बिहार में राज से संवाद की तैयारी करते समाज द्वारा ' पानी रे पानी...' अभियान चलाया जा रहा है। गंगा दशहरा के दिन स्वामिश्री अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती के सम्बोधन से प्रारम्भ इस अभियान के तहत समाज द्वारा विश्व पर्यावरण दिवस पर बिहार की कई नदियों के पर वृक्ष लगाने के अतिरिक्त अनेक कार्यक्रम आयोजित किए गए। पूर्णिया जिले के जलालगढ़ प्रखंड के सौंठा ग्राम में सौरा नदी के किनारे समाज द्वारा वृक्षारोपण हुआ, तो नावाडीह के दूधनिया ग्राम और कैमूर पहाड़ी के गोरिया ग्राम में समाज द्वारा काव के उद्गम स्थल से नदी चेतना यात्रा शुरू की गई। महात्मा गांधी जी की कर्मभूमि मोतिहारी शहर में धनौती नदी के किनारे की साफ-सफाई की और वृक्ष, जल और भूमि का पूजन कर 27 सितम्बर 2020 तक चलने वाली नदी चेतना यात्रा का शुभारंभ किया गया। नदी चेतना यात्रा का फोकस जन संवाद है और लक्ष्य सम्बंधित नदी की समस्याओं को पहचानकर समाधान सुझाना है। पानी रे पानी अभियान से जुड़े मोतिहारी शहर के विनय कुमार हों अथवा पुर्णियां के किशोर कुमार और सुमित प्रकाश, सब का कहना था कि नदी, पेड़ और पानी का संरक्षण, प्रबन्धन और सम्बर्धन की व्यवस्था को मजबूत कर जीवन और आजीविका के क्षेत्र में संभावनाओं को तलाशा जाएगा। यह पहला अवसर है जब अभियान की बागडोर और संवाद की क्षमता पूरी तरह समाज के हाथ में होगी।
पानी रे पानी अभियान के अंतर्गत संचालित नदी चेतना यात्रा का फोकस नदी की समस्याओं को समझना है और उस समझ के आधार पर समाधान पेश करना है। समाधान के क्रियान्वयन के लिए राज से सम्वाद करना है। इसलिए समाज को नदी और नदी की समस्याओं को समग्रता में समझना होगा। इसके लिए उन्हें अलग-अलग मौसमों में नदी के प्रवाह की कमी-वेशी और गंदगी के कारणों को समझना आवश्यक होगा। चूँकि नदी चेतना यात्रा बरसात के मौसम में चलाई जा रही है इस कारण सबसे पहले नदी के प्रवाह पर बरसात की भूमिका और उसके असर को समझना होगा। चयनित नदी को पानी, कहाँ-कहाँ से मिल रहा है, समझ में आवेगा। चयनित नदी के प्रवाह की वृद्धि में सहायक नदियों का योगदान समझ में आवेगा। उम्मीद है नदी चेतना यात्रा से बहुसंख्य समाज को चयनित नदी में बाढ़ का असली कारण समझ में आवेगा। यात्रा के दौरान सतत चलने वाले सम्वादों की मदद से चयनित नदी को, कितने क्षेत्र (कछार या जलग्रहण क्षेत्र) पर बरसे पानी का लाभ मिलता है, समझ में आवेगा। यही समझ उसे कछार/जलग्रहण क्षेत्र का अर्थ और उसकी पानी देने की भूमिका को समझने में सहायक होगा। इसी समझ के बाद चयनित नदी को सीमित संदर्भ में समझने के स्थान पर कछार के व्यापक संदर्भ में समझने में मदद मिलेगी। इसी अवधि में नदियों के प्रवाह में होने वाली कमी-वेशी को समझने का अवसर मिलेगा। वृक्षों की भूमिका समझ में आवेगी। चयनित नदी को मिलने वाले पानी के अवरोधकों के अच्छे और बुरे असर को समझने का अवसर मिलेगा। गाद के व्यवहार को समझने का अवसर मिलेगा। कछार में हो रहे मानवीय हस्तक्षेप समझ में आवेंगे। बरसात और सूखे मौसम में तथा सीवर तथा कल-कारखानों के पानी के नदी में डाले जाने के कारण शुद्धता और जलीय जीव-जन्तुओं (मछली इत्यादि) पर पड़ने वाला असर दिखाई देगा। यह अवलोकन विशुद्ध अध्ययन यात्रा है जो एक ओर उनका नजरिया ठीक करेगा तो दूसरी ओर राज से संवाद करने के लिए दृष्टिबोध प्रदान करेगा।
नदी चेतना यात्रा के दौरान समाज को आम राय से कुछ मुद्दों पर समझ बनानी होगा। इनमें पहला मुद्दा है, बरसात के दिनों में चयनित नदी और सहायक नदियों में बहने वाले पानी का स्रोत। दूसरा मुद्दा है, बरसात के बाद चयनित नदी और सहायक नदियों में बहने वाले पानी का स्रोत। तीसरा मुद्दा है चयनित नदी और सहायक नदियों के सूखने का क्रम और कारण। चौथा मुद्दा है नदियों में दिखने वाली गंदगी और उसकी घट-बढ़। पांचवा मुद्दा है रेत के अवैध खनन का प्रवाह पर असर। उम्मीद है नदी चेतना यात्रा के दौरान उल्लेखित सभी मुद्दों पर चिन्तन होगा और समाज निम्न बातों को अच्छी तरह समझ सकेगा -
बरसात के दिनों में नदी में बहने वाला पानी केवल वर्षाजल है। वह पानी निश्चित इलाके पर बरसता है। वहीं से बह कर छोटी-छोटी सहायक नदियों से मिलता है। सहायक नदियाँ उसे मुख्य नदी को सौंप देती हैं। मुख्य नदी में पानी का स्रोत सहायक नदियों का योगदान है।
बरसात के दिनों में प्रवाह की मात्रा बढ़ जाती है। इस कारण नदियों में प्रवाहित गंदगी का असर कम हो जाता है। किसी प्रकार यदि बरसात के बाद प्रवाह बढ़ाया जा सके तो गंदगी के असर को कम किया जा सकता है।
बरसात के बाद के दिनों नदी में बहने वाला पानी, मूलतः भूजल है। बरसात के दिनों में वह कछार की उथली परतों में जमा होता है। वही पानी, बरसात के बाद, धीरे-धीरे चलकर सहायक नदियों को मिलता है। सहायक नदियाँ उसे मुख्य नदी को सोंप देती हैं। यदि कछार की उथली परतों में भूजल नहीं होगा तो नदियों का सूखना निश्चित है। अर्थात नदी के अविरल रहने के लिए बरसात में वर्षाजल और सूखे दिनों में भूजल की पूर्ति की निरन्तरता आवश्यक है।
नदियों में प्रवाह बढ़ाकर जलीय-जीवों के लिए उपयुक्त गुणवत्ता वाला पानी उपलब्ध कराया जा सकता है। आजीविका के लिए कुछ अवसर पैदा किए जा सकते हैं।
उल्लेखनीय है कि नदी चेतना यात्रा के दौरान जब संवाद होंगे उस समय उन लोगों से भी सम्वाद करना होगा जो लाक-डाउन के कारण वापिस लौटे हैं। ऐसे ग्रामीणों की अपेक्षा होगी गांव में ही स्थायी रोजगार। आजीविका के लिए टिकाऊ व्यवस्था। यह डी-लर्निंग का दौर होगा। उम्मीद है जब रोजगार की संभावनाओं को भुक्तभोगियों द्वारा तलाशा जावेगा तो हो सकता है तब प्रिसक्रिप्शन के स्थान पर नये विकल्प या नये विचार सामने आयें। यह इसलिए संभव है क्योंकि इस अभियान की बागडोर पटना या दिल्ली के स्थान पर स्थानीय समाज के हाथ में है। समस्याओं पर वही लोग चिन्तन कर रहे हैं जिन्होंने सनातन व्यवस्था को ठुकराया, गरीबी और पलायन को जन्म दिया।
उल्लेखनीय है कि नदी चेतना यात्रा के दौरान जब संवाद होंगे उस समय उन लोगों से भी सम्वाद होगा जो नदी को सीमित दायरे में रखकर सोचते हैं या कुछ ऐसे काम कर रहेे हैं जो असरकारी नही हैं। इन कामों में नदी तल को खोद कर या स्टाप-डेम बनाकर पानी के दर्शन कराना। नदी के किनारे वृक्षारोपण करना और कल्पना करना कि रोपित वृक्षों की जड़ों में करोडों लीटर पानी जमा होगा और वे वृक्ष बरसात के बाद धीरे - धीरे पानी छोड कर सूखी नदियों को जिन्दा कर देंगे। उल्लेखनीय है कि नदियों के किनारे राईपेरियन जोन में जो वृक्ष स्वतः उगते हैं वे अलग किस्म के होते हैं। उनकी भूमिका अलग है। समाज में कुछ लोग उन वृक्षों तथा वनस्पतियों को पहचानते हैं। जो उन्हें नहीं पहचानते, उनका, नदी चेतना यात्रा के दौरान, परिचय होना संभव है। इसी दौरान राज और योजना प्रबंधकों को समझ में आवेगा कि नदी, धरती पर पानी का हस्ताक्षर है। बिना हस्ताक्षर के कछार का विकास शून्य है।
यह अवसर है जब समाज, पानी रे पानी अभियान के माध्यम से नदी के कछार के निवासियों के विकास के लिए रोडमेप प्रस्तुत करेगा। यह रोडमेप अलग-अलग नदियों के लिए अलग अलग होगा पर वह राज, राजनेताओं या योजना प्रबंधकों के सामने कछार के निवासियों की आत्मनिर्भरता के लिए किए जाने वाले नवाचारों और कामों की ठोस बात करेगा। बाजार पर निर्भरता के स्थान, बाजार के लिए उत्पाद तैयार करेगा। बाजार को निर्भर बनाने के लिए प्रयास करेगा। यदि यह संभावना फलीभूत होती है तो निश्चय ही बिहार का समाज, पानी रे पानी अभियान के माध्यम से एक नई इबारत लिखेगा।