दिल्ली पहुंचा चांपानेर का पानी

Submitted by Hindi on Thu, 08/16/2012 - 12:22

चांपानेर-पावागढ़ में 50 हजार से ऊपर की आबादी के लिए पानी का इंतजाम बड़े पैमाने पर झील, बावड़ी, हौज, कुण्ड, तालाब समेत जल संरचनाओं के कई प्रकार राजसी लोगों के लिए गार्डन, फव्वारे, शानदार जलाशय बनाया गया। सिर्फ इतना ही नहीं, सुल्तान के योजनाकार जानते थे कि सिर्फ पानी के ढाचें बना देने से बादलों को आकर्षित नहीं किया जा सकता। इसके लिए सुल्तान ने हरीतिमा का भी पूरा इंतजाम किया। इन ढांचों ने सदियों तक न सिर्फ मैदानी, बल्कि ऊंची पहाड़ियों पर भी जलापूर्ति का संकट नहीं होने दिया।

जिसे समृद्धि चाहिए, वह बेपानी को कभी नहीं चुनता। अपनी राजधानी के लिए जिसने भी चुना, पानीदार को ही चुना। महरौली, तुगलकाबाद से लेकर लाल किले की सल्तनत तक दिल्ली पानी के कारण ही उजड़ी और बसी। सभ्यताओं का अंत और प्रारंभ पानी के कारण ही हुआ। दिल्लीवासियों को शायद यही याद दिलाने चांपानेर-पावागढ़ के पानी को वह दिल्ली ले आये हैं। मझोली उम्र, कद, दुबली-पतली काठी और सादा रंगीन कुर्ते पर सफेद पायजामा। राहुल गज्जर! देखकर यकीन नहीं होता कि उनकी आंखे इतनी गहरी हैं। पर उनकी खींची तस्वीरों को देखकर मैं कभी उन्हें देख रहा था और कभी उनकी खींची तस्वीरों के फोकस, फ्रेम और उसमें कैद गहराइयों को। एक लंबी साधना और समझ का प्रतीक उनके चित्रों की प्रदर्शनी-चांपानेर-पावागढ़: एन इंटेलिजेंट सिटी। मौका था जन्माष्टमी पर्व, 2012 पर आयोजित ‘रासरंग’। शीर्षकथा-प्रेम, शांति और जल। दिल्ली के आसमान की ओर निहारते लोटस टैंपल परिसर के भूमिगत ऑडोटोरियम के बाहर स्वागत किया, चांपानेर-पावागढ़ के पानी ने। शायद इस प्रदर्शनी के शुभारंभ के लिए जल पुरुष के नाम से मशहूर शख्सियत मैग्सेसे सम्मानित राजेन्द्र सिंह अनुकूल व्यक्ति ही थे। अच्छा लगा।

चांपानेर-पावागढ़! गुजरात के बड़ौदा शहर से कार द्वारा महज एक घंटे की दूरी पर स्थित। करीब 6 किमी के दायरे में फैला एक ऐतिहासिक शहर! खीचीं चौहान राजपूत शासन का केन्द्र!! मध्य कालीन इतिहास के महान गुजरात की मुगलिया राजधानी!! हिंदू राजपूत, जैन और इस्लामिया संस्कृतियों के अद्भुत सम्मिलन का प्रतीक!! ऊपर निगाह डालो तो पवित्र पहाड़ियों पर कलिका माता का मंदिर। नीचे तलहटी दूर-दूर तक फैली उत्थान-पतन की दर्ज कहानियां। दूसरी सदी जितनी पुरानी बसावट व अपनी जाने कितनी खूबियों के कारण यूनेस्को ने इसे हैरिटेज सिटी का दर्जा दिया है। लेकिन जिन खूबियों के कारण फोटोग्राफर राहुल गज्जर इसे कैद कर दिल्ली ले आये, वह है चांपानेर-पावागढ़ की सदियों पुरानी पानी प्रबंधन की अद्भुत समझ! उसे जमीन पर उतारने का गजब का कौशल और श्रमनिष्ठा! पानी को लेकर जिसकी जरूरत हम आज 21वीं सदी में भी और सबसे ज्यादा महसूस कर रहे हैं।

चांपानेर-पावागढ़, 1297 में खींची चौहान राजपूतों की राजधानी थी। जल प्रबंधन तंत्र के मौजूदा अवशेषों को देखकर ताज्जुब होता है। उनके डिजाइन, तकनीक तो उम्दा हैं ही, पानी के प्रति उनका ज्ञान भी गहरा है। सचमुच! उस समय के नगर नियोजकों व वास्तुविदों की सोच अत्यंत दूरगामी थी! वर्ष भर पानी के लिए पानी का पर्याप्त संग्रहण, भूजल रिचार्ज, वितरण के लिए तमाम जल संरचनायें कुएं, टैंक आदि। 1484 में इसी जलीय समृद्धि की वजह से सुल्तान मोहम्मद बगराह ने चांपानेर-पावागढ़ को महान गुजरात की राजधानी बनाने के लिए चुना। सुल्तान ने नई जरूरत के अनुसार इलाके के जल प्रबंधन तंत्र को पूरी समग्रता में देखा। 50 हजार से ऊपर की आबादी के लिए पानी का इंतजाम बड़े पैमाने पर झील, बावड़ी, हौज, कुण्ड, तालाब समेत जल संरचनाओं के कई प्रकार राजसी लोगों के लिए गार्डन, फव्वारे, शानदार जलाशय। सिर्फ इतना ही नहीं, सुल्तान के योजनाकार जानते थे कि सिर्फ पानी के ढाचें बना देने से बादलों को आकर्षित नहीं किया जा सकता। इसके लिए सुल्तान ने हरीतिमा का भी पूरा इंतजाम किया।

इन ढांचों ने सदियों तक न सिर्फ मैदानी, बल्कि ऊंची पहाड़ियों पर भी जलापूर्ति का संकट नहीं होने दिया। पानी की एक-एक बूंद कीमती है, जो समाज पूरी समझदारी के साथ पानी का संचयन और अनुशासित उपयोग के साथ करता है, वह अकाल के कठिन समय में भी बेपानी नहीं होता। पीने के पानी के लिए अलग ढांचा, भूजल पुनर्भरण के लिए अलग, अपने लिए अलग, मवेशियों के लिए अलग। भूजल को संकट के काल के लिए सुरक्षित रखा जाये। ऐसी तमाम समझदारियों पर आज हम तब विचार कर रहे हैं, जब संकट सिर पर आ गया है। लेकिन चांपानेर-पावागढ़ इस बात का प्रमाण है कि आज से सैकड़ों वर्ष पहले जब पानी के शोषण, प्रदूषण और अतिक्रमण के संकट नहीं थे; पानी से कमाने की हवस नहीं थी; उस काल में भी हमारे देश में पानी को संजोने का जलदर्शन था।

फोटोग्राफर राहुल गज्जर कोई जल विशेषज्ञ नहीं हैं। लेकिन पूरे दो दशक तक साल-दर-साल, मौसम-दर-मौसम अलग-अलग कोण और मूड से चांपानेर-पावागढ़ को अपने कैमरे में कैद करने के साथ राहुल गज्जर ने यह बहुत अच्छी तरह समझ गये कि चांपानेर-पावागढ़ के मंदिर-मस्जिद-मकबरों और जल संरचनओं के बीच बहुआयामी रिश्ता रहा है। यह रिश्ता भिन्न समय, काल और इतिहासों के बीच का भी है। इसी रिश्ते को लेकर दिल्ली पहुंची राहुल गज्जर की पानी प्रदर्शनी सचमुच काबिलेगौर थी। न सिर्फ चित्र, बल्कि समझ का कैनवस भी। जिसे देखकर आप कहें-आह चांपानेर! वाह चांपानेर!!

चांपानेर-पावागढ़ के पारंपरिक जल संचयन की राहुल गज्जर द्वारा खींची गई तस्वीर



चांपानेर-पावागढ़ के पारंपरिक जल स्रोतचांपानेर-पावागढ़ के पारंपरिक जल स्रोत

चांपानेर-पावागढ़ की ऐतिहासिक बावड़ीचांपानेर-पावागढ़ की ऐतिहासिक बावड़ी

चांपानेर-पावागढ़ में जानवरों के पीने का पानी अलग होता थाचांपानेर-पावागढ़ में जानवरों के पीने का पानी अलग होता था