
देश की नदियों को जोड़ने की योजना केवल देश को तोड़ने की योजना भर है। अगर देश के लिए कुछ करना है तो देश के प्रधानमंत्री को नदियों को पुनर्जीवित करना चाहिए। वहीं इसी देश में नदियों को लेकर विवाद भी होते रहे हैं। गंगा की सफाई को लेकर जिस तरीके से मुद्दा बनाया गया, वह शायद डूबता दिखाई देने लगा है।
नई सरकार बनने के बाद देश में एक नई उम्मीद जगी थी। लेकिन सरकार बनने के बाद राष्ट्रीय गंगा बेसिन अथॉरिटी की बैठक तक नहीं हो पाई है। देश के कई क्षेत्रों का जल स्तर तेजी से गिरता जा रहा है। सतही जल प्रदूषित है। देश बाढ़ व सूखे से जूझ रहा है। प्रदूषित पानी से बीमारियां दिन-पर-दिन फैल रही हैं। ऐसे में हम सब को कुछ सोचना होगा और बूंद-बूंद पानी को उपयोगी समझकर बचाना होगा।
अगर हम बूंद- बूंद पानी को बर्बाद करते रहे तो शायद भविष्य में पेयजल के संकट से भी जूझना पड़ेगा। वहीं देश की हर नदी पर करोड़ों की जनसंख्या निर्भर है। लेकिन फिर भी देश के हजारों गांव आज भी पेयजल की समस्या से जूझ रहे हैं।
भारत में कई ऐसे भी गांव हैं जहां लोगों को पीने का पानी लाने के लिए कई किलो मीटर तक का सफर करना पड़ता है। जहां देश के कई मेट्रो शहरों में जमकर पानी बर्बाद होता है, वहीं देश के गांवों के लोगों को पीने के पानी के लिए जूझना भी पड़ता है।
कई क्षेत्रों में लगातार गिरते पानी के स्तर से ग्रामीणों पर पेयजल का संकट आ गया। ग्रामीण किसी तरह पीने का पानी ला रहा है। देश के कई मंत्री लोगों को आश्वासन तो दे चुके हैं, लेकिन जमीनी स्तर अभी तक पानी को लेकर बुरा हाल बना हुआ है।