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कादम्बिनी, मई 2016
आखिरकार फिल्मों में भी तो जीवन ही प्रतिबिम्बित होता है। जीवन में जब पानी का संकट है, तो फिल्में उससे कैसे बच सकती हैं? हिन्दी फिल्मों में पानी पर बेहद खूबसूरत दृश्य फिल्माए गए हैं, साथ ही पानी के संकट पर चिन्ता भी मुखर हुई है।
पानी न हो तो हिन्दी फिल्मों की दुनिया एकदम रूखी और बेजान-सी नजर आये। आजादी से लेकर अब तक ऐसी अनगिनत फिल्में हैं जिनके किसी दृश्य, किसी गीत को पानी ने अमरत्व दे दिया है। पानी और हिन्दी सिनेमा का रिश्ता ठीक वैसा ही है जैसे जीवन और पानी का। बात ठीक रहीम के इस दोहे की तरह है-
‘बिन पानी सब सून।’
यह बात जिन्दगी के लिये भी लागू होती है और सिनेमा के मामले में भी। आखिरकार सिनेमा में भी जीवन ही रिफ्लेक्ट होता है। सिनेमा ने पानी का सबसे खूबसूरत इस्तेमाल फिल्मी गीतों को फिल्माने के लिये किया है।
क्या आज महान फिल्मकार राजकपूर के ‘श्री 420’ के शैलेंद्र के लिखे तथा उन पर और नरगिस पर फिल्माए इस गीत- ‘प्यार हुआ इकरार हुआ है प्यार से फिर क्यों डरता है दिल?’ की कल्पना क्या रिमझिम बारिश की फुहारों के बगैर कर सकते हैं। पानी और फिल्म का कितना गहन रिश्ता है कि राजकपूर ने अपनी एक फिल्म का टाइटल ही ‘बरसात’ रखा।
हृषिकेश मुखर्जी की फिल्म ‘आनंद’ के लिये लिखा जाने-माने गीतकार योगेश का गीत- ‘जिन्दगी कैसी है पहेली हाय, कभी ये हँसाए, कभी ये रुलाए...।’ फिल्माने का सवाल आया, तो फिल्मकार ने सीधे जुहू बीच का चुनाव किया। हृषि दा समंदर की ताकत को जानते थे। वे गुणी फिल्मकार थे।
आज भी जब यह गीत बजता है, तो दर्शकों के जेहन में फिल्म का वह दृश्य उभरने लगता है जहाँ राजेश खन्ना हाथों में बैलून लिये समंदर के किनारे गाते हुआ चलते चला जाता है।
शायद जिन्दगी की पहेली की दार्शनिकता को परिभाषित करते इस गीत को समंदर ने जैसे अमर कर दिया। इसी फिल्म का योगेश का ही लिखा एक और गीत है- ‘कहीं दूर जब दिन ढल जाए सांझ की दुल्हन बदन चुराए, चुपके से आए, मेरे खयालों के आँगन में कोई सपनों के दीप जलाए।’ में भी सूरज, समुद्र में डूबते हुए दिखाया गया है।
समुद्र में डूबता सूरज जैसे नायक की डूबती-उतराती जीवन नैया को जैसे एक उदासी का रंग दे रहा है। समुद्र में डूबता सूरज जैसे नायक की इस उदासी को और गहरा करता जा रहा है, तो यह है पानी की ताकत।
हिन्दी सिनेमा में पानी को केन्द्र में रखकर जीवन की दार्शनिकता को कहीं बहुत गहरे में व्यक्त करने की कोशिश हुई है। ‘अनोखी रात’ का इंदीवर का लिखा एक ऐसा ही अमर गीत है- ‘ओह रे ताल मिले नदी के जल में नदी मिले सागर में, सागर मिले कौन से जल में कोई जाने ना?’ इस गीत में न समंदर है न नदी, पर आपको इस पूरे गीत में पानी की ताकत का अहसास होता है। संजीव कुमार नई-नवेली एक दुल्हन फिल्म की नायिका जाहिदा को बैलगाड़ी में लेकर अपनी ही मस्ती में इस गीत को गाता चला जा रहा है।
मनोज कुमार निर्देशित ‘शोर’ फिल्म के लिये लिखे सन्तोष आनंद के इस गीत- ‘इक प्यार का नगमा है मौजों की रवानी है...’ में समुद्र और उसकी रेत एक अलग तरह का आकर्षण पैदा करते हैं। मनोज कुमार दृश्य को आकर्षक और ताकत देने में पानी की भूमिका को गहराई से जानते हैं। इसीलिये उन्होंने फिल्म ‘रोटी कपड़ा और मकान’ के इस गीत- ‘हाय-हाय ये मजबूरी ये मौसम और ये दूरी’ में कंट्रास्ट पैदा करने के लिये फिल्म की नायिका जीनत अमान को बारिश में भीगते हुए दिखाया है। बारिश का पानी जहाँ जीनत अमान की जवानी की अपनी पेशकश-उल्लास-अगन और टीस को व्यक्त करने में एक अहम भूमिका निभा रहा है वहीं यह बेरोजगार नायक की मजबूरी और बेबसी को व्यक्त करने में एक ताकतवर तत्व की भूमिका निभा रहा है।
मशहूर फिल्मकार शक्ति सामंत ने अपनी फिल्मों में पानी को एक ताकतवर तत्व के रूप में व्यक्त किया है। फिल्मों के दृश्यों को सुन्दर बनाया है। ‘अनुराग’ फिल्म में मौसमी चटर्जी पर फिल्माया ‘सुन री पवन पवन पुरवैया…,’ हो या मौसमी और विनोद मेहरा पर फिल्माया- ‘वो क्या है एक मन्दिर है उस मन्दिर में एक मूरत है वो मूरत कैसी होती है…?’ ये समंदर के किनारे फिल्माए गए हैं। इन गीतों और दृश्यों की अमरता में समुद्र एक बड़ी ताकत के रूप में सामने आता है।
समुद्र में आती-जाती लहरें बरबस दर्शक को उस भावलोक में ले जाती हैं जहाँ पानी एक ताकत के रूप में नजर आता है।
शक्ति दा की ही फिल्म ‘अमानुष’ का स्टीमर में समंदर में फिल्माया वह गीत याद करिए जो उत्तम कुमार पर फिल्माया गया है। उत्तम कुमार पर फिल्माए किशोर कुमार के गाए इस गीत- ‘दिल ऐसा किसी ने मेरा तोड़ा बर्बादी की तरफ ऐसा मोड़ा एक भले मानुष को अमानुष बनाकर छोड़ा...’ में जैसे नायक की गहरी उदासी का समंदर से ऐसा मेल है कि लगता है यह गीत समंदर के अलावा कहीं और नहीं हो सकता था। उनकी ‘अजनबी’ फिल्म में भी राजेश खन्ना और जीनत अमान पर ट्रेन की छत पर भूसे के ढेर में फिल्माए गए इस युगल गीत- ‘भीगी-भीगी रातों में ऐसी बरसातों में कैसा लगता है…?’ में भी बारिश का पानी जैसे एक अहम तत्व है। बारिश का पानी जैसे एक रोमांटिसिज्म क्रिएट कर रहा है।
भला नवकेतन की फिल्म ‘टैक्सी ड्राइवर’ में सदाबहार अभिनेता देव आनंद पर फिल्माया यह दर्द भरा गीत- ‘जाएँ तो जाएँ कहाँ समझेगा कौन यहाँ दर्द भरे दिल की जुबां’ में नायक की गहरी उदासी जैसे समंदर की आती-जाती लहरों में घुल-सी गई है। नायक को उदासी व्यक्त करने के लिये समंदर का किनारा सबसे उपयुक्त जगह लग रहा है। समंदर के किनारे जहाँ वह अपनी उदासी व्यक्त कर रहा है, तो वहीं से वह एक नई ताकत से उत्प्रेरित होकर बाहर निकल रहा है। समुद्र एक उदास नायक का सहारा बनता है तो उसे एक नई ताकत भी देता है। हृषिकेश मुखर्जी की फिल्म ‘प्रेम पुजारी’ में साधना और देव आनंद पर फिल्माए इस डूएट- ‘तुझे जीवन की डोर से बाँध लिया है तेरे सदके सनम...।’ में दरिया का सौंदर्य अलग रंग भरता है।
(लेखक हिन्दुस्तान से जुड़े हैं)