चैत सुदी रेवतड़ी जोय

Submitted by Hindi on Thu, 03/25/2010 - 15:08
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घाघ और भड्डरी

चैत सुदी रेवतड़ी जोय। बैसाखहिं भरणी जो होय।।
जेठ मास मृगसिर दरसंत। पुनरबसू आषाढ़ चरंत।।
जितो नछत्र की बरत्यो जाई। तेतो सेर अनाज बिकाई।।


भावार्थ- चैत सुदी (कृष्ण) में रेवती, वैशाख में भरणी, ज्येष्ठ में मृगशिरा और आषाढ़ में पुनर्वसु जितने भी घड़ी रहेगी, अनाज उतने सेर बिकेगा।