मध्य प्रदेश के जल संसाधन विभाग ने हाल ही में प्रदेश के भूजल की गुणवत्ता पर अध्ययन रिपोर्ट जारी की है। यह रिपोर्ट उनकी बेवसाइट पर उपलब्ध है। इस रिपोर्ट से पता चलता है कि मध्य प्रदेश के 18 जिलों के 93 विकासखण्डों के 1300 से अधिक गाँवों के कुओं और नलकूपों का पानी, एक से अधिक घुलनशील रसायनों (फ्लोराइड, लौहतत्व या नाईट्रेट) की अधिकता के कारण, अनुपयोगी हो चुका है। उसे खेती तथा पीने के काम में नहीं लाया जा सकता। यह तथ्य, प्रदेश के भूजल संगठन द्वारा किये अध्ययन से उजागर हुआ है।
राज्य सरकार की रिपोर्ट में बताया है कि मंडला, डिन्डोरी, जबलपुर (नगरीय क्षेत्र), अलीराजपुर, झाबुआ, सिवनी, शिवपुरी, धार और छिंदवाड़ा के 29 विकासखण्डों की 127 बसाहटों में फ्लोराइड की मात्रा 1.5 मिलीग्राम प्रतिलिटर से अधिक पाई गई है। बालाघट जिले के बरघाट विकासखण्ड के ग्राम धाना में एक लीटर पानी में फ्लोराइड की मात्रा 4.2 मिलीग्राम है। यह चिन्तनीय मात्रा है।
फ्लोराइड दाँतों और हड्डियों की मजबूती के लिये आवश्यक है पर यदि किसी जलस्रोत के एक लीटर पानी में फ्लोराइड की मात्रा 1.5 मिलीग्राम से अधिक हो तो वह पानी, स्वास्थ्य के लिये हानिकारक होता है। उस पानी को पीने से दाँतों और हड्डियों में स्थायी विकार पैदा हो जाता है। फ्लोराइड के कारण होने वाली उपर्युक्त बीमारियाँ लाइलाज हैं। पीने के पानी के अलावा, मानव शरीर में फ्लोराइड का प्रवेश फल, सब्जी, खाद्यान्न, पेय पदार्थों और फ्लोराइड वाले दन्त मंजन के माध्यम से होता है।
मध्य प्रदेश के उपर्युक्त विकासखण्डों में फ्लोराइड का भूजल स्रोतों (कुओं, नलकूपों और नदी जल) में प्रवेश प्राकृतिक तथा मानवीय गतिविधियों के कारण हुआ है। प्राकृतिक कारणों में स्थानीय स्तर पर मिलने वाली चट्टानों में अल्प मात्रा में, फ्लोराइड मौजूदगी है जो बरसाती पानी के कारण घुलकर जलस्रोतों को प्रदूषित करती है।
मानवीय गतिविधियों यथा खेती में सुपर-फास्फेट, एन.पी.के. जैसे फर्टीलाइजरों के उपयोग के कारण भी मिट्टी और भूजल में फ्लोराइड की मात्रा लगातार बढ़ रही है। विदित हो एक किलो सुपर-फास्फेट में 10 मिलीग्राम और एक किलोग्राम एन.पी.के. में फ्लोराइड की मात्रा 1675 मिलीग्राम तक होती है।
फ्लोराइड का दूसरा प्रमुख स्रोत थर्मल पावर स्टेशन हैं। एक किलो कोयले की राख में फ्लोराइड की मात्रा 40 से 295 मिलीग्राम तक होती है। वह राख वर्षाजल के साथ धरती पर मिट्टी को धरती में रिसकर भूजल को प्रदूषित करती है। यह लगातार बढ़ने वाली समस्या है।
राज्य सरकार की रिपोर्ट में आगे बताया है कि खरगौन, खण्डवा, बड़वानी, बैतूल, भोपाल, रायसेन, सीहोर, झाबुआ, धार और विदिशा के 81 विकासखण्डों की 1227 बसाहटों के 831 कुओं और नलकूपों के एक लीटर पानी में नाईट्रेट की मात्रा 45 मिलीग्राम से भी अधिक पाई गई है। नाईट्रेट की सुरक्षित मात्रा एक लीटर पानी में 5 मिलीग्राम से कम होती है इसलिये उपर्युक्त मात्रा चिन्तनीय है।
जलस्रोतों के पानी को देखकर फ्लोराइड या नाइट्रेट की मौजूदगी या उसकी मात्रा का अनुमान लगाना सम्भव नहीं है। उनकी मात्रा जानने के लिये कुशल रसायनशास्त्री द्वारा सूक्ष्म रासायनिक जाँच की जाती है। दूसरा तरीका मानवीय शरीर पर होने वाला प्रतिकूल असर है। उस असर को देखकर फ्लोराइड या नाइट्रेट की मौजूदगी का अनुमान लगाया जा सकता है।
मध्य प्रदेश के जल संसाधन विभाग के भूजल संगठन का अध्ययन उपरोक्त जिलों के चिन्हित कुओं तथा नलकूपों में मिलने वाले पानी के सूक्ष्म रासायनिक विश्लेषण पर आधारित है। गौरतलब है कि मध्य प्रदेश के भूजल संगठन की रासायनिक प्रयोगशालाओं को विश्व बैंक की योजना के अर्न्तगत स्थापित किया गया है। वे विश्व स्तरीय हैं। उनमें कार्यरत अमला प्रशिक्षित है तथा प्रयोगशालाओं में लगाए उपकरण अत्याधुनिक एवं विश्वस्तरीय हैं। इसलिये उक्त रासायनिक विश्लेषण की प्रमाणिकता सन्देह के परे है।
सरकार की जिम्मेदारी समाज को फ्लोराइड और नाइट्रेट के बुरे असर से बचाने की है। इसी कारण प्रतिवेदन में बताया है कि फ्लोराइड प्रभावित इलाके के लोगों को कतिपय चीजें खाना चाहिए। इनमें दूध, दही, पनीर, गुड़, कमल ककड़ी, अरबी, हरी सब्जियाँ, आँवला, नीबू, सन्तरा, टमाटर, धनिया, अखरोट, काजू, बादाम, मूंगफली, लहसुन, अदरक, सफेद प्याज इत्यादि प्रमुख हैं। यह सलाह सुरक्षात्मक है पर वह असली समस्या की जड़ पर चोट नहीं करती।
सरकार को प्रभावित इलाकों में उन तकनीकी समाधानों को अपनाना चाहिए जिन्हें अपनाने से पानी और मिट्टी में फ्लोराइड तथा नाइट्रेट की मात्रा को निरापद सीमा में लाया जा सके। चूँकि ये घटक पानी में घुलनशील है इसलिये हानिकारक पानी में साफ पानी मिलाकर उसकी मात्रा को निरापद बनाया जा सकता है। इसके लिये सरकार द्वारा प्रभावित इलाकों में ग्राउंड वाटर रीचार्ज कार्यक्रमों को बड़े पैमाने पर लिया जाना चाहिए। पानी की गुणवत्ता की लगातार मानीटरिंग करना चाहिए। ऐसा कर पानी की गुणवत्ता पर नजर रखी जा सकती है और उसे सुधारी जा सकती है।
कई बार एक ही गाँव के अलग-अलग जलस्रोतों के पानी में फ्लोराइड या नाइट्रेट की मात्रा में अन्तर पाया जाता है। ऐसी स्थिति में निरापद स्रोत का पानी खेती और निस्तार में काम में लेना चाहिए।
खेती में रासायनिक फर्टीलाइजरों के उपयोग से बचना चाहिए। परम्परागत अर्थात आर्गेनिक खेती को अपनाना चाहिए। इसके अलावा, भोजन की आदतों में बदलाव कर उसके कुप्रभाव से किसी हद तक बचा जा सकता है। लोगों को भोजन में कैल्शियम, आयरन, विटामिन सी और ई एवं एंटी ऑक्सीडेंट पदार्थों का अधिक-से-अधिक सेवन करना चाहिए।
तकनीकी या उच्च प्रौद्योगिकी विधियाँ भी फ्लोराइड के निराकरण में सक्रिय हैं। उनकी सक्रियता के कारण बाजार में अनेक उपकरण उपलब्ध हैं जो पानी को निरापद बनाते हैं। इनमें से कुछ विधियों का उपयोग छोटे पैमाने पर तो कुछ का स्थानीय स्तर पर किया जा सकता है। ऐसा करते समय स्थानीय समाज की आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखना चाहिए। विदित हो कि प्रभावित इलाके पिछड़े, अविकसित तथा गरीब हैं।
कुछ समय पहले तक फ्लोराइड युक्त दन्त मंजन का बहुत प्रचार हो रहा था। लोग, स्थानीय जलस्रोतों के पानी में फ्लोराइड की मात्रा की अनदेखी कर, उसके उपयोग की अनुशंसा कर रहे थे। विज्ञापनों में महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों को उनकी मार्केटिंग करते दिखाया जाता था। अब माहौल बदल गया है। कुप्रभाव दिख रहा है इसलिये फ्लोराइड प्रभावित इलाकों में फ्लोराइड युक्त दन्त मंजन के उपयोग को प्रतिबन्धित किया जाना चाहिए। लोगों को विकल्प उपलब्ध कराना चाहिए। विकल्पों के बाद ही जागरुकता कारगर होती है।
अन्त में, मध्य प्रदेश सरकार को धन्यवाद दिया जाना चाहिए। उसने प्रतिवेदन जारी कर लोगों को सचेत किया है।
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