बिना पुर्नवास डूब से टकराने का संकल्प

Submitted by Hindi on Mon, 09/21/2015 - 16:49

सरदार सरोवर की असलियत का खुलासा करते हुए, नर्मदा किनारे सत्याग्रह 12 अगस्त से, बड़वानी जिले के राजघाट (बापू की समाधि) पर जारी है, उससे एक नए टकराव की (शासन और व्यवस्था के साथ) शुरुआत हो चुकी है। यूँ तो सरदार सरोवर के प्रभावित पहाड़ी क्षेत्र में 1991 से लेकर 2002 तक हर साल बारिश में चला जलसत्याग्रह और उसके बाद नर्मदा घाटी के अन्य बाँधों पर भी, उसे लोगों ने अपनाया।

इस साल से मध्य प्रदेश के मैदानी निमाड़ क्षेत्र में शुरू हुए सत्याग्रह के तहत उन हजारों लोगों ने भागीदारी अदा की जो रोज हर तहसील के एक गाँव से आकर सम्मिलित हुए और पिछले 1 महीनों में दो बार बड़ी तादाद में एकत्रित होकर गैरकानूनी रूप से थोपी जा रही ‘बिना पुनर्वास डूब’, से टकराने का और न हटने का संकल्प जाहिर कर चुके हैं। महिलाओं की अधिक तादाद में सहभागिता के साथ, इस आन्दोलन के 30 साल पूर्ति के बाद के दौर में किसान, मजदूर, मछुवारों, कुम्हारों के तमाम अधिकारों का आग्रह है ही लेकिन साथ-साथ मध्य प्रदेश शासन, नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण तथा नर्मदा नियन्त्रण प्राधिकरण के झूठे दावे, शपथ पत्र और भ्रष्टाचार की पोलखोल का भी सत्याग्रह समाया हुआ है।

प्रधानमन्त्री के ही नेतृत्व में, मध्य प्रदेश के तीन निर्णयकर्ता मन्त्रियों को दरकिनार करते हुए या उन्हें झुकाते हुए लिया गया निर्णय मध्य प्रदेश के अहित में एवं भ्रष्टाचार के पक्ष में (बाँध की ऊँचाई 17 मीटर, 122 मीटर से 139 मीटर तक बढ़ाकर गेट्स लगाने का, लेकिन खुले रखने का निर्णय) होने की बात भी साबित कर रहे हैं सत्याग्रही।

इस प्रक्रिया में मध्य प्रदेश शासन और उन्हीं के रिपोर्ट्स के आधार पर नर्मदा नियन्त्रण प्राधिकरण ने पिछले कई साल ‘0 बैलेंस’ की जो बात शपथपत्रों के द्वारा अदालत में भी कही, उसका तो पर्दाफाश हो चुका है। नर्मदा नियन्त्रण प्राधिकरण के ही 2011 तक ‘0 बैलेंस’ बता रहे वार्षिक आह्वान, किन्तु 2012 से 2014 तक के अह्वानों में अचानक तलटीप में दिखाई दिया आँकड़ा, 2143 परिवारों को ‘जमीन देना बाकी’ बताता हुआ। इसमें 686 फर्जी रजिस्ट्रियों में फँसे प्रभावित परिवार और 1487 परिवार जिन्हें स्पेशल रिहेब पैकेज (विशेष पुनर्वास अनुदान, जमीन के बदले नगद) की एक ही किश्त मिली है, जिससे वो जमीन नहीं खरीद पाए हैं, ऐसे परिवारों का समावेश किया गया है। प्रत्यक्ष में 686 से फर्जी रजिस्ट्रियाँ और फँसे परिवारों की संख्या कितनी अधिक है और उनकी अन्तिम निश्चित संख्या उच्च न्यायालय से नियुक्त जस्टिस झा आयोग की 6 सालों से चल रही जाँच की रिपोर्ट पेश होने पर ही पता चलेगी। यह संख्या 2000 से निश्चित ही अधिक निकलने की सम्भावना है और तब जमीन की पात्रता वाले परिवारों की संख्या कम से कम [2000 + 1500 + 400 (नगद न लेते हुए जमीन के बदले जमीन का ही हक मांगने वाले)] 3900 परिवार तो जरुर साबित होंगे। ये फिर ‘0 बैलेंस’ कैसे?

इसके आगे चलकर भूमिहीनों को आजीविका का वादा नहीं, नीतिगत प्रावधान, सर्वोच्च अदालत में 2000 के पहले ही पेश करने के बावजूद करीबन 7000 भूमिहीनों को अनुदान दिया गया, उसमें भी फर्जीवाड़ा के कारण केवल झूठे कागजात लगाकर ‘आजीविका प्राप्त हो गई’ यह दावा किया है नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण ने, जब कि सच्चाई यह है कि वे करीबन सभी बिना वैकल्पिक आजीविका के विस्थापित हुए हैं या होने जा रहे हैं। क्या यह ‘0 बैलेंस’ बताता है? कुल मिलाकर तीन राज्य और 6 जिलों में फैला 214 किलोमीटर तक का जलाशय / डूबक्षेत्र आज भी 40000 से अधिक परिवारों के आबादी के साथ हरा-भरा, भरा-पूरा, सैकड़ो मंदिर, मस्जिद, शाला, पंचायतें, दुकानों के साथ जिंदा है, जिसे मौत के कगार पर पहुँचा रही है सरकार। सरदार सरोवर के बैक वाटर लेवल का खेल 2008 से शुरू हुआ जब कि 30 साल पहले केन्द्रीय जल आयोग ने घोषित की ले-वेल्स (तलांक) का पुनराकलन करने के लिए नर्मदा नियन्त्रण प्राधिकरण ने उपसमिति बनायी। ट्रिब्यूनल के फैसलों में दिए निर्देश और आधार भी बाजू में रखते हुए, इस उपसमिति की रिपोर्ट ने अलग मॉडल (MIKE) इस्तेमाल करके, पानी की मात्रा में बदलाव और इन्दिरा सागर से पानी छोड़ने की मात्रा में फर्क करते हुए बैक वाटर लेवल (BWL) कई गाँवों में कम आँका और प्रथम 5500 मकानों और अभी सर्वोच्च अदालत में डाले गए शपथपत्र के अनुसार 16000 परिवारों को डूब से बाहर जाहिर किया। इन परिवारों में धरमपुरी शहर के करीबन 1300 परिवार और नगर जैसा गाँव खलघाट, ग्राम समेल्दा (मनावर), ग्राम भवरिया (कुक्षी) आदि विविध तहसीलों के गाँव के परिवार सम्मिलित हैं, जिनमें से कईओं को पुनर्वास के आधे अधूरे लाभ देकर अब छोड़ दिया गया है, खुदही के भरोसे न ट्रिब्यूनल के प्रावधान बदले हैं, नहिं बाँध की ऊँचाई, नहिं ऊपर के बाँधों के कोई पहलू, इसलिए यह बदलाव गैरकानूनी है, यह आन्दोलन का दावा पहले से ही रहा है।

2009 में केन्द्रीय पर्यावरण मन्त्रालय की विशेषज्ञ समिति को इसकी जाँच सौंपने पर उस समिति ने भी उपसमिति को रिपोर्ट व कम आँके गए बैक वाटर लेवल को अवैज्ञानिक और गलत साबित करके सिफारिश की, ट्रिब्यूनल के फैसले का पूरा पालन हो और मैदानी जाँच हो। लेकिन आजतक कोई मैदानी जाँच न होते हुए, नर्मदा में पानी लाने वाली कई उपनदियों की जाँच न होते हुए, मध्य प्रदेश शासन और नर्मदा नियन्त्रण प्राधिकरण ने आपसी समझौते से हजारों परिवारों के जिन्दगी के साथ खिलवाड़ किया, उन्हें वंचित करके, उसके साथ भ्रष्टाचार बढ़ाते हुए भी, जारी रखा है। गुजरात, महाराष्ट्र एवं केन्द्रीय जल आयोग की सहमति भी कागज पर बताकर, इसी के आधार पर बाँध आगे बढाने का निर्णय (110 से 122 मीटर तक) 2006 में और (122 मीटर से 139 मीटर तक) 2014 में गुजरात और केन्द्र मिलकर ही लिया है। मध्य प्रदेश के हितों की, विस्थापितों के हकों की ना नुमाइंदिगी हुई, नहिं मध्य प्रदेश ने असहमति दर्शाई। संख्या कम बताकर ‘पुनर्वास पूरा’ होने के झूठ का सहारा लिया।

लेकिन अब एक विशेष चौकानेवाली हकीकत व तथ्य सामने आया है। जबकि मध्य प्रदेश ने BWL बदलकर हजारों परिवारों को डूब से बाहर किया, शिकायत निवारण प्राधिकरण सहित सभी ने उनकी सुनवाई भी समाप्त कर दी। गुजरात के वेबसाइट पर किन्तु अलग ही आँकड़े हैं। सरदार सरोवर (नर्मदा) निगम की वेबसाइट पर 122 मीटर बाँध की ऊँचाई पर बाँध स्थल पर 134.32 मीटर की लेवल और गाँव-गाँव में बाढ़ की स्थिति में BWL जो बताई है, वह मैदानी स्थिति के आधार पर सही दिखाई देती है और CWC ने 30 साल पहले लगायी लेवल से मिलती जुलती या कहीं उससे भी ऊँची है। मनावर और धरमपुरी तहसील के कुछ गाँवों की हकीकत और आँकड़ों से यह बात साबित हुई है। खलघाट, मुम्बई आगरा रोड पर जो पूर्ण बाँध के बनते हुए भी 150+ मीटर होगी, यह उपसमिति की रिपोर्ट में दिए इंटरपोलेटेड BWL से दिखाई देता है 144.7 मीटर, लेकिन प्रत्यक्ष में 2013 में 122 मीटर बाँध निर्माण होने पर भी पानी ने वह लेवल पार की जो पूर्ण ऊँचाई पर होनी थी। गुजरात में आपदा प्रबंधन रिपोर्ट के अनुसार भी खलघाट की लेवल 149 मीटर नहीं है। जाहिर है, मध्य प्रदेश को संख्या के खेल-खेल में और यहाँ के 16000 परिवारों के जिन्दगी से खिलवाड़ में एक ओर सहयोग देते हुए गुजरात, दूसरी ओर अपनी साख बचाने में लगा हुआ है। यह बहुत बड़ा घोटाला सर्वोच्च अदालत के सामने भी न लाते हुए, शासकों ने झूठे शपथपत्र पेश करना जारी रखा हुआ है।

आन्दोलनका​रियों का मानना है कि इस स्थिति में नर्मदा के सत्याग्रहियों का बस मानना है कि शपथपत्र बनाना तो सही है पर नर्मदा को पूजनीय मानते हैं और घाटी के जन-जन का आदर करते हैं तो इन दोनों ने लाखों लोगों की जिन्दगी से जुड़े इस मामले की जाँच स्वयं करनी चाहिए। वे हेलीकॉप्टर के बदले धरती पर उतरकर घाटी में पहुँचे और दोनों पक्षों के प्रतिनिधियों के साथ दो/चार गाँवों की तो स्थिति का जायजा लेकर बतायें, क्या उनकी सरकार के शपथपत्र सच हैं या झूठ? चुनावी साझा मंच से तो अन्य वायदे, किसानों को आश्वासनों के साथ नर्मदा सरदार सरोवर बाबत भी झूठे दावे किये थे, मोदी जी ने, जैसे कि मध्य प्रदेश को 800 करोड़ की मुफ्त बिजली इस परियोजना से दिलवाने की बात! लेकिन अब तो ‘अच्छे दिनों’ का इंतजार किसी को न होते हुए, इन्हें धरातल की बात जानकर व मानकर ही किसानों – मजदूरों से रिश्ता बनाना होगा। नहीं तो मध्य प्रदेश के क्या, बिहार के भी किसान सचेत होंगे, नहीं मानेंगे, झूठे प्रचारी दावे।