बाढ़ आपदा प्रबंधन तंत्र कहाँ है? (Where is the flood disaster management system? in Hindi)

Submitted by Editorial Team on Thu, 04/07/2022 - 19:43
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हस्तक्षेप, 28 Aug 2021, सहारा समय

फोटो:flicker india water portal

समय आ गया है कि भारत में बाढ़ आपदा प्रबंधन तंत्र के दर्शन को पुनर्परिभाषित किया जाए। बाढ़ आपदा प्रबंधन तंत्र के नवदर्शन में बाढ़ आपदा प्रबंधन तंत्र को वार्षिक रस्मअदायगी का विषय न मानकर इसे उस दिशा में अग्रसर करने का क्रम किया जाए जहां बाढ़ की समस्या का कोई स्थायी और उपयोगी समाधान प्राप्त किया जा सके।

देश की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति और नदियों के विस्तृत संजाल के कारण बाढ़ ऐतिहासिक रूप से यहां के लोगों के जीवन का अभिन्न हिस्सा रही है। लगभग प्रत्येक वर्ष जुलाई से सितम्बर के तीन मास में देश के विभिन्न क्षेत्रों विशेषकर पूर्व‚ उत्तर और उत्तर–पूर्व में बाढ़ की विभीषिका न केवल लोगों के सामान्य जीवन को अस्त–व्यस्त करती दृश्यमान होती है वरन जान–माल की भारी क्षति का भी कारण बनती है। अतः बाढ़ आपदा प्रबंधन तंत्र की दीर्घकालिक योजना का निर्माण और उसके समुचित क्रियान्वयन के लिए विस्तृत और प्रभावी तंत्र का विकास करना भारतीय नीति निर्माताओं के लिए हमेशा से विचारणीय प्रश्न रहा है। इस दृष्टि से जहां बाढ़ आपदा प्रबंधन तंत्र के कतिपय प्रयत्न स्वतंत्रता से पूर्व ही आरंभ हो गए थे, वहीं विकास के महत्तवपूर्ण अवयव के रूप में बाढ़ आपदा प्रबंधन तंत्र के विस्तृत और समÌपत तंत्र का गठन स्वतंत्रता प्राप्ति के काफी बाद में किया गया। 

केंद्र की भूमिका 

बाढ़ आपदा प्रबंधन तंत्र का कार्य पारंपरिक रूप से केंद्र और राज्य की संस्थाओं द्वारा सहयोगपूर्ण और समन्वयात्मक तरीके से मिलजुल कर किया जाता रहा है। तकनीकी रूप से यद्यपि भारतीय संविधान में बाढ़ आपदा प्रबंधन तंत्र का कहीं भी उल्लेख नहीं मिलता है तथापि जिस प्रकार से सिंचाई और जल प्रबंधन के विषयों को राज्य के सुपुर्द किया गया है‚ उसका निहितार्थ यही है कि व्यापक जल प्रबंधन के एक अवयव के रूप में बाढ़ आपदा प्रबंधन तंत्र मूल रूप से राज्यों की ही जिम्मेदारी है। किंतु जैसा विदित है कि भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में जीवन का कोई भी पक्ष केंद्र सरकार के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हस्तक्षेप के बिना नहीं रहता‚ इसलिए कालांतर में बाढ़ आपदा प्रबंधन तंत्र के क्षेत्र में भी कई केंद्रीय संस्थाओं का गठन किया गया। ये संस्थाएं विशुद्ध रूप से परामर्शदात्री इकाइयों के रूप में कार्य करती हैं‚ और बाढ़ के प्रभावी प्रबंधन में राज्यों को विभिन्न प्रकार की तकनीकी जानकारी‚ आंकड़े‚ परामर्श और दिशा–निर्देश प्रदान करती हैं। 

इन संस्थाओं में निर्विवाद रूप से राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण शीर्ष निकाय के रूप में बाढ़ आपदा प्रबंधन तंत्र से संबंधित सामान्य दिशा–निर्देश जारी करने के साथ ही राज्यों में बाढ़ की स्थिति पर दृष्टि रखता है‚ और आवश्यकता पड़ने पर उन्हें विविध प्रकार की भौतिक सहायता उपलब्ध कराता है। महत्तवपूर्ण रूप से राष्ट्रीय आपदा मोचन बल के कार्यकारी नियंत्रक के रूप में प्राधिकरण राज्यों को भीषण बाढ़ की स्थिति में राहत और बचाव कार्य के लिए मोचन बल के जवानों की सहायता उपलब्ध कराता है। 

केंद्रीय संगठन 

बाढ़ की समस्या के मूल में चूंकि जल के आधिक्य का विषय रहता है‚ इसलिए इसके समुचित प्रबंधन के लिए केंद्र सरकार द्वारा कई ऐसे वैज्ञानिक और तकनीकी निकायों का भी गठन किया गया है‚ जो जल के विविध तकनीकी पक्षों और मौसम की भविष्यवाणी से संबंधित जानकारी उपलब्ध कराते हैं। इस दृष्टि से ‘केंद्रीय जल आयोग’ देश में जल प्रबंधन का शीर्ष संगठन है‚ जो विभिन्न नदियों की जलवाहक क्षमता और जल की उपलब्धता के निश्चित आंकड़े प्रदान कर बाढ़ आपदा प्रबंधन तंत्र के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारतीय मौसम विभाग भी देश में मानसूनी वर्षा के मध्यम और लघु कालखंडों के अनुमान उपलब्ध कराकर राज्यों को बाढ़ के विविध संभावित परिदृश्यों के पूर्वानुमान बताकर उन्हें समय पूर्व तैयारी का अवसर प्रदान करता है। इनके साथ ही अतिशय बाढ़ संभावित नदी क्षेत्रों में बाढ़ आपदा प्रबंधन तंत्र के लिए केंद्र सरकार ने विभिन्न बोर्डों की स्थापना की है‚ जिनमें ‘ब्रह्मपुत्र बोर्ड’ और ‘गंगा बाढ़ नियंत्रण आयोग’ महत्तवपूर्ण हैं। 

राज्यस्तरीय संस्थाएं 

केंद्रीय इकाइयों द्वारा उपलब्ध कराई गई तकनीकी सूचना‚ आंकड़े और दिशा–निर्देशों को दृष्टिगत करते हुए अपने–अपने क्षेत्रों में बाढ़ के प्रभावी प्रबंधन के लिए राज्य स्तर पर भी कई संस्थाओं का गठन किया गया है। परंतु इस क्षेत्र में राज्यों को मिली स्वायत्तता के मद्देनजर विभिन्न राज्यों ने अलग–अलग प्रकार की बाढ़ आपदा प्रबंधन तंत्र व्यवस्थाओं का निर्माण किया है। अतिशय बाढ़ प्रभावित राज्यों असम‚ बिहार‚ उत्तर प्रदेश‚ मध्य प्रदेश‚ जम्मू और कश्मीर इत्यादि ने राज्य बाढ़ नियंत्रण बोर्डों की स्थापना की है। ये बोर्ड प्रायः स्वायत्त इकाई के रूप में कार्य करते हैं‚ और संबंधित राज्य में बाढ़ की स्थिति से निबटने में राज्य की विभिन्न कार्यकारी एजेंसियों के कार्यों का समन्वय भी करते हैं। कई राज्यों में बाढ़ आपदा प्रबंधन तंत्र के कार्य की जिम्मेदारी वहां के सिंचाई विभाग को सौंपी गई है‚ जो नदियों के ऊपर बने विभिन्न बांधों और अन्य जल प्रवाह नियंत्रण प्रणालियों द्वारा बाढ़ की विभीषिका से लोगों के जान और माल को बचाने का उपक्रम करते हैं। पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में बाढ़ नियंत्रण के कार्य को जलमार्गों के संचालन के साथ जोड़कर इनके समुचित प्रबंधन के लिए सिंचाई और जलमार्ग निदेशालय की स्थापना की है। देश में कई ऐसे भी राज्य हैं‚ जहां बाढ़ आपदा प्रबंधन तंत्र का कार्य लोक निर्माण विभाग को सौंपा गया है। इस प्रकार के सांस्थानिक वैविध्य के बावजूद यह तथ्य उल्लेखनीय है कि राज्यस्तरीय संस्थाएं मूलतः कार्यकारी इकाइयां हैं‚ जो बाढ़ की स्थिति में राहत‚ बचाव और पुनर्निर्माण के कार्यों को क्रियान्वित करती हैं। 

प्रबंधन तंत्र की कार्यक्षमता

देश के विभिन्न क्षेत्रों में बाढ़ आपदा प्रबंधन तंत्र की कार्यक्षमता का विश्लेषण करने पर मिश्रित परिदृश्य उभर कर आता है। इसमें कोई दो राय नहीं कि स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात से भारत में बाढ़ आपदा प्रबंधन तंत्र की दिशा में उल्लेखनीय कार्य हुआ है। कई ऐसी नदियों‚ जो पूर्व में क्षेत्र विशेष के अभिशाप के रूप में जानी जाती थीं‚ पर बहुउद्देशीय परियोजनाओं का निर्माण किया गया है‚ जिससे उस क्षेत्र के बहुआयामी विकास में काफी सहायता मिली है। 

बंगाल का अभिशाप कही जाने वाली दामोदर नदी पर निर्मित दामोदर घाटी परियोजना बंगाल के लिए वरदान साबित हुई है। किंतु असम‚ बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में कमोबेश बाढ़ की स्थिति अभी भी भयावह ही बनी हुई है‚ और समय–समय पर बाढ़ की विभीषिका के समक्ष बाढ़ आपदा प्रबंधन तंत्र असहाय और किंकर्त्तव्यविमूढ़ सा दृष्टिगोचर होता है। इस दृष्टि से समय आ गया है कि भारत में बाढ़ आपदा प्रबंधन तंत्र के दर्शन को पुनर्परिभाषित किया जाए। बाढ़ आपदा प्रबंधन तंत्र के नवदर्शन में बाढ़ आपदा को वार्षिक रस्म अदायगी का विषय न मानकर इसे उस दिशा में अग्रसर करने का क्रम किया जाए, जहां बाढ़ की समस्या का कोई स्थायी और उपयोगी समाधान प्राप्त किया जा सके। 

  • (राजेंद्र कुमार पाण्डेय पुस्तक ‘डिजास्टर मैनेजमेंट इन इंडिया के लेखक हैं, चौ. चरण सिंह विश्वविद्यालय‚ मेरठ में अध्यापन से जुड़े हैं।)