सावन में मनभावन मोपै एसी विछरन डारी
मोरी जा है बारी बैस, जाये कैसे सहो कलेश
आपुन छाये सौत के देश, न खबर लई।
भादों जल बरसे गंभीर,
मोरे उठे करेजें पीर
थर-थर कांपै मोर शरीर,
सुध बुध भूल गई।
मेरे पति इस सावन मास में मुझे अकेला छोड़कर चले गये। मैं अभी अवयस्क हूँ और मुझसे ये बिछुड़ने का दुःख सहन नहीं होता, वे मुझे छोड़कर मेरी सौत के पास चले गये। मैं विरहाग्नि में रही हूँ उन्होंने मेरी खबर तक नहीं ली? भाद्रपक्ष में तो पानी सबसे ज्यादा बरसता है और इस सुहावने मौसम में मेरा मन उनसे मिलने को आतुर है लेकिन वे नहीं हैं इसलिए पीड़ा और बढ़ गई। मेरा शरीर काँपता रहा, मैं बेसुध पड़ी रही लेकिन नहीं आये।
भोजन करवे पावन बैठे हैं, परसें धनी चौहान
परसें धनी चौहान, भरो है जैसा मेला
चांदी के पटा धरे, जिनपै बैठे वीर।
सोने के गडुवा धरे, पीवैं खें कंचन नीर।
चंदेल नरेश के पुत्र ब्रह्मानंद का विवाह दिल्ली पति पृथ्वीराज चौहान की कन्या बेला से हुआ। महोबे से आयी बारात की ज्यौनार हो रही है। अपने पाहुनों के लिए स्वयं पृथ्वीराज भोजन परोसते हैं। बारातियों को देखने से ऐसा लगता है कि जैसे कोई मेला लगा हो। सबसे पहले अतिथियों के बैठने को चाँदी के पटा बिछाये गये, फिर सोने के लोटों में स्वच्छ जल भरकर सबके पास रख दिये गये।
जाती भरन नीर जमना के, दैकें कजरा बांके।
पैजनियां अरू पायजेब के, पारें जात छमाके।
आगें जोंन गली हां कढ़ गई, तहुं खिंच रहे सनाके।
शिवदयाल मोहन राधा को, बैठें बांधे नाके।
राधा जी यमुना का जल भरने जाती हैं। उन्होंने काजल लगाया, पाँव में पायजेब पहना, घुँघरू, बाली पैजनियाँ पहनी और पानी भरने को जा रही हैं। जहाँ से वे जाती हैं वहाँ सन्नाटा छा जाता है। कवि शिवदयाल जी कहते हैं कि कृष्ण तो उनकी प्रतीक्षा में थे ही, वे एक स्थान पर उनका रास्ता रोकने को खड़े हो जाते हैं।
तीन चुरू अरजुन पानी या पियो रे,
और भिमला के रहे जाँय रे
पानी तो पीलो तुम भीतर सें रे,
प्यासे बहुत हो आय रे कैं......
बैंठकें पारों पैं भिमला एक चुरू भर लयो रे
और अदया गयो तला रे जाय,
चुरू में पानी तनक गयो रे।
अज्ञातवास की अवधि में एक समय भीम, अर्जुन जंगल की तरफ जा रहे थे, रास्ते में प्यास लगी तो एक जलाशय में पानी पीने को गये। पहले अर्जुन ने तीन अंजुली पानी पिया, फिर भीम पानी पीने लगे। भीम ने एक अंजुली में पानी भरा तो वह तालाब आधा हो गया।
जारे मुगला पानी भर ल्या प्यासी मरें मथुरावली
जोनों मुगल पानी गओ बंगले में दै लई आग
ठांडी जरै मथुरावली।
मथुरावली एक मुगल के हाथ में पड़ जाती है, मथुरावली ने सोचा कि अपनी अस्मत बचानी है, इससे उसने मुगल से कहा कि मुझे बड़े जोर की प्यास लगी है, मेरे तंबू में पानी नहीं है इसलिए कहीं से पानी लेकर आओ। मुगल जब पानी लेने जाता है तो उस समय मथुरावली अपने तंबू में आग लगाकर जल जाती है।
हरदौल
मोरी जा है बारी बैस, जाये कैसे सहो कलेश
आपुन छाये सौत के देश, न खबर लई।
भादों जल बरसे गंभीर,
मोरे उठे करेजें पीर
थर-थर कांपै मोर शरीर,
सुध बुध भूल गई।
मेरे पति इस सावन मास में मुझे अकेला छोड़कर चले गये। मैं अभी अवयस्क हूँ और मुझसे ये बिछुड़ने का दुःख सहन नहीं होता, वे मुझे छोड़कर मेरी सौत के पास चले गये। मैं विरहाग्नि में रही हूँ उन्होंने मेरी खबर तक नहीं ली? भाद्रपक्ष में तो पानी सबसे ज्यादा बरसता है और इस सुहावने मौसम में मेरा मन उनसे मिलने को आतुर है लेकिन वे नहीं हैं इसलिए पीड़ा और बढ़ गई। मेरा शरीर काँपता रहा, मैं बेसुध पड़ी रही लेकिन नहीं आये।
भोजन करवे पावन बैठे हैं, परसें धनी चौहान
परसें धनी चौहान, भरो है जैसा मेला
चांदी के पटा धरे, जिनपै बैठे वीर।
सोने के गडुवा धरे, पीवैं खें कंचन नीर।
चंदेल नरेश के पुत्र ब्रह्मानंद का विवाह दिल्ली पति पृथ्वीराज चौहान की कन्या बेला से हुआ। महोबे से आयी बारात की ज्यौनार हो रही है। अपने पाहुनों के लिए स्वयं पृथ्वीराज भोजन परोसते हैं। बारातियों को देखने से ऐसा लगता है कि जैसे कोई मेला लगा हो। सबसे पहले अतिथियों के बैठने को चाँदी के पटा बिछाये गये, फिर सोने के लोटों में स्वच्छ जल भरकर सबके पास रख दिये गये।
चौकड़िया
जाती भरन नीर जमना के, दैकें कजरा बांके।
पैजनियां अरू पायजेब के, पारें जात छमाके।
आगें जोंन गली हां कढ़ गई, तहुं खिंच रहे सनाके।
शिवदयाल मोहन राधा को, बैठें बांधे नाके।
राधा जी यमुना का जल भरने जाती हैं। उन्होंने काजल लगाया, पाँव में पायजेब पहना, घुँघरू, बाली पैजनियाँ पहनी और पानी भरने को जा रही हैं। जहाँ से वे जाती हैं वहाँ सन्नाटा छा जाता है। कवि शिवदयाल जी कहते हैं कि कृष्ण तो उनकी प्रतीक्षा में थे ही, वे एक स्थान पर उनका रास्ता रोकने को खड़े हो जाते हैं।
बैरायठा
तीन चुरू अरजुन पानी या पियो रे,
और भिमला के रहे जाँय रे
पानी तो पीलो तुम भीतर सें रे,
प्यासे बहुत हो आय रे कैं......
बैंठकें पारों पैं भिमला एक चुरू भर लयो रे
और अदया गयो तला रे जाय,
चुरू में पानी तनक गयो रे।
अज्ञातवास की अवधि में एक समय भीम, अर्जुन जंगल की तरफ जा रहे थे, रास्ते में प्यास लगी तो एक जलाशय में पानी पीने को गये। पहले अर्जुन ने तीन अंजुली पानी पिया, फिर भीम पानी पीने लगे। भीम ने एक अंजुली में पानी भरा तो वह तालाब आधा हो गया।
मथुरावली
जारे मुगला पानी भर ल्या प्यासी मरें मथुरावली
जोनों मुगल पानी गओ बंगले में दै लई आग
ठांडी जरै मथुरावली।
मथुरावली एक मुगल के हाथ में पड़ जाती है, मथुरावली ने सोचा कि अपनी अस्मत बचानी है, इससे उसने मुगल से कहा कि मुझे बड़े जोर की प्यास लगी है, मेरे तंबू में पानी नहीं है इसलिए कहीं से पानी लेकर आओ। मुगल जब पानी लेने जाता है तो उस समय मथुरावली अपने तंबू में आग लगाकर जल जाती है।