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नेशनल दुनिया, 18 अगस्त 2014
आंकड़ों की मानें तो यमुना मैली करने में दिल्ली का सबसे बड़ा हाथ है। यह तब है जब दिल्ली में यमुना की कुल लंबाई का सबसे कम हिस्सा है, लेकिन यमुना में जाने वाली 70 फीसदी गंदगी यमुना को दिल्ली वाले ही देते हैं। दिल्ली से सटे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) का भी कमोबेश यही हाल है। यही स्थिति रही तो आने वाले दस वर्षों में यमुना नदी को गंदे नाले में तब्दील होने से कोई नहीं रोक सकता।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक यमुना नदी के प्रदूषण का मुख्य जरिया शहरों के नाले हैं जिसे यमुना में छोड़ा जाता है। दिल्ली सहित यमुनानगर, जगाधरी, करनाल, पानीपत, सोनीपत, दिल्ली, गुड़गांव, फरीदाबाद, गौतमबुद्ध नगर, गाजियाबाद, पलवल, वृंदावन, मथुरा, आगरा, फिरोजाबाद, इटावा आदि शहर गंदा पानी यमुना में छोड़ रहे हैं। जानकारी के मुताबिक युमना सात राज्यों से होकर बहती है। इसकी कुल लंबाई के 1376 किलोमीटर के हिस्से में उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में इसका हिस्सा करीब 21 प्रतिशत है। हिमाचल प्रदेश में यमुना का कुल हिस्सा 1.6 प्रतिशत, हरियाणा में 6.1 प्रतिशत, राजस्थान में 29.8 प्रतिशत, मध्य प्रदेश में 40 प्रतिशत और दिल्ली में सबसे कम करीब 2 प्रतिशत यमुना का हिस्सा है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक के मुताबिक यमुना का पहला हिस्सा यमुनोत्री से लेकर ताजेवाला तक 172 किलोमीटर बेहद साफ है। दूसरे हिस्से में यमुना ताजेवाला से वजीराबाद बैराज तक इसकी लंबाई 224 किलोमीटर है। इस दौरान यमुना उत्तर प्रदेश और हरियाणा के शहरों व कस्बों के पास होकर बहती है। यहां का पानी दिल्ली के मुकाबले बेहद साफ होता है। जबकि वजीराबाद से लेकर ओखला बैराज के बीच 22 किलोमीटर के हिस्से में यमुना सबसे अधिक प्रदूषित नदी है। कुल गंदगी का 70 प्रतिशत यमुना में यहीं से मिलता है। चौथे हिस्से में यमुना ओखला से लेकर चंबल तक सबसे लंबी यात्रा करती है। यह हिस्सा 490 किलोमीटर का है।
ओखला बैराज से लेकर चंबल तक बहती हुई यमुना बीच के कई शहरों मथुरा, आगरा होते हुए यहां पहुंचती है। दिल्ली से यमुना को मिली गंदगी यहां भी होकर जाती है। आखिरी हिस्से में यमुना करीब 468 किलोमीटर होती हुई चंबल से गंगा तक पहुंचती है। यहां पहुंचते-पहुंचते कई सारी नहरों का पानी मिलने से यमुना का पानी काफी हद तक साफ हो जाता है। बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक यमुना दिल्ली से इतनी गंदगी लेकर जाती है कि आगरा और मथुरा में पहुंचने पर भी इसका पानी साफ नहीं हो पाता है। चंबल नदी से मिलने पर रास्ते में कुछ प्रदूषण तत्व कम हो जाते हैं, लेकिन यमुना में बढ़ते प्रदूषण के चलते इसमें जलचर नहीं के बराबर रह गए हैं। कई हिस्से तो ऐसे हैं। जहां का पानी इतना प्रदूषित है वहां किसी भी तरह के जलचर नहीं हैं।
1. 70 फीसदी गंदगी मिलती है यमुना को दिल्ली के 22 किलोमीटर के हिस्से से
2. 10 वर्षों तक यही स्थिति रही तो बिल्कुल गंदे नाले में तब्दील हो जाएगी यमुना
3. 1376 किलो मीटर है यमुना की कुल लंबाई
4. 172 किलोमीटर यमुनोत्री से ताजेवाला तक सबसे साफ है यमुना
5. 21 प्रतिशत यमुना का हिस्सा है उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में
6. 40 प्रतिशत यमुना का हिस्सा है मध्य प्रदेश में
1. नजफगढ़ नाला 2064 एमएलडी
2. मैगजीन रोड नाला 12 एमएलडी
3.स्वीपर कॉलोनी नाला 4 एमएलडी
4. खैबर पास नाला 4 एमएलडी
5. मैटकॉफ हाउस नाला 6 एमएलडी
6. आईएसबीटी नाला 45 एमएलडी
7. टांगा स्टैंड नाला 5 एमएलडी
8. कैलाश नगर नाला 8 एमएलडी
9. सिविल लाइन नाला 40 एमएलडी
10. दिल्ली गेट पावर हाउस नाला 68 एमएलडी
11. नाला नंबर-14, 08 एमएलडी
12. बारापूला नाला 86 एमएलडी
13. महारानी बाग नाला 33 एमएलडी
14. अबू फजल नाला 26 एमएलडी
15. जैतपुर नाला 19 एमएलडी
16. तुगलकाबाद नाला 90 एमएलडी
17. शाहदरा नाला 638 एमएलडी
1. 20 वर्षों में लगभग 1514.42 करोड़ से ज्यादा खर्च किए जा चुके हैं यमुन की सफाई पर
2. इस योजना के तीसरे चरण में 1656 करोड़ रुपए की संशोधित लागत के साथ मंजूरी दी गई है, जिसे दिल्ली जल बोर्ड द्वारा क्रियान्वित किया जा रहा है।
3. 1993 में की गई थी यमुना एक्शन प्लान की शुरुआत
4. 2000 में होना था प्लान के मुताबिक काम खत्म
5. 2003 तक इस प्लान का काम किया गया पूरा यमुना नहीं हुई साफ
6. 165 करोड़ रुपए खर्च किए इस दौरान
7. 2004 में हुई यमुना एक्शन के दूसरे प्लान की शुरुआत
8. 450 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च हुए प्रोजेक्ट पर
9. 700 करोड़ रुपए से खर्च किए जा चुके हैं सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट पर
1. 3814 एमएलडी पानी यानी 381 करोड़ लीटर पानी रोजाना जलबोर्ड लेता है सप्लाई के लिए, ग्राउंड वाटर भी इसमें शामिल है
2. 17 प्लांट के जलबोर्ड के गंदे पानी को साफ करने के लिए
3. 2460 एमएलडी यानी 246 करोड़ लीटर क्षमता है प्लांट की पानी साफ करने की।
4. 150 करोड़ लीटर पानी ही पहुंचता है प्लांट में ट्रीटमेंट के लिए, बाकी बिना ट्रीटमेंट के जाता है यमुना
5. 60 प्रतिशत गंदा पानी ट्रीटमेंट के लिए नहीं पहुंच पाता है ट्रीटमेंट के लिए
1. कैटेगरी ए के तहत वह पानी जिसका ट्रीटमेंट करने के बादउसमें घुलने वाली ऑक्सीजन छह मिलीग्राम 1, बीओडी 2 मिलीग्राम 1, या कुल कॉलिफार्म 50 एमपीएन 100 एमएल होना चाहिए
2. कैटेगरी बी का पानी सिर्फ नहाने लायक होता है। इस पानी में ऑक्सीजन 5 मिलीग्राम 1 या उससे अधिक होनी चाहिए और बीओडी- 3 एमजी 1 होना चाहिए।
3. कैटेगरी सी का पानी ट्रीटमेंट के बाद पेयजल स्रोत है। इसमें घुलित ऑक्सीजन 4 मिलीग्राम 1 या उससे अधिक होनी चाहिए तथा बीओडी-3 मिलीग्राम 1 या उससे कम होना चाहिए।
4. कैटेगरी डी और ई का पानी वन्यजीवों के लिए तथा सिंचाई के लिए होता है। इसमें ऑक्सीजन 4 मिली ग्राम या उससे ज्यादा होनी चाहिए।
वजीराबाद से ओखला बैराज के तकरीबन 23 किलोमीटर के दूरी में यमुना सबसे ज्यादा जहरीली है। यहां पर बीओडी की मात्रा 99 मिली है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक निजामुद्दीन पुल के नीचे यमुना का पानी सबसे ज्यादा प्रदूषित है। आंकड़ों के लिहाज से यमुना का फ्लड एरिया यानी बाढ़ जनित क्षेत्र करीब दो से तीन किलोमीटर तक है। मानसून को छोड़ दिया जाए तो यमुना का अपने न्यूनतम प्रवाह के हिसाब से भी नहीं बहती है।
हरियाणा से ड्रेन-2 के जरिए दिल्ली के लिए पानी छोड़ा जाता है। जलबोर्ड के अनुसार दिल्ली में सप्लाई के लिए वजीराबाद से पहले यमुना से 840 एमजीडी पानी उठा लिया जाता है। इसके बाद यमुना में दिल्ली की गंदगी डाले जाने की शुरुआत हो जाती है। एक के बाद एक 18 नालों से यमुना में प्रदूषित पानी जाता है। इसमें से आधे से ज्यादा पानी बिना ट्रीटमेंट के डाला जाता है। यहां से आगे यमुना में सिर्फ गंदा पानी रह जाता है। कोर्ट के निर्देशों के अनुसार यमुना में पानी का न्यूनतम प्रवाह 10 क्यूबिक प्रति सेकेंड होना चाहिए। यदि हम इसे बाल्टियों के हिसाब से निकाले तो 8 लाख 60 बाल्टी पानी हर दिन के हिसाब से यमुना में पानी की गति होनी चाहिए, लेकिन यमुना में न्यूनतम पानी का प्रवाह आधे से कम है।
1. पुराने सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट पानी में बोओडी के स्तर को 30 बीओडी तक ला सकते हैं इनको सुधारना होगा
2. दिल्ली सरकार को अपने अगले एक्शन प्लान में ऐसे सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाने होंगे जो बीओडी के स्तर को 10 तक ला सकें
3. डीएसआईडीसी और दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को ऐसी औद्योगिक इकाइयों की पहचान कर सख्त कदम उठाने होंगे कि वे उनके यहां से निकलने वाले प्रदूषित पानी को बिना ट्रीटमेंट के ना छोड़े
दिल्ली में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक यमुना में कुछ मुख्य जगहों पर प्रदूषण की स्थिति
1. 37 बीओडी होता निजामुद्दीन पुल के नीचे
2. 40 बीओडी आगरा कैनाल के कालिंदी कुंज के पास
3. 99 बोओडी सबसे ओखला बैराज के बाद होती है पानी में
4. (बीओडी यानी बायोलॉजीकल ऑक्सीजन डिमांड पानी और प्रदूषण के बीच मानक है इसके तहत सिर्फ तीन बीओडी ही सुरक्षित स्तर है)
जलबोर्ड के पास ट्रीटमेंट प्लांट तो हैं पर सीवेज सिस्टम नहीं
यमुना का दिल्ली में सबसे कम हिस्सा (करीब 48 किलोमीटर) है, लेकिन यमुना में सबसे ज्यादा गंदगी इसके 22 किलोमीटर के हिस्से में दिल्ली से गिरने वाले 18 बड़े नालों से होती है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक जलबोर्ड के दिल्ली की 45 प्रतिशत आबादी का कचरा बिना ट्रीटमेंट के सीधे यमुना में इन नालों से पहुंचता है। इसमें सबसे ज्यादा हिस्सेदारी नजफगढ़ ड्रेन की होती है, जहां से सबसे ज्यादा गंदा पानी में यमुना में पहुंचता है। आंकड़ों के मुताबिक राजधानी दिल्ली में नजफगढ़ नाले से 61 प्रतिशत, शाहदरा नाले से 17 प्रतिशत, दिल्ली गेट नाले से 6 प्रतिशत, बारापूला से 2.2 प्रतिशत और तुगलकाबाद नाले से 2.2 प्रतिशत प्रदूषित पानी यमुना में पहुंचता है। यमुना में जाने वाले कुल बीओडी का 91 प्रतिशत इन्हीं नालों से यमुना को मिलता है। बड़े नालों में गिरने वाले छोटे नालों पर इंटरसेप्टर न होने की वजह से बिना ट्रीटमेंट के पानी इनमें पहुंचता है। जलबोर्ड के 17 सीवेज ट्रीटमेंट प्लंट की क्षमता 2460 एमएलडी यानी 246 करोड़ लीटर गंदे पानी का ट्रीमेंट करने की है, लेकिन 150 करोड़ लीटर गंदा पानी की इनमें ट्रीटमेंट तक पहुंच पाता है। शहर भर का 380 करोड़ लीटर पानी यमुना में जाता है। जिसमें 60 प्रतिशत बिना ट्रीटमेंट के ही यमुना में पहुंच रहा है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के वरिष्ठ वैज्ञानिक आरएम भारद्वाज कहते हैं कि जलबोर्ड ने जो प्लांट ट्रीटमेंट के लिए लगाए हैं। उनमें से कुछ की क्षमता पानी को 30 बीओडी तक लाने की है। जबकि पानी में बीओडी का सुरक्षित स्तर 20 बीओडी तक होना चाहिए। राजधानी दिल्ली में 28 औद्योगिक क्षेत्र हैं। जहां से करीब 218 एमएलडी गंदा पानी निकलता है।
दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक मंगोलपुरी, लॉरेंस रोड, एसएमए नांगलोई, झिलमिल, ओखला, वजीरपुर, नरेला और बवाना की औद्योगिक इकाइयों का प्रदूषण मानक के हिसाब से सही नहीं हैं। इन इकाइयों में ट्रीटमेंट के लिए जो उपकरण लगे हैं। वे क्षमता के हिसाब से पानी का ट्रीटमेंट नहीं कर पा रहे हैं। दिल्ली के ग्रामीण क्षेत्रों में कोई सीवेज सिस्टम नहीं हैं। जिसके चलते यहां का गंदा पानी सीधे यमुना में जा रहा है। नई दिल्ली नगर पालिका परिषद के इलाके से 200 एमएलडी गंदा पानी निकलता है। बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक एनडीएमसी के ज्यादातर सीवर काफी पुराने हैं।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक यमुना नदी के प्रदूषण का मुख्य जरिया शहरों के नाले हैं जिसे यमुना में छोड़ा जाता है। दिल्ली सहित यमुनानगर, जगाधरी, करनाल, पानीपत, सोनीपत, दिल्ली, गुड़गांव, फरीदाबाद, गौतमबुद्ध नगर, गाजियाबाद, पलवल, वृंदावन, मथुरा, आगरा, फिरोजाबाद, इटावा आदि शहर गंदा पानी यमुना में छोड़ रहे हैं। जानकारी के मुताबिक युमना सात राज्यों से होकर बहती है। इसकी कुल लंबाई के 1376 किलोमीटर के हिस्से में उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में इसका हिस्सा करीब 21 प्रतिशत है। हिमाचल प्रदेश में यमुना का कुल हिस्सा 1.6 प्रतिशत, हरियाणा में 6.1 प्रतिशत, राजस्थान में 29.8 प्रतिशत, मध्य प्रदेश में 40 प्रतिशत और दिल्ली में सबसे कम करीब 2 प्रतिशत यमुना का हिस्सा है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक के मुताबिक यमुना का पहला हिस्सा यमुनोत्री से लेकर ताजेवाला तक 172 किलोमीटर बेहद साफ है। दूसरे हिस्से में यमुना ताजेवाला से वजीराबाद बैराज तक इसकी लंबाई 224 किलोमीटर है। इस दौरान यमुना उत्तर प्रदेश और हरियाणा के शहरों व कस्बों के पास होकर बहती है। यहां का पानी दिल्ली के मुकाबले बेहद साफ होता है। जबकि वजीराबाद से लेकर ओखला बैराज के बीच 22 किलोमीटर के हिस्से में यमुना सबसे अधिक प्रदूषित नदी है। कुल गंदगी का 70 प्रतिशत यमुना में यहीं से मिलता है। चौथे हिस्से में यमुना ओखला से लेकर चंबल तक सबसे लंबी यात्रा करती है। यह हिस्सा 490 किलोमीटर का है।
ओखला बैराज से लेकर चंबल तक बहती हुई यमुना बीच के कई शहरों मथुरा, आगरा होते हुए यहां पहुंचती है। दिल्ली से यमुना को मिली गंदगी यहां भी होकर जाती है। आखिरी हिस्से में यमुना करीब 468 किलोमीटर होती हुई चंबल से गंगा तक पहुंचती है। यहां पहुंचते-पहुंचते कई सारी नहरों का पानी मिलने से यमुना का पानी काफी हद तक साफ हो जाता है। बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक यमुना दिल्ली से इतनी गंदगी लेकर जाती है कि आगरा और मथुरा में पहुंचने पर भी इसका पानी साफ नहीं हो पाता है। चंबल नदी से मिलने पर रास्ते में कुछ प्रदूषण तत्व कम हो जाते हैं, लेकिन यमुना में बढ़ते प्रदूषण के चलते इसमें जलचर नहीं के बराबर रह गए हैं। कई हिस्से तो ऐसे हैं। जहां का पानी इतना प्रदूषित है वहां किसी भी तरह के जलचर नहीं हैं।
एनसीआर का भी इसमें कम नहीं योगदान
1. 70 फीसदी गंदगी मिलती है यमुना को दिल्ली के 22 किलोमीटर के हिस्से से
2. 10 वर्षों तक यही स्थिति रही तो बिल्कुल गंदे नाले में तब्दील हो जाएगी यमुना
3. 1376 किलो मीटर है यमुना की कुल लंबाई
4. 172 किलोमीटर यमुनोत्री से ताजेवाला तक सबसे साफ है यमुना
5. 21 प्रतिशत यमुना का हिस्सा है उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में
6. 40 प्रतिशत यमुना का हिस्सा है मध्य प्रदेश में
कौन से नाले कितना पानी बहाते हैं यमुना में
1. नजफगढ़ नाला 2064 एमएलडी
2. मैगजीन रोड नाला 12 एमएलडी
3.स्वीपर कॉलोनी नाला 4 एमएलडी
4. खैबर पास नाला 4 एमएलडी
5. मैटकॉफ हाउस नाला 6 एमएलडी
6. आईएसबीटी नाला 45 एमएलडी
7. टांगा स्टैंड नाला 5 एमएलडी
8. कैलाश नगर नाला 8 एमएलडी
9. सिविल लाइन नाला 40 एमएलडी
10. दिल्ली गेट पावर हाउस नाला 68 एमएलडी
11. नाला नंबर-14, 08 एमएलडी
12. बारापूला नाला 86 एमएलडी
13. महारानी बाग नाला 33 एमएलडी
14. अबू फजल नाला 26 एमएलडी
15. जैतपुर नाला 19 एमएलडी
16. तुगलकाबाद नाला 90 एमएलडी
17. शाहदरा नाला 638 एमएलडी
अभी तक यमुना की सफाई के लिए काम का ब्यौरा
1. 20 वर्षों में लगभग 1514.42 करोड़ से ज्यादा खर्च किए जा चुके हैं यमुन की सफाई पर
2. इस योजना के तीसरे चरण में 1656 करोड़ रुपए की संशोधित लागत के साथ मंजूरी दी गई है, जिसे दिल्ली जल बोर्ड द्वारा क्रियान्वित किया जा रहा है।
3. 1993 में की गई थी यमुना एक्शन प्लान की शुरुआत
4. 2000 में होना था प्लान के मुताबिक काम खत्म
5. 2003 तक इस प्लान का काम किया गया पूरा यमुना नहीं हुई साफ
6. 165 करोड़ रुपए खर्च किए इस दौरान
7. 2004 में हुई यमुना एक्शन के दूसरे प्लान की शुरुआत
8. 450 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च हुए प्रोजेक्ट पर
9. 700 करोड़ रुपए से खर्च किए जा चुके हैं सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट पर
क्या है दिल्ली की स्थिति
1. 3814 एमएलडी पानी यानी 381 करोड़ लीटर पानी रोजाना जलबोर्ड लेता है सप्लाई के लिए, ग्राउंड वाटर भी इसमें शामिल है
2. 17 प्लांट के जलबोर्ड के गंदे पानी को साफ करने के लिए
3. 2460 एमएलडी यानी 246 करोड़ लीटर क्षमता है प्लांट की पानी साफ करने की।
4. 150 करोड़ लीटर पानी ही पहुंचता है प्लांट में ट्रीटमेंट के लिए, बाकी बिना ट्रीटमेंट के जाता है यमुना
5. 60 प्रतिशत गंदा पानी ट्रीटमेंट के लिए नहीं पहुंच पाता है ट्रीटमेंट के लिए
पानी के लिए सीपीसीबी के मानक
1. कैटेगरी ए के तहत वह पानी जिसका ट्रीटमेंट करने के बादउसमें घुलने वाली ऑक्सीजन छह मिलीग्राम 1, बीओडी 2 मिलीग्राम 1, या कुल कॉलिफार्म 50 एमपीएन 100 एमएल होना चाहिए
2. कैटेगरी बी का पानी सिर्फ नहाने लायक होता है। इस पानी में ऑक्सीजन 5 मिलीग्राम 1 या उससे अधिक होनी चाहिए और बीओडी- 3 एमजी 1 होना चाहिए।
3. कैटेगरी सी का पानी ट्रीटमेंट के बाद पेयजल स्रोत है। इसमें घुलित ऑक्सीजन 4 मिलीग्राम 1 या उससे अधिक होनी चाहिए तथा बीओडी-3 मिलीग्राम 1 या उससे कम होना चाहिए।
4. कैटेगरी डी और ई का पानी वन्यजीवों के लिए तथा सिंचाई के लिए होता है। इसमें ऑक्सीजन 4 मिली ग्राम या उससे ज्यादा होनी चाहिए।
वजीराबाद से आगे सबसे जहरीली यमुना
वजीराबाद से ओखला बैराज के तकरीबन 23 किलोमीटर के दूरी में यमुना सबसे ज्यादा जहरीली है। यहां पर बीओडी की मात्रा 99 मिली है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक निजामुद्दीन पुल के नीचे यमुना का पानी सबसे ज्यादा प्रदूषित है। आंकड़ों के लिहाज से यमुना का फ्लड एरिया यानी बाढ़ जनित क्षेत्र करीब दो से तीन किलोमीटर तक है। मानसून को छोड़ दिया जाए तो यमुना का अपने न्यूनतम प्रवाह के हिसाब से भी नहीं बहती है।
वजीराबाद से पहले उठा लिया जाता है सप्लाई का पानी
हरियाणा से ड्रेन-2 के जरिए दिल्ली के लिए पानी छोड़ा जाता है। जलबोर्ड के अनुसार दिल्ली में सप्लाई के लिए वजीराबाद से पहले यमुना से 840 एमजीडी पानी उठा लिया जाता है। इसके बाद यमुना में दिल्ली की गंदगी डाले जाने की शुरुआत हो जाती है। एक के बाद एक 18 नालों से यमुना में प्रदूषित पानी जाता है। इसमें से आधे से ज्यादा पानी बिना ट्रीटमेंट के डाला जाता है। यहां से आगे यमुना में सिर्फ गंदा पानी रह जाता है। कोर्ट के निर्देशों के अनुसार यमुना में पानी का न्यूनतम प्रवाह 10 क्यूबिक प्रति सेकेंड होना चाहिए। यदि हम इसे बाल्टियों के हिसाब से निकाले तो 8 लाख 60 बाल्टी पानी हर दिन के हिसाब से यमुना में पानी की गति होनी चाहिए, लेकिन यमुना में न्यूनतम पानी का प्रवाह आधे से कम है।
क्या सलाह है प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की
1. पुराने सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट पानी में बोओडी के स्तर को 30 बीओडी तक ला सकते हैं इनको सुधारना होगा
2. दिल्ली सरकार को अपने अगले एक्शन प्लान में ऐसे सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाने होंगे जो बीओडी के स्तर को 10 तक ला सकें
3. डीएसआईडीसी और दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को ऐसी औद्योगिक इकाइयों की पहचान कर सख्त कदम उठाने होंगे कि वे उनके यहां से निकलने वाले प्रदूषित पानी को बिना ट्रीटमेंट के ना छोड़े
दिल्ली में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक यमुना में कुछ मुख्य जगहों पर प्रदूषण की स्थिति
1. 37 बीओडी होता निजामुद्दीन पुल के नीचे
2. 40 बीओडी आगरा कैनाल के कालिंदी कुंज के पास
3. 99 बोओडी सबसे ओखला बैराज के बाद होती है पानी में
4. (बीओडी यानी बायोलॉजीकल ऑक्सीजन डिमांड पानी और प्रदूषण के बीच मानक है इसके तहत सिर्फ तीन बीओडी ही सुरक्षित स्तर है)
दिल्ली से गिरने वाले 18 नाले बना रहे यमुना को नाला
जलबोर्ड के पास ट्रीटमेंट प्लांट तो हैं पर सीवेज सिस्टम नहीं
यमुना का दिल्ली में सबसे कम हिस्सा (करीब 48 किलोमीटर) है, लेकिन यमुना में सबसे ज्यादा गंदगी इसके 22 किलोमीटर के हिस्से में दिल्ली से गिरने वाले 18 बड़े नालों से होती है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक जलबोर्ड के दिल्ली की 45 प्रतिशत आबादी का कचरा बिना ट्रीटमेंट के सीधे यमुना में इन नालों से पहुंचता है। इसमें सबसे ज्यादा हिस्सेदारी नजफगढ़ ड्रेन की होती है, जहां से सबसे ज्यादा गंदा पानी में यमुना में पहुंचता है। आंकड़ों के मुताबिक राजधानी दिल्ली में नजफगढ़ नाले से 61 प्रतिशत, शाहदरा नाले से 17 प्रतिशत, दिल्ली गेट नाले से 6 प्रतिशत, बारापूला से 2.2 प्रतिशत और तुगलकाबाद नाले से 2.2 प्रतिशत प्रदूषित पानी यमुना में पहुंचता है। यमुना में जाने वाले कुल बीओडी का 91 प्रतिशत इन्हीं नालों से यमुना को मिलता है। बड़े नालों में गिरने वाले छोटे नालों पर इंटरसेप्टर न होने की वजह से बिना ट्रीटमेंट के पानी इनमें पहुंचता है। जलबोर्ड के 17 सीवेज ट्रीटमेंट प्लंट की क्षमता 2460 एमएलडी यानी 246 करोड़ लीटर गंदे पानी का ट्रीमेंट करने की है, लेकिन 150 करोड़ लीटर गंदा पानी की इनमें ट्रीटमेंट तक पहुंच पाता है। शहर भर का 380 करोड़ लीटर पानी यमुना में जाता है। जिसमें 60 प्रतिशत बिना ट्रीटमेंट के ही यमुना में पहुंच रहा है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के वरिष्ठ वैज्ञानिक आरएम भारद्वाज कहते हैं कि जलबोर्ड ने जो प्लांट ट्रीटमेंट के लिए लगाए हैं। उनमें से कुछ की क्षमता पानी को 30 बीओडी तक लाने की है। जबकि पानी में बीओडी का सुरक्षित स्तर 20 बीओडी तक होना चाहिए। राजधानी दिल्ली में 28 औद्योगिक क्षेत्र हैं। जहां से करीब 218 एमएलडी गंदा पानी निकलता है।
दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक मंगोलपुरी, लॉरेंस रोड, एसएमए नांगलोई, झिलमिल, ओखला, वजीरपुर, नरेला और बवाना की औद्योगिक इकाइयों का प्रदूषण मानक के हिसाब से सही नहीं हैं। इन इकाइयों में ट्रीटमेंट के लिए जो उपकरण लगे हैं। वे क्षमता के हिसाब से पानी का ट्रीटमेंट नहीं कर पा रहे हैं। दिल्ली के ग्रामीण क्षेत्रों में कोई सीवेज सिस्टम नहीं हैं। जिसके चलते यहां का गंदा पानी सीधे यमुना में जा रहा है। नई दिल्ली नगर पालिका परिषद के इलाके से 200 एमएलडी गंदा पानी निकलता है। बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक एनडीएमसी के ज्यादातर सीवर काफी पुराने हैं।