एक फ़िल्म स्टार और सामाजिक उद्दमी के नेतृत्व में चल रहा एक अमेरिकी समूह भारतीयों को सुरक्षित पानी उपलब्ध कराने में मदद कर रहा है।
हैदराबाद के रसूलपुरा इलाके की रहने वाली ममता के जीवन में पानी एक बहुत बड़ा मुद्दा था। उसे अपने परिवार के लिए पानी लेने को रोजाना 2 किलोमीटर दूर जाना पड़ता था और वहां भी पानी भरने के लिए घंटों इंतज़ार करना पड़ता था। ममता के साथ उसकी दो साल की बेटी भी रोज़ाना उसके साथ पानी लेने जाती थी। एक दिन वह बोरवेल के पास हुए एक गड्ढे में गिर गई। किस्मत से बच्ची तो बच गई पर इस घटना ने ममता और उसके पति को झकझोर कर रख दिया।
ममता का परिवार इस हादसे के बाद किसी और बस्ती में जाकर रहने की सोचने लगा तभी उन्हें रसूलपुरा में स्थानीय भागीदार सोसायटी फ़ॉर इंटीग्रेटेड डवलपमेंट इन अरबन एंड रूरल एरियाज़ के साथ मिलकर काम कर रहे वॉटर डॉट ओआरजी के काम के बारे में पता चला। इनकी मदद से ममता को अपने घर में पानी का कनेक्शन मिल गया। पानी के लिए लंबी दूरी तय करने के बाद भी ज़रूरत भर और भरोसेमंद पानी न मिल पाने के दिन अब लद गए। ममता अब पानी लाने में खर्च होने वाले समय का इस्तेमाल परिवार के लिए पैसे कमाने में बिताने लगी और उसे अपने बच्चे की सुरक्षा की चिंता से भी छुटकारा मिल गया।
ममता उन हज़ारों भारतीयों में एक है जिसे वॉटर डॉट ओआरजी के कार्यक्रमों के जरिए सुरक्षित पानी और स्वास्थ्य सुविधाएं मिलीं हैं। अमेरिका के मिसूरी स्थित इस संगठन की वेबसाइट पर कर्नाटक, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और तमिलनाडु के तमाम ऐसे परिवारों की कहानियां हैं जिनका जीवन इसकी मदद के चलते बदल गया।
वॉटर डॉट ओआरजी की स्थापना वर्ष 2009 में एचटूओ अफ्रीका नामक संगठन में विलय के साथ हुई थी। इसकी स्थापना हॉलीवुड एक्टर मैट डेमन और वॉटर पार्टनर्स ने मिलकर की थी। वाटर पार्टनर्स की शुरुआत सामाजिक उद्यमी और समाजसेवक गैरी व्हाइट ने सहसंस्थापक के बतौर की थी। वॉटर डॉट ओआरजी का मुख्यालय मिसूरी के कंसास सिटी में है। वॉटर पार्टनर्स का कार्यालय वर्ष 1990 से ही यहीं पर है। भारत के तमिलनाडु में भी इसका एक कार्यालय है। वॉटर डॉट ओआरजी अब भी अपने मूल संगठनों के काम को जारी रखे हुए है। यह एशिया, अफ्रीका और मध्य अमेरिका के देशों की पानी की ज़रूरतों और इस समस्या के निराकरण की दिशा में काम कर रहा है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक समूची पृथ्वी पर उपलब्ध पानी में से सिर्फ ढाई प्रतिशत पानी ही साफ है और उसमें से भी महज एक फीसदी ही लोगों की पहुंच में है। विकासशील देशों में रोजाना लोग पीने, खाना बनाने और नहाने जैसी ज़रूरतों के लिए जिस पानी की तलाश में काफी दूर तक का फासला तय करते हैं, वह अक्सर प्रदूषित होता है।
वॉटर डॉट ओआरजी की भारत में कुल 11 परियोजनाएं चल रही हैं। इनमें से 5 ऐसी हैं जो गैरसरकारी संगठनों के हाथ में हैं जबकि 6 अन्य परियोजनाएं लघु वित्तीय संस्थाएं चला रही हैं। इन संगठनों को वॉटर डॉट ओआरजी, सामुदायिक संगठनों जैसे महिला स्व सहायता समूह के माध्यम से जल और स्वास्थ्य सुविधाओं के कामों के लिए धन अनुदान या कर्ज के रूप में मुहैया कराता है। भारत में परियोजना के निदेशक सेत दामोदरन का कहना है कि इससे अभी तक 65 हज़ार से ज्यादा भारतीयों को लाभ मिला है।वॉटर डॉट ओआरजी अपने सहयोगियों का चुनाव गहरी छानबीन के बाद करता है। इसमें इच्छुक संगठनों के ट्रैक रिकॉर्ड पर खास ध्यान दिया जाता है। तभी उन्हें ग्रांट के लिए चुना जाता है। सेत दामोदरन का कहना है, ‘‘कार्ययोजना बनाने और उसके कार्यान्वयन के लिहाज से हम एकदम जमीनी स्तर पर बदलाव की बात सोचते हैं। हम इस बात में यकीन नहीं रखते कि योजनाएं ऊपर से बने। हम अपने सहयोगी संगठनों से इस बाबत प्रस्ताव मांगते हैं और उसकी अच्छे से जांच पड़ताल के बाद उन्हें मंजूरी देते हैं।’’ उनका कहना है कि ‘‘वॉटर डॉट ओआरजी की जवाबदेही सिर्फ अनुदान मुहैया कराने के साथ तकनीकी और पेशेवर सलाह उपलब्ध कराने तक ही सीमित है। कार्यान्वयन संबंधी सारी ज़िम्मेदारी सहयोगी संगठनों को सौंप दी जाती है।’’ वॉटर डॉट ओआरजी अपने कर्मचारियों और बाहरी सलाहकारों की मदद से योजनाओं के कार्यान्वयन, उसके नतीजों और उसके प्रभाव पर निगरानी रखता है।
दामोदरन मानते है कि भारत में उनकी सबसे सफल परियोजना वॉटर क्रेडिट इनीशिएटिव को कहा जा सकता है। इस योजना के तहत समुदायों को पानी और स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए कर्ज दिया जाता है। ‘‘लोगों को भी इन सुविधाओं का महत्व तभी समझ में आता है जब उन्हें ये सुविधाएं उनके घर पर मिलती हैं और महिलाओं, बच्चों और बूढ़ों को रोज की मशक्कत से छुटकारा मिल जाता है। यही नहीं इस परियोजना के चलते लोगों को पानी से होने वाली बीमारियों के इलाज के खर्च में भी कमी आई है...।’’वॉटर क्रेडिट माइक्रो फाइनेंस योजना ऐसे लोगों को छोटे कर्ज उपलब्ध कराती है जो बाजार से कर्ज ले पाने में दिक्कत महसूस करते हैं। योजना में ऐसे कर्ज की चुकाई गई रकम ही एक रिवॉल्विंग फ़ंड के रूप में काम करती है और फिर उसे ही किसी दूसरे व्यक्ति या समुदाय को बतौर कर्ज़ दे दिया जाता है। दामोदरन कहते हैं कि ‘‘अगर कोई व्यक्ति कर्ज नहीं चुकता करता तो ऐसी सूरत में सामुदायिक संगठनों जैसे कि महिला स्व सहायता समूह आदि को अपनी बचत में से भुगतान करना पड़ता है।’’
दरअसल, वॉटर क्रेडिट इनीशिएटिव के फायदे को सिर्फ घर पर पानी का एक कनेक्शन भर उपलब्ध करा देने के लिहाज से नहीं देखा जाना चाहिए। वॉटर डॉट ओआरजी के लिए पिछले वर्ष भारत यात्रा के दौरान द्वारा तैयार एक वीडियो में डेमन बताते हैं कि किस तरह कर्ज ने यहां की महिलाओं की स्थिति सुधारने में मदद दी है।
तमिलनाडु में डेमन और व्हाइट की मुलाकात एक ऐसे महिला स्व सहायता समूह से हुई जिसे वॉटर क्रेडिट के तहत कर्ज मिला और उसकी मदद से इस समूह ने बाद में राख से इंटें बनाने की इकाई स्थापित की। इस बारे में 2ड्डह्लद्गह्म्.शह्म्द्द पर व्हाइट ने एक वक्तव्य में कहा कि ये महिलाएं इस बात की गवाह हैं कि माइक्रो फाइनेंस का महत्व सिर्फ पानी के क्षेत्र में ही नहीं है बल्कि इसके जरिए वे एक समूचे क्षेत्र के भविष्य के विकास का ढांचा तैयार कर रही हैं।
शुरुआत में ओपन स्कवायर फाउंडेशन और माइकल एंड डेल फाउंडेशन की तरफ से और अभी हाल ही में पेप्सिको फाउंडेशन के जरिए दी गई मदद ने इन महिलाओं को न सिर्फ एक उद्यमी बनने में मदद दी बल्कि यह भी बताया कि समस्याओं के निराकरण के मौलिक तरीकों और सहभागिता के माध्यम से क्या कुछ नहीं संभव है।
Source
स्पैन मार्च/अप्रैल 2010