भारतीय किसानों को मिलने वाली सब्सिडी कृषि के वार्षिक बजट बनाते वक्त किसानों के खर्च का अब अभिन्न हिस्सा बन गया है। वैसे यह बात सिर्फ भारतीय किसानों पर लागू नहीं होती।
दुनिया में अधिकांश देशों में कृषि सब्सिडी स्थानीय खेती के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। भारत में भी सरकार कृषि से जुड़े विभिन्न मदों में कृषि सब्सिडी के नाम पर हजारों करोड़ रुपए खर्च करती है। भारत में कृषि योग्य 169700 हजार हेक्टेयर भूमि है।
कुछ किसान नेता और खेती से जुड़े विशेषज्ञ समय-समय पर यह सवाल जरूर पूछते हैं कि सब्सिडी के लिये दिया जा रहा पैसा क्या किसानों के पास पहुँच रहा है? यदि यह पैसा किसानों के पास दशकों से पहुँच रहा है, फिर भारत में लाखों किसानों को आत्महत्या क्यों करनी पड़ी?
यदि सब्सिडी का पैसा सही इस्तेमाल हो रहा होता तो खेती और किसानी की ऐसी दशा क्यों होती जो निराशाजनक ही नहीं चिन्तनीय भी है।
यह सच है कि कृषि क्षेत्र के विकास के लिये भारत की सरकार महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। सरकार के दिशा-निर्देशों को देखकर लगता है कि उसका उद्देश्य किसानों को आत्मनिर्भर बनाना है। इसलिये वह कृषि क्षेत्र में रोजगार शृजन और छोटे/मझोले किसानों को नई तकनीक उपलब्ध कराने में भी मदद करती है।
कृषि उत्पादों की कीमत पर नियंत्रण रखने का उद्देश्य किसानों की मदद करना ही है। कई बार जब किसी कृषि उत्पाद की कीमत बाजार में अचानक बहुत कम हो जाती है, ऐसे समय में सरकार बाजार मूल्य से अधिक कीमत देकर कृषि उत्पाद को खरीदने का भी कार्यक्रम चलाती है।
किसानों की आर्थिक स्थिति कैसे दुरुस्त हो और उनकी आय कैसे बढ़े इसे लेकर भी सरकार योजनाएँ बनाती हैं। कई बार सरकार किसानों की मदद नकद देकर करती है और कई बार सब्सिडी के तौर पर। किसानों को सब्सिडी उर्वरक, सिंचाई, डीजल आदि पर मिलती है।
पिछले कुछ समय से विशेषज्ञों और शोधार्थियों का ध्यान उर्वरक पर मिलने वाली सब्सिडी पर अधिक गया है। सरकार का सब्सिडी देने के पीछे उद्देश्य इतना भर है कि किसान अपने कृषि उत्पाद का वितरण सही प्रकार से कर सके और उत्पाद की कीमत भी नियंत्रित रहे।
सब्सिडी को आम आदमी द्वारा दिये जाने वाले कर (टैक्स) के विलोम के अर्थ में भी समझा जा सकता है। कर जहाँ आम आदमी सरकार को देता है, वहीं सब्सिडी सरकार किसानों को देती है। यदि बात यहाँ कृषि उत्पादों की हो तो भारत का स्थान दुनिया में दूसरा है।
देश के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी 16 फीसदी की है। इस क्षेत्र में देश के 52 फीसदी लोगों को रोजगार मिला हुआ है। पिछले सालों की तुलना में कृषि क्षेत्र की भागीदारी भारतीय सकल घरेलू उत्पाद में कम होने के बावजूद कृषि भारत का सबसे बड़ा उद्योग है।
भारत में पंजाब, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा, बिहार, आन्ध्र प्रदेश, महाराष्ट्र कृषि से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण राज्य है। कृषि सब्सिडी का लाभ किसानों को मिला है या नहीं, इसे लेकर एक लम्बी बहस है।
इस बहस का जिक्र यहाँ करने का अर्थ यह नहीं है कि उसे फिर से हम यहाँ शुरू करने वाले हैं बल्कि ऐसे किसी भी बहस में जाने से पहले हमें इस सम्बन्ध में हुए अध्ययनों पर एक नजर जरूर डालनी चाहिए। ‘एग्रीकल्चर सब्सिडी, बून एंड कर्स’ शीर्षक से तैयार अपने शोध पत्र में राजविन्द कौर और डॉ मनिषा शर्मा ने साबित किया है कि जिन क्षेत्रों में कृषि सब्सिडी अधिक दी गई है, वहाँ बेहतर परिणाम देखने को मिले हैं।
देश में सब्सिडी सबसे पहले उर्वरक, सिंचाई और गाँव की बिजली के लिये शुरू किया गया था। इसी सब्सिडी की देन थी कि किसानों ने सिंचाई के लिये खेतों में पम्प लगाए। 1960 में आई हरित क्रान्ति में सब्सिडी ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। सब्सिडी की देन थी कि 1967 के बाद देश में धान और गेहूँ दो महत्त्वपूर्ण फसल बने।
कृृषि सब्सिडी की बात जब भी होती है तो बात बिजली, पानी, उर्वरक तक सीमित होकर रह जाती। एक सब्सिडी और है, जो अमूर्त है। वह दिखाई नहीं पड़ती, इसलिये उसकी चर्चा नहीं होती। हम बात कर रहे हैं कि कृषि से होने वाली आमदनी को कर में छूट दिये जाने की।
बहरहाल देश के अलग-अलग हिस्सों से किसानों की आत्महत्या की खबर जिस तरह आ रही है। किसान परिवारों में कुपोषण और भूखमरी की स्थिति की खबर आ रही है।
जब सरकार सब्सिडी देने में इतनी उदार है फिर इस तरह की घटनाएँ हमें सोचने पर मजबूर करती हैं कि सब्सिडी के वितरण में कुछ कमी है। ऐसे में कोई भी सोचने समझने वाला व्यक्ति कृषि सब्सिडी की समीक्षा की पैरवी करेगा। एक तरफ तमाम अध्ययन कृषि सब्सिडी की पैरवी करते हैं और दूसरी तरफ किसानों की आत्महत्या की खबर है। इससे इतना तो स्पष्ट है कि कमी सब्सिडी में नहीं बल्कि किसानों के बीच सब्सिडी वितरण की प्रक्रिया में है।
इस बात पर देश के बुद्धिजीवियों का एक बड़ा वर्ग सहमत है कि कृषि सब्सिडी का पैसा किसानों तक पहुँचना चाहिए लेकिन इसे पहुँचाने की प्रक्रिया क्या हो, इस पर विचार करने का यह सही समय है।
कृषि सब्सिडी से जुड़ी चुनौतियाँ
1. पिछला साल बेमौसम बारिश से शुरू हुआ। जिसकी वजह से 1.8 करोड़ हेक्टेयर भूमि में खड़ी फसल बर्बाद हुई। जो रबी की पूरी फसल का 30 फीसदी हिस्सा था।
2. देश में सिचाई, पानी, उर्वरक, बीज के नाम पर सरकार जो इतनी सारी सब्सिडी दे रही है, उसके बाद भी किसान आत्महत्या रुकने का नाम नहीं ले रहा। लम्बे समय तक विदर्भ और पिछले कुछ समय से बुन्देलखण्ड किसान आत्महत्या की वजह से चर्चा में है। सरकार को अब इस बात पर जरूर चिन्तन करना चाहिए कि किसानों को दी जा रही सब्सिडी में कहाँ चुक हो रही है और किसानों को सब्सिडी के नाम पर दिया जा रहा पैसा कैसे उन तक बेहतर तरीके से पहुँचे?
3. खाद्य-असुरक्षा और भूख से मौत (जिसे सरकारी भाषा में कुपोषण से मौत लिखा जाता है) की घटनाओं के बाद भारत में कृषि सुधार की जरूरत है। यह सुधार सब्सिडी के वितरण को लेकर भी होना चाहिए। जिससे किसानों तक इसका लाभ पहुँचे। देश की एक प्रमुख उर्वरक कम्पनी के एक बड़े अधिकारी ने पिछले दिनों नाम ना लिखने की शर्त पर बताया कि सरकार सब्सिडी का पैसा किसानों को ही दे। उर्वरक कम्पनियों को सब्सिडी देने से कई बार कागज में उर्वरक किसानों तक तो पहुँचता है लेकिन वास्तविकता में यह सिर्फ कागजी कार्रवाई ही होती है।