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अब भागलपुर प्यासा नहीं है, उसको अपने भगीरथ मिल गए हैं, बूढ़ी महिलाओं को पानी के लिए लम्बी दूरी तय नहीं करनी पड़ती, और न ही गरीब दिहाड़ी मजदूरों को काम पर जाने के बजाय दिन भर पानी ढोना पड़ता है। एक ऐसे प्रदेश में जहां लोग बाढ़ से मरते हैं या फिर प्यास से, राजेश श्रीवास्तव के एकल प्रयास ने एक पूरे क्षेत्र की तस्वीर बदल कर रख दी है, आज उनकी संस्था 'सांई सेवा संस्थान' का मिनरल वाटर संयंत्र से शोधित पानी भागलपुर शहर और उसके आस-पास के ग्रामीण इलाकों की तस्वीर बदल रहा है।
एक सफल शिक्षाविद राजेश श्रीवास्तव की आँखें बरबस ही डबडबा उठीं, उन्हें वो दिन याद है, जब उन्होंने शहर के एक इलाके में गन्दगी से बजबजा रहे नाले से जा रहे फटे पाइप के पानी पर महिलाओं की लम्बी भींड़ देखी, वे कहते हैं मुझे मेरी माँ का वो चेहरा याद आ गया, जब वो हमारे प्यास बुझाने के लिए खुद तमाम दुश्वारियों को झेलती थी। राजेश कहते हैं वो नजारा देखने के बाद मैंने तुरंत फैसला लिया कि अपने शहर को अब प्यास से मुक्त करूँगा, और हमने अपने विद्यालय के कैम्पस में ही कनाडा से 32 लाख रु. की मशीन आयात करके स्थापित करा दी। आज इस संयंत्र से पानी की सप्लाई 'साई सेवा संस्थान' के टैंकरों के माध्यम से ही दूर दराज के इलाकों तक होने लगी है।
राजेश के ये प्रयास उस वक़्त शुरू हुए जब बिहार के पब्लिक हेल्थ इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट को भागलपुर शहर में पानी की समस्या दूर करने के लिए भारी मुश्किलों का सामना कर पड़ रहा था, शहर के लगभग तीन चौथाई हिस्से में आज भी सरकारी नल का पानी नहीं पहुंचता है।
बिहार भूगर्भीय जल निदेशालय ने माना है कि भागलपुर शहर में भूगर्भ जल पिछले एक दशक में ३५-५० फिट नीचे चला गया है, ऐसे में परंपरागत जल स्रोतों के सूख जाने का खतरा है। कई इलाकों में २५० से ३०० फिट बोरिंग करायी गयी परन्तु ये भी बहुत उपयोगी नहीं साबित हुए। स्थिति का अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि डिपार्टमेंट ने भागलपुर शहर में जलापूर्ति की व्यवस्था के लिए सिंगापूर के पब्लिक यूटिलिटी बोर्ड के विशेषज्ञों की सेवाएं भी लीं, मगर तस्वीर ज्यूँ की त्यूँ रही।
अपने सामाजिक दायित्वों के लिए किसी भी प्रकार कि सरकारी या गैर सरकारी मदद लेने से साफ़ इंकार करते हुए राजेश अपने आगामी कार्यक्रमों के बारे में कहते हैं कि हमारी संस्था बिहार के सर्वाधिक जल संकट से जूझ रहे क्षेत्रों को चिन्हित कर रही है, हम संस्थान के माध्यम से चिन्हित क्षेत्रों में स्वच्छ पेयजल की आपूर्ति की व्यवस्था करेंगे। वो कहते हैं जलदान से बड़ा कोई दान नहीं है।
एक सफल शिक्षाविद राजेश श्रीवास्तव की आँखें बरबस ही डबडबा उठीं, उन्हें वो दिन याद है, जब उन्होंने शहर के एक इलाके में गन्दगी से बजबजा रहे नाले से जा रहे फटे पाइप के पानी पर महिलाओं की लम्बी भींड़ देखी, वे कहते हैं मुझे मेरी माँ का वो चेहरा याद आ गया, जब वो हमारे प्यास बुझाने के लिए खुद तमाम दुश्वारियों को झेलती थी। राजेश कहते हैं वो नजारा देखने के बाद मैंने तुरंत फैसला लिया कि अपने शहर को अब प्यास से मुक्त करूँगा, और हमने अपने विद्यालय के कैम्पस में ही कनाडा से 32 लाख रु. की मशीन आयात करके स्थापित करा दी। आज इस संयंत्र से पानी की सप्लाई 'साई सेवा संस्थान' के टैंकरों के माध्यम से ही दूर दराज के इलाकों तक होने लगी है।
राजेश के ये प्रयास उस वक़्त शुरू हुए जब बिहार के पब्लिक हेल्थ इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट को भागलपुर शहर में पानी की समस्या दूर करने के लिए भारी मुश्किलों का सामना कर पड़ रहा था, शहर के लगभग तीन चौथाई हिस्से में आज भी सरकारी नल का पानी नहीं पहुंचता है।
बिहार भूगर्भीय जल निदेशालय ने माना है कि भागलपुर शहर में भूगर्भ जल पिछले एक दशक में ३५-५० फिट नीचे चला गया है, ऐसे में परंपरागत जल स्रोतों के सूख जाने का खतरा है। कई इलाकों में २५० से ३०० फिट बोरिंग करायी गयी परन्तु ये भी बहुत उपयोगी नहीं साबित हुए। स्थिति का अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि डिपार्टमेंट ने भागलपुर शहर में जलापूर्ति की व्यवस्था के लिए सिंगापूर के पब्लिक यूटिलिटी बोर्ड के विशेषज्ञों की सेवाएं भी लीं, मगर तस्वीर ज्यूँ की त्यूँ रही।
अपने सामाजिक दायित्वों के लिए किसी भी प्रकार कि सरकारी या गैर सरकारी मदद लेने से साफ़ इंकार करते हुए राजेश अपने आगामी कार्यक्रमों के बारे में कहते हैं कि हमारी संस्था बिहार के सर्वाधिक जल संकट से जूझ रहे क्षेत्रों को चिन्हित कर रही है, हम संस्थान के माध्यम से चिन्हित क्षेत्रों में स्वच्छ पेयजल की आपूर्ति की व्यवस्था करेंगे। वो कहते हैं जलदान से बड़ा कोई दान नहीं है।