पर्यावरण दिवस विशेष
आज के समय में पर्यावरण संरक्षण एक वैश्विक मुद्दा बना हुआ है। नौले धारे, नदियों और तालाबों का पानी सूखता जा रहा है। हजारों नौले धारे और तालाबों का अस्तित्व ही समाप्त हो चुका है। जंगलों में प्राकृतिक जल स्रोत सूखते जा रहे हैं। जिससे इंसान ही नहीं जानवरों के लिए पानी की समस्या खड़ी हो गई है। यदि गंगा नगरी हरिद्वार की बात करें तो यहां भी गंगा की कई सहायक नदियां सूख कर बरसाती नदी बन गई हैं। जिसमें हरिद्वार की पीली नदी भी शामिल हैं। इससे गंगा के तट पर भी पानी लोगों के लिए परेशानी बना हुआ है, लेकिन हरिद्वार वन प्रभाग और कृषि विभाग की पीली नदी को पुनर्जीवित करने की एक करोड़ चार लाख रुपये की योजना को शासन से हरी झंडी मिल गई है। इससे न केवल ग्रामीणों की समस्या का निदान होगा, बल्कि पीलपड़ाव के आसपास पर्यावरणीय वातावरण स्थापित किया जा सकेगा, जिससे क्षेत्र में जैव विविधता के विकास को भी पंख लगेंगे और ग्रामीणों की समस्याओं का निदान होगा।
पीली नदी पौड़ी की पहाडियों से निकलकर हरिद्वार के मैदानी इलाकों मे प्रवेश करती है, जो सिद्ध स्रोत के नीचे से होते हुए पीली पड़ाव गांव के समीप से निकलते हुए सजनपुर पीली में गंगा नदी में मिल जाती है। प्राकृतिक स्रोतों से पानी का नदी में सतत प्रवाह बना रहता था। क्षेत्र में कंक्रीट के महलों केा विस्तार होने से बड़े पैमाने पर वनों का कटान किया गया। पीली नदी को जीवित रखने वाले सभी प्राकृतिक स्रोत सूख गए और पीली नदी बरसाती नदी बनकर रह गई। नदी के बरसाती होने का खामियाजा पर्यावरण के साथ ही स्थानीय लोगों को भी भुगतना पड़ा और बरसात के दौरान प्रचंड वेग से बहने के कारण गांव में पानी भरने लगता है।
हर साल लाखों रुपये का नुकसान होता है। लोगों की सुरक्षा और पर्यावरण संरक्षण को ध्यान में रखते हुए हरिद्वार वन प्रभा की लगभग 67 लाख और कृषि विभाग ने 37 लाख की योजना को शासन से हरी झंडी मिल गई है। योजना के अंतर्गत कृषि विभाग द्वारा भूमिगत जलस्तर को बढ़ाने के लिए दो हजार रिचार्ज पिट, दो हजार खंतियां, वर्षा जल की निकासी के लिए पीली पड़ाव गांव से नदी तक नाली निर्माण किया जाएगा। साथ ही वन प्रभाग द्वारा चेकडैम, किनारों के कटाव को रोकने के लिए बंदे और पानी के सतत प्रवाह बनाने आदि के लिए कार्य किया जाएगा। योजना के अंतर्गत कार्य करने के लिएए वन प्रभाग को 10 लाख और कृषि विभाग को 20 लाख रुपये जारी भी कर दिए गए है।
पौधारोपण से रोकेंगे मिट्टी का बहाव
वृक्षों की कमी के कारण पानी के बहाव से मिट्टी की ऊपरी परत बह जाती है, जिससे मृदा अपरदन होता है और मिट्टी की उपजाऊ क्षमता खत्म हो जाती है। साथ ही वृक्षों की कमी के कारण भूमि कटाव होने से आसपास के इलाकों में बाढ़ का खतरा भी बढ़ जाता है। इस समस्या से निजात दिलाने के लिए योजना के अंतर्गत कृषि विभाग ओर से से लकभग 80 हेक्टेयर में 40 हजार पौधों का रोपण किया जाएगा।
प्राकृतिक स्रोतों को करेंगे पुनर्जीवित
नदी में पानी का सतत प्रवाह बनाए रखने के लिए रिचार्ज पिट, खंतियां और वर्षा जल संरक्षण के लिए 10 छोटे तालाब बनाकर भूमिगत जलस्तर को बढ़ाया जाएगा। रिचार्ज पिट का समतल इलाके में एक फीट गहरा और एक फीट चैड़ा बनाया जाएगा, जो तेजी से पानी को सोखकर भूमि के अंदर तक पहुंचाने का कार्य करेंगे। ढलान या पहाड़ी में खंतियां बनाई जाएंगी। जब पानी ऊपर से नीचे आएगा तो वह जगह जगह बनी खंतियों में ठहर जाएगा और भूमिगत जलस्तर को बढ़ाएगा। भूमिगत जलस्तर बढ़ने से क्षेत्र में नमी बढ़ेगी और पानी के विलुप्त हो चुके जल स्त्रोतों को पुनर्जीवित किया जा सकेगा।