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सर्वोदय प्रेस सर्विस, 29 जुलाई 2011
आजकल प्रधानमंत्री से लेकर पटवारी तक सभी खेती को लाभ का धंधा बनाने में जुटे हैं। ये पूरी श्रृंखला खेती की घटती उर्वरता और रसायनों के बढ़ते प्रयोग से भी चिंतित है। इसके बावजूद ये विदेशी बीज, रासायनिक एवं मशीनीकृत खेती को ही बढ़ावा दे रहे हैं। कथनी और करनी का यह फर्क अब किसानों की भी समझ में आ गया है। किसानों को समृद्ध बनाने के लिए सात सूत्रीय कार्यक्रम को रेखांकित करता आलेख।
देश में किसानों पर संकट बढ़ता जा रहा है। इसके समाधान के लिए यहां ‘सात बचत’ पर आधारित एक व्यावहारिक कार्यक्रम प्रस्तुत है जिसे कोई भी गांव या कोई किसान अपना सकता है। मिट्टी बचाओ - मिट्टी के प्राकृतिक उपजाऊपन को बचाना बहुत जरूरी है। रासायनिक खाद व कीटनाशक या अन्य जहरीली दवाओं के असर से मिट्टी को भुरभरा, नम व उपजाऊ बनाने वाले केंचुए व असंख्य सूक्ष्म जीव नष्ट हो जाते हैं या मर जाते हैं। यदि इस जमीन का उपचार पत्ती/गोबर आदि की खाद से हो व जरूरत पड़ने पर आसपास से कुछ केंचुओं वाली उपजाऊ मिट्टी भी यहां डाली जाए तो मिट्टी का प्राकृतिक उपजाऊपन लौटने की शुरुआत हो सकती है। परंपरागत बीज बचाओ - स्थानीय जरूरतों व स्थितियों के अनुकूल बीज विकसित करने का कार्य हमारे पूर्वज किसानों ने हजारों वर्षों में किया। यह परंपरागत बीज हमारी अमूल्य धरोहर हैं। पर बाहरी बीज आने के बाद हमारे यह परंपरागत बीज लुप्त होते गए। इन्हें बचाना बहुत जरूरी है। इन बीजों को खोज-खोजकर उगाना होगा व आपस में अदला-बदली कर इन्हें अधिक खेतों तक पहुंचाना होगा।पानी व नमी बचाओ - अधिकांश पौधों को बहुत अधिक पानी की जरूरत नहीं होती। थोड़े पानी में भी वे बच जाते हैं। कुछ नमी बनी रहनी चाहिए। यदि वर्षा का पानी बचाने, संरक्षित करने, नमी बचाने का कार्य आपसी सहयोग व निष्ठा से किया जाए तो प्रतिकूल मौसम व सूखे के समय में भी अधिकांश पफसल व पौधों की रक्षा हो सकती है।
हरियाली बचाओ - चारागाह, पेड़ों व वनों को बचाना बहुत जरूरी है तथा साथ ही जहां संभव हो वहां नए पेड़ भी लगाने चाहिए। खेती के साथ ही फलदार स्थानीय प्रजाति के उपयोगी पेड़ों को जोड़ना चाहिए। परस्पर सहयोग से व निष्ठा से गांव समाज की जमीन पर स्थानीय प्रजाति के पेड़ों के नए वन तैयार करने चाहिए।
पशुधन बचाओ - स्थानीय प्रजाति के पशुओं विशेषकर गाय, बैल, भेड़, बकरी, भैंस, ऊंट आदि की रक्षा पर ध्यान देना चाहिए। मूल्यवान स्थानीय प्रजातियों को लुप्त होने से बचाना चाहिए। ट्रैक्टर का उपयोग कम करना चाहिए। गोधन की रक्षा पर विशेष ध्यान देना चाहिए। पशुओं के मल-मूत्र का वैज्ञानिक उपयोग खाद बनाने व मिट्टी का प्राकृतिक उपजाऊपन बढ़ाने के लिए करना चाहिए।
गांव की आत्म-निर्भरता बचाओ - जहां तक संभव हो अधिकतम जरूरतों की आपूत्र्ति में गांवों को आत्म-निर्भर बनाना चाहिए। खेती की तकनीक व बीजों का चुनाव ऐसा होना चाहिए जिससे किसान व गांव अधिक से अधिक आत्म-निर्भर हो सकें। तरह-तरह के कुटीर उद्योगों के विकास से आत्म-निर्भरता को बढ़ाना चाहिए।
अनावश्यक खर्च से बचो - किसान व गांववासियों का बहुत सा खर्च नशे, विभिन्न सामाजिक बुराइयों, दहेज, विवाह, बाहरी आडंबर की होड़, मृत्यु-भोज, झगड़ों, कचहरी व रिश्वत देने पर हो रहा है। इस तरह के खर्च को समाज-सुधार अभियान चला कर कम किया जा सकता है व इस तरह कर्ज व आर्थिक तंगी से बचा जा सकता है। जो भी गांव समुदाय यह राह अपनाएं उन्हें सरकार व सामाजिक संगठनों का भी भरपूर सहयोग मिलना चाहिए तथा सरकार को तरह-तरह के प्रोत्साहन देकर व कर्ज रद्द कर उनके इस अभियान को आगे बढ़ाना चाहिए।