नैनीताल जिले में जगह-जगह पर झीलों की श्रृंखला देखी जा सकती है, जिनमें भीमताल, सतताल, नौकुचिया ताल एवम् मालनिय ताल काफी प्रसिद्ध है। समुद्र तल से 1200 मीटर ऊंचाई पर, 1860 मीटर लम्बी तथा 500 मीटर चौड़ी तथा 30 मीटर गहरी त्रिकोणीय भीमताल झील, नैनीताल से मात्र 23 कि.मी. पर है। इस झील के मध्य विद्यमान एक छोटे से द्वीप ने तो इस झील के सौंदर्य को अद्भुत शोभा प्रदान की है। इसमें नौका विहार का भी अपना अलग आनंद है। भीमताल वास्तव में बहुत ही सुंदर झील है। उत्तर से नौली गढ़ना नामक नदी इसमें से निकलती है तथा गधेरा नामक नदी निकलती है। इसके किनारे पहाड़ी पीपल के वृक्ष हैं। इसका आकार भीमकाय होने की वजह से सम्भवतः इसका नाम भीमताल पड़ा। कुछ इस ताल का संबंध पांडव भीम से करते हैं। उनके अनुसार यहां भीम ने जमीन खोद कर ताल का निर्माण किया था। यहां पास ही भीमेश्वर महादेव का मंदिर भी है। इसमें से एक धारा निकल कर ‘गॉला’ नदी में मिलती है।
Hindi Title
भीमताल
विकिपीडिया से (Meaning from Wikipedia)
भीमताल
भीमताल एक त्रिभुजाकर झील है। यह उत्तरांचल में काठगोदाम से 10 किलोमीटर उत्तर की ओर है। इसकी लम्बाई 1674 मीटर, चौड़ाई 447 मीटर गहराई १५ से ५० मीटर तक है। नैनीताल से भी यह बड़ा ताल है। नैनीताल की तरह इसके भी दो कोने हैं जिन्हें तल्ली ताल और मल्ली ताल कहते हैं। यह भी दोनों कोनों सड़कों से जुड़ा हुआ है। नैनीताल से भीमताल की दूरी २२.५ कि. मी. है।
भीमताल की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह सुन्दर घाटी में ओर खिले हुए अंचल में स्थित है। इस ताल के बीच में एक टापू है, नावों से टापू में पहुँचने का प्रबन्ध है। यह टापू पिकनिक स्थल के रुप में प्रयुक्त होता है। अधिकाँश सैलानी नैनीताल से प्रातछ भीमताल चले जाते हैं। टापू में पहुँचकर मनपसन्द क भोजन करते हैं और खुले ताल में बोटिंग करते हैं। इस टापू में अच्छे स्तर के रेस्तरां हैं। उत्तर प्रदेश के मत्सय विभाग की ओर से मछली के शिकार की भी यहाँ अच्छी सुविधा है।
नैनीताल की खोज होने से पहले भीमताल को ही लोग महत्व देते थे। 'भीमकार' होने के कारण शायद इस ताल को भीमताल कहते हैं। परन्तु कुछ विद्वान इस ताल का सम्बन्ध पाण्डु - पुत्र भीम से जोड़ते हैं। कहते हैं कि पाण्डु - पुत्र भीम ने भूमि को खोदकर यहाँ पर विशाल ताल की उत्पति की थी। वैसे यहाँ पर भीमेशवर महादेव का मन्दिर है। यह प्राचीन मन्दिर है - शायद भीम का ही स्थान हो या भीम की स्मृति में बनाया गया हो। परन्तु आज भी यह मन्दिर भीमेशेवर महादेव के मन्दिर के रुप में जाना और पूजा जाता है।
भीमताल उपयोगी झील भी है। इसके कोनों से दो-तीन छोटी - छोटी नहरें निकाली गयीं हैं, जिनसे खेतों में सिंचाई होती है। एक जलधारा निरन्तर बहकर 'गौला' नदी के जल को शक्ति देती है। कुमाऊँ विकास निगम की ओर से यहाँ पर एक टेलिवीजन का कारखाना खोला गया है। फेसिट एशिया के तरफ से भी टाइपराइटर के निर्माण की एक युनिट खोली गयी है। यहाँ पर पर्यटन विभाग की ओर से ३४ शैयाओं वाला आवास - गृह बनाया गया है। इसके अलावा भी यहाँ पर रहने - खाने की समुचित व्यवस्था है। खुले आसमान और विस्तृत धरती का सही आनन्द लेने वाले पर्यटक अधिकतर भीमताल में ही रहना पसन्द करते हैं।
अन्य स्रोतों से
भीमताल
मुसाफिर हूं यारों (ब्लाग से)
भीमताल उत्तराखंड का सबसे बड़ा ताल माना जाता है। यह नैनीताल जिले में है। नैनीताल से 22 किलोमीटर पूर्व में। काठगोदाम से 4 किलोमीटर आगे रानीबाग से एक रास्ता सीधे नैनीताल चला जाता है और दाहिने से दूसरा रास्ता भीमताल जाता है। अल्मोडा जाने के लिए भी इस रास्ते का इस्तेमाल किया जाता है। हल्द्वानी से भीमताल तक 40-45 मिनट लगते हैं।
यह समुद्र तल से 1370 मीटर की ऊँचाई पर है। ऐसा माना जाता है कि वनवास के दौरान भीम यहाँ पर रुके थे। ताल के किनारे ही भीमेश्वर मंदिर है। भीमताल झील की लम्बाई 1700 मीटर से ज्यादा है, और चौडाई? अजी, 450 मीटर से भी ज्यादा। गहराई है इसकी 18 मीटर।
यहीं से गोला नदी निकलती है, जो आगे हल्द्वानी होते हुए रामगंगा में मिल जाती है। सिंचाई विभाग ने यहाँ से एक बाँध बनाकर नहर भी निकाली है, जो आस-पास के खेतों में सिंचाई के काम आती है।झील के बीच में एक टापू भी है जो दूर से देखने पर किसी बड़ी नाव जैसा दिखता है।
रहने-खाने के लिए यहाँ हर तरह के होटल-रेस्टोरेंट हैं। भीड़-भाड़ भी नहीं है। ताल का पानी भी साफ़-सुथरा है। इसमें मछलियों की भी अच्छी-खासी संख्या है। मछली पकड़ने पर शायद रोक है, लेकिन फिर भी लोगबाग पकड़ते हैं।मेरे वहां पहुँचते ही बारिश शुरू हो गयी। एक जगह पर गोविन्द बल्लभ पन्त की आदमकद मूर्ति लगी है, उसी के सामने एक टीन शेड में मैं बैठ गया। आधे घंटे बाद बारिश रुकी, तब निकला।
निकलते ही फिर बारिश। ऐसा दो बार हुआ। हो सकता है इन्द्र देवता मुझसे पिछले जन्म का गुस्सा निकाल रहे हों। वहीं किसी पेड़-वेड की टहनी पर बैठे होंगे। मुझे देखते ही अपना पम्प चला देते होंगे। भीमताल में पानी की कमी थोड़े ही है?
वैसे उस दिन नैनीताल में भी बारिश पड़ी थी। हाँ भई, देवता लोग हैं। देवभूमि उत्तराखंड में घूमते-फिरते रहते हैं। पता नहीं कब कहाँ जा पहुंचे।