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यथावत, 1-15 मई 2015
मौसम की मार से आहत होकर बाराबंकी के ककरी गाँव निवासी रामगुलाम ने मार्च के अन्तिम सप्ताह में ट्रेन के सामने कटकर जान दे दी। उनके परिवार को सरकार से कोई मदद नहीं मिली। रामगुलाम के 80 वर्षीय पिता जंगी ने बताया कि इस साल करीब तेरह बिसवा गेहूँ बोया था। सब बर्बाद हो गया। बेटा सदमा नहीं सह सका तो ट्रेन से कटकर जान दे दी। अब रामगुलाम के वृद्ध पिता के हाथ में राहत के नाम पर जिलाधिकारी द्वारा सौंपा गया राष्ट्रीय पारिवारिक लाभ योजना का एक स्वीकृति पत्र है। जिसमें तीस हजार रुपए उसके खाते में भेजने की बात कही गई है। यह पैसा आज तक उनके खाते में नहीं आया है। मुख्यमंत्री राहत कोष से 5 लाख रुपए मिलने का भी कुछ अता-पता नहीं। जंगी का परिवार वर्ष 2002 में गरीबी रेखा के नीचे (बीपीएल) वाली सूची में दर्ज हुआ लेकिन न तो उसका कार्ड बना न ही अब तक कोई पेंशन मिली।
बेमौसम बारिश और ओले से खराब हुई फसल को देखकर छेदाबाजार पुरवा (फतेहपुर) निवासी मैकूलाल चल बसे। मीडिया में खबर आई तो अगले दिन लेखपाल से लेकर उप जिलाधिकारी तक पहुँच गए। 7 लाख रुपए की मदद का आश्वासन भी दिया। पर 11 दिन बाद भी परिवार को एक पैसे की राहत नहीं मिली। इस परिवार के पास भी डेढ़ बीघा जमीन है। 18-19 मार्च को हुई बारिश के बाद पूरी फसल गिर गई। लोगों ने ढांढस बंधाया कि दो चार दिन में फसल सीधी हो जाएगी। प्रधान और गाँव के दूसरे प्रमुख लोगों से नुकसान की भरपाई की गुहार लगाई, लेकिन कहीं से भी सन्तोषजनक जवाब नहीं मिला। इस बीच फसल खड़ी नहीं हुई तो 25 मार्च को खेत से लौटते वक्त सदमे से उनकी मौत हो गई। गाँव के ही बुजुर्ग लुटई राम कहते हैं कि मैकूलाल बड़ा हिम्मत वाला आदमी था। पर इस बार नुकसान ही इतना ज्यादा हुआ है कि अच्छे-अच्छों की बर्दाश्त से बाहर है। ऊपर से सरकारी मुलाजिमों की उपेक्षा उन्हें और ज्यादा गमजदा कर रही है। मैकूलाल के बेटे धनीराम ने बताया कि उससे तो तहसील वालों ने अभी तक कोई फॉर्म ही नहीं भरवाया है। घर आये अधिकारियों ने कहा था कि फसल बीमा योजना और राष्ट्रीय पारिवारिक लाभ योजना के तहत मुआवजा जल्द ही दिलवा दिये जाएँगे। घर में जो रुपए थे, वह पिताजी के अन्तिम संस्कार में खर्च हो गए। अब इधर-उधर से उधार लेकर काम चला रहे हैं।
खेत में खड़ी गेहूँ के फसल की बर्बादी सहन न कर पाने से फतेहपुर के लालापुर गाँव के किसान बुद्धा जाटव की भी 22 मार्च को सदमें से मौत हो गई। उसी खेत में, जिससे उन्होंने उम्मीदें पाल रखी थीं। परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। दो जून की रोटी जुटाना भी मुश्किल हो रहा है। लेकिन शासन-प्रशासन की ओर से इस पीड़ित परिवार को भी अभी तक कोई मदद नहीं मिली है। बुद्धा के बेटे सन्तराम ने बताया कि उनका एक भाई मन्दबुद्धि के साथ-साथ विकलांग भी है। बाकी के दो भाइयों का परिवार भी इसी जमीन पर निर्भर था। जो थोड़े बहुत रुपए थे, पिता के अन्तिम संस्कार में खर्च हो गए। अब तो गाँव में उधार भी नहीं मिल पा रहा है। नुकसान तो औरों का भी हुआ है। सरकारी मदद की बात पर सन्तराम गुस्से से भर उठा। बोले ‘पिता की मौत के अगले दिन चारों भाइयों को तहसील बुलाया था। चार घंटे बिठाए रखा। कुछ कागजों पर अंगूठे लगवाकर लौटा दिया। इतनी मदद देने की भी नहीं सोची कि अन्तिम संस्कार ही ठीक से कर पाते।’
मऊ जिले में सियरही गाँव में 60 वर्षीय किसान सत्यानन्द राय ने करीब सात बीघा गेहूँ की फस कंबाइन मशीन से कटवाई। उपज मात्र एक ट्राली ही निकली। जबकि इसी खेत से हर साल सात ट्राली या इससे अधिक अनाज पैदा होता था। मौसम की मार से बर्बाद खेती की उपज का यह हाल देख उन्हें ऐसा सदमा लगा कि सीने में भीषण दर्द उठा और वह खेत में ही बेहोश हो गए। परिजन आनन-फानन में उन्हें जिला मुख्यालय स्थित एक निजी चिकित्सालय के लिये लेकर चले, लेकिन रास्ते में ही उन्होंने दम तोड़ दिया। जिले के ही पिपरीडीह गाँव में 58 वर्षीय देवनाथ के पास महज दो बीघा खेत था। उसमें उन्होंने गेहूँ की फसल बो रखी थी। कुछ दिनों पहले वह मुम्बई चले गए थे। आठ अप्रैल को वहाँ से लौटने के बाद बारिश और ओले से फसल बर्बाद होने का पता चला। अगले दिन वह खेत देखने गए तो वहाँ के हालात देखकर उनकी तबीयत बिगड़ गई। फसल के गम में खाना-पीना छोड़ दिया। 11 अप्रैल की सुबह हंसिया लेकर फसल काटने चले तो खेत में पहुँचते ही उन्हें ऐसा सदमा लगा कि वहीं गिरकर दम तोड़ दिया।
आपदा के बाद राहत वितरण का सरकारी तन्त्र किसानों के लिये और मुसीबत पैदा करता है। व्यवस्था है कि आपदा के तत्काल बाद जिलाधिकारी लेखपालों के जरिए नुकसान का आकलन करा कर सरकार को बताएँगे। सरकार उन्हें मदद के लिये बजट देगी। इसी रिपोर्ट के मुताबिक किसानों को मदद दी जाती है। पर असली परेशानी सर्वे में ही शुरू हो जाती है। किसानों की शिकायत यही है कि उनके नुकसान का सर्वे करने कोई आ ही नहीं रहा है। घर बैठे रिपोर्ट तैयार हो रही है। पूछताछ में लेखपाल बताते हैं कि इलाके के नुकसान के आधार पर रिपोर्ट भेज दी है।
विधानसभा में विपक्ष लेखपाल सर्वे की विश्वसनीयता पर खुलकर सवाल खड़े कर चुका है।
किसानों की आत्महत्या चूँकि सत्ताधारी दल की बदनामी की वजह बनती है। आत्महत्या साबित होने पर जिम्मेदारों को जेल तक हो सकती है। लिहाजा सरकार ने एक शासनादेश जारी कर किसान की आत्महत्या या भूख से मौतों की जिम्मेदारी सीधे जिलाधिकारी पर डाल दी। यह शासनादेश इस उम्मीद से जारी हुआ था कि जिलाधिकारी इतने संवेदनशील हों जाएँगे कि ऐसी नौबत ही न आये। पर इसका विपरीत असर हुआ। जिलाधिकारियों के स्तर से आत्महत्या, फसलों की बर्बादी और भूख से मौतों को झुठलाने के लिये तरह-तरह के कारण गिनाए जाने लगे। मसलन, आत्महत्या वाले दिन किसान के घर खाना बना था। आटा और चावल भी था। परिवार में कमाई वाले सदस्य भी थे। खेती भी है और नुकसान इतना नहीं हुआ कि उससे किसान मौत को गले लगा ले। कई मामलों में तो आत्महत्या का कारण पारिवारिक कलह भी लिख दिया गया।
सरकारी तंत्र मुआवजे के नाम पर किसानों के साथ कैसा मजाक करता है, इसका उदाहरण फैजाबाद जिले के रूदौली तहसील के वाजिदपुर गाँव में दिखाई पड़ा। यहाँ तो कब्रिस्तान के गाटे को भी खेत दिखाकर 100-100 रुपए के 8 चेक बना दिये गए। खुद प्रधान के घर के दो सदस्यों का पूर्व में ही हो चुकी मौत के बाद भी सौ-सौ रुपए के चेक थमा दिये गए। बेमौसम बारिश और ओलों से बर्बाद हुई फसल के मुआवजे पर किसान सवाल कर रहा है- जिस फसल को उसने खून पसीने से सींचा, उसकी कीमत सरकार ने महज इतनी ही लगाई? टेलीविजन पर तो केन्द्र सरकार राहत के पैमानों को बदलकर और बढ़ी मुआवजा राशि पर वाहवाही लूट रही है। राज्य सरकार भी दोगुने मुआवजे का ऐलान कर अपनी पीठ थपथपा रही है। पर हकीकत तब सामने आती है जब 57, 73, 87, 95 रुपये के चेक थमाए जाते हैं।
वाजिदपुर के मो. साबिर करीब 5 बीघा के किसान है। उसी हाथ में ओलावृष्टि से तहाब हुई गेहूँ की फसल के एवज में सरकार से मिला 100 रुपए का चेक। साबिर डायरी निकालते हैं। इसमें खेती का खर्चा दर्ज है। 45 रुपए किलो की दर से एक क्विंटल 5 किलो बीज 4725 रुपए में, एक बोरी डीएपी 1125 रुपए, चार बोरी यूरिया 350 रुपए की दर से 1400 रुपए, जुताई का खर्च 2360 रुपए। साबिर बोले ... ‘साहब... झूठ नहीं बोलते... नहर से सिंचाई की, जो मुफ्त थी। लेकिन 500 रुपए कीटनाशक दवा के मिलाकर सब खर्च हुआ 10 हजार 110 रुपए। अब सरकार से जो राहत मिली है, उसमें तो बाल-बच्चों के लिये एक दिन का दूध भी नहीं खरीद सकते।’
बात वाजिदपुर के ही मोतीलाल की...। उनकी व्यथा सुनते ही इसी कीमत के कई और चेक सामने आ गए। ये थे श्यामलाल, राधेश्याम और शिवदर्शन...। एक ने कहा... आप ही ले जाइए... यह किसी काम का नहीं है। दो बीघा खेती में पाँच हजार लागत लगी, मिला 75 रुपए। अब तो इसे देखकर यही लगता है कि सरकार जले पर नमक छिड़क रही है। यही बात चार बीघा गेहूँ की बर्बादी के एवज में 100 रुपए का चेक दिखाते हुए मो. सगीर ने भी कही।
जब इस सरकारी कारनामें पर काफी हल्ला मचा तो 22 गाँवों में किसानों को गलत तीके से बाँटे गए चेक वापस ले लिये। एडीएम वित्त व राजस्व जयशंकर दुबे ने स्पष्ट कहा कि 7090 किसानों को बँटे 81.82 लाख रुपए के चेक दोबारा बाँटे जाएँगे। इसमें केन्द्र सरकार से मिली सहायता राशि का हिस्सा भी जोड़ा जाएगा। उत्तर प्रदेश कृषि अनुसन्धान परिषद (उपकार) के अध्यक्ष और वरिष्ठ सपा नेता हनुमान प्रसाद मानते हैं कि फसलें बर्बाद हो जाने से किसान खून के आँसू रो रहे हैं। गेहूँ, अरहर और सरसों को भारी नुकसान हुआ है। लेकिन लेखपाल घर में बैठकर रिपोर्ट तैयार कर रहे हैं। यहाँ तक कि अफसर भी सच्चाई छिपाते हैं। दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री हनुमान प्रसाद ने कहा कि उन्होंने खुद तमाम गाँवों में जाकर हालत देखे। लेखपाल के गलत सर्वे करने पर उन्होंने डीएम से बात की।
दरअसल, मार्च महीने में चौथी बार भारी बारिश ने किसानों की कमर तोड़ दी। इस महीने में बारिश ने न केवल सौ साल का रिकार्ड ध्वस्त किया है, बल्कि किसानों की रही-सही उम्मीदें भी धोकर रख दी। गेहूँ के साथ-साथ सरसों, आलू, मटर और मौसमी सब्जियों को खासा नुकसान पहुँचा। हालात का अन्दाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बीते 11 मार्च तक देश भर में औसत से 237 फीसदी अधिक बारिश हुई है। पूर्वी और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में औसत से 640 प्रतिशत अधिक बारिश हो चुकी है। बेमौसम बारिश व ओलों से प्रभावित सूबे के 66 जिलों में फसलों के नुकसान का आँकड़ा 6000 करोड़ पार करने की सम्भावना है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने राहत कार्यों में तेजी लाने का निर्देश दिया है। उन्होंने अफसरों को आगाह किया है कि यदि किसी स्तर पर भी लापवाही की सूचना मिली तो सख्त कार्रवाई की जाएगी। राज्य सरकार के प्रवक्ता ने बताया कि बेमौसम बारिश व ओलावृष्टि से प्रभावित 12.38 लाख किसानों में अब तक 550 करोड़ रुपए की धनराशि बाँटी जा चुकी है। सरकार ने प्रभावित किसानों में तत्काल राहत वितरण के लिये 1134 करोड़ रुपए जिलों को आवंटित किये हैं।
केन्द्र आया आगे
केन्द्र में सत्तारूढ़ मोदी सरकार की मानें तो अब आपदा आने पर किसानों को भूखों से नहीं मरना पड़ेगा। इसके लिये केन्द्र सरकार ने कृषि बीमा आमदनी योजना का मसौदा तैयार किया है। गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कानपुर देहात के माती मैदान में किसानों की महापंचायत में इसकी घोषणा करते हुए कहा प्रधानमंत्री के विदेश से लौटते ही यह योजना लागू कर दी जाएगी। उन्होंने कहा अभी चल रही फसल बीमा योजना ठीक नहीं है। इसमें किसानों की फसल पचास फीसद से अधिक बर्बाद होने पर ही मुआवजे का प्रावधान है। नई योजना में कृषि मंत्रालय जो मसौदा तैयार कर रहा है इसके तहत आपदा आने पर किसानों को एक खेत पर होने वाली सालाना न्यूनतम आमदनी के अनुसार मुआवजा मिलेगा। इस प्रस्ताव पर प्रधानमंत्री ने अपनी मुहर लगा दी है। गृहमंत्री ने अखिलेश यादव को नसीहत देते हुए कहा कि वह पहले किसानों को फौरी राहत दें, इसके बाद नुकसान का आकलन करते रहें। उन्होंने भरोसा दिलाया कि किसान हताश न हों, केन्द्र सरकार उनके साथ खड़ी है।
केन्द्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य व सार्वजनिक वितरण मंत्री रामविलास पासवान का भी कहना है कि प्रदेश सरकार द्वारा संस्तुति भेजे बिना भी केन्द्र ने गेहूँ खरीद मानक में बदलाव का अहम फैसला किया है। यूपी की स्थिति को देखते हुए 50 प्रतिशत से कम चमक वाला गेहूँ भी खरीदा जाएगा। जबकि गुजरात में केवल 25 फीसद चमक खो चुके गेहूँ को ही खरीदा जा रहा है।
मौसम की मार से टूट चुके किसानों को केन्द्र सरकार अब सीधे मदद कर सकती है। आगरा के अछनेरा गाँव अर्रूआ खास में फसल के नुकसान का जायजा लेने पहुँचे केन्द्रीय भूतल एवं परिवहन मंत्री नितिन गडकरी किसानों को इसका भरोसा दिला गए। उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार आपकी मदद का निर्णय ले चुकी है। अब रिपोर्ट मिलते ही मुआवजा राशि तय हो जाएगी। आप सभी बैंकों में खाते खुलवा लें। इस रिपोर्ट में प्रत्येक किसान का नाम, उसके परिजनों की संख्या, बैंक एकाउंट नम्बर, फसल लागत मूल्य, फसल नुकसान, बैंक कर्ज और बिजली बिल के बकाए का ब्यौरा तथा राज्य सरकार की तरफ से उन्हें अब तक दी गई मदद की जानकारी दर्ज की जाएगी। यह रिपोर्ट जिलाधिकारी के माध्यम से केन्द्र सरकार को भेजी जाएगी। माना जा रहा है कि भूमि अधिग्रहण बिल के मसौदे से नाराज किसानों को मनाने के लिये केन्द्र सरकार आपदा पीड़ित किसानों के लिये सरकारी खजाने का बड़ा मुँह खोलने की तैयारी में है।
केन्द्र सरकार की पूरी चिन्ता और संवेदना किसान के साथ : राजनाथ सिंह
बारिश और ओलावृष्टि से बर्बाद किसानों के दुख में शामिल होकर केन्द्रीय गृहमंतत्री राजनाथ सिंह ने कुछ मरहम लगाने का काम किया। इस क्रम में बदायूँ पहुँचे केन्द्रीय गृहमंत्री ने कहा कि केन्द्र सरकार ने राहत राशि डेढ़ गुनी कर राज्यों को 508 करोड़ रुपए दे दिये हैं। अब यूपी सरकार को खजाना खोल देना चाहिए। वे कहते हैं कि राजनीति से ऊपर उठकर किसानों का दर्द महसूस करने की जरूरत है। बदायूँ में पत्रकारों के साथ अनौपचारिक बातचीत में किसानों के मुद्दे पर बातचीत हुई। यहाँ प्रस्तुत हैं उस बातचीत का सम्पादित सार-
प्रस्तुति : अरशद रसूल
मैं किसान का बेटा हूँ और किसानों का दर्द अच्छी तरह समझता हूँ। केन्द्र सरकार ने किसानों को दी जाने वाली मुआवजा राशि डेढ़ गुनी कर दी है। इस मद में 508 करोड़ रुपए जारी किये गए हैं। मौजूदा हालात को देखकर मैं किसानों के बीच खुद जा रहा हूँ। अब उत्तर प्रदेश सरकार को भी अन्नदाता के लिये खजाना खोल देना चाहिए।
फिलहाल केन्द्र सरकार की तरफ से 508 करोड़ रुपए का पैकेज दिया जा चुका है। भविष्य में भी राज्य सरकारों को आर्थिक रूप से मजबूत करने के लिये विभिन्न करों से प्राप्त रकम में से 42 फीसद सीधे राज्यों को दी जाएगी, पहले यह प्रतिशत 32 था। इस तरह उत्तर प्रदेश सरकार को 27,500 करोड़ रुपए मिल जाएँगे।
केन्द्र सरकार पहले से ही फसल बीमा योजना चला रही है। अब इसकी जगह कृषि आमदनी बीमा योजना लागू करने का प्रस्ताव तैयार किया जा रहा है। इससे भी किसानों को बड़ी राहत मिलने की उम्मीद है। इस साल बारिश और ओलों ने गेहूँ की फसल को चौपट कर दिया है। मैंने खुद खेतों में जाकर देखा है कि गेहूँ का दाना पतला और बदरंग हो गया है। लेकिन सरकारी खरीद केन्द्रों पर किसानों का लाल-पीला, पतला कैसा भी गेहूँ हो, खरीदा जाएगा। इस सम्बन्ध में खाद्य व आपूर्ति मंत्री रामविलास पासवान ने पहले ही घोषणा कर दी है। किसानों के प्रति प्रधानमंत्री इतने चिन्तित व संवेदनशील हैं कि विदेश यात्रा पर जाने से पहले उन्होंने मुझे बुलाकर किसानों के मुद्दे पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि वह कुछ दिन विदेश यात्रा में व्यस्त रहेंगे, इसलिये किसान राहत राशि निकालने की फाइल पर पहले ही साइन करा लें। रात 12 बजे उन्होंने फाइल पर हस्ताक्षर किये थे।
उत्तर प्रदेश में किसानों को 100-150 रुपए बतौर मुआवजा दिया जा रहा है। उसमें भी पक्षपात किया जा रहा है। फैजाबाद जिले में तो मृतकों के नाम पर ही 37 चेक काट दिये गए। कब्रिस्तान की जमीन पर भी चेक जारी किये गए। मरते हुए किसानों की कमर पर लेखपाल- पटवारी ही लात मारने का काम कर रहे हैं। जहाँ भाजपा की राज्य सरकारें हैं वहाँ हमने पूरी चिन्ता की है। वहाँ बिना किसी भेदभाव के किसानों का कर्ज माफ किया जा रहा है।
वास्तव में केन्द्र सरकार से समन्वय कर राज्य भी सहयोग करें तो देश का कायाकल्प हो जाएगा। केन्द्र सरकार की अन्य योजनाएँ भी प्रभावी तरीके से अमल में लाई जा सकेंगी। कर्ज माफी और अनुदान की कड़ी निगरानी की जाएगी।