बिहार बाढ़ क्या है, और क्यों नहीं रुक रहा इसका कहर

Submitted by Editorial Team on Mon, 04/04/2022 - 12:02
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हस्तक्षेप, 28 Aug 2021, सहारा समय

फोटो - india tv news

बिहार के दर्जनभर जिले कमोबेश हर साल बाढ़ के पानी से तबाह रहते हैं। दूसरे राज्य भी बाढ़ की समस्या से जूझ रहे हैं‚ या जूझते रहे हैं। तमाम सरकारें बाढ़ प्रबंधन की कोशिशें करती हैं। लाखों–करोड़ों रुपये खर्च करती हैं। मगर हालात में खास परिवर्तन नहीं दिखता। एक अनुमान के मुताबिक भारत का बाढ़ संभावित क्षेत्र 1952 में 250 लाख हेक्टेयर था‚ जो अब दोगुना होकर 500 लाख हेक्टेयर तक पहुंच चुका है। बाढ़ जान–माल की क्षति के साथ–साथ प्रकृति को भी हानि पहुंचाती है। 

गौर करने वाली बात यह है कि भारत दुनिया में बाढ़ से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले देशों में से है। दुनिया भर में बाढ़ से जितनी मौतें होती हैं‚ उसका पांचवा हिस्सा भारत में होता है। देश की कुल भूमि का आठवां हिस्सा यानी तकरीबन चार करोड़ हेक्टेयर इलाका ऐसा है‚ जहां बाढ़ आने का अंदेशा बना रहता है। 

बात बिहार की हो तो देश के कुल बाढ़ प्रभावित इलाकों में से 16.5 प्रतिशत क्षेत्रफल बिहार का है‚ और कुल बाढ़ पीडि़त आबादी में 22.1 फीसदी बिहार में रहती है। राज्य के 38 में से 28 जिले बाढ़ प्रभावित हैं। 1979 से लेकर अब तक के उपलब्ध आंकड़ों के हिसाब से पिछले 43 वर्षों में एक भी ऐसा साल नहीं गुजरा‚ जब बिहार में बाढ़ नहीं आई हो। उत्तरी बिहार की लगभग 5 करोड़ आबादी हर साल बाढ़ से परेशान रहती है। राज्य की लगभग 73 फीसदी भूमि बाढ़ से प्रभावित रहती है‚ जिससे बिहार की कुल आबादी का 76 फीसदी भाग बाढ़ से प्रभावित रहता है। इसका सबसे बड़ा कारण है नेपाल से कोसी‚ गंडक‚ बूढ़ी गंडक‚ बागमती‚ कमला-बलान‚ महानंदा‚ अधवारा जैसे नदियों का पानी नेपाल द्वारा छोड़ा जाना।

मैदानी इलाकों में सबसे ज्यादा बाढ़

बाढ़ प्रबंधन सुधार सहायता केंद्र का मानना है कि पिछले ३० वर्षों के दौरान उत्तरी बिहार के मैदानी इलाकों में सबसे ज्यादा बाढ़ दर्ज की गई। बिहार में हर साल आने वाली बाढ़ का सबसे बड़ा कारण है नेपाल क्योंकि नेपाल में जलस्तर बढ़ता है‚ और वहां से पानी छोड़ा जाता है‚ तो वह उत्तरी बिहार के इलाकों में कोहराम मचा देता है। यह समस्या बिहार की नहीं है‚ बल्कि नेपाल के तराई इलाके और पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोग भी इससे काफी प्रभावित रहते हैं। 

उत्तर बिहार की सभी नदियों को दोनों ओर तटबंधों से बांधने की वजह से बाढ़ की समस्या कम होने की बजाय बढ़ी है। 1952 में बिहार की मात्र 25 लाख हेक्टेयर जमीन बाढ़ग्रस्त थी। आज यह आंकड़ा बढ़कर 68.8 लाख हेक्टेयर हो गया है‚ जो लगभग ३ गुना है। ये हालात तब हैं‚ जब आजादी के वक्त बिहार की नदियों पर कुल 160 किलोमीटर की दूरी तक तटबंध बने थे। और आज की तारीख में कुल 3800 किलोमीटर से अधिक लंबाई में तटबंध का निर्माण कराया गया लेकिन बाढ़ की समस्या खत्म नहीं हुई। 

क्या तटबंध ही समाधान हैं?

हम सवाल यह है कि तटबंध ही समाधान होता तो इतने लंबे तटबंध बनाने के बाद बाढ़ हमेशा के लिए रुक जानी चाहिए थी। लेकिन बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में तो बाढ़ का कहर लगातार बढ़ता ही गया। जानकारों का मानना है कि तटबंध बनाते हुए सरकार ने जल निकासी की व्यवस्था के साथ–साथ बरसात के दौरान नदी में भरने वाली गाद की समस्या पर ध्यान नहीं दिया जिससे नदी से पानी बाहर नहीं निकल पाता है‚ और जैसे–जैसे बरसात और पानी की गति बढ़ती है‚ तो नदी के तल में गाद और रेत का स्तर भी बढ़ता है‚ और तटबंध टूटने लगता है। मन में सवाल उठता होगा कि आखिर‚ तटबंध टूट कैसे जाता है। 

जवाब सिम्पल है। नदी ठीक आपके पेट के सामान है। जैसे हम ज्यादा खाना खा लेते हैं‚ तो अपच के शिकार हो जाते हैं‚ या उल्टी कर देते हैं। ठीक इसी तरह ‘बाढ़ का अर्थ है उल्टी होना।' जब नदी को तटबंधों में बांध दिया जाता है‚ तो उसके पेट में रेत और गाद का स्तर लगातार बढ़ने लगता है‚ और नदी के पेट पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता है। निकासी की कोई व्यवस्था दुरुस्त नहीं होती है‚ और ऊपर से तटबंध नदी को बांधे रखे रहते हैं। ऐसे में नदी का पेट साफ कैसे रहेगाॽ और जब नीचे रेत और गाद जमा होगी तो ऊपर बाढ़ आएगी ही। 

ऐसा नहीं है कि बिहार में बाढ़ की बर्बादी रोकी नहीं जा सकती है। पानी को जल्द समुद्र में ले जाया जा सके तो ऐसा संभव है‚ लेकिन तभी जब पानी के रास्ते में आने वाली रुकावट की सभी चीजों को हटा दिया जाए। विशेष रूप से बांध पानी के बहाव को रोकने की बड़ी वजह है। समझना जरूरी है कि जो बाढ़ पहले कभी–कभी आती थी और एक–दो दिन में निकल जाती थी‚ वह अब क्यों हर साल आती है। महीनों तक लोगों के लिए परेशानी खड़ी करती है। पानी को रोकने के नाम पर आज तक हम लोगों ने सिर्फ बांध बनाए लेकिन जल निकासी की व्यवस्था नहीं कर पाए। नदी जोड़ परियोजना का मुख्य मकसद था कि जिस नदी में पानी ज्यादा है‚ उसे वैसी नदी से जोड़ना जिसमें पानी कम हो। इससे दो फायदे थे‚ पहला–बाढ़ से बचाव होता; और दूसरा–सिंचाई की सुविधा भी मिलती। परंतु ऐसा नहीं हुआ क्योंकि राज्यों के बीच पानी को लेकर जारी विवाद नदियों को जोड़ने की राह में सबसे बड़ी बाधा है। स्थिति इतनी गंभीर है कि विभिन्न ट्रिब्यूनल्स और सुप्रीम कोर्ट के आदेश भी इन्हें सुलझाने में नाकाम रहे हैं। 

सरकार को चाहिए कि राज्यों से विचार–विमर्श के बाद तुरंत ऐसी राष्ट्रीय जल नीति का निर्माण करे‚ जो भारत में भूजल के अत्यधिक दोहन‚ जल के बंटवारे से संबंधित विवादों और जल को लेकर पर्यावरणीय एवं सामाजिक चिंताओं का समाधान कर सके। बिहार को बाढ़ से उबरना है तो नदियों की राह में से अवरोधों को हटाना पड़ेगा‚ बारिश के दिनों में भी उसे प्राकृतिक रूप से बहने और गंगा से मिलने का रास्ता देना होता। तमाम छोटी–बड़ी नदियों को एक साथ जोड़ना होगा। 

  • लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।