमेरिका के संयुक्त टाइफून चेतावनी केंद्र और ब्रिटेन के मौसम कार्यालय ने फेलिन को महाचक्रवात बताते हुए चेतावनी दी थी कि यह भारत के लिए प्रचंड विनाशकारी होगा। अमेरिकी मौसम विज्ञानी एरिक हॉलथॉस ने तो यहां तक कहा था कि भारतीय मौसम विभाग संभावित हवाओं और उससे उठने वाली लहरों को कम करके आंक रहा है। उनका दावा था कि फेलिन पांचवी श्रेणी का सर्वाधिक शक्तिशाली तूफान है। जबकि इसके उलट भारतीय मौसम विभाग का दावा था कि भारत में फेलिन तकरीबन दो सौ बीस किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से प्रवेश करेगा, जो महाचक्रवात की श्रेणी से एक पायदान नीचे है। आखिरी तसमय क मौसम विभाग के प्रमुख एलएस राठौर इसी पूर्वानुमान पर डटे रहकर केंद्र और राज्य सरकारों को बड़े पैमाने पर एहतियात बरतने की हिदायतें देते रहे। यही नहीं, इस बार हमारे मौसम विज्ञानी सुपर कंप्यूटर और डापलर रडार जैसी श्रेष्ठतम तकनीक के माध्यमों से चक्रवात के अनुमानित और वास्तविक रास्ते का मानचित्र और उसके भिन्न क्षेत्रों में प्रभाव के चित्र बनाने में भी सफल रहे। तूफान की तीव्रता और बारिश के अनुमान भी कमोबेश सही साबित हुए। इस बार जो नुकसान हुआ, उसके लिए मौसम विभाग को ज़िम्मेवार नहीं ठहराया जा सकता। यह हमारे आपदा प्रबंधन की नाकामी है कि सब कुछ पता होते हुए भी मौतें हुईं।
मौसम विभाग के हिसाब से इन अनुमानों को और कारगर बनाने की जरूरत है, जिससे बाढ़, सूखे, भूकंप और बवंडरों की पूर्व सूचनाएं मिल सकें और उनसे सामना किया जा सके। साथ ही मौसम विभाग को ऐसी निगरानी प्रणालियां भी विकसित करने की जरूरत है, जिनके मार्फत हर माह और हफ्ते में बरसात होने की राज्य और जिलेवार भविष्यवाणियाँ की जा सकें। अगर ऐसा मुमकिन हो पाता है तो कृषि का बेहतर नियोजन संभव हो सकेगा।
कुदरत के रहस्यों की ज्यादातर जानकारी अभी अधूरी है। जाहिर है, चक्रवात जैसी आपदाओं को हम रोक नहीं सकते, लेकिन उनका सामना या उनके असर कम करने की दिशा में बहुत कुछ कर सकते हैं। भारत के तो तमाम इलाके वैसे भी बाढ़, सूखा, भूकंप और तूफानों के लिहाज से बेहद संवेदनशील हैं। जलवायु परिवर्तन और प्रदूषित होते जा रहे पर्यावरण के कारण ये खतरे व इनकी आवृत्ति और बढ़ गई हैं। कहा भी जा रहा है कि फेलिन, ठाणे, आइला, आईरिन, नीलम और सैंडी जैसी आपदाएं प्रकृति की बजाए आधुनिक मनुष्य और उसकी प्रकृति विरोधी विकास नीति का पर्याय हैं।
ओड़िशा के तटवर्ती शहर जगतसिंहपुर में एक औद्योगिक परियोजना खड़ी करने के लिए एक लाख 70 हजार से भी ज्यादा मैंग्रोव वृक्ष काट डाले गए थे। उत्तराखंड में भी पर्यटन विकास के लिए लाखों पेड़ काट दिए और पहाड़ियों की छाती छलनी कर दी गई, जिसके नतीजे में उत्तराखंड त्रासदी देखने को मिली। जंगल प्राणि जगत के लिए सुरक्षा कवच हैं।
दरअसल कार्बन फैलाने वाली विकास नीतियों को बढ़ावा देने के कारण धरती के तापमान में लगातार वृद्धि हो रही है। यही कारण है कि बीते 133 सालों में रिकार्ड किए गए तापमान के जो 13 सबसे गर्म साल रहे हैं, वे 2000 के बाद के ही हैं और आपदाओं की आवृत्ति भी इसी कालखंड में सबसे ज्यादा बढ़ी हैं। पिछले तीन दशकों में गर्म हवाओं का मिजाज तेज लपटों में बदला है। इसने धरती के दस फीसद हिस्से को अपनी चपेट में ले लिया है। यही वजह है कि अमेरिका में जहां कैटरिना, आइरिन और सैंडी तूफानों ने तबाही मचाई वहीं नीलम, आइला और फेलिन ने भारत और श्रीलंका में हालात बदतर किए। तापमान की इसी वृद्धि का अनुमान लगा लिए जाने के आधार पर भारतीय समुद्री इलाकों में चक्रवाती तूफानों की संख्या बढ़ने की आशंका जताई जा रही है। जाहिर है कि इसके लिए हमें हरसंभव तैयारी रखनी होगी।
भारतीय मौसम विभाग के अनुमान अकसर सही साबित नहीं होते, इसलिए उसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठते रहते हैं। लेकिन इस बार वह न केवल संदेह की परिधि से बाहर आया, बल्कि अमेरिका और ब्रिटेन के मौसम विज्ञानियों से कहीं ज्यादा सटीक भविष्यवाणी करने में सक्षम रहा। अमेरिका के संयुक्त टाइफून चेतावनी केंद्र और ब्रिटेन के मौसम कार्यालय ने फेलिन को महाचक्रवात बताते हुए चेतावनी दी थी कि यह भारत के लिए प्रचंड विनाशकारी होगा। अमेरिकी मौसम विज्ञानी एरिक हॉलथॉस ने तो यहां तक कहा था कि भारतीय मौसम विभाग संभावित हवाओं और उससे उठने वाली लहरों को कम करके आंक रहा है। उनका दावा था कि फेलिन पांचवी श्रेणी का सर्वाधिक शक्तिशाली तूफान है। जबकि इसके उलट भारतीय मौसम विभाग का दावा था कि भारत में फेलिन तकरीबन दो सौ बीस किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से प्रवेश करेगा, जो महाचक्रवात की श्रेणी से एक पायदान नीचे है। आखिरी तसमय क मौसम विभाग के प्रमुख एलएस राठौर इसी पूर्वानुमान पर डटे रहकर केंद्र और राज्य सरकारों को बड़े पैमाने पर एहतियात बरतने की हिदायतें देते रहे। यही नहीं, इस बार हमारे मौसम विज्ञानी सुपर कंप्यूटर और डापलर रडार जैसी श्रेष्ठतम तकनीक के माध्यमों से चक्रवात के अनुमानित और वास्तविक रास्ते का मानचित्र और उसके भिन्न क्षेत्रों में प्रभाव के चित्र बनाने में भी सफल रहे। तूफान की तीव्रता और बारिश के अनुमान भी कमोबेश सही साबित हुए। इस बार जो नुकसान हुआ, उसके लिए मौसम विभाग को ज़िम्मेवार नहीं ठहराया जा सकता। यह हमारे आपदा प्रबंधन की नाकामी है कि सब कुछ पता होते हुए भी मौतें हुईं।
मौसम विभाग के हिसाब से इन अनुमानों को और कारगर बनाने की जरूरत है, जिससे बाढ़, सूखे, भूकंप और बवंडरों की पूर्व सूचनाएं मिल सकें और उनसे सामना किया जा सके। साथ ही मौसम विभाग को ऐसी निगरानी प्रणालियां भी विकसित करने की जरूरत है, जिनके मार्फत हर माह और हफ्ते में बरसात होने की राज्य और जिलेवार भविष्यवाणियाँ की जा सकें। अगर ऐसा मुमकिन हो पाता है तो कृषि का बेहतर नियोजन संभव हो सकेगा।
कुदरत के रहस्यों की ज्यादातर जानकारी अभी अधूरी है। जाहिर है, चक्रवात जैसी आपदाओं को हम रोक नहीं सकते, लेकिन उनका सामना या उनके असर कम करने की दिशा में बहुत कुछ कर सकते हैं। भारत के तो तमाम इलाके वैसे भी बाढ़, सूखा, भूकंप और तूफानों के लिहाज से बेहद संवेदनशील हैं। जलवायु परिवर्तन और प्रदूषित होते जा रहे पर्यावरण के कारण ये खतरे व इनकी आवृत्ति और बढ़ गई हैं। कहा भी जा रहा है कि फेलिन, ठाणे, आइला, आईरिन, नीलम और सैंडी जैसी आपदाएं प्रकृति की बजाए आधुनिक मनुष्य और उसकी प्रकृति विरोधी विकास नीति का पर्याय हैं।
ओड़िशा के तटवर्ती शहर जगतसिंहपुर में एक औद्योगिक परियोजना खड़ी करने के लिए एक लाख 70 हजार से भी ज्यादा मैंग्रोव वृक्ष काट डाले गए थे। उत्तराखंड में भी पर्यटन विकास के लिए लाखों पेड़ काट दिए और पहाड़ियों की छाती छलनी कर दी गई, जिसके नतीजे में उत्तराखंड त्रासदी देखने को मिली। जंगल प्राणि जगत के लिए सुरक्षा कवच हैं।
दरअसल कार्बन फैलाने वाली विकास नीतियों को बढ़ावा देने के कारण धरती के तापमान में लगातार वृद्धि हो रही है। यही कारण है कि बीते 133 सालों में रिकार्ड किए गए तापमान के जो 13 सबसे गर्म साल रहे हैं, वे 2000 के बाद के ही हैं और आपदाओं की आवृत्ति भी इसी कालखंड में सबसे ज्यादा बढ़ी हैं। पिछले तीन दशकों में गर्म हवाओं का मिजाज तेज लपटों में बदला है। इसने धरती के दस फीसद हिस्से को अपनी चपेट में ले लिया है। यही वजह है कि अमेरिका में जहां कैटरिना, आइरिन और सैंडी तूफानों ने तबाही मचाई वहीं नीलम, आइला और फेलिन ने भारत और श्रीलंका में हालात बदतर किए। तापमान की इसी वृद्धि का अनुमान लगा लिए जाने के आधार पर भारतीय समुद्री इलाकों में चक्रवाती तूफानों की संख्या बढ़ने की आशंका जताई जा रही है। जाहिर है कि इसके लिए हमें हरसंभव तैयारी रखनी होगी।