माना जा रहा है कि अगला विश्व युद्ध पानी के लिए हो सकता है। इसमें काफी सच्चाई भी है। पानी का जलस्तर लगातार नीचे जा रहा है। इसे त्रासदी नहीं तो क्या कहा जा सकता है कि अपने देश के ज्यादातर शहर मामूली बरसात को भी नहीं झेल पाते हैं‚ बरसात में दरिया बन जाते हैं। बरसात के पानी को संग्रह करके जलस्तर ऊंचा उठाना तो दूर उससे होने वाली जान–मान की तबाही को भी नहीं रोक पा रहे हैं। पहले यह गांवों में और उन इलाकों में ज्यादा होता था‚ जहां पहाड़ी नदियां हैं। पहाड़ पर बरसात ज्यादा होने से नदियों का जलस्तर ज्यादा बढ़ता था और आसपास के खेत और गांव प्रभावित होते थे। इस समस्या का स्थायी हल निकालने की बजाय सालाना बाढ़ बचाओ योजना ही बनाई जाती रही हैं।
अब तो मुंबई ही नहीं‚ देश की राजधानी दिल्ली‚ कोलकाता‚ पटना‚ बनारस इत्यादि बरसों पुराने शहर हर साल बाढ़ से बूरी तरह से प्रभावित हो रहे हैं। बड़ी संख्या में लोगों की मौत होती है‚ लाखों लोग बेघर। करोड़ों की संपत्तियां बरबाद होती हैं।
अंधाधुंध अनियोजित शहरीकरण का खमियाजा जनता भुगत रही है। शहरी विकास के केंद्रीय मंत्री समेत अनेक महkवपूर्ण पदों पर रहे पूर्व नौकरशाह दिवंगत जगमोहन कहते थे कि वोट और नोट की राजनीति करने वाले पुलिस और स्थानीय प्रशासन के भ्रष्ट लोगों के गठजोड़ ने शहर नियोजन की परिभाषा ही बदल दी है। जो चीज सबसे पहले करनी चाहिए‚ वह सबसे बाद में की जाती है। सड़क‚ सीवर‚ पानी की निकासी‚ सामुदायिक सुविधाओं की योजना बनाने के बाद मकान बनने चाहिए। सभी बड़े शहरों में पहले अनिधकृत निर्माण कराया जाता है। फिर उसे अधिकृत करने के लिए नियमों में जबरन बदलाव के लिए दबाव बनाया जाता है।
अवैध निर्माण पर कार्रवाई जरूरी
इतना ही नहीं‚ अवैध निर्माण करवाने के खिलाफ कार्रवाई पर बहस नहीं होती। पानी की सही निकासी की व्यवस्था नहीं होगी तो कम बरसात में भी शहर तो डूबेगा ही। आदिकाल से ही मानव ने पानी को जीवन की सबसे जरूरी चीज मान कर पानी के स्रोत के पास ही अपनी रिहायश बनाई। बड़े शहर या तो किसी नदी के किनारे बसे हुए हैं‚ या समुद्र के किनारे। बरसात होने से नदियों का जलस्तर पहले भी बढ़ता रहता था। तब इतनी आबादी नहीं होती थी‚ कुछ घर‚ जो नदी किनारे होते थे‚ वे ही बाढ़ से प्रभावित होते थे। ऐसा नहीं होता था कि देश के सबसे वीआईपी इलाके नई दिल्ली के सांसद और मंत्रियों की कोठी में पानी घुस जाए और बिहार की उपमुख्यमंत्री के घर में कमर भर पानी भर जाए। इन शहरों के भीतर नाव चलानी पड़े और शहर के भीतर इन महkवपूर्ण लोगों के लिए राहत और बचाव काम करना पड़े। यह अब हर साल की नियति बनती जा रही है। देश की वाणिज्यिक राजधानी मुंबई और कोलकाता का मौजूदा आकार काफी पहले से है। इन शहरों की सीवर व्यवस्था दिल्ली से भी पुरानी है। इसलिए इन शहरों में भारी बरसात का मतलब ही बाढ़ हो गया है। मुंबई में तो पिछले कई सालों से बरसात में मुंबई की जीवन रेखा कही जाने वाली लोकल ट्रेन काफी समय तक बंद रहती है। मुंबई में दिल्ली और कोलकाता के अपेक्षा बरसात ज्यादा होती है।
सीवर प्रणाली पुरानी
दिल्ली की ज्यादातर सीवर प्रणाली अंग्रेजों के शासन में डली हुई है‚ दिल्ली जल बोर्ड ने पिछले कई सालों में प्रयास करके इनमें से काफी को बदला है। सौ साल से ज्यादा होने के चलते सीवर प्रणाली बंद सी हो गई थी। अनधिकृत निर्माण के चलते दिल्ली के काफी बड़े इलाके में सीवर या तो डली नहीं है‚ या डली तो पूरे में नहीं डली यानी दिल्ली जैसे शहर में भी पानी निकासी का सौ फीसद इंतजाम नहीं हो पाया है‚ तो छोटे शहरों में क्या उम्मीद की जा सकती है।
सालों से कहा जाता है कि अगर बरसाती पानी को बेकार होने से रोक दिया जाए और उसका संचय किया जाए तो जलस्तर को नीचे जाने से रोका जा सकता है‚ और अगर यह प्रयास ठीक से चलता रहा तो पीने के पानी के संकट को कम किया जा सकता है।
गांव में सुविधाएं कम होने से लोग शहरों में बसते जा रहे हैं। हर शहर की क्षमता से ज्यादा वहां की आबादी हो गई है। शहर जाने वाले हर स्तर के लोग हैं। उन्हें सबसे पहले रहने के लिए घर चाहिए। नियोजित शहर में मकान लेना हर व्यक्ति के लिए संभव नहीं है‚ तो जिसे जहां मिला वहीं घर ले लिया। पानी निकासी के रास्ते बढ़ने की बजाय कम होते गए‚ बरसात होने पर पानी हर इलाके में जमा होने लगता है‚ और ज्यादा बरसात होने पर शहर दरिया बन जाता है। यह केवल दिल्ली में नहीं हो रहा है‚ देश के सभी शहरों में ही होने लगा है। जिस बनारस शहर को भगवान शंकर ने अपने त्रिशुल पर बसाया‚ वहां के लोग भी इस बार बाढ़ से तबाह हुए। शहर को सामान्य होने में लंबा समय लग गया। यही हाल हर शहर का हो गया है।
- लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।