नई दिल्ली – दिल्ली उच्च न्यायालय ने सरकार को नोटिस जारी करके उत्तरी दिल्ली में स्थित जहाँगीरपुरी और मायापुरी झील के बारे में “स्थिति रिपोर्ट” माँगी है। एक गैर-सरकारी संगठन ने गत दिनों दिल्ली के विभिन्न जल स्रोतों के प्रदूषणग्रस्त होने और उन पर मंडरा रहे खतरे को लेकर एक जनहित याचिका दायर की थी, उस पर संज्ञान लेते हुए न्यायालय ने यह नोटिस जारी किया है। उक्त याचिका में कहा गया है कि प्रशासन द्वारा इन क्षेत्रों को “जन उपयोग हेतु” खोलने के आदेश जारी किये गये हैं, जिनसे इनके समाप्त होने की आशंका है।
साढ़े चार एकड़ में फ़ैली मायापुरी झील फ़िलहाल दिल्ली के लोक निर्माण विभाग (PWD) के अधीन है। इस विभाग ने झील के चारों ओर फ़ैले अतिक्रमण को हटाने के लिये पहले ही दिल्ली नगर निगम को डेढ़ करोड़ रुपये चुका दिये हैं। दूसरी ओर जहाँगीरपुरी नामक एक दलदली भूमि है जो कि बीस वर्ष पहले दिल्ली जल बोर्ड को हस्तान्तरित की गई थी, लेकिन भूमि परिवर्तन कानूनों और मिलीभगत के जरिये इसका कुछ क्षेत्र PWD और दिल्ली पुलिस को बेच दिया गया। दिल्ली जल बोर्ड के अधिकारी स्वीकार करते हैं कि सरकार के राजस्व रिकॉर्ड के मुताबिक जहाँगीरपुरी को दलदली जल स्रोत माना गया है। हालांकि इस भूमि को “बंजर भूमि” घोषित कर दिया गया और दिल्ली के सन् 2021 के मास्टर प्लान में इस दलदली भूमि को “रहवासी” इलाका घोषित कर दिया गया है।
दिल्ली सरकार द्वारा यह निश्चित किया गया है कि 100 एकड़ से अधिक की इस भूमि का उपयोग PWD और पुलिस विभाग की रहवासी कालोनियाँ बनाने में उपयोग किया जायेगा। लेकिन विभिन्न पर्यावरणवादियों ने इस निर्णय को उच्च न्यायालय के आदेशों के विपरीत माना है। श्री वीके जैन जो कि एक पर्यावरणवादी हैं और एक NGO “तपस” चलाते हैं, कहते हैं कि “दिल्ली सरकार का यह जलभूमि अधिग्रहण आदेश उन विभिन्न भू-स्वामी संस्थाओं और सरकारी विभागों द्वारा न्यायालय में दिये गये हलफ़नामे का उल्लंघन है जो उन्होंने 4 अप्रैल 2002 में दिल्ली के विभिन्न जल स्रोतों को बचाने के सन्दर्भ में दिया था…”। हाईकोर्ट ने उक्त आदेश सन् 2000 में पारित किया था, जिसमें श्री जैन ने एक जनहित याचिका दायर करके दिल्ली के भूजल स्रोतों को बचाने और उन्हें बढ़ावा देने के समर्थन में दायर की थी। पिछले हफ़्ते जैन ने एक और आवेदन न्यायालय में दिया था, जिसके समर्थन में न्यायालय ने ताजा नोटिस जारी किया है।
श्री जैन आगे कहते हैं कि “भारत में सम्पन्न हुए अन्तर्राष्ट्रीय रामसर सम्मेलन में भारत सरकार द्वारा घोषणापत्र पर हस्ताक्षर करके यह घोषणा की गई थी कि इस प्रकार के जल स्रोत, दलदली जल भूमि और पानी की अन्य संरचनायें बचाने की पुरजोर पहल की जायेगी। जहाँगीरपुरी पहले से ही एक “मार्शलैण्ड” के रूप में संरक्षित है अतः दिल्ली सरकार द्वारा अपने नये मास्टर प्लान में इसे “आवासीय” घोषित करना भी न्यायालय को मंजूर नहीं हो सकता…”।
अब उच्च न्यायालय ने इन दोनों (मायापुरी एवं जहाँगीरपुरी) भूमियों के बारे में दिल्ली सरकार से राजस्व तथा अन्य सरकारी विभागों के लेख और रिकॉर्ड के द्वारा “वास्तविक स्थिति” की जानकारी माँगी है।
अनुवाद – सुरेश चिपलूनकर
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