पृथ्वी की सतह पर, भूकम्प अपने आप को, भूमि को हिलाकर या विस्थापित करके प्रकट करता है। जब एक बड़ा भूकम्प अधिकेंद्र (एपीसेंटर) अपतटीय स्थिति में होता है, यह समुद्र के किनारे पर पर्याप्त मात्रा में विस्थापन का कारण बनता है, जो सुनामी का कारण है। भूकम्प के झटके कभी-कभी भूस्खलन और ज्वालामुखी गतिविधियों को भी पैदा कर सकते हैं। भूकम्प पृथ्वी की परत (क्रस्ट) से ऊर्जा के अचानक उत्पादन के परिणामस्वरूप आता है जो भूकम्प तरंगों (सीज्मिक वेव) को उत्पन्न करता है।
भूकम्प का रिकार्ड एक सीज्मोमीटर के साथ रखा जाता है, जो सीस्मोग्राफ भी कहलाला है। एक भूकम्प का क्षण परिमाण (मूमैंट मैग्नीट्यूड) पारम्परिक रूप से मापा जाता है, या संबंधित और अप्रचलित रिक्टर परिमाण लिया जाता है, 3 या कम परिमाण की रिक्टर तीव्रता का भूकम्प अक्सर इम्परसेप्टिबल होता है और 7 रिक्टर की तीव्रता का भूकम्प बड़े क्षेत्रों में गंभीर क्षति का कारण होता है। झटकों की तीव्रता का मापन विकसित मरकैली पैमाने पर किया जाता है। सर्वाधिक सामान्य अर्थ में, किसी भी सीज्मिक घटना का वर्णन करने के लिये भूकम्प शब्द का प्रयोग किया जाता है। अक्सर भूकम्प भूगर्भीय दोषों के कारण आते हैं, भारी मात्रा में गैस प्रवास, पृथ्वी के भीतर मुख्यत: गहरी मीथेन, ज्वालामुखी, भूस्खलन और नाभिकीय परिक्षण ऐसे मुख्य दोष हैं।
प्लेट सीमाओं से दूर भूकम्प - टेक्टोनिक भूकम्प भूमि के ऐसे किसी भी स्थान पर आ सकता है, जहाँ पर्याप्त मात्रा में संग्रहीत प्रत्यास्थता तनाव ऊर्जा होती है जो समतल दोष (फॉल्ट प्लेन) के साथ भू-भंग उत्पन्न करती है। रूपांतरित या अभिकेंद्रित प्रकार की प्लेट सीमाओं के मामलों में, जो धरती पर सबसे बड़ी दोष सतह बनते हैं, वे एक दूसरे को सामान्य रूप से और एसीस्मिकली रूप से हिलाते हैं, ऐसा केवल तभी होता है जब सीमा के साथ किसी प्रकार की अनियमितता न हो जो घर्षण के कारण प्रतिरोध को बढ़ाती है। अधिकांश सतहों में इस प्रकार की अनियमितताएं होती है और यह स्टिक-स्लिप व्यावहार का कारण बनती हैं। एक बार जब सीमा बंद हो जाती है, प्लेटों के बीच में सतत सापेक्ष गति तनाव को बढ़ा देती है, इसलिए, दोष सतह के चारों और के स्थान में तनाव ऊर्जा संगृहीत हो जाती है।
यह तब तक जारी रहता है जब तनाव पर्याप्त मात्रा में बढ़कर अनियमितता को उत्पन्न करता है और दोष सतह की बंद सीमा के ऊपर अचानक भूमि खिसकने लगती है, तथा संग्रहीत ऊर्जा मुक्त होने लगती है। यह ऊर्जा विकिरित प्रत्यास्थ तनाव भूकम्पीय तरंगों, दोष सतह पर घर्षण की ऊष्मा और चट्टानों में दरार पड़ने के सम्मिलित प्रभाव के कारण मुक्त होती है और इस प्रकार भूकम्प का कारण बनती है। तनाव के बनने की यह क्रमिक प्रक्रिया, अचानक भूकम्प की विफलता के कारण होती है। इसे प्रत्यास्थता-पुनर्बंधन सिद्धांत (इलास्टिक रिबाउंड सिद्धांत) कहते हैं। यह अनुमान लगाया गया है कि भूकम्प की कुल ऊर्जा का 10 प्रतिशत या इससे भी कम सीज्मिक ऊर्जा के रूप में विकिरित होता है।
भूकम्प की अधिकांश ऊर्जा या तो भू-भंग (फ्रैक्चर) की वृद्धि को शक्ति प्रदान करने के लिये काम में आती है या घर्षण के कारण उत्पन्न ऊष्मा में बदल जाती है। इसलिए भूकम्प पृथ्वी की उपलब्ध प्रत्यास्थ स्थितिज ऊर्जा को कम करता है और इसका तापमान बढ़ाता है, हालाँकि ये परिवर्तन पृथ्वी की गहराई में से बाहर आने वाली ऊष्मा संचरण और संवहन की तुलना में नगण्य होते हैं। फॉल्ट/सैन एण्ड्रियाज फॉल्ट के मामले में बहुत से भूकम्प, प्लेट सीमा से दूर उत्पन्न होते हैं और विरूपण के व्यापक क्षेत्र में विकसित तनाव से संबंधित होते हैं, ये विरूपण दोष क्षेत्र (उदा. - ‘‘बिग बंद’’ क्षेत्र) में प्रमुख अनियमितताओं के कारण होते हैं, नॉर्थरिज भूकम्प ऐसे ही एक क्षेत्र में अंध दबाव गति से संबंधित था। एक अन्य उदाहरण है अरब और यूरेशियन प्लेट्स के बीच तिर्यक अभिकेंद्रित प्लेट सीमा जहाँ यह जाग्रोस पहाड़ों के पश्चिमोत्तर हिस्से से होकर जाती हैं।
इस प्लेट सीमा से संबंधित विरूपण, एक बड़े पश्चिम-दक्षिण सीमा के लम्बवत लगभग शुद्ध दबाव गति तथा वास्तविक प्लेट सीमा के नजदीक हाल ही में हुए मुख्य दोष के किनारे हुए लगभग शुद्ध स्ट्रीक-स्लिप गति में विभाजित है। इसका प्रदर्शन भूकम्प की केन्द्रीय क्रियाविधि (फोकल मिकेनिज्म) के द्वारा किया जाता है। सभी टेक्टोनिक प्लेट्स में आंतरिक दबाव क्षेत्र होते हैं जो अपनी पड़ोसी प्लेटों के साथ अंतर्क्रिया के कारण या तलछटी लदान या उतराई के कारण होते हैं (जैसे डेग्लेसिशन) ये तनाव उपस्थित दोष सतहों के किनारे विफलता का पर्याप्त कारण हो सकते हैं, ये अन्त: प्लेट भूकम्प को जन्म देते हैं।
उथला और गहरे केंद्र का भूकम्प- अधिकांश टेक्टोनिक भूकम्प 10 किलोमीटर से अधिक की गहराई से उत्पन्न नहीं होते हैं। 70 किलोमीटर से कम की गहराई पर उत्पन्न होने वाले भूकम्प-पिछले-केंद्र के भूकम्प कहलाते हैं, जबकि 70-300 किलोमीटर के बीच की गहराई से उत्पन्न होने वाले भूकम्प मध्य-केंद्रीय या अंतर मध्य केंद्रीय भूकम्प कहलाते हैं। सबडक्शन क्षेत्रों में जहाँ पुरानी और ठंडी समुद्री परत (ओशिआनिक क्रस्ट) अन्य टेक्टोनिक प्लेट के नीचे खिसक जाती है, गहरे केंद्रित भूकम्प (डीप-फोकस अर्थक्वेक) अधिक गहराई पर (300 से लेकर 700 किलोमीटर तक) आ सकते हैं। सीज्मिक रूप से सबडक्शन के ये सक्रिय क्षेत्र, वडाटी-बेनिऑफ क्षेत्र कहलाते हैं। गहरे केंद्र के भूकम्प उस गहराई पर उत्पन्न होते हैं जहाँ उच्च तापमान और दबाव के कारण सबडक्टेड स्थलमंडल भंगुर नहीं होने चाहिए। गहरे केंद्र के भूकम्प के उत्पन्न होने के लिये एक संभावित क्रियाविधि है आलीवाइन के कारण उत्पन्न दोष जो स्पाइनेल संरचना में एक अवस्था संक्रमण के दौरान होता है।
झटके और भूमि का फटना- झटके और भूमि का फटना भूकम्प के मुख्य प्रभाव हैं, जो मुख्य रूप से इमारतों व अन्य कठोर संरचनाओं को कम या अधिक गंभीर हानि पहुँचाती है। स्थानीय प्रभाव, कि गंभीरता भूकम्प के परिमाण के जटिल संयोजन पर, एपिसेंटर से दूरी पर और स्थानीय भूवैज्ञानिक व भूआकारिकीय स्थितियों पर निर्भर करती है, जो तरंग के प्रसार को कम या अधिक कर सकती है। भूमि के झटकों को भूमि त्वरण से नापा जाता है। विशिष्ट भूवैज्ञानिक, भूआकारिकीय और भूसंरचनात्मक लक्षण भूसतह पर उच्च स्तरीय झटके पैदा कर सकते हैं, यहाँ तक कि कम तीव्रता के भूकम्प भी ऐसा करने में सक्षम हैं। यह प्रभाव स्थानीय प्रवर्धन कहलाता है। यह मुख्यत: कठोर गहरी मृदा से सतही कोमल मृदा तक भूकम्पीय गति के स्थानांतरण के कारण है और भूकम्पीय ऊर्जा के केंद्रीकरण का प्रभाव जमावों की प्रारूपिक ज्यामितीय सेटिंग करता है। दोष सतह के किनारे पर भूमि कि सतह का विस्थापन व भूमि का फटना दृश्य है, ये मुख्य भूकम्पों के मामलों में कुछ मीटर तक हो सकता है। भूमि का फटना प्रमुख अभियांत्रिकी संरचनाओं जैसे बाँधों, पुल और परमाणु शक्ति स्टेशनों के लिये बहुत बड़ा जोखिम है, सावधानीपूर्वक इनमें आए दोषों या संभावित भू-स्फतन को पहचानना बहुत जरूरी है।
भूस्खलन और हिमस्खलन- भूकम्प, भूस्खलन और हिमस्खलन पैदा कर सकता है, जो पहाड़ी और पर्वतीय इलाकों में क्षति का कारण हो सकता है। एक भूकम्प के बाद, किसी लाइन या विद्युत शक्ति के टूट जाने से आग लग सकती है। यदि जल का मुख्य स्रोत फट जाए या दबाव कम हो जाए, तो एक बार आग शुरू हो जाने के बाद इसे फैलने से रोकना कठिन हो जाता है।
मिट्टी द्रवीकरण- मिट्टी द्रवीकरण तब होता है जब झटकों के कारण जल संतृप्त दानेदार पदार्थ अस्थायी रूप से अपनी क्षमता को खो देता है और एक ठोस से तरल में रूपांतरित हो जाता है। मिट्टी द्रवीकरण कठोर संरचनाओं जैसे इमारतों और पुलों को द्रवीभूत में झुका सकता है या डुबा सकता है।
सुनामी- समुद्र के भीतर भूकम्प से या भूकम्प के कारण हुए भूस्खलन के समुद्र में टकराने से सुनामी आ सकती है उदाहरण के लिये 2004 हिंद महासागर में आयी सुनामी।
बाढ़- यदि बाँध क्षतिग्रसत हो जाएँ तो बाढ़ भूकम्प का द्वितीयक प्रभाव हो सकता है। भूकम्प के कारण भूमि फिसल कर बाँध की नदी में टकरा सकती है, जिसके कारण बाँध टूट सकता है और बाढ़ आ सकती है। मानव प्रभाव- भूकम्प रोग, मूलभूत आवश्यकताओं की कमी, जीवन की हानि, उच्च बीमा प्रीमियम, सामान्य संपत्ति की क्षति, सड़क और पुल का नुकसान और इमारतों का ध्वसत होना, या इमारतों के आधार का कमजोर हो जाना, इन सब का कारण हो सकता है, जो भविष्य में फिर से भूकम्प का कारण बनता है।
संदर्भ
1. जैक्सन, एम. (2004) भूकम्प की केंद्रीय क्रियाविधि का पुनर्मूल्यांकन और ईरान के जाग्रोस पहाड़ों में सक्रीय लघुकरण, भू-भौतिकीय जर्नर इंटरनेशनल, खण्ड-156, मु. पृ. 506-526।
2. अस्थिर मैदान पर, एसोसिएशन अॉफ खाड़ी क्षेत्र, सैनफ्रांसिस्को, सरकारी रिपोर्टें 1775,1776 (अद्यतन 2003)।
सम्पर्क
राजीव कुमार सिंह
असिस्टेंट प्रोफेसर, गणित विभाग, पीबी पीजी कॉलेज, प्रतापगढ़-230143, यूपी, भारत, ईमेल: Dr.rajeevthakur2012@gmail.com
प्राप्त तिथि- 22.05.2015, स्वीकृत तिथि- 05.08.2015
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