छज्जे की बैठक बुरी

Submitted by Hindi on Thu, 03/25/2010 - 09:34
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घाघ और भड्डरी

छज्जे की बैठक बुरी, परछाई की छाँह।
द्वारे का रसिया बुरा, नित उठि पकरै बाँह।।


भावार्थ- छत के छज्जे पर बैठना बुरा होता है। परछाई की छाया भी अच्छी नहीं होती। इसी तरह दरवाजे का (निकट में रहने वाला) प्रेमी भी अच्छा नहीं होता, जो रोज उठकर प्रेमिका की बाँहें पकड़ता रहता है।