11 से 13 मार्च को 'आर्ट ऑफ लिविंग' के श्री श्री रविशंकर ‘वर्ल्ड कल्चरल फेस्टिवल (विश्व सांस्कृतिक महोत्सव)’ करने जा रहे हैं। 'आर्ट ऑफ लिविंग' के 35 साल पूरा होने के उपलक्ष्य में आयोजित कार्यक्रम में 155 देशों के 35 लाख लोगों के शामिल होने की उम्मीद की जा रही है। ‘वर्ल्ड कल्चरल फेस्टिवल’ की तैयारी के लिये एक भव्य विशाल अस्थाई सभागार भी तैयार किया जा रहा है। इसी के चलते ये सारे इंतजामात किये जा रहे हैं। लेकिन अफसोस है कि पूर्व में यमुना के लिये इतनी चिंता दिखाने वाले आध्यात्मिक संत श्री श्री रविशंकर अपने इस मेले के लिये खादर को ही तहस-नहस कर डालने के आरोपों से घिर गए हैं।
मयूर विहार के नजदीक यमुना खादर पर यह मंजर साफ देखा जा सकता है कि कैसे करीब एक-आध हजार एकड़ हरी-भरी जगह को जेसीबी लगाकर साफ मैदान बना दिया गया है। इतना ही नहीं इस इलाके में कई छोटे-बड़े वाटर-रीचार्ज स्ट्रकचर (गड्ढे) भी थे, उन्हें भी पूर दिया गया है। इस सम्बन्ध में 'यमुना जिये अभियान' से जुड़े मनोज मिश्र ने एक याचिका दायर की है, जिसमें उन्होंने इस निर्माण कार्य को तात्कालिक प्रभाव से रोके जाने की माँग की है।
याचिकाकर्त्ता मनोज मिश्र की ओर से पैरवी करते हुए वकील रित्विक दत्ता ने यह भी कहा कि इस सबमें एनजीटी के यमुना खादर के सम्बन्ध में पूर्व में दिये गए निर्देशों की अवमानना हुई है।
इसके बाद ही एनजीटी ने 11 फरवरी 2016 को दिल्ली सरकार, डीडीए और 'आर्ट ऑफ लिविंग' को जवाब तलब करते हुए नोटिस जारी किया। मिश्रा ने अपनी याचिका में डीडीए द्वारा इस आयोजन के लिये यमुना खादर पर मंजूरी दिये जाने को चुनौती दी है। इसके बाद ही एनजीटी ने डीडीए से मजूरी संबंधी सभी दस्तावेजों के साथ एक सप्ताह के भीतर पेश होने को कहा।
इसी बीच आईआईटी के प्रोफेसर एके गोसाईं और डीडीए के वकील को उस जगह की जाँच करके अपनी अपनी रिपोर्ट दाखिल करने का भी निर्देश दिया।
डीडीए ने आईआईटी के प्रोफेसर गोसाईं को फोन करके जानकारी दी कि उन्हे इस जाँच के लिये नियुक्त किया गया है। प्रो गोसाईं डीडीए के प्रिंसिपल कमिश्नर (लैंड डेवलपमेंट) जय प्रकाश अग्रवाल के साथ वहाँ गए। एक अधिकारिक फोटोग्राफर भी उनके साथ था। गोसाईं को अपनी यह रिपोर्ट हालांकि डीडीए को देनी थी, लेकिन कुछ कारणों के चलते उन्होंने यह सीधे ही एनजीटी को भेज दिया, उन्होंने अपनी रिपोर्ट में कहा है, “खादर के इस इलाके में सभी प्राकृतिक वनस्पतियों को एकदम साफ कर दिया गया है और अगर इस फेस्ट का आयोजन यहाँ हुआ तो इससे यमुना के खादर को स्थाई नुकसान हो सकता है” उन्होंने तो यहाँ तक कहा कि खादर को देखकर लगता है कि इसकी खुदाई के लिये जेसीबी जैसी किसी मशीनरी का इस्तेमाल भी किया गया है। गोसाईं का कहना है, “इस फेस्टिवल के आयोजन की तैयारियों के लिये खादर के सम्बन्ध में एनजीटी के सभी पूर्व निर्देशों को ताक पर रख दिया गया है।” प्रो गोसाईं की रिपोर्ट ने इस बात पर भी रोशनी डाली कि सरियों से एक विशालकाय मंच का ढाँचा खड़ा किया जा रहा है, भारी मात्रा में मिट्टी और निर्माण सामग्री का अपशिष्ट या कचरा यमुना में बहाया जा रहा है।
हैरानी की बात तो यह है कि इसके ठीक उलट डीडीए की टीम ने भी यमुना खादर के इस इलाके के बारे में अपनी एक रिपोर्ट दी, जो प्रो गोसाईं की बातों के उलट थी। डीडीए की रिपोर्ट कहती है कि इससे यमुना खादर को कोई नुकसान नहीं हुआ है और न ही खुदाई में किसी मशीनरी का इस्तेमाल किया गया है।
इस तरह दो अलग-अलग टीमों ने दो अलग और एक दूसरे से लगभग उलट रिपोर्ट पेश की। ऐसे में जस्टिस स्वतंत्र कुमार की अध्यक्षता में गठित एनजीटी की प्रिंसिपल बेंच ने एक एक्सपर्ट कमेटी का गठन किया। जल संसाधन मंत्रालय के सचिव शशि शेखर को कमेटी का प्रमुख बनाया गया। उनके साथ ही प्रो. गोसाईं, प्रो. सीआर बाबू और प्रो. बृज गोपाल को सदस्य बनाया गया। इस कमेटी को एनजीटी द्वारा फिर से यमुना खादर के उस इलाके का मुआयना करने का निर्देश दिया गया ताकि स्थिति का सही-सही जायजा हो सकेे। एनजीटी की बेंच ने साफ तौर पर कहा, “डीडीए और प्रो. गोसाईं द्वारा दी गई रिपोर्टों में काफी अन्तर है, इसलिये यह सही होगा कि एक एक्सपर्ट कमेटी इलाके का मुआयना करे और स्थिति की सही-सही जानकारी से अवगत कराए।”
इस सन्दर्भ में यह जानना भी महत्वपूर्ण है कि गत वर्ष एनजीटी ने एक आदेश पारित किया था जिसमें यमुना के सीमांकित खादर में कोई भी निर्माण कार्य प्रतिबंधित है। नई बनाई गई इस एक्सपर्ट कमेटी को यह भी देखने के लिये कहा गया कि कौन से स्ट्रक्चर खादर के दायरे के अंदर बने हैं और उन्हें हटाए जाने की सिफारिश भी करे।
कमेटी ने इलाके का जायजा लिया और 20 फरवरी को अपनी रिपोर्ट प्राधिकरण को सौंप दी। 24 फरवरी को इस रिपोर्ट को सार्वजनिक किया गया। कमेटी ने अपनी जाँच में कहा है कि :
1- नदी और डीएनडी फ्लाई ओवर के बीच खादर की जमीन को सपाट कर दिया गया है। पहले से मौजूद छोटे- छोटे जल स्रोतों और ढांचों को पूर दिया गया है। सभी कुदरती पेड़-पौधे, वनस्पतियां साफ कर दी गई हैं।
2- नदी के किनारे बनी सड़कों पर निर्माण सामग्री डाली गई है।
3- आयोजन स्थल तक वीआईपी मेहमानों के आने-जाने के लिये डीएनडी फ्लाईओवर से दो रेंप भी बनाए गए हैं।
4- यमुना पर एक पंटून पुल का निर्माण कार्य पूरा कर लिया गया है और दूसरा अभी निर्माणाधीन है। इसके अलावा और भी यमुना और बारापुला नाले पर प्रस्तावित हैं।
5- कुल मिलाकर यमुना के पश्चिमी किनारे पर अनुमानित 50-60 हेक्टेयर का क्षेत्र पूरी तरह बर्बाद हो गया है।
इसके अतिरिक्त और भी अन्य खामियां कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में पेश की हैं। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में साफ कहा कि इस निर्माण कार्य द्वारा 'आर्ट ऑफ लिविंग' और मंजूरी देने वाले डीडीए ने एनजीटी के पूर्व आदेशों की अवमानना की है। एनजीटी ने गत वर्ष 13 जनवरी 2015 को यह निर्देश दिया था।
कमेटी ने अनुशंसा की कि आयोजन के तुरंत बाद खादर की पुनर्बहाली का काम शुरु किया जाए और उसके लिये होने वाला सारा खर्च जुर्माने के तौर पर 'आर्ट ऑफ लिविंग' से वसूला जाए। यह रकम 100 से 120 करोड़ तक हो सकती है। लेकिन इस रकम को आयोजन से पहले ही जमा करा लेना होगा।
कमेटी ने यह भी कहा कि ऐसे मामलों में सख्ती से पेश आने की जरूरत है ताकि डीडीए या अन्य किसी के लिये भी यह नजीर बन सके। और भविष्य में नदी और नदी की जमीन को कोई और नुकसान पहुँचाने का न सोच सके। कमेटी की रिपोर्ट के बाद मामले पर एनजीटी में सुनवाई चल रही है।
'आर्ट ऑफ लिविंग' इस रिपोर्ट के बाद पहले से कटघरे में था ही, इसी बीच एक और गाज उन पर गिर पड़ी। नदी की सफाई को लेकर 'आर्ट ऑफ लिविंग' ने अपनी योजना में एन्जाइम का इस्तेमाल करके नदी को साफ करने की बात कही। इसी बात पर सवालिया निशान लगाते हुए पर्यावरणविद आनंद आर्य ने एनजीटी में एक याचिका दायर कर दी है। दरअसल 'आर्ट ऑफ लिविंग' ने प्राधिकरण के सामने यमुना से जुड़े 17 नालों की सफाई के लिये एन्जाइम का इस्तेमाल करने की योजना पेश की है। जो अब सवालों के घेरे में है। आनंद आर्य साफ शब्दों में उनकी इस सफाई योजना पर सवाल उठाते हुए कहते हैं, “ चूंकि इसमें एक एेसे विदेशी उत्पाद (एन्जाइम) का इस्तेमाल किया जाएगा, जिसका न तो कोई वैज्ञानिक अध्ययन किया गया है, न ही कोई जानकारी उपलब्ध है। यह प्रस्तावित कृत्य पूरी तरह से जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1974 और जैवविविधता अधिनियम, 2002 का उल्लंघन करता है।” उन्होंने एन्जाइम को पानी में डाले जाने पर टिप्पणी करते हुए पूछा कि क्या इस तरह के “तत्वों” के इस्तेमाल करने के लिये केन्द्रीय या राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से कोई स्वीकृति ली गई है। यदि हाँ तो क्या इसके नतीजों को केन्द्रीय या राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के साथ साझा किया गया है? या फिर इन नतीजों को किसी समाचार पत्र में प्रकाशित कर सार्वजनिक किया गया है?
एनजीटी के नोटिस पर श्रीश्री रविशंकर ने भास्कर के संवाददाता अनिरुद्ध शर्मा को बताया कि “हम पर्यावरण को लेकर बेहद सजग हैं। इस बात की रत्तीभर संभावना नहीं है कि हम यमुना में जरा भी प्रदूषण बढ़ाएं। यह बात हमारे एजेंडे में सबसे ऊपर है। लाखों लोग एंजाइम बनाकर ला रहे हैं, इसे 17 गंदे नालों में बहाया जाएगा। नालों के पानी को शुद्ध करने के लिए हम यह तकनीक ला रहे हैं। इससे अन्य लोगों में भी पर्यावरण के प्रति सजगता आएगी। हम लगातार नदियों के पुनर्जीवन में जुटे हैं। महाराष्ट्र में 11, कर्नाटक में 4 और तमिलनाडु में हमने एक नदी को पुनर्जीवित किया है जिन्हें लोगों ने भुला दिया था। हम यह भरोसा दिलाना चाहते हैं कि प्रदूषण नहीं होने देंगे बल्कि यमुना इससे भी शुद्धता पवित्रता से रहे, उसकी जिम्मेदारी लेते हैं।”
श्रीश्री रविशंकर के दावे के ठीक विपरीत 'यमुना जिये अभियान' और फिर आनंद आर्य द्वारा दायर की गई याचिकाओं और उनमें उठाए गए सवालों ने न सिर्फ 'आर्ट ऑफ लिविंग' को सवालों के कटघरे में ला खड़ा किया है। डीडीए जैसी मंजूरी देने वाले विभिन्न संस्थानों को भी चेताया है कि नदी और नदी की जमीन के साथ किसी भी छेड़छाड़ और लापरवाही को बख्शा नहीं जाएगा। मामला अभी प्राधिकरण में लंबित है लेकिन दिल्लीवासियों के साथ ही पूरे देश की निगाहें एनजीटी पर टिकी हैं।
यमुना खादर पर जिस स्थान पर आर्ट ऑफ लिविंग द्वारा वर्ल्ड कल्चरल फेस्ट के लिये निर्माण कार्य किया जा रहा है उसी स्थान को देखिये और समझिये तस्वीरों के माध्यम से
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