02 फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय वेटलैंड्स दिवस के अवसर पर भारत ने दो और रामसर साइटों को जोड़ा है जिसके बाद भारत में रामसर साइटों की संख्या 47 से 49 हो गई है। गुजरात में खिजड़िया पक्षी अभयारण्य और उत्तर प्रदेश में बखिरा वन्यजीव अभयारण्य रामसर साइटों को शामिल किया गया है
इस अवसर पर केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा, "विकास और पर्यावरण को एक साथ बारहमासी तरीके से चलना चाहिए। 40 प्रतिशत जैव विविधता आर्द्रभूमि से आती है। उन्होंने आर्द्रभूमि दिवस के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि,
"आज अंतर्राष्ट्रीय आर्द्रभूमि दिवस है। भारत में दो लाख से अधिक छोटे तालाब हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जिन्हें संरक्षित करने की आवश्यकता है। भारत में 52 राष्ट्रीय बाघ वन हैं। और दो ब्लू टैग समुद्र तट हैं। हमने आज दो रामसर स्थल जोड़े हैं। तो वही हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कहा कि हरियाणा में 18,000 तालाब हैं, जिसमें से कम से कम 6,000 तालाब ओवरफ्लो हो रहे हैं और गंदगी से भरे हुए हैं। हमने इसकी देखभाल के लिए तालाब प्राधिकरण का गठन किया है। इस प्राधिकरण का उद्देश्य इस वर्ष 1900 तालाबों का रखरखाव करना है ।"
इस घोषणा के बाद, भारत में अब 49 रामसर स्थलों का एक नेटवर्क बन गया है है जो लगभग 10,93,636 हेक्टेयर क्षेत्र को कवर करने के साथ ही दक्षिण एशिया में सबसे अधिक है।उत्तर प्रदेश में बखिरा वन्यजीव अभयारण्य मध्य एशियाई पक्षियों की प्रजातियों के लिये सर्दियों में सुरक्षित और अनुकूल स्थल प्रदान करता है। जबकि खिजड़िया वन्यजीव अभ्यारण्य एक तटीय आर्द्रभूमि है जिसमें समुद्री एविफ़नल विविधता है जो लुप्तप्राय और कमजोर प्रजातियों को एक सुरक्षित आवास प्रदान करती है।
भारत में रामसर साइट्स को रामसर कन्वेंशन के तहत घोषित किया गया है, जिसे 1971 में यूनेस्को द्वारा स्थापित किया गया था। भारत में रामसर वेटलैंड साइट के रूप में तब घोषित किया जाता है जब यह वेटलैंड के कन्वेंशन के तहत निर्धारित नौ मानदंडों में से किसी एक को पूरा करती है।पर्यावरणविदों का विचार है कि आर्द्रभूमि के विनाश, बाढ़ और सूखे की क्षति, पोषक तत्वों के अपवाह और जल प्रदूषण, तटरेखा के क्षरण आदि के कारण वन्यजीवों की आबादी में गिरावट आई है।
अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र (सैक), अहमदाबाद ने आज पिछले एक दशक में देश भर में आर्द्रभूमि में हुए परिवर्तनों पर प्रकाश डालते हुए राष्ट्रीय आर्द्रभूमि दशकीय परिवर्तन एटलस जारी किया गया है । भारत में आर्द्रभूमियों के संरक्षण के प्रयास 1987 में शुरू हुए थे और उसके बाद से ही सत्ता में जो भी सरकारे आई उसने अपना पूरा फोकस जैविक संरक्षण पर बनाये रखा ।